Book Title: Aavashyak Digdarshan
Author(s): Amarchand Maharaj
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 7
________________ मानव जीवन का महत्त्व '-"जिस पण देवता मेरुशिखर से उड़े, कल्पना करो, उसी क्षण किसी गृहस्थ के यहाँ एक हजार वर्ष की आयु वाला पुत्र उत्पन्न हुआ। कुछ वर्ष पश्चात् माता-पिता परलोकवासी हुए । 'पुत्र बडा हुआ और उसका विवाह होंगया। वृद्धावस्था में उसके भी पुत्र हुआ और बूढा हजार वर्ष की आयु पूरी करके चल बसा . गौतम स्वामी ने बीच में ही तर्क किया--"भन्ते ! वे देवता, जो यथाकथित शीघ्र गति से लोक का अन्त लेने के लिए निरन्तर दौड़ लगा रहे थे, हजार वर्ष मे क्या लोक के छोर तक पहुंच गए ?" भगवान् महावीर ने वस्तुस्थिति की गम्भीरता पर बल देते हुए कहा-"गौतम, अभी कहाँ पहुँचे हैं ? इसके बाद तो उसका पुत्र, फिर उसका पुत्र, फिर उसका भी पुत्र, इस प्रकार एक के बाद एकएक हजार वर्ष की आयु वाली सात पीढ़ी गुजर जायँ, इतना ही नहीं, उनके नाम गोत्र' भी विस्मृति के गर्भ में विलीन हो जाय, तब तक वे देवता चलते रहे. फिर भी लोक का अन्त नहीं प्राप्त कर सकते। इतना महान् और विराट् है यह ससार ।' -भगवती ११, २०, सू० ४२१ । जैन साहित्य मे विश्व की विराटता के लिए चौदह राजु की भी एक मान्यता है । मूल चौदहराजु और वर्ग कल्पना के अनुसार तीन सौ से कुछ अधिक राजु का यह संसार माना जाता है । एक व्याख्याकार राजु का परिमाण बताते हुए कहते हैं कि कोटिमण लोहे का गोला यदि ऊँचे आकाश से छोडा जाय और वह दिन रात अविराम गति से नीचे गिरता-गिरता छह मास में जितना लम्बा मार्ग तय करे, वह एक राजु की विशालता का परिमाण है। विश्व की विराटता का अब तक जो वर्णन आपने पढ़ा है, सम्भव है, श्रापकी कल्पना शक्ति को स्पर्श न कर सके और आप यह कह कर अपनी बुद्धि को सन्तोष देना चाहें 'कि-'यह सब पुरानी गाथा है, किवदन्ती है । इसके पीछे वैज्ञानिक विचार धारा का कोई आधार नहीं

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