Book Title: Aagam 08 ANTKRUT DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०८)
प्रत
सूत्रांक
[ ७, ८]
दीप
अनुक्रम
[१४-१७]
वर्ग: [३, ४], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित
अन्तकृदशाहे
॥ १४ ॥
“अन्तकृद्दशा” - अंगसूत्र- ८ ( मूलं + वृत्तिः)
अध्ययनं [९-१३, १-१०]
मूलं [७,८]
आगमसूत्र - [०८], अंग सूत्र [०८] "अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः
Eticati
धारिणी सीहं सुमिणे जहा गोयमे नवरं सुमुहे नामं कुमारे पन्नासं कन्नाओ पन्नासदाओ चोदसपुब्बा अहिज्जति वीसं वासाई परियातो सेसं तं चैव सेतु सिद्धे निक्खेवओ । एवं दुम्मुहेवि कूवदारएवि, तिन्निवि बलदेवघारिणीसुया, दारुएवि एवं चैव, नवरं वसुदेवधारिणिसुते । एवं अणाधिट्ठीवि वसुदेवधारिणीसुते, एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव सं० अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तचस्स वग्गस्स तेरसमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नन्ते ३, (सू० ७ ) जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्सेणं तच्चस्स वग्गस्स अयमठ्ठे पं० चत्थस्स के अट्ठे पन्नत्ते ?, एवं खलु जंबू सम० जाव सं० चउत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं० जालि १ | मयालि २ उबयाली ३ पुरिससेणे व ४ वारिसेणे य ५ । पज्जुन ६ संव ७ अनिरुद्धे ८ सचनेमी य ९ दढनेमी १० ॥ १ ॥ जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं चत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता पदमस्स णं | अक्षयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते १, एवं खलु जंबू । तेणं का० बारवती नगरी तीसे जहा पढने कण्हे वासुदेवे आहेवचं जाव विहरति, तत्थ णं बारवतीए णगरीए वसुदेवे राया धारिणी वन्नतो जहा गोयमो नवरं जालिकुमारे पन्नासतो दातो बारसंगी सोलस वासा परिताओ सेसं जहा गोयमस्स जाव सेतु सिद्धे । एवं मयाली उचयाली पुरिससेणे य वारिसेणे य। एवं पज्जुन्नेवित्ति, नवरं कण्हे पिया रुपिणी माता । एवं संवेवि, नवरं जंबवती माता । एवं अनिरुद्धेवि नवरं पज्जुने पिया वेदम्भी माया । एवं सचनेमी, नवरं समुदविजये पिता सिवा माता, दढनेमीवि, सब्बे एगगमा, चउत्थवग्गस्स निक्खेवओ। (सू०८) जति णं भंते!
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~ 31~
४ वग गजसुकुभारा
८ ध्ययनं
सू० ७-८
॥ १४ ॥
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