Book Title: Adhyatma Navneet Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 5
________________ महावीर वन्दना (हरिगीतिका) जो मोह माया मान मत्सर, मदन मर्दन वीर हैं। जो विपुल विघ्नों बीच में भी, ध्यान धारण धीर हैं।। जोतरण-तारण, भव-निवारण, भव जलधि केतीर हैं।। वे वंदनीय जिनेश तीर्थंकर स्वयं महावीर हैं।। जो राग-द्वेष विकार वर्जित, लीन आतम ध्यान में। जिनके विराट विशाल निर्मल, अचल केवलज्ञान में ।। युगपद् विशद् सकलार्थ झलकें, ध्वनित हों व्याख्यान में। वे वर्द्धमान महान जिन, विचरें हमारे ध्यान में ।। जिनका परम पावन चरित, जलनिधि समान अपार है। जिनके गुणों के कथन में, गणधर न पावै पार है।। बस वीतराग-विज्ञान ही, जिनके कथन का सार है। उन सर्वदर्शी सन्मती को, वंदना शतबार है।। जिनके विमल उपदेश में, सबके उदय की बात है। समभाव समताभाव जिनका, जगत में विख्यात है।। जिसने बताया जगत को, प्रत्येक कण स्वाधीन है। कर्ता न धर्ता कोई है, अणु-अणु स्वयं में लीन है ।। आतम बने परमातमा, हो शान्ति सारे देश में। है देशना सर्वोदयी, महावीर के सन्देश में ।। जिनेन्द्र वन्दना (दोहा) चौबीसों परिग्रह रहित चौबीसों जिनराज । वीतराग सर्वज्ञ जिन हितकर सर्व समाज ।। (हरिगीतिका) १. श्री आदिनाथ वन्दना श्री आदिनाथ अनादि मिथ्या मोह का मर्दन किया। आनन्दमय ध्रुवधाम निज भगवान का दर्शन किया।। निज आतमा को जानकर निज आतमा अपना लिया। निज आतमा में लीन हो निज आतमा को पा लिया ।। २. श्री अजितनाथ वन्दना जिन अजित जीता क्रोध रिपु निज आतमा को जानकर । निज आतमा पहिचान कर निज आतमा का ध्यान धर ।। उत्तम क्षमा की प्राप्ति की बस एक ही है साधना। आनन्दमय ध्रुवधाम निज भगवान की आराधना ।। ३. श्री सम्भवनाथ वन्दना सम्भव असम्भव मान मार्दव धर्ममय धर्मातमा । तुमने बताया जगत को सब आतमा परमातमा ।। छोटे-बड़े की भावना ही मान का आधार है। निज आतमा की साधना ही साधना का सार है।। ४. श्री अभिनन्दननाथ वन्दना निज आतमा को आतमा ही जानना है सरलता। निज आतमा की साधना आराधना है सरलता ।। वैराग्य जननी नन्दनी अभिनन्दनी है सरलता। है साधकों की संगिनी आनन्द जननी सरलता ।।Page Navigation
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