Book Title: Adhyatma Navneet
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 7
________________ अध्यात्मनवनीत १५. श्री धर्मनाथ वन्दना हे धर्म जिन सद्धर्ममय सत् धर्म के आधार हो । भवभूमि का परित्याग कर जिन भवजलधि के पार हो ।। आराधना आराधकर आराधना के सार हो। धरमातमा परमातमा तुम धर्म के अवतार हो।। १६. श्री शान्तिनाथ वन्दना मोहक महल मणिमाल मंडित सम्पदा षट्खण्ड की। हे शान्ति जिन तृणसम तजी ली शरण एक अखण्ड की।। पायो अखण्डानन्द दर्शन ज्ञान बीरज आपने । संसार पार उतारनी दी देशना प्रभु आपने ।। १७. श्री कुन्थुनाथ वन्दना मनहर मदन तन वरन सुवरन सुमन सुमन समान ही। धनधान्य पूरित सम्पदा अगणित कुबेर समान थी।। थीं उरवसी सी अंगनाएँ संगनी संसार की। श्री कुन्थु जिन तृणसम तजी ली राह भवदधि पार की।। १८. श्री अरनाथ वन्दना हे चक्रधर जग जीतकर षट्खण्ड को निज वश किया। पर आतमा निज नित्य एक अखण्ड तुम अपना लिया।। हे ज्ञानधन अरनाथ जिन धन-धान्य को ठुकरा दिया। विज्ञानघन आनन्दघन निज आतमा को पा लिया ।। १९. श्री मल्लिनाथ वन्दना हे दुपद-त्यागी मल्लि जिन मन-मल्ल का मर्दन किया। एकान्त पीड़ित जगत को अनेकान्त का दर्शन दिया ।। तुमने बताया जगत को क्रमबद्ध है सब परिणमन । हे सर्वदर्शी सर्वज्ञानी नमन हो शत-शत नमन ।। जिनेन्द्र वन्दना २०. श्री मुनिसुव्रत वन्दना मुनिमनहरण श्री मुनीसुव्रत चतुष्पद परित्याग कर। निजपद विहारी हो गये तुम अपद पद परिहार कर ।। पाया परमपद आपने निज आतमा पहिचान कर । निज आतमा को जानकर निज आतमा का ध्यान धर ।। २१. श्री नमिनाथ वन्दना निजपद विहारी धरमधारी धरममय धरमातमा । निज आतमा को साध पाया परमपद परमातमा ।। हे यान-त्यागी नमी तेरी शरण में मम आतमा। तूने बताया जगत को सब आतमा परमातमा ।। २२. श्री नेमिनाथ वन्दना आसन बिना आसन जमा गिरनार पर घनश्याम तन । सद्बोध पाया आपने जग को बताया नेमि जिन ।। स्वाधीन है प्रत्येक जन स्वाधीन है प्रत्येक कन । पर द्रव्य से है पृथक् पर हर द्रव्य अपने में मगन ।। २३. श्री पार्श्वनाथ वन्दना तुम हो अचेलक पार्श्वप्रभु वस्त्रादि सब परित्याग कर। तुम वीतरागी हो गये रागादिभाव निवार कर ।। तुमने बताया जगत को प्रत्येक कण स्वाधीन है। कर्ता न धर्ता कोई है अणु अणु स्वयं में लीन है।। २४. श्री वीर वन्दना हे पाणिपात्री वीर जिन जग को बताया आपने । जगजाल में अबतक फंसाया पण्य एवं पाप ने ।। पुण्य एवं पाप से है पार मग सुख-शान्ति का। यह धरम का है मरम यह विस्फोट आतम क्रान्ति का ।। (दोहा) पुण्य-पाप से पार, निज आतम का धरम है। महिमा अपरम्पार, परम अहिंसा है यही ।।

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