Book Title: Aagam 08 ANTKRUT DASHA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ आगम (०८) “अन्तकृद्दशा” - अंगसूत्र-८ (मूलं+वृत्ति:) वर्ग: [३], ------------------------ अध्ययनं [८] --------------------- मूलं [६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०८], अंग सूत्र - [०८] "अन्तकृद्दशा" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ३ वर्गे प्रत सूत्राक अन्तकृह- अणुपविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे, ततो पच्छा सिद्धे जावप्पहीणे, तत्थ णं शारे अहासंनिहितेहिं देवेहिं सम्मं आराहितंतिकहु दिब्वे सुरभिगंधोदए बुढे वसद्धवन्ने कुसुमे निवाडिते चेलुक्खेवे| | गजमुकुकए दिव्ये य गीयगंधब्वनिनाये कए पावि होत्था । तते णं से कण्हे वासुदेवे कलं पाउपभायाते जाव जलते 5 मारा ॥१२॥ हाते जाव विभूसिए हथिर्खधवरगते सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरेज सेयबरचामराहिं उडुब्वमाणीहिं ८ध्ययन महया भडचडगरपहकरवंदपरिक्खित्ते बारवर्ति गरिं मज्झमझेणं जेणेव अरहा अरिहतेणेव पहारस्थ सू०६ है गमणाए, तते णं से कण्हे वासुदेवे बारवतीए नयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छमाणे एकं पुरिसं पासति जुन्नं | जराजजरियदेहं जाव किलंतं मह तिमहालयाओ इगरासीओ एगमेगं इट्टगं गहाय बहियारत्धापहातो, अंतोगिहं अणुप्पविसमाणं पासति, तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स पुरिसस्स अणुकंपणट्ठाए हत्थिखंधवरगते दीप अनुक्रम [१३] १ 'अणंते' इह यावत्करणादिदं दृश्यम्-'अणुत्तरे निवाघाए निरापरणे कसिणे पडिपुन्नेति। २ सिद्धे' इह यावत्करणात् बुद्ध मुत्ते परिनिव्वुए'त्ति दृश्य, ३ 'गीतगंधवनिनाए'त्ति गीतं सामान्य गन्धर्व तु मृदङ्गादिनादसम्मिश्रमिति, ४ भदचडगपहकरवंदपरिक्खित्ते' भटानां ये घटकराहकरा-विस्तारवत्समूहास्तेषां यद्वन्दं तेन परिक्षिप्तः । ५ 'पहारेत्य गमणाएं सि गमनाय संप्रधारितवानित्यर्थः। ६ 'जुन्न' इह यावत्करणात् 'जराजजरियदेहं आउर झुसिय' बुभुक्षितमित्यर्थः 'पिवासियं दुचलं' इति द्रष्टव्यमिति । ७ 'महइभहालयाउत्ति महातिमहतः इष्टकाराशेः सकाशात् , ॥१२॥ SAREauratonintamational गजसुकुमारस्य कथा ~ 27~

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69