Book Title: Abhamandal Jain Darshan tatha Prayogik Sanshodhan
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Bharatiya Prachin Sahitya Vaigyanik Rahasya Shodh Sanstha
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આભામંડળ : જેને દર્શન તથા પ્રાયોગિક સંશોધન
(पन्नवणा सूत्र, पद नं. १७, लेश्यापद, उद्देशक - ४, सूत्र नं. २२६, पृ. ३६१) ___12. हरियालभेयसंकासा, हलिद्दाभेयसंन्निभा । सणासणकुसुमनिभा, पम्हलेसा उ वण्णओ ||८|
(उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. ८) पम्हलेस्सा णं भंते ! वन्नेणं केरिसिया पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहा नामए चंपे इ वा, चंपयछल्ली इ वा, चंपयभेदे इ वा, हालिद्दा इ वा, हालिद्दगुलिया इ वा, हालिद्दभेदे इ वा, हरियाले इ वा, हरियालगुलिया इ वा, हरियालभेदे इ वा, चिउरे इ वा, चिउररागे इ वा, .......... अल्लइकुसुमे इ वा, चंपयकुसुमे इ वा, कण्णियारकुसुमे इ वा, ........ कोरिंटमल्लदामे इ वा, पीतासोगे इ वा, पीतकणवीरे इ वा, पीतबंधुजीवे इ वा, .......
(पन्नवणा सूत्र, पद नं. १७, लेश्यापद, उद्देशक - ४. सूत्र नं. २२६, पृ. ३६१) 13. संखंककुंदसंकासा, खीरधारासमप्पभा । रययहारसंकासा, सुक्कलेसा उ वण्णओ ।।९।।
(उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. ९) सुक्कलेस्सा णं भंते ! वन्नेणं केरिसिया पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहा नामए अंके इ वा, संखे इ वा, चंदे इ वा, कुंदे इ वा, दगे इ वा, दगरए इ वा, दधी इ वा, दहिघणे इ वा, खीरे इ वा, खीरपुरए इ वा....
(पन्नवणा सूत्र, पद नं. १७, लेश्यापद, उद्देशक - ४, सूत्र नं. २२६, पृ. ३६१) ____14. जह कडुअतुंबगरसो, निंबरसो कडुअरोहिणिरसो वा । एत्तोवि अणंतगुणो, रसो उ किण्हाइ नायव्यो ।।
(उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. १०) 15. जह तिकडुअस्स य रसो, तिक्खो जहहत्थिपिप्पलीए वा । एत्तोवि अणंतगुणो, रसो उ नीलाइ नायव्वो ।।११।।
(उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. ११) ____16. जह तरुणअंबगरसो, तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ | एत्तोवि अणंतगुणो, रसो उ काऊइ नायव्वो ||१२||
(उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. १२) 17. जह परिणयंबगरसो, पक्ककविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तोवि अणंतगुणो, रसो उ तेऊइ नायव्वो ||१३।।
(उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. १३) 18. वरवारूणीइ व रसो, विविहाण व आसवाण जारिसओ । महुमेरगस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएणं ।।१४।।
_(उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. १४) 19. खज्जूरमुद्दियरसो, खीररसो खंडसक्कररसो वा। एत्तोवि अणंतगुणो, रसो उ सुक्काइ नायव्वो ||१५||
(उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन -३४, लेश्याध्ययन, गाथा नं. १५) 20. जह गोमडस्स गंधो, सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स । एत्तोवि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं ।।१६।।
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