Book Title: Abhamandal Jain Darshan tatha Prayogik Sanshodhan
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Bharatiya Prachin Sahitya Vaigyanik Rahasya Shodh Sanstha

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Page 53
________________ આભામંડળ અને લેશ્યા 51 5. इह योगे सति लेश्या भवति, योगाभावे च न भवति । (पन्नवणा सूत्र पद-१७, लेश्यापद उद्देशक १, टीका) 6. संज्ञिनः समनस्काः ।। (तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय २, सूत्र - २५) 7. तथापि शीतरूक्षौ स्पर्शी आद्यानां तिसृणां लेश्यानां चित्तास्वास्थ्यजनने स्निग्धोष्णस्पर्शी उत्तरासां तिसृणां लेश्यानां परमसन्तोषोत्पादने साधकतमौ ।। (पन्नवणासूत्र, पद नं. १७, लेश्यापद उद्देशक - ४, सूत्र नं. २२८, मलयगिरिविरचिता टीका पृ. ३६७) 8. जीमूतनिद्धसंकासा, गवलरिट्ठगसन्निभा । खंजणजणनयननिभा, किण्हलेसा उ वण्णओ ||४|| (उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. ४) कण्हलेसा णं भंते ! वन्नेणं केरिसिया पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहा नामए जीमूते इ वा, अंजणे इ वा, खंजणे इ वा, कज्जले इ वा, गवले इ वा, जंबूफले इ वा, अद्दारिट्ठपुप्फे इ वा, परपुढे इ वा, भमरे इ वा, भमरावली इ वा, गयकलभे इ वा, किण्हकेसरे इ वा, आगासथिग्गले इ वा, किण्हासोए इ वा, कण्हकणवीरए इ वा, कण्हबंधुजीवए इ वा, (पन्नवणा सूत्र, पद नं. १७, लेश्यापद, उद्देशक - ४, सूत्र नं. २२६, पृ. ३६०) 9. नीलासोगसंकासा, चासपिच्छसमप्पभा । वेरुलियनिद्धसंकासा, नीललेसा उ वण्णओ ||५|| (उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. ५) नीललेस्सा णं भंते ! वन्नेणं केरिसिया पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहा नामए भिंगए इ वा, मिंगपत्ते इ वा, चासे इ वा, चासपिच्छए इ वा, सुए इ वा, सुयपिच्छे इ वा, सामा इ वा, वणराइ इ वा, उच्चंतए इ वा, पारेवयगीवा इ वा, मोरगीवा इ वा, हलहरवसणे इ वा, अयसीकुसुमे इ वा, वणकुसुमे इ वा, अंजणकेसियाकुसुमे इ वा, नीलुप्पले इ वा, नीलासोए इ वा, नीलकणवीरए इ वा, नीलबंधुजीवे इ वा, (पन्नवणा सूत्र, पद नं. १७, लेश्यापद, उद्देशक - ४, सूत्र नं. २२६, पृ. ३६०) 10. अयसीपुप्फसंकासा, कोइलच्छदसन्निभा । पारेवयगीवनिभा, काउलेसा उ वण्णओ ॥६॥ (उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. ६) काउलेस्सा णं भंते ! वन्नेणं केरिसिया पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहा नामए खदिरसारए इ वा, कइरसारए इ वा, धमाससारे इ वा, तंबे इ वा, तंबकरोडे इ वा, तेवच्छिवाडे इ वा, वाइंगणिकुसुमे इ वा, कोइलच्छदकुसुमे इ वा, जवासाकुसुमे इ वा, (पन्नवणा सूत्र, पद नं. १७, लेश्यापद, उद्देशक - ४. सूत्र नं. २२६, पृ. ३६०) 11. हिंगुलधाउसंकासा, तरुणाइच्चसंन्निभा । सुअतुंडपईवनिभा, तेउलेसा उ वण्णओ ।७।। (उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. ७) तेउलेस्सा णं भंते ! वन्नेणं केरिसिया पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहा नामए ससरुहिरए इ वा, उरब्भरुहिरे इ वा, वराहरुहिरे इ वा, संबररुहिरे इ वा, मणुस्सरुहिरे इ वा, इंदगोपे इ वा, बालेंदगोपे इ वा, बालदिवायरे इ वा, संझारागे इ वा, गुंजद्धरागे इ वा, जातिहिंगुले इ वा, पवालंकुरे इ वा, लक्खारसे इ वा, लोहितक्खमणी इ वा, किमिरागकंबले इ वा, गयतालुए इ वा, चीणपिट्ठरासी इ वा,...... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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