Book Title: Aagam 08 ANTKRUT DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
“अन्तकृद्दशा” - अंगसूत्र-८ (मूलं+वृत्ति:)
(०८)
वर्ग: [६], --
...........................- अध्य यन [३]------------ -- मूल [१३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०८], अंग सूत्र - [०८] "अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक
गरस्स बहिया एत्य णं महं एगे पुप्फारामे होत्था कण्हे जाब निउरंवभूते दसद्धवन्नकुसुमकुसुमिते पासातीए ४, तस्स णं पुष्फारामस्स अदूरसामंते तत्थ णं अज्जुणयस्स मालापारस्स अजतपज्जतपितिपज्जयागए |अणेगकुलपुरिसपरंपरागते मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था, पोराणे दिव्वे सचे जहा पुण्णभहे, तत्व णं मोग्गरपाणिस्स पडिमा एगं महं पलसहस्सणिकपणं अयोमयं मोग्गरं गहाय चिट्ठति, त. से अज्जुणते मालागारे बालप्पभितिं चेव मोग्गरपाणिजक्खभत्ते यावि होत्था, कल्लाकल्लिं पच्छियपिडगाई गेण्हति २रायगिहातो नगरातो पडिनिक्खमति २ जेणेव पुप्फारामे तेणेव उ०२ पुप्फुचयं करेति २ अग्गाई वराई पुप्फाई गहाइ २ जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खाययणे तेणेव उ. मुग्गरपाणिस्स जक्खस्स महरिहर पुष्फचणयं करेति २ जनुपायवडिए पणामं करेति, ततो पच्छा रायमग्गंसि वित्तिं कप्पेमाणे विहरति, तत्थ णं रायगिहे नगरे लेलिया नाम गोट्ठी परिवसति अहा जाव परिभूता जंकयसुकया यावि होत्था, तकराय-13 गिहे णगरे अन्नदा कदाइ पैमोदे घुढे यावि होत्या, त० से अजुणते मालागारे कल्लं पभूयतराएहिं पुप्फेहिं|
[१३]
दीप अनुक्रम
[२७]
किण्हे जाव'त्ति इह यावत्करणात् 'किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे' इत्यादि मेघनिकुरम्बभूत इत्येतदन्त आरामवर्णको |रश्या । २ 'ललिय'त्ति दुर्ललितगोष्ठी-भुजङ्गसमुदायः, आत्या यावच्छब्दादीप्ता बहुजनस्यापरिभूता अंकयमुकयत्ति यदेव कृतं शोभन नमशोभनं वा तदेव सुतु कृतमित्यभिमन्यते पितृपौरादिभिर्यस्याः सा यत्कृतसुकता। ३ 'पमोए'त्ति महोत्सवः ।
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अर्जूनमालागारस्य कथा
~ 40~
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