Book Title: Aaptpariksha Author(s): Umravsinh Jain Publisher: Umravsinh Jain View full book textPage 7
________________ AAAAAAAPr.... (.२ ) सकते, इस लिये परीक्षा कर के सत्यमार्ग बताने वाले को जान लेना चाहिए, और उसी के बताये हुए मार्ग पर चल कर मोक्ष धाम में पहुंचना चाहिये । इस ग्रन्थ के करती श्री विद्यानन्दस्वामी ने इस ही प्रकार के विचार वाले पुरुषों के लिये प्राप्त अर्थात् मोक्ष का सचा मार्ग बताने वाले पुरुष की इस "आप्त परीक्षा" ग्रन्थ में परीक्षा की है । और वैशेषिक, सांख्य, बौद्ध, व वेदान्त आदि दर्शनों के कर्ताओं में सत्यवक्ता का लक्षण सर्वज्ञपना व वीतरागपना न पाकर अन्त में अतिदेव को उपर्युक्त लक्षण से सत्यार्थवक्ता सिद्ध किया है। (श्रीमद्विद्यानन्दस्वामीकासंक्षिप्तपरिचय) श्री विद्यानन्दस्वामी. का विद्याविषयक परिचय देना तो केवल सूर्य को दीपक दिखाना है। क्योंकि उक्त महात्मा के बनाये हुए, अष्टसहस्त्री, श्लोकवार्तिक, विद्यानंदमहोदय, वुद्धेशभवनव्याख्यान, प्राप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, प्रमाणमीमांसा, प्रमाणनिर्णय, आदि ग्रन्थ इनकी कीर्ति को दिग्दिगन्तव्यापिनी करने के लिये काफी हैं, इसलिये इस विषय में कुछ भी न लिखकर, हम पाठकों को श्री पं० नाथूरामजी प्रेमी द्वारा सम्पादित जैन-हितैषी के आधार पर इतनाही बतलाना उचित समझते हैं कि उक्त महात्मा मगधदेश के राजाPage Navigation
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