Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 1
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha

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Page 1005
________________ (८३६) प्रसढ अनिधानराजेन्डः। असढ नसे कहियव्योऽहं, गोऽयमसो कहेयन्यो ॥ १६॥ (राजा) सो संतोससुहारस-पाणप्पवणो सुणिजए सवयं। तो कीर ! खीरमहुमडुर-बयण ! मह एवमुवकयं तुमए । (यकदेवः) अवि तरुणो दविणमिणं, पाविय पापहि पसरंति४ तुज्क वि अहं अवस्सं, करिस्समणुरुवमुवयारं ॥२०॥ (राजा) नणु सो महाकुलीणो, अह आगओ स खयरो, अदहलीलार पडिनियत्तो। ( यज्ञदेवः) को दोसो इह कुलस्स विमनस्स। कहियं सुपण पयं, इमस्स सो हरिसिओ हियए ॥२१॥ भश्चहलपरिमलेसु वि, इत्थंतरम्मि तत्था-गये गयं तं जहिच्छिया भमिरं । कुसुमेसु न कुँति कि किमओ?॥ ४५ ॥ पासिनु चिंता सुमओ, अहह अहो ! सुंदरोऽवसरो॥१२॥ (राजा) जर एवं ता किजउ, समतो गेडसोहणं तस्स। .. तो निवडिनियमिनडिओ, ठाउं करिसंनिदिम्मि जणइ पियं ।। (यादेवः) एवं किं देवस्स वि, पुरो जंपिज्जए अए अनियं॥ भणियं वसिहरिसिणा, कामियतित्थं श्म खितं ॥ २३ ॥ तो निवश्णा तलारो, चंदणभंडारिएण सह भणियो। जो इत्थ भिगुनिवार्य, करे सो लहर कामियं तु फलं। । भो! चक्कदेवगेहे, नटुं दव्वं गवेसेहि॥४७॥ . इय भाणिय पिया' सम, तहि वि पत्तो निलुक्को य ॥२४॥ सो चित नरवडणा, अहह! असंभावणिज्जमार। तब्बयणपेरिओ पुण, नीलारइखेयरो पिवासहियो। किं काया पाविजद, रविविवे तिमिरपम्भारो॥४॥ चलचवलकुंमलधरो, सप्पो गयणममाम्मि ॥१५॥ अहवा पहुणो आणं, करेमि पत्तो तमो गिहे तस्स। तं दह चिंता करी, कामियतित्थं मं खुजं इयं । पभणइ चंदणदब्व, नळं जाणेसि भो भर !॥ ४९ ॥ खेयरॉमिदुणं जायं, पमियं किर कीरमिहुणं पि ॥२६॥ (चक्रदेवः ) नहु नहु मुणेमि किंचि वि, तो किं मिणा तिरिय-तणेण मऊ ति चिंतिय नगाओ। (तलवरः) तो भो ! तुमए न कुप्पियध्वं मे। ऊंपावर सो तहियं, अहुडियं कीरमिहणं तं ॥२७॥ जं रायसासणणं, तुह गेहं किंपि जोइस्सं ॥५०॥ संचुन्नियंगुवंगो, हत्थी गलहत्यिो वि वियणाए । (चक्रदेवः) कोवस्स को गु समओ, फुरिय सुहझवसाओ, जाओ वंतरसुरो पवरो॥२०॥ सया पयापालणत्यमेव जओ। अश्सयकिलिकचित्तो, विसयपसत्तो सुनो वि संपत्तो। नयकुलहरस्स देव-स्स एस सयलो वि संरंजो ॥५१॥ रयणाश्लोहियक्खे, नरए अतिक्ख दलक्खे ॥ २६ ॥ तो तसवरो गिहतो, पविसियजा निणर्थ निहाले। इतश्व ता कंचणवासणयं, चंदणनामंकियं मयं ॥ २॥ अस्थि विदेहे सिरिच-कवालनयरम्मि सत्थवाहबरो। तो भणह सदुक्खमिमो, कुरो तए चकदेष! पत्तमिण । अप्पामियचक्कक्खो, सुमंगला पणश्णी तस्स ।। ३०॥ किह मित्तत्थवणीय, पयमि नियं ति सो प्रणा ॥ ५३॥ श्रद सो करिंदजीचो, चविळणं ताण नंदणो जाओ। तलवर:नामेण चक्कदेचो, सया वि गुरुजणबिहियसेवो ॥ ३१॥ कह चंदणनामंक, (चक्र०) नामविवज्जासमो कह वि जाये। उन्वयि श्यरो वि दु, जामो तत्थेव जन्नदेवु त्ति। तसबर:सोमपुरोहियपुत्तो, दुवे वि तरुणत्तमणुपत्ता ॥ ३२॥ जर एवं ता कित्तिय-मित्तं श्ह वासणे कणगं ॥ ५४॥ सम्भावकश्यवेहिं, जाया मित्तीर तेसिमन्नोनं । चक्रदेव:पुयकयकम्मदोसा, कया वि चिंतइ पुरोहियसुओ ।। ३३ ॥ चिर गोवियं तिन तहा, सुमरेमि अहं सयंचिय निपह । कद एस चक्कदेवो, इमाउ अतुच्चलचिवित्थरो। तलवर:पाविहिह फुड भंसं, ९ नायं अस्थि इद उवाप्रो ॥ ३४॥ भंमारिय! किसख, धणमिह सो प्राह अजुयमियं ॥५॥ चंदणसत्थाहगिह, मुसि दविणं सिवित्तु पयगिहे, तो गेडाविय नउलं, नियति सव्वं तहेव तं मिलियं । कहिउं निवस्स पुरो, भंसिस्सं संपयाठ श्मं ॥ ३५ ॥ भणइ पुणो रक्खिपह, भो नद! फुडक्खरं कहसु ॥ ५६ ॥ काउं तहेव स नणा, वयंस! गोवेसुमझ दविणमिणं । अह वासत्थं सहय, सुकीनिय कीलियं पचितम्मी। नियगेहे सो वितओ, एवं चिय कुणइ सरलमणो ॥ ३६॥ मित्तं दूसेमि कहे, तो चक्कदेवो पुणाह नियं ॥ ५७ ।। वत्ता पुरे पवत्ता, मुठं चंदीगडं तितो पुट्ठो। सलवर:सत्थाहसुएणेसो, दविणमिणं कस्स भो मित्त!?॥ ३७॥ कित्तियमित्तं परस-तियं धणं तुह गिहम्मि चिरे। सो आह मज्म दब्वं, तायभया गोविय तुद गिहम्मि । चक्रदेवाआसंका न मणागवि, कायमचा चक्कदेव! तए ॥ ३८॥ निवयं पि अस्थि बहुय, पजत मम परधणेणं ॥ ५० ॥ इत्तो य चंदणेणं, अमुगं अमुगं च मह गयं दव्वं । तो तमवरण सच, गिहं नियंतेण तं धणं पत्तं । कहियं निवस्स तेणं, नयरे घोसावियं एवं ॥ ३६ ।। कुविएण चक्कदेवो, हढेण नीरो निवसमीचे ॥ ५ ॥ चंदणगिहं पमुळं, जेणं केण वि कदेउ सो मज्क। रमा भणियं नणु जर, अप्पमिहयचक्कसत्यवाहसुए । रिहं न तस्स दंडो, पच्छा सारीरिमो मो ॥४०॥ नहु संनवर श्मं तो, कहेसु को इत्थ परमत्थो॥६॥ श्रद दिणपणगम्मि गप, पुरोहिपुत्तो निर्व भणइ देव!। परदोसकहणविमुहो, न किंचि जा जंप पमो साहे। जाविन जुज नियमि-सदोसफुमवियां काउं॥४१॥ बदयं विमंविऊणं, निविसओ कारिओ रन्ना ॥ ६ ॥ परमशविरुकमेय, ति धारिलं पारिमो न दिययम्मि । प्रद सो विसायविदुरो, गुरुपरिजवदवझलकियसरीरो। चंदणधणं भवस्सं, अस्थि गिहे चक्कदेवस्स ॥ ४२ ॥ चिंता किं मम संपर, पणटुमाणस्स जोपण १॥ ६ ॥ (राजा) नए सो गरिटुपुरिसो, रायविरुकं इमं कह करिज? | "वरं प्राणपरित्यागो, मा मानपरिवएडना । (यज्ञदेवः) गरुया वि लोहमोहिय-मश्णो चिटुंति बाल व४३ | प्राणत्यागे क्षणं दुःखं, मानभने दिने दिने" ॥ ६३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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