Book Title: Aagam 08 ANTKRUT DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ आगम (०८) “अन्तकृद्दशा” - अंगसूत्र-८ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [3], ---------------------- अध्ययनं [८] ----------------------- मूलं [६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०८], अंग सूत्र - [०८] "अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्राक ॥ अन्तकृद्द- णिते, अहं ने अपना अपुन्ना अकयपुन्ना एस्तो एकतरमपि न पत्ता, ओहय जाव झियायति । हर्म च णं कण्हे ३ वर्ग शाह लवासुदेवे पहाते जाव विभूसिते देवतीए देवीए पायवदते हथ्यमागच्छति, तते णं से कण्हे वासुदेवे देवई देविंद गजसुकु॥८ पासति २ सा देवतीए देवीए पायग्गहणं करेति २ देवती देवीं एवं वदासि-अन्नदा णं अम्मो! तुम्भे ममं मारा पासेत्सा हट्ठ जाव भवह, किपणं अम्मो! अन तुन्भे ओहय जाव झियायह?, तए णं सा देवती देवी ८ध्ययन कण्हं वासुदेवं एवं व०-एवं खलु अहं पुत्ता! सरिसए जाव समाणे सत्त पुत्ते पयाया नो चेव णं मए सू०५ एगस्सवि बालत्तणे अणुभूते तुमंपिय णं पुत्ता! ममं छहं २ मासाणं ममं अंतियं पादवंदते हब्वमा गच्छसि तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयातो जाव झियामि, तए णं से कण्हे वासुदेवे देवतिं देवि एवं व०-मा |तुम्भे अम्मो! ओहय जाव झियायह अहण्णं तेहा घत्तिस्सामि जहा णं ममं सहोदरे कणीयसे भाउए| भविस्सतीतिकट्ठ देवतिं देविंताहिं इटाहिं वरमूहि समासासेतिर ततो पडिनिक्खमति २जेणेच पोसहसाला| दीप अनुक्रम [१३] IMi ॥ ८ 'एत्तोत्ति विभक्तिपरिणामादेषामुक्तविशेषणवतां डिम्भानां मध्यात् एकतरमपि-अन्यतरविशेषणमपि डिम्भं न प्राप्ता इत्यु-13 |पहत्तमनःसङ्कल्पा भूगतदृष्टिका करतले पर्यस्तित्तमुखी ध्यायति । २ वहा पत्तिस्सामिति यतिध्ये 'कणीयसेचि कनीयान्-कविष्ठो | लघुरित्यर्थः । मूल-संपादने अत्र एक: मुद्रण-दोष: दृश्यते-शीर्षक-स्थाने सू० ६ स्थाने सू० ५ मुद्रितं गजसुकुमारस्य कथा ~ 19~

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69