Book Title: Aagam 08 ANTKRUT DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०८)
प्रत
सूत्रांक
[६]
दीप
अनुक्रम
[१३]
“अन्तकृद्दशा” - अंगसूत्र- ८ ( मूलं + वृत्तिः)
वर्ग: [३],
अध्ययनं [C]
मूलं [६]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [०८], अंग सूत्र - [०८] "अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
अन्तकृद्द
शाळे
॥ ५॥
गारा जं चैव दिवस मुंडा भवेत्ता अगाराओ अणगारियं पव्वतिया तं चैव दिवस अरहं अरिट्ठनेमीं वंदंति णमंसंति २ एवं व० - इच्छामो णं भंते! तुमेहिं अन्भणुन्नाया समाणा जावजीवाए उद्वेणं अणि| क्खित्तेणं तवकम्मसंजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरित्तते, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पंडि०, तते णं छ अणगारा अरया अरिट्ठनेमिणा अन्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छछद्वेणं जाव विहरति, तते णं छ अणगारा अन्नया कयाई छट्ठक्खमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेंति जह गोयमो जाव इच्छामो णं छट्ठक्खमणस्स पारणए तुम्भेहिं अन्भणुन्नाया ससाणा तिहिं संघाडएहिं बारवतीए नगरीए जाव अडित्तते, अहासुहं, तते णं ते छ अणगारा अरया अरिनेमिणा अन्भणुष्णाता समाणा अहं अरिइनेमिं वदति णमंसंति २ अरहतो अरिनेमिस्स अंतियात सहसंबवणातो पडिनिक्स्वमंति २ तिहिं संघाडएहिं अतुरियं जाव अडंति, तत्थ णं एगे संघाडए बारवतीए नगरीए उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाते अडमाणे २ वसुदेवस्स रनो देवतीए देवीते गेहे अणुपविट्ठे, तते णं सा देवती देवी ते अणगारे एजमाणे पासति पासेसा हद्व जाब हियया आसणातो अन्भुट्टेति २ सत्तट्ट पयाई तिक्खुत्तो
१. 'जं चैव दिवस'ति यत्रैव दिवसे ते मुण्डा भूत्वा अगारादनगारितां प्रत्रजिताः 'तं चैव दिवस'ति तत्रैव दिवसे २ 'कुलाई 'ति गृहाणि ।
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मूल-संपादने अत्र एकः मुद्रण-दोष: दृश्यते - शीर्षक-स्थाने सू० ६ स्थाने सू० ५ मुद्रितं
गजसुकुमारस्य कथा
~13~
३ वर्गे
गजसुकुमारा
८ ध्ययनं
सु० ५
॥ ५॥
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