Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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卐 के कारण आदि विषय जीवन-दृष्टि को और जीवन-व्यवहार को उदात्त व निर्मल संवेदना-प्रधान
करुणाशील बनाने की प्रेरणा प्रदान करता है। ___आठवें शतक के प्रथम उद्देशक में पुद्गल के तीन प्रकार, उनका परिणमन आदि की चर्चा +
आध्यात्मिक दृष्टि में वैज्ञानिक दृष्टि का संपुट लिए हुए है। ___ अपने पाठकों को एक बात विशेष रूप में कहना चाहता हूँ कि आगमों को एकमात्र जिनवाणी के म
ति श्रद्धा की दष्टि से न पढ़ें. परन्त श्रद्धा के साथ ज्ञान-पिपासा व जीवन शोधन की दष्टि भी रखें. तो ॐ स्वाध्याय का विशेष लाभ होगा।
सूत्र पाठ के भाषानुवाद के साथ जहाँ-जहाँ आवश्यकता हुई, वहाँ संक्षिप्त विवेचन भी हमने किया ॐ है। चूँकि बहुत से विषय बिना विवेचन किये पाठकों को समझ पाना बहुत कठिन होता। आगमकार ने + अनेक स्थानों पर प्रज्ञापनासूत्र का सन्दर्भ देखने की सूचना देकर विषय को बहुत ही संक्षिप्त किया है।
हमने प्रज्ञापनासूत्र का वह अंश सार रूप में यहाँ प्रस्तुत कर दिया है, ताकि पाठक को प्रज्ञापनासूत्र देखे के बिना ही पूरा विषय समझने में सुविधा रहेगी। ___ इसके विवेचन में मेरे द्वारा पूर्व में किये गये भगवती सूत्र के विवेचन का काफी अंश लिया है,
साथ ही पण्डित घेवरचन्द जी शास्त्री का हिन्दी विवेचन भी बहुत उपयोगी बना है। आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा किया गया विवेचन भी हमने सामने रखकर यथावश्यक उसका उपयोग किया है। अतः उक्त सम्पादकों तथा प्रकाशकों के प्रति हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन हमारा कर्तव्य होता है।
इस आगम का अनुवाद कार्य सम्पन्न होने के पश्चात् एक पृथक् भाग में पारिभाषिक शब्द-कोश परिशिष्ट रूप में प्रस्तुत करने का भी हम प्रयत्न कर रहे हैं। ___इसके सम्पादन में सदा की तरह मेरे शिष्य श्री वरुण मुनि, श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' तथा श्री सुरेन्द्र जी बोथरा ने पूर्ण सहयोग दिया है। इसी प्रकार प्रकाशन में भी जिन गुरुभक्तों ने अर्थ-सहयोग प्रदान किया है, उन सबके प्रति मैं हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।
मेरे परम श्रद्धेय गुरुदेव उ. भा. प्रवर्तक, राष्ट्रसन्त भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. का आशीर्वाद पद-पद पर मेरा सम्बल रहा है। मैं उन परम उपकारी गुरुदेव के प्रति विनयावनत् हूँ। ____ आशा और विश्वास है अंग्रेजी अनुवाद के साथ सचित्र भगवती सूत्र अनेक दृष्टियों से नवीनता ॥ लिए सबके लिए उपयोगी सिद्ध होगा। जैन स्थानक,
-प्रवर्तक अमर मुनि मानसा
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(प्रवर्तक)
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