Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Churni
Author(s): Sthaviracharya, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BHAGAVATĪCŪRNI भगवतीचूर्णिः L. D. Series : 130 General Editor Jitendra B. Shah Edited By: Rupendra Kumar Pagariya विधामदिन L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD - 380 009 ducation Internatione Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BHAGAVATĪCŪRNI ī L. D. Series : 130 General Editor Jitendra B. Shah Edited by : Rupendrakumar Pagariya भारतीय L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD - 380 009 2010_04 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L. D. Series: 130 2010_04 Bhagvaticurni Editor Rupendrakumar Pagariya Published by Dr. Jitendra B. Shah Director L. D. Institute of Indology Ahmedabad First Edition: January, 2002 ISBN 81-85857-12-1 Price: Rs. 150 Typesetting Swaminarayan Mudrana Mandir 3, Vijay House, Nava Vadaj, Ahmedabad-13. Tel. 7432464, 7415750 Printer Navprabhat Printing Press, Gheekanta Road, Ahmedabad Tel. 5508631, 5509083 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः • सम्पादक . रूपेन्द्रकुमार पगारिया भारता लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद (गुजरात राज्य)-३८०००९. पर 2010_04 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ला. द. ग्रंथश्रेणी : १३० भगवतीचूर्णिः संपादक रूपेन्द्रकुमार पगारिया प्रकाशक डॉ. जितेन्द्र बी. शाह नियामक लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अहमदाबाद प्रथम आवृत्ति : जनवरी २००२ ISBN 81-85857-12-1 मूल्य : रु. १५० : टाइप सेटिंग : श्री स्वामिनारायण मुद्रण मंदिर ३, विजय हाउस, नवावाडज, अहमदाबाद-१३. फोन : ७४३२४६४, ७४१५७५० : मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस घीकांटा रोड, अहमदाबाद-१. फोन : ५५०८६३१. ५५०९०८३ 2010_04 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय भगवतीचूर्णि का प्रकाशन करते हुए हमें अत्यन्त आनन्द की अनुभूति हो रही है। व्याख्याप्रज्ञप्ति अपरनाम भगवतीचूर्णि जैन आगम ग्रंथो में एक महत्त्वपूर्ण आगम ग्रंथ है। प्रस्तुत आगम ग्रंथ पर रची गई चूर्णि अद्यावधि अप्रगट थी । मूल ग्रंथ की जटिलता और चूर्णि ग्रंथ की विशिष्ट शैली के कारण भी प्रस्तुत ग्रंथ अप्रगट रहा था । सांप्रत ग्रंथ के संपादन करने का प्रयास भी हुआ किन्तु ग्रंथ की दुरुहता के कारण संपादन कार्य रुका ही रहा । बहुत बडी इस चुनौती की बात हमने पं. श्री रूपेन्द्रकुमार पगारियाजी को कही। उन्हों ने चुनौति का स्वीकार किया और संपादन कार्य प्रारंभ किया। उपलब्ध हस्तप्रतों के आधार पर कठिन कार्य का आरंभ तो हुआ किन्तु आपके सामने भी बहुत कठिनाईयाँ आई किन्तु आपने संपादन कार्य चालु ही रखा और धीरे धीरे गति, प्रगति होती रही । हमें इस बात का आनन्द है कि आज प्रस्तुत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है । पं. रूपेन्द्रकुमारजी पगारियाजी प्राकृत भाषा एवं जैन धर्म शास्त्र के विद्वान है । आपने कई अप्रकाशित प्राकृत ग्रंथो का संपादन किया उसी शृंखला में आज एक नई कडी जुड़ रही है । आपने अपार परिश्रम करके प्रस्तुत ग्रंथ प्रकाशित किया है जिसके लिए हम आपके आभारी है। हमें आशा है कि प्रस्तुत ग्रंथ जैन आगम शास्त्र के अध्येताओं को, जिज्ञासुओं को और धर्म-दर्शन के संशोधको को उपयोगी सिद्ध होगा । प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशन कार्य में सहयोग देने वाले सभी को हम आभार व्यक्त करते हैं। - जितेन्द्र बी. शाह फरवरी, २००२ अहमदाबाद 2010_04 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय प्रतिपरिचय प्रस्तुत भगवतीसूत्र चूर्णि के संशोधनकार्य में मैने कुल पांच प्रतियों का उपयोग किया है। ये पांचों प्रतियाँ कागज पर लिखी हुई हैं। भगवतीसूत्र चूर्णि की ताड़पत्रीय प्रति कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं। इन पांच प्रतियों में कुल चारप्रतियाँ श्री हेमचन्द्राचार्यज्ञानभण्डार (पाटण) की हैं। एकप्रतिलालभाई दलपतभाईभारतीयसंस्कृतिविद्यामंदिर अमदाबाद के ज्ञानभण्डार की है। इन पांचों प्रतियों में केवल एक ही प्रति प्राचीन है। जिसके कुल पन्ने ५८ हैं। साइज १२" -६" है। यह श्री हेमचन्द्राचार्यजैनज्ञानभण्डार पाटण वाडी-पार्श्वनाथ की है। पत्र ५ से १०६) डाभडा नं.६५३९ है। इसका लेखनसं. १४९५ है। खरतरगच्छीय आचार्य श्री जिनभद्रसूरि के सदुपदेशसे भाण्डियागोत्रीय श्रीमालवंशज छाडा और उनके परिवार ने इसे लिखवाया, जिसकी प्रशस्ति इस प्रकार है। "इति श्री भगवतीचूर्णि परिसमाप्तेति । छ । छ । इति भद्रम् । सुअदेवयं तु वंदे, जीइ पसाएण सिक्खियं नाणं । बिइयं वि बतवदेविं, पसन्नवाणिं पणिवयामि ॥ छ। ग्रन्थाग्रन्थ ७००७ ॥ छ । श्री। छ ॥ छ । यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥ छ । छ। अक्षर-मात्रपदस्वरहीनं, व्यंजनसंधिविवर्जितरेफं । साधुभिरेव मम क्षमितव्यं कोऽत्र न मुह्यति शास्त्रसमुद्रे । छ । छ। छ। शुभं भवतु । छ । छ। छ । शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषा प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ।। “संवत १४९५ वर्षे श्री खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरिगुरुणां सदुपदेशेन श्रीमालवंशे भांडियागोत्रे श्री सा. छाडा भार्या सच्चानी मेघू तत् पुत्र श्री सा. समदा श्री सा. काला सुश्रावकाभ्यां श्री सूदा श्री हेमराज प्रमुख पुत्रपौत्रादिपरिवारकलिताभ्याम् ।" ____ मैंने इसी प्रति के आधार से ही प्रस्तुत भगवतीचूर्णि का लेखन सम्पादन किया है। शेष चार प्रतियों का लेखन भी इसी प्रति से हुआ हो ऐसा प्रतियों के वाचन से लगता है। क्योंकि इस प्रति के प्रतिलिपिक ने जो लेखन में भूले की है अन्य प्रतिकारों ने भी वही भूले की हैं। साथ ही प्रतियों में सर्वत्र प के स्थान में ए य व, ए के स्थान में प, च के स्थान में व और व के स्थान च / स के स्थान में म और म के स्थान में स इस प्रकार च व ज्झ ब्भ प उ ओ आदि अक्षरों का व्यत्यय सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है । संख्या के विषय में तथा भंग के कोष्टक में भी एक रूपता दृष्टिगोचर नहीं होती। ग्रन्थान के विषय में भी ऐसा ही हुआ। कहीं पाठों को आगे पीछे भी लिख दिया गया है। हस्तलिखित प्रतियों में सर्वत्र ऐसा ही पाया जाता है। लेखन 2010_04 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [7] शैली से इन प्रतियों का लेखन समय १६-१७ वी सदी का माना जा सकता है। इन सभी प्रतियों की झेरोक्ष कोपी ही मिली। ये सभी अस्पष्ट काले धब्बे वाली हैं और कहीं कहीं तो अवाच्य पत्र भी है। इन झेरोक्ष प्रति से सम्पादन करना बड़ा ही कष्ट साध्य रहा । अत: भूलों का रहना भी स्वाभाविक ही है। अबतक के अप्रकाशित चूर्णियों में भगवतीचूर्णि भी एक है। प्रस्तुत भगवतीचूर्णि अपूर्ण है। इसका वर्तमान स्वरूप पांचवें शतक से प्रारंभ होता है। पूर्व के चार शतक काल दोष से नष्ट हो गये हैं। बीच बीच में भी लिपिक ने कोरे पृष्ट छोड़ दिये हैं। जो पंक्तियाँ कोरी थी उन्हें मैंने और लिपिकार ने (...) कोष्टक देकर स्पष्ट किया है। यह चूर्णि ७००० श्लोक प्रमाण थी किन्तु वर्तमान में केवल ३५०० श्लोक प्रमाण ही प्राप्त होती हैं। प्रत्येक प्रति में ग्रन्थाग्र अलग अलग मिलते हैं। एक प्रति में ३५९०, दूसरी में ६७०४, तीसरी में ७००९ ग्रन्थान मिलता है। परवर्ती किसी अज्ञात आचार्य ने भगवतीचूर्णि को पूर्ण करने की दृष्टि से प्रथम के चार शतक पर संस्कृत में अवचूरि की रचना की है। यह अवचूरि पाटण ज्ञान भण्डार डा. नं. १६६ प्रति नं. ६५४२, में है। तथा महावीर आराधना भवन कोबा के ज्ञान भण्डार में भी है। इस प्रति में प्रथम पृष्ठ से १-३६ पृष्ठ तक अवचूरि है और शेष पृष्ठ ३७ से चूर्णि का आरंभ होता है यह अवचूरि अप्रकाशित है। भगवतीचूर्णिः जैन आगमों में बृहद्काय आगम अगर कोई है तो वह भगवतीसूत्र है। जैन तत्त्वज्ञान का सागर जैसे भगवतीसूत्र पर आचार्य श्री अभयदेवसूरि ने अपने पूर्ववर्ती टीका भाष्य चूर्णि का आधार लेकर विशालकाय वृत्ति की रचना की थी। आचार्यप्रवर ने अपनी वृत्ति में आगम के गूढ़ रहस्य को प्रकट करने के लिए अनेक स्थानों में चूर्णि का उल्लेख किया है और चूर्णि के पाठों को भी उद्धृत किया है। प्रस्तुत भगवती चूर्णि जो पाठकों के हाथ में है, यह वही है। बृहद्कायआगम की चूर्णि भी बृहद्काय ही होनी चाहिए किन्तु चूर्णिकार ने अपनी चूर्णि को सागर को गागर में भर दिया है । अर्थात् भगवतीसूत्र जैसे विशालकाय ग्रन्थ को चूर्णि के रूप में अत्यन्त संक्षिप्त सार रूप में प्रस्तुत किया है। भगवतीसूत्र जिसका दूसरा नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति - विआहपण्णत्ती है। यह पांचवां अंगसूत्र है। प्रश्नोत्तर के रूप लिखा जानावाला यह व्याख्या ग्रंथ व्याख्याप्रज्ञप्ति है। इसमें भगवान महावीर एवं गौतम गणधर के बीच जो प्रश्नोत्तरि के रूप में वार्तालाप हुआ उनका संकलन है। समवाय और नन्दीसूत्र के अनुसार इसमें छत्तीस हजार प्रश्नों का भ. महावीर के द्वारा समाधान का उल्लेख है। इसमें स्वसमय, परसमय जीव, अजीव, लोक, अलोक आदि अनेक विषय वर्णित है। देवों, राजाओं, राजर्षियों, परिव्राजकों पार्वानुयायी श्रावक, श्राविकाओं के प्रश्नोत्तर के साथ नगर, नगरी, राजा, राणी, वन, उपवन, उद्यान एवं विविध पात्रों के चरित्र वर्णन विस्तृत रूप में वर्णित है। प्रस्तुत चूर्णिकार ने वर्णनात्मक घटनाओं को छोड दिये हैं। चरित्र वर्णन में केवल गोशालक का ही चरित्र अत्यन्त संक्षिप्तरूप में दिया है। जयन्ती श्राविका, सोमिल, कार्तिकसेठ, जमालि के केवल नामोल्लेख कर उनके प्रश्नों का संक्षिप्तरूप में ही उत्तर दिया है। भगवतीसूत्र के सभी उद्देशक के प्रश्नों का उत्तर भी उन्होंने अत्यंत संक्षिप्त रूप में ही दिये हैं। उनकी दृष्टि में जो प्रश्न परिचित थे प्रसिद्ध थे उनको उन्होंने छोड़ दिये हैं। जीव आदि के भेद प्रभेद का उल्लेख मात्र कर उनका संक्षिप्त में ही उत्तर दिया है। अपने समस्त चूर्णि 2010_04 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [8] ग्रन्थ में एक प्रज्ञापणा सूत्र के सिवा अन्य किसी भी ग्रंथ का उल्लेख उन्होंने नहीं किया । समस्त ग्रन्थ में केवल १०-१२ ही प्राचीन गाथाएँ आती है । चरित्रवर्णन प्राचीन ग्रंथ के उद्धरण आदि से रहित यह चूर्णिग्रन्थ भगवतीसूत्र पर एक संक्षिप्त टिप्पण के रूप में प्रस्तुत है । चूर्णिकार भगवतीचूर्ण के कर्ता कौन थे यह तो निश्चय करना कठिन है, क्योंकि समस्त चूर्णि ग्रंथ में कर्ता का कोई भी उल्लेख नहीं मिलता क्योंकि अबतक की उपलब्ध आगमचूर्णियाँ विशाल है । उनमें जो विषयवस्तु का सूक्ष्म विवेचन हुआ है वह अपने आप में अपूर्व एवं विवेचनात्मक दृष्टि से परिपूर्ण है। चूर्णि इस शब्द के शब्दार्थ को सार्थक करता है । इस भगवती चूर्णिकार की जो विशिष्ट धारणाएँ थी उन्हें वृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि ने अपनी वृत्ति में आदर के साथ स्थान दिया है। श्री जिनदासगणि तो विशेष रूप से आगम ग्रन्थ के विवेचक थे । उन्होंने निशीथ, बृहद्कल्प, आवश्यक, दशवैकालिक, दशाश्रुतस्कन्ध आदि अल्पकाय आगम पर बृहदूकाय चूर्णियों की रचना की है तो बृहद्काय भगवती सूत्र पर अल्पकाय एवं अत्यन्त संक्षिप्त टिप्पणात्मक चूर्णि की रचना क्यों की यह एक विचारणीय है । अतः इस चूर्णि के कर्ता जिनदासगणिमहत्तर नहीं किन्तु कोई पूर्ववर्ती आचार्य थे ऐसा मेरा अनुमान है। सर्वविश्रुत एक परम्परा रही है कि प्रायः चूर्णि के कर्ता श्री जिनदासगणिमहत्तर थे तो इस चूर्णि के कर्ता भी श्री जिनदासगणिमहत्तर होने चाहिए, लेकिन इसकी पुष्टि करना कठिन है । इनका समय सातवीं सदी का माना जाता है। भगवतीसूत्र पर आचार्य अभयदेवसूरि ने सं. ९०२८ में वृत्ति की रचना की थी । इन्होंने अपनी वृत्ति में अनेक स्थानों में चूर्णि का उल्लेख किया है । अतः यह चूर्णि ग्यारहवीं सदी से भी पूर्व की रचना है यह सिद्ध होता है । भाषा की दृष्टि से चूर्णिकार की भाषा का जो रूप वर्तमान में उपलब्ध है वह समय के अनुसार परिवर्तित है। वर्तमान में भगवतीचूर्णि की प्रतियों में कुछ ही स्थान में शब्द के प्राचीन रूप मिलते हैं जैसे समय के स्थान में समत, निगोद के स्थान में नितोत, रागके स्थान में राणो इत्यादि । अधिकतर शब्दों का प्राकृतिकरण ही मिलता है। साथ ही चूर्णिकार समय समय पर सैद्धांतिक बातों को सप्रमाण सिद्ध करने के लिए संस्कृत भाषा दार्शनिक शैली से चर्चा करते है और प्राकृत मिश्रित संस्कृत का भी प्रयोग करते रहे है । यह उनकी अपनी शैली है। इस संक्षिप्तचूर्णिको भगवतीसूत्र और उसकी टीका तथा प्रज्ञापनासूत्र के अध्ययन के बिना समझना कठिन है । भगवतीचूर्ण के सम्पादन में प्रति सम्बन्धी अनेक कठिनाईयाँ होने से यह कार्य कष्ट साध्य सा रहा अतः भूलों का रहना भी स्वाभाविक ही है । पाठक अगर भूलों की और मेरा ध्यान आकर्षित करेंगे तो मै उनका अनुग्रहीत रहूँगा । श्री हेमचन्द्राचार्यज्ञानभंडार पाटण एवं लालभाई दलपतभाई भारतीयसंस्कृतिविद्यामंदिर के व्यवस्थापकों का भी आभारी हूँ जिन्होंने सम्पादन के लिए 'भगवतीसूत्र चूर्णि की प्रतियों की उपलब्धि में तथा प्रकाशन में सहायता की । रूपेन्द्रकुमार पगारिया 2010_04 ―― Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_04 स्थविराचार्यकृता भगवतीचूर्णि: Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_04 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ नमो जिनाय ॥ स्थविराचार्यकृता भगवतीचूर्णिः पुढवी ठिति योगाहण सरीर संघयणमेव संठाणे । लेस्सा दिट्ठि(णा)णे जोग उवयोगे ॥१॥ विरहिजति जं ठाणं, असीति भंगा तहिं करेजासि । जत्थ उ गेहो ति विरहो अभंगगं सत्तवीसा वा ॥२॥ चउहिं कोधादीहिं लोभादीहिं वा ठितिसुत्तादिविसेसितेहिं समण्ण भंगलक्खणं । 'पुढवीसुत्तं' सत्तक ण्णाओ, पत्तेय चउवीसा दंडएणं आवास णेयव्वा । 'ठितिसुत्तं' जहण्णा मज्झा उक्कोसा । जहण्णियातो समय-दुसमय-संखेजाऽसंखेजा जाव तस्सावासस्सुक्कोसिया ण पावत्ती ताव आदिअंतसमयविरहितासंखेज्जा ठितिठाणो भवंति । जहण्णठिती अविरहिता नारगेहिं कट्ट तत्थसत्तावीस भंगा । कोहोवयुत्तेहिं य अविरहिता तहिं णिच् बहुवयणं । समाहियाए जहण्णियाए असीति । तत्थ य तेहिं विरहो होति । अहवा एक्को वा दो वा तिण्णि वा संखेजाते कोवे वा माणे वा मायाए वा लोभे वा उवउत्ता तत्थ भंगा असीति वत्तव्वा । एवं जाव संखेजपदेसाधिया समाहियाए वा ततो असंखेजा तप्पाउग्गुक्कोसियासु अविरहियत्तणातो सतणातो सत्तावीसं । 'ओगाहणसुत्तं' सरीरप्पमाणं तहेव जहण्णादियं उववजमाणाणं ते जहण्णहितीए विरहिज्जंति, तत्थासीति जाव संखेजपदेसाधिया, असंखेनं तप्पायुग्गुक्कोसियासु सत्तावीसं अविरहित्तणातो । संघयण-संठाण-काउलेस्सासु सत्तावीसं । दिट्ठीसम्मामिच्छत्तेण विरहिज्जति तत्थासीति । सेस दंसणे रतणपढमं पुढविसुत्ताणि समन्नाणि ताव सत्तावीसं । एवं सत्तसु वि लेस्सासु विसेसो । एवं भवणवासीणं लोभादिया, देवाणं लोभपरिणाम बहुत्ताओ सत्तावीसमसीतिं वट्टति । आदिविसेसितेसु कोधादिसु चारेजा । नारगाणं जहा असंखेजेसु णं पुढविक्काते सव्वठाणेसु बहुया काऊण सुण्णभंगो । णवरं तेउलेस्साए विरहिजंति त्ति । देवोवत्तीए तत्थासीति । एवं आउ-वणप्फत्तीणं पुढविकायतुलं । तेऊ-वाऊण सव्वत्थ अभंगगं । बि-ति चरिंदियाणं सत्तावीसट्ठाणे अभंगगं । बहुत्ताओ असीतिट्ठाणे असीति चेव । सासातण-सम्मद्दिट्ठि 2010_04 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: विरहं संभवोपपातं पडुच्च आभिणिबोहित-सुतणाणसमत्तेसु असीति । पंचिंदिय-तिरियाणं जहण्णट्टिती ओगाहणासु विरहिओ जेसु असीति तेसु सव्वेव सत्तावीसाए बहुत्तातो अभंगगं । सम्मामिच्छत्ते विरहाओ चेवासीति । मणुयाणं जहणियाए द्वितीए आहारकसरीरं पडुच्च विरहातो असीति । सेसियाओ सट्ठाणेसु असीतितो भाणियव्वातो । सत्तावीसट्ठाणे अभंगगं रतियाणं जहा, केवलणाणे मोहणिज्जक्खयाओ असंभवो । वेमाणिय-वाणमंत-जोतिसिया जहा लोलादिया असुरा णेरइया देवेसु सत्तावीसा असीतिभंगा । सेसेसु पुढविकाइयादिसु मणुयपज्जतेसु दससु सत्तावीसमसीते अभंगगं संखेवतो जाणे । सेवं भगवं । छ । (षष्ठः उद्देशकः) सर्वदिक्-सर्वदिक्षु वा सर्वाणि यावंति 'नो वी सव्वं ति' सामान्य-विशेषनयाभ्यां प्रसिद्धितः • पदानि व्याख्यातव्यानि । नियमाच्छद्दिसिं भवनमध्यावलंबिताप्रतिहतोद्योतप्रदीपवत् । लोकोऽलोकमध्ये कर्म कर्मे वत्ततामात्मनि समवायन्तः कर्मलक्षणपदार्थमभिनिवर्तयन्ति । एकेन्द्रियान् प्राप्योपरितलस्थितासीदिति कृत्तयागमनप्रतिघातिनो भवन्ति । तत् प्रदेशाच्युतादिदिग्धये अन्ये एकस्य बहुमध्ये प्रतिघातिनः गेहानागरप्रस्ना:पयोरनाद्यपर्यवसानतया पूर्वमिदं परमिदमिति न शक्यते वक्तुम् रात्रिंदिनस्येव सप्रतिपक्षप्रतिसिद्धमुपात्तोदाहरणवद् भाव्यम् । __ लोयतं सत्तमेणोवासंतरेण चारेतूण सत्तमं सेसेसु एगतो अणंतरं सेसाणंतरेहिं जाव सव्वंतो लोयट्ठिति । सभाव वा तेण सुत्तमतिसंधाय समितीत्याधुदाहरणं चानुमानं । सदास्थमात्रया इदं समितं एकी भावं न वा इतं ।] फु [६] ॥छ।। कारणावयवेन कार्यावयवी न निर्वत्यते । तन्तुना पटानवबद्धप्रदेशवता न च देशेन सर्वः असकलकारणत्वात् । तन्तुना पट इव न च सर्वावयवैर्देशकार्याभिर्निवृत्तिः । सम्पूर्णसमवाय्य समवायिकारणत्वात् घटैकदेशदेशवत् । सर्वावयवैः सर्वः पूर्णकारणसमयात् घटवत् । उववज्जमाणे आहार, उववण्णे आहार, उव्वट्टमाणे आहार, उववढे आहार । पढम समए सव्वमाहारमुववजमाणे सेसेसु देस वा सव्वं आहार । द्रो । [८] अद्धेण विद्धा णिवत्ती ण सिया उवगरणं णासियारंभया पोग्गला भावो । तन्निवत्तिसामत्था तेण जोगा सव्विंदिएसु ७॥ 2010_04 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः कायिके सरीरस्पन्दमानसो मनोव्यापारप्रणिधिः । इषुसंयोगोऽधिकरणं । खेवगस्सेव प्रणयते न मृगवधो नेतरेषाम् । किं कारणं ? कज्जमाणं कृतमेव, हन्यमानो हत एव । छम्मासाणुबंधी करणविधेः परतो अण्णं परिणामान्तरं पोग्गलादिसंघातो जाति द्रा [८] ॥८॥ गरुयदव्वे णत्थि अच्तं हेट्ठाअवठ्ठाणभावं अलहुयदव्वे वि णत्थि उड्ढागमणतो, निच्छयणयस्स ववहारस्स बातर-दव्व-खंधेसु वजादि(ग)रुतादियगुरुलहुं णिच्छयणयस्स । गुरुलघु अट्ट फासा खंधा । अगरुलघुअमुत्तदव्वाणि तप्पदेसपज्जयाकालो सुहुमपरिणया चतुप्फासा य । खंधा एगे जीवे त्ति दव्वठ्ठयाए । एकम्मि जीवे सव्वपज्जयसंगहातो । जहा जीवे भवपज्जया तहा भवे वीतरपज्जय त्ति कट्ट एक भवयकरणे दुभवयकरणं जालगंठिकावत् ? उत्तरं-निच्छयणयेन एगे जता एगं गेण्हति ण तदा बितियस्स गहणं । घडविण्णाणकाले घडएगट्ठण विण्णाण इव, थिरसुत्ते थिरो जीवो दवद्वताए, कम्माइं अत्थिराइं, संजोगविभाग-संबंधतो जीवो ण विद्धंसति, कम्मपोग्गला विद्धंसंति । सव्वगमेसु एवेव ।९। ___चलमाणे नो चलिते दव्वट्ठियस्स सव्वमणुप्पण्णमविणट्ठमिति कटु, अहवा ववहारस्स इच्छितकज्जाकरणातो णो चलितं । णिच्छयस्स जइ एगसमयचलितमचलितं तेण निट्ठा कालाभावो वीतिविरुद्धं अतो चलितं । दो परमाणुपोग्गला सण्हत्तणातो ण संहणंति तिप्पभिती समुदातो सो च्वेव परमत्थतो पुट्ठिभेएण केवलं भिजंति । तिण्हं च मज्झत्तणातो छेदो भवति ततो दिवड्डता ? उत्तरंसमुदाएण अवयवपुव्वएण होयव्वं, पिंडवत् । जे य अंता अवयवा ते परमाणू । तेसिं च समुदायो वि होति कारणत्तातो तंतुपट इव । ण य तिण्ह मज्झभेदो अवयवत्वात् परमाणुवत्, भेदेण तिप्पदेसो तिण्णि वा दो वा भवंति । तहा भासादव्वाइं कारणत्तेण पढमपच्छिमकाले भासाए निद्दिस्संति । वट्टमाणसमयपरमणिरोहे ववहारा-भावातो ? उत्तरं-भासा वट्टमाणकालय तेण दवतीति कट्ट, तप्पज्जायपरिणामातो हवति, घटवत् । अण्णहा भासाभावो सव्वभासा पसंगो वा । एवं किरियादिपदेसु योज्यम् । परिहारो य दुभवयकरणे न किरियातो भणियातो । पढमसतं सम्मत्तं ॥छ। ण जीवा एगिदिया णिप्फंदाणुस्सासादित्तातो भासरासी इव होहिंति, तिसिं फंदादिणो धम्मा । आहारादिपुव्वसरीरचयणातो पुरिस इव उस्सासादियवट्टमाणो वाउपाणो सो सव्वेसिं वाउकाइयाण वाउक्कातो चेव ऊसासो । 2010_04 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः मृतायाजी (आदी) मडाई मृतासी वा साधुस्स पुनरपि संसारमत्येष्यति ? तहाविहकारण चित्तत्तणातो अनिरुद्धभवत्तणादिणो हेतवो इत्येतदस्मादर्थात् इच्चत्थं अंकुरवत् बीजवद्वा । विपरीतं ते चेव हेतूं विपरीता छिन्नसंसारस्स दग्धकारणत्वात् बीजवदेवाकारणवत्वाद् वा । ४ 'वेउट्टाभोई'ति । दिनकरे व्यावृत्ते अहोरात्रे इति भोजी वा यावत् । सांते लोए सपडपक्खा दसपहो चउव्विहेणत्थे चत्तारि भणिता । पंचत्थिकाया लोगो एगं दव्वं समुदायसद्दत्तणातो व णस्संति तोणावत् ||ह्व||४| संजमातो कर्मणा प्रवन्ति । तवेण विदारणं करेति । जति एतेसिं एयं कज्जं, ततो किं प्रत्ययं देवार्थं कार्यम् ? णत्थि त्ति तस्स कारणमिति अभावो पावति । 'चउहिं' चत्तारि कारणाणि देवलोगस्स साहणाणि भणिताणि । पुव्वतव, पुव्वसंजम कम्मय -संगियंताई पंचण्हं संजमाणं अहक्खातहेट्ठा पुव्वाणि ते तवेण तेण संयमेण अहक्खायचारित्तेण बंधति सुभासुभं, पुव्वतव-संजमे सुभकम्मियाए संगियाव पुव्वसंजम-सुह-देवलोगसंगातो रानो दोसो य । आयुत्तेहिं परियापुन्नेहिं समुत्थेहिं समएहिं उ उवम्मत्थिकायादिसु पर्युदासो दट्ठव्वो । अरूवि पंचविधो समासतो, लोगागासयमाणो खेत्तपरिच्छिन्नो त्ति । खेत्तप्पमाणोवण्णो वण्णो, सो एतस्स भावो अमुत्तो अवण्णा जाव फासे भावो तस्स दव्वपज्जातो गुणो दव्ववीरियं तस्स तस्स य । जहा पोग्गलत्थिकायस्स भावा रूवादयो अणंता, तहा अमुत्तदव्वाणं अगरु - लघुभावा अणंता दट्ठव्वा । “एगे भंते " ! धम्मत्थिसमुदाए वट्टमाणो सद्दो णोऽवयवे वट्टति असगलत्तणातो, जो य उवयारो सो सव्व अतत्वं मृग्यते । वक्तादीणि उदाहरणाणि । लोगागासे णं सत्तमी लोगागासे किमस्ति ? जीवादय इत्यादेयादेव कुलसाधुवत् । अजीवा दुविहा-रूवी अरूवी । रूवी खंधादिद्विप्रदेशिकाद्या, देशा द्विधाराच्छेदेण एगतो द्वयं द्वयं पदेसा बंधत्थासु, परमाणवो सुद्धा अगतखंधभावा अरूविणो दव्वा, समुदायसद्देण भण्णंति णीसेसा, तत्थ पदेसेहिं वा णिस्सेसं भणेज्ज णो देसेण । तस्स अणवट्टियप्पमाणत्तणातो तेण ण देसेण णिद्देसो, तहा पोग्गलत्थिकायो वि । जो पुण देससद्दो एतेसु कतो, सो सविसयगतं ववहारत्थं, परदव्वफुसणादिगतववहारत्थं, ठाणेसु पुण अप्पा- - बहुयमसणादिसु देसमसणाण संभवति । अणवट्ठियतातो णिस्सेसदव्वग्गणं । दव्वट्टता एव पदेसट्टता एव भवति । अद्धासमया वट्टमाणे एगसमयो णव सयाणि 2010_04 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः अहो उवरियतिरियलोगो ततो अवो लोगो । लोगमज्झा पुण रयणप्पभपुढवि ओगासंतरज्जुप्पमाणो असंखेजति भागमोगाहित्ता भवति । अहोलोगो सत्तरज्जुतो साधियातो । हेट्टा सत्तवित्थारो देसूणातो, उड्ढलोगो देसूणा सत्तरज्जुत्तो, बंभलोते वित्थारो पंचरज्जुत्तो । एतेण अप्प-बहुतं णेज्जा । लोगो अणंततिभागो । लोगागासस्स अलोगागासमणंतविभागीणं, लोगागाससमुट्टितं । बितीय शतं ॥छ।। उवरिगति पथा-एगेण समएण सक्को, दोहिं वजं, तिहिं चमरो, तुल्लं खेत्तं कमंति सिग्घ-मंदमंदतरजोयणगमणं दिवसपुरिस इव । अहे एगेण समएण चमरो, दोहिं सक्को, तिहिं वजं तहेव मंदगतमनवत् । सट्ठाण-परट्ठाणे अप्प-बहुं भाणियव्वं । कंडगं कालो, खेत्तपटुथामट्टाणे अप्प-बहु मग्गणा भिन्नकालो उड्डे, अवे, तिरियं । एगेण समएण उववत्ति अवे जोयणं तेणेव समएण तिरिया दिवढं गच्छति । उड्ढे दो जोयणाणि सक्को, चमरो उद्धं जोयणं, तिरितं दिवढं अवे दो जोयणाणि वज्जमवि अवे जोयणं, तिरियं देवढं विसेसो य, उड्ढे दो जोयणाणि विसेसो य । अप्प-बहुं एत्थ पाडेजा, जहा वा समया सक्कादीणं तहा वा वड्डीहाणीहि । तहेव खेत्तं पि । ॥ततिए बितितो उद्देसो॥ ॥छ।। किरियातो कम्मं भवतीति कारणं, ततो कजं ण मोक्खो फंदादिजुत्तस्स असुभ-कम्मायरणातो चोरवत् । णिच् पि वुच्चति विरुद्धकारणाणुट्टाणातो मज्झत्थमणुयवत् । सव्वत्थ कारणकार्यभावोगत तार(त)म्मेण जोएजो। पमत्तस्स जहण्णो कालो समओ । एसो य अप्पमत्तट्ठाणातो चवमाणो पमत्तसंजतो कालं करेज्जा, तत्थ लब्भति । देसूणं पुवकोडिमितरो अप्पमत्तो जहण्णकालो । उवसामगसेढी पडिवजमाणो मुहुत्तेऽन्भंतरतो कालं करेमाणो होति, केवली देसूणं । वाणारसिं विउव्वितूणं रायगिहे उवउत्तो रूवातिं जाणति पासति । ताई पुण वाणारसी मण्णमाणा मणो वाणारसिं च रायगिहंतेणं णगरविवच्चासो, एत्थं ण भवविवच्चासो । जहा पुव्वाए दिसाए रूवाइया सविमूढदिसि पुरिसवत् । जल्लेसेसु उववजति तल्लेसाई अब्भंतरमुहुत्तं लेस्सा दव्वगहणं करेति । तं ता परिणामेति सुद्धं, ततो मुहत्तब्भंतरतो कालं करेति, तेल्लेसपरिणतो चेव । । ततियं शतं ॥छ। पंचमे-ततितो लिहिजति 'अण्णउत्थिया एवमादिक्खंति । जालगंठिया' सामान्यसंग्रहनयवादिण सर्वं सर्वात्मकं एको भावः सर्वभावः स्वभाव इति । ततो भवा सर्वभवा सर्वस्वात्मीयपरकीयभवस्वभावा द्रव्यार्थिकनया 2010_04 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः जालग्रन्थिसमुदायवत् । द्रव्ये पर्याया पर्यायेषु द्रव्यं द्रष्टव्यम्, परियाए परियाया ततः सर्वात्मकं, अमोक्षवादिना वा द्रव्यार्थिकभेदावनं विना वा । एकायुष्कापि प्रकरणे सर्वायुः प्रकरणं वेदनं वा 'परवाद निर्देशः' ? ॥छ।। उत्तर- संगह-ववहारनिच्छएहिं एगम्मि जीवे आउसेसं आउसेसपगरणे जालगंठिया घडए । एकसमयो य कालपज्जायवाइ, इहभवियाउं जम्मि समयम्मि ण तम्मि परभवियाउं; परभवियाउयं जम्मि ण तम्मि परभवियाउयं परसमयभवियाउयं वेदेति । णो एयम्मि णिरुद्धे सममेव दो आउयाइं विभवप्रसंगात्, युगपद्वा सर्वसंसारिगायुष्कप्रसंगात् । जे भविए निरएसु उववजित्तए सोऽऽयुष्को, सो जेण सेसाउयो जाति तं आउयं कहिं कडं ? पुरिमे भवे जातो भवातो अभिणिस्सरति तत्थत्थेण कयं तं पुण भेदेहिं णेज्जा । अहवा जं तं णिव्वत्तित्तियं तं कहिं कडंतं पुरंता सिग्घहोयणातो पुरिमसद्दत्थणिण्णतो आदाणाणिइंदियातिं ण तेसिं सत्तिउवघातो । सगलं पुण केवलेण ववहरति । वीरियं जीव-पुग्गलांगांगी भावना शक्तिः । जोगा मणादयो तदेव सदर्थंद्रव्यं तद्भा(व)वीर्यं सयोगिसद्रव्यता उपचयापचयत्वात् । तन्मात्रप्रदेशावस्थितिः । णटुं गवेसमाणस्स अतणुयाओ । जस्स जस्स भंडं मूलिधनं वा तस्स अणुयातो; इतरत्थ पतणुयातो दिट्ठदोसए तत्थ विसेसातो ॥छ।। 'पुरिसे णं भंते !' धणुग्गहणे समासादितं ततो देसमग्गणा । तदा उसुम्मि जाव कंडं पुरिसपयत्तसंबंधि ताव सव्वो समुदायो पंचकिरितो पुरिसस्स अविरतिपरिणामातो, इतरेसिं अविरतितो चेव । अह पडतं सगोरवेण उसु पडति पुरिसपयत्तरहितं । तत्थ पुरिसं संबंधी एगो चतुकिरितो, इतरो कंडसंबंधी उवग्गहकरो य पंचकिरितो । तत्थ तस्स संखसंबंधितातो । पंचमे छट्ठो ॥छ।। कोती परमाणुगणे एयति ? कोती दुप्पदेसे । जो एयति सो समुदाएण वा, एगदेसेण वा, तिय देसे, सव्वो पदेसेण जो य देसो सेसा तत्थ णो एयंति । पदेसेण वा दो पदेसा असंघातत्थातो णो एयंति । दो पदेसा संघातत्था एयंति, एगो णो पुण चतुप्पदेसे सव्वो वा अद्ध एयति, अद्धं णो; दो वा संघातत्था एयंति, इतरे वि संवित्थाणे दो वा वि संवित्था एयंति । इतरो संघातत्थो ण, दो वा वि संघातत्था एयंति । इतरे वि संघातत्था ण ॥४। एवं जाव अणंतपदेसिता छ॥ अद्धं विसमभागता । अर्धमाद्यन्तयोः समभागता । मध्येव रूपं प्रदेशावयवस्थानं । एतेषां प्रतिषेधो विवक्षःपरमाणवो वा ण संभवंति । जो समो तत्थ तत्थ वच्छि, हिंगुल, वचदेशिकत्वं । जो विसमो तत्थ 2010_04 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः मज्झमंगुलित्रयस्येव प्रदेशाश्च त्रयभंगसंखेज्जादिणो सव्वे सम-विसमता भंगा चारेज्जा । देशोदेसा य सव्वं, एक्केकं तिविहं ठवेऊण देसो अवयवो देसा अवयवा, सव्वो समुदायो अवयवो वा भण्णति । परमण्णिपरमाणुणा सव्वो सव्वेण जो य फरिसेण उ जो य फरिसिज्जमाणो देसिं देसो देसा वा ण संति । सव्वो सव्वेण सो च्चेव पदेसिएण सव्वो देसेण वा णो य दुपदेसियस्स देसा संति तेतिया अवयवकज्जा भावातो । देसो सव्वो वा एति, एते पदेसिएणं देसो देसा सव्वो त्ति । चतुसंखेजाणं तेहिं बि-ति- पदेसे, जहा एवं दुपदेसितो परमाणू दुपदेसिय तिपदेसियादियं तिपदेसितो परमाणू दुपदेस तिपदेसादीहिं नवसु ठाणेसु स्पृश्यमानकस्पर्शकयोर्देश-सर्वादिरूपमवलोक्य भङ्गादियोजना कार्या ॥छ। परमाणू सुत्तं ॥छ।।सुद्धो अबद्धखंधो एगमसंखं मज्झमं सेसं । एगपदेसे गाढे सकस्य एगागासप्रदेशे प्रदेशान्तरे वा ववमाणा जहण्णेणं समयो उक्कोसेणं आवलिया असंखेजतिभागो तेयासंखेजसमयानिरेगो निष्क्रिय: गुणदुगुणादिसु । वण्ण-गंध-रस-फास-सुहुम-बायरसंखेजाऽसंखेजाणतेसु जहण्णुक्कोसिया कंठा । सद्दे य परमाणू होतूणं पुणो परमाणो केच्चिरेण होति ? जहा-घरवती घरे ठातूणं पविसितो रुच्चिरकालंतरियो पडिसमागच्छति । परमाणुस्स खंधे संबंधकालो य वासो दुपदेसियस्स । सेस पोग्गलसंबंधकालो । एवं तिपदेसियादीणं अणंताणताणं सेस संबंधकालो सेगस्स निरेगाणिरेगस्ससेगो एगगुणकालगस्स दुगुणादि, सेस वण्णकालो । एवं वण्ण-गंध-रस-फासाणं बादर-सुहुमसद्दाणं सत्थाणे मग्गिज्जमाणे सव्वत्थ विवक्खो अंतरं होति ॥छ।। दव्व-परमाणू दुपदेसियादिपोग्गला सामण्णं खेत्तं आगासपदेसा ओगाहणा जस्स जम्मि ठाणे पदेसमेत्तक्कममंतरसपरिणामो । एतेसिं कालेणं अप्प-बहुं मग्गिजति । आउयमिव आउयं पुरिसादिसु, जहा द्रव्यस्थानस्य आयुष्कं दव्वट्ठाणाउयं । एवं सेसाणं थोवं खेत्तठाणाउयं जहण्णेणं पोग्गलावत्थाणं एगं समयं, उक्कोसमसंखेजकालं तत्तो खेत्तसंकमणं णियमा करेति । असंखेजादिपदेसितो खंधो । असंखेजकालं खेतं च संभमंति । अभिदंतो असंखेजपदेसोगाहंतेण तं थोवं ओगाहो तओ असंखेजगुणो लब्भति । जया तं सव्वं संघात-वित्थरेण जुजति तहा ओगाहो विभजति । असंखेजकालाबन्धी अविणट्टेसु दव्वपदेसेसु ततो दव्वाउयं संखेजगुणओगाहणट्टाणाउयातो । गंधादयो भावा विणट्ठम्मि वि दव्वम्मि संघातभेदेण असंखेजं कालं चिट्ठति । ततो दव्वट्ठाणाउयातो भावठ्ठाणाउयं असंखेजगुणं । एयं उक्कस्सं गहितं । अणंतयं च सव्वत्थ णत्थि, तब्विध कालासंभवातो पुव्वम्मि उत्तरं नत्थि उत्तरे णत्थि । पुव्वमणंतविरहितं सव्वत्थ ॥छ।। 2010_04 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः पञ्च हेत्वयं हीयते गम्यते ज्ञायते अवबुध्यते अनेनेति हेतुः । स च समासः ज्ञापकः कारकश्च । सवितृप्रदीपमण्युल्क-शब्द-धूमादिज्ञापकः कारको बीजपिण्डादि, स एवाधुना परिच्छिद्यमानः कर्म भवति । सम्यग् दृष्टिणा द्विविधोऽपि जिनवचनपुरस्कृत्य हेत्वर्थानुसारिणा द्रव्य-पर्यायतद्विकल्पप्रपञ्चितः सामान्यपुरुषोः भाषामात्रज्ञानातीतो ज्ञायते हेतुं जाणति तमेव पश्यति तमेवावबुध्यते । यथावस्थितमाभिमुखीभावेन प्राप्नोति गच्छति । तद्धेतुमान् हेतुः । छद्मन् कर्म तत्रस्थितः छद्मस्थः। मर्त्यस्य मरणं छद्मस्थमरणं तद्धितं म्रियते । छद्मस्थः मरणं म्रियते । मतिज्ञानादिचतुष्टयहेतुस्थितं छद्मस्थ इति यावत् । तेन वा हेतुना धूम-पीडादिलक्षणेन अग्निघटादिमवबुद्धयते । करणभूतेन पञ्चापि । स एवं पंचहेत्वयं मिथ्यादृष्टिहेतुं द्विविधमपि न जानाति । मत्यज्ञानं श्रुताज्ञान-विभंगं । यथाऽयथार्थाऽगमकत्वात् । उन्मत्तमनुजवत् । सोह्यहेतु अज्ञानमरणं म्रियते । तथा तेनैव हेयार्थाप्रतिपत्तेः सदसदुन्मत्तनगवत् । एवंविधोऽज्ञानमरणं म्रियते । भिद्यज्ञानावरणीयं केवलेनाधिकृत्य ज्ञानविभूतिरुच्यते । पञ्च हेत्वयं सो हि धूमादिकमर्थसम्बन्धकालप्रापणत्वाद्यवशेषिकं साक्षाद्वर्तमानविधि-नियमोभयात्मकं पश्यति । तथा हेयमत्यर्थमग्न्यादिकं साक्षात् । तथा परिणतद्रव्य-पर्यायात्मकम् । धूमादिलिङ्गादिक्रमेण गृण्हात्यहेतुकं । य एवंविधः स केवलिमरणं म्रियते । एष एव कैवल्यं हेत्वर्थसम्यगमिथ्यादृष्टिसामान्यछद्मस्थतामधिकृत्य निषिध्यमानो ज्ञानभागमयति । यथा केवलिना हेतुनिमित्तो हेतुरप्यवबुद्धयते न तथा तस्यामहेतुहेतुं जानीते पाटुत्वादि विशेषितमवबुध्यत इति यावत्, तेऽग्न्यादिकं मषिनैव अहेतुकं जानीते, सहेतुकमेवेति यावत् । स चैवंविधो ज्ञानमरणं म्रियते । सर्वज्ञवादादयस्याकेवलज्ञानमिथ्यादृष्टिआनादयोज्ञेन प्रसाधिता द्रष्टव्या । पञ्चमे सप्तमो ॥छ। भिद्यमानय द्वेधा समभागतां यान्ति तं सार्द्धं द्वेधा भिद्यमानस्य यत्र मध्येऽभिभिदं दृश्यते न तत् समध्यं नृप्रदेशिकवत् । प्रदेशावयवा ते यस्य सन्ति तत् सप्रदेशं । यथा द्वि प्रदेशाद्या एव, ते एते पोग्गला दव्वादेसेणं सपदेशा अपदेशा य, तहा खेत्तादेसेणं तच्चेव पोग्गला सपदेसा अपदेसा य, कालादेसेण विमे पोगला सपदेसा अपदेसा य, भावादेसेण विमे पोग्गला सपदेसा अपदेसा य । सद्दादयो पडुत्तर मज्झे चेव दट्टव्वा । प्रश्नानुगतमेवोत्तरं, जे दव्वा दो अपदेसा ते परमाणू ते णियमा खेत्ते अवगाहमाणा अपदेसे एव ओगाहंति । कालतो कदायि समद्वितीया कदायि दु समयाइ ठितीया । भावतो एकगुणकालगा वा दुगुणकालगा वा जावाणंतंको । एवं दव्व-खेत्त-काल-भावं पडेक्कं अपदेस-सपदेस भेदेणं तत्तेन चारेज्जा । भावादेसेण थोवा वण्ण-गंध-रस-फासेहिं वीसहिं गुणेहिं हीणा लभियन्व त्ति कट्ट गुणबहुपरिणामिणो य पोग्गला तेण ते 2010_04 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः सपदेसाणं असंखेजतिभागो। चोयगाह - अणंता गुणट्टाणा कम्हा अणंता न भवंति ? भण्णति । ण सव्वेसु दुपदेसियादिसु गुणट्ठाणेसु पोग्गला संति, तेण अपदेसा असंखेजतिभागो, सपदेसा अपदेसा असंखेजतिभागो, सपदेसा असंखेज्जगुणा । ते य बुद्धीए अट्ठट्टविजंति । हेट्टा सपदेसाणं अट्ठ चत्तालाणि दो सताणि । तेतो कालापदेसा असंखेजतिगुणा । कहं ? भावावदेसिएसु असंखेजतिभागो कालोपदेसो होति, तहा भावसपदेसि वि ते दो वि मेलेऊणं असंखेजतिभागा कालावदेसियरासिं णिप्फाएति । तत्थट्टण्हमसंखेजतिभागो बुद्धीए । दो छक्कालपदेसयाण भावसपदेसयाण मज्झातो कालापदेसया चोद्दसकालसपदेसयाण दो सयाणि चतुत्तीसाणि छहिं मिलिएहिं दो चत्तालाणि कालपदेसयाणं, इतरेसिं सोलस परिमाणं । तहा दव्वापदेसा णिप्फातिजति त्ति सोलसण्हं दोण्णि लब्भंति । दव्वापदेसा चोद्दस दव्वसपदेसा सपदेसाण मज्झातो तीसमपदेसा दसुत्तरदुसतदव्वसपदेसाणं तुल्ला रासी मोत्तूणं बत्तीसमपदेसा, दो सताणि चउव्वीसाणि सपदेसाणं दव्वापदेसाणं मज्झातो दो खेत्तावदेसा लद्धा । तेसिं चेव सपदेसरासीतो बासठ्ठी चउसट्ठी संखित्ता तीसं खेत्तसपदेसा सतं बासह दव्वसपदेसयरासीतो खेत्तसपदेसयाण तीसं मेलेऊण सतं ठाणउणतं सपदेसाणं खेत्तापदेसेहितो तेसिं चेव सपदेसया संखेज्जगुणा कहं ? जेण दोहिं असंखेज्जएहिं णिप्फातिता तीसा व पाहट्ठसतेण य । अहवा एग पदेसोगाहेहिंतो दुपदेसोगाहेहिंतो दुपदेसागाढा जाव सव्वलोगागाढा । तत्थासंखेज्जा लब्भंति सट्ठाणसिद्धीतो वा । ततो दव्वसपदेसया विसेसाहिया । कहं दुगुणा वा असंखिज्जा वा ण भवंति ? भण्णति । जम्हा पुव्वं बासठ्ठी णिग्गया ततो दव्वापदेसया तीसं सुद्धा । सेसा बत्तीसं जाया । तेहिं विसेसो लब्भति । अहवा खेत्तापदेसया परमाणू य खंधा य खंधाएसु पक्खित्तं ते य बत्तीसमेय । जे खेत्तत्तो अपदेसा ते नियमा दव्वतो सपदेसया संपुण्णा चेव रासी इट्ठो विसेसाहिया जाया । दव्वसपदेसेहिंतो कालसपदेसया विसेसाहिया । जेतो बत्तीसा पदेसिया दव्वा तेसिं कालापदेसिया दोण्णि, तीसं कालसपदेसया दव्वसपदेसु वि चोद्दस काला पदेसया । कालसपदेसयाणं दो सताणि दसुत्तराणि । मिस्सा सोलसा य देसया । कालसपदेसयाणं दो सताणि चत्तालाणि विसेसाहिया जाया। दव्वसपदेसएहितो कालापदेसयाणं दो भावा पदेसया । चोद्दस भावसपदेसया तहा कालसपदेसयाण मज्झे असंखेजतिभागेत्थ भावसपदेसया दो सताणि चतुत्तीसाणि । भाव य सपदेसयाण चोद्दस सकालापदेसया छुहिऊणं दो सताणि अट्ठ चत्तालाणि जाताणि अट्ठविसेसो । एत्थ अप्प-बहुं - तहा सट्ठाणे सव्वत्थोवा अणंतपदेसिया, दव्वपदेसठ्ठयाए संखेजपदेसियाणं संखेजगुणा संखेजपदेसिया असंखेज्जगुण त्ति कट्ट असंखेजभागहीणा परमाणवा अपदेसा, खंधा असंखेजभागवट्टिया एगपदेसोगाढा थोवा । दुपदेस । 2010_04 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० भगवतीचूर्णिः सव्वलोगावगाढा, संखेज्जासंखेजपदेसा लोगागासत्तणातो एगसमयठीतीया दव्वा थोवा । दुगादि असंखेजकालावत्थाणातो ते य सपदेसा असंखेजाभावाओ अपदेसाओ थोवा । सव्व वण्णादिभावतुल्लाधारदुल्लभत्तणातो दुगादिअणंतपज्जवपरिणामातो असंखेजा सपदेसा गुणाणंतहाणवट्टीतो कहं अणंता ण भवति ? । भण्णति । ण सव्वाणि तु ठाणाणि एहिं समकंताणि दोहिं छप्पण्णेहिं सतेहि पोगलपरिमाणं उदाहरणी कृतम् । एत्तो य परमत्थतो अणंता रासी ॥छ।। ___ण वुड्डी सक्काराणारंभविरहातो गगणवत् । ण वा हाणी तक्कारणाण चयातो गगणवत् । णिक्खमणं पवेसणं ता तो वुड्डी हाणी णेरतियादिसु उवचिजमाणा वटुंति णिग्गमभावोट्टितसिद्धा । रतियादिसु अवट्ठाणं वुड्डी हाणी विभिनंति । अव्वोवच्छिन्नं आवलियाए असंखेजतिभागो उक्कोसो जहण्णो समतो । एवं हाणी वि अवठ्ठाणं । उववाओवट्टणविरहो जो जस्स भणितो सो दुगुणो कजति । एगम्मि एगो दव्वट्ठो, दुतिओ उववण्णो तमत्ता चेव ते परतो पुणरवि समी हवंति । एवं सव्वत्थ एगिदियाण परट्ठाणं णिद्दिढे । सहाणेणाणुसमयअविरहिता जीवणेरइय णेरइभेदं असुरकुमारत्तभेया एगेंदिय-बेइंदियतेइंदिय-चउरिंदिय-तब्भेय-समुच्छिम-तिरिय-गब्भ-तिरियं समुच्छिम-मणुयगब्भवक्कंतिय-वाण-जोतिसियवेमाणिय- तब्भेयाणं च । जो जस्स विरहोववायकालो सो वि गुणो अवठ्ठाणं । उववातो जहण्णेण एक समयं उक्कस्से आवलियाए । असंखेजतिभागो सामण्णो पत्तेय भेयव्वा जाणेज्जा ॥छ।। अपचयो ह्रासो वट्टमाणकालादिरुवाद्दिट्ठस्स सह अपचएण सापचयः विद्यमानापचयो वा सापचयः । एवं सह उपचएण सोपचयः वुड्डी वि जं भणितं किंचि हीयते किंचिद्वर्द्धते । अपरासे सोपचयोपचया निर्गतः उपचयः अपचयश्च यस्य, णि शब्दो भाववाची । प्रत्येकं अवण्णस्स चउगारआदेश णिरुपचय निरुपचयाद्विप्रतिषेधप्रकृतं गमयति । अवट्टितत्थं तिधा या भावो पडिसेहातो चेव लब्भति । एगेंदिएसु सट्ठाणवट्टितो, अविरहिता ताहिं उवचीयंति, यासेस भट्टा णत्थि, सेस जीवेसु चत्तारि भंगा, उववट्टणोववातविरहकालेहिं जाणेयव्वा, सिद्धेसु दो सोपचय-णिरुपचयत्तं कालतो य साहेजा। पंचमे अट्ठमो ॥छ॥ मणुयलोगसमयावलिगा अहोरत्तादिपरिच्छिन्नेण कालेण सेस खेत्तनिवासीणं ववहारो मणुयेहिं तेहिं वा परोप्परं कजति । लोगो असंखेजा तत्थाणता रातिंदिया परित्ता रातिंदिय त्ति विरहो ? उत्तर- अणंता जीवा वि गच्छंति उववजंति । एगम्मि समयादिए काले सो य पाडेक्कं समप्पयि अणंतेसु परित्तेसु य आतो तस्स वि कालस्स, तहेव णिद्देसो पोग्गलदव्वेहिं छतुमत्थाणं गहणविसयमागच्छति । ॥पंचमं शतं ॥छ। 2010_04 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः वत्थदितॄतेण कम्मणोपचया भणिया । प्रसासवैचित्र्यता नैकान्तिकः, ताव जहा सल्लग्गहणं जहा य सुद्धी तहा साध्य-साधनविभागः कर्तव्यः । आश्रवादिप्रवर्तनेन मलीमसआत्मा तद्व्युपरमतयोभ्यां शुद्धिर्वस्त्रस्यैव । कति कम्मपगडितो ? ह्रा।।।८। केवलिकालं बंधंति निबन्धनं बन्धः । जीव-पोग्गलाणं आंगांगीभावो बन्धः, जहा-णिगलपुरिससंबंधः तत् सट्टिती वितिजति । उपात्तस्य उक्कोसा मज्झिमा य जहण्णा य तिविहो । तत्थ खवगसेढी यदि चऽण्णो अंतोमुहुत्तस्स बंधंति तम्मि चेव वेदेति । उक्कोसे तेत्तीसं सागरः कर्मणः स्थितिः । कर्मणो निषेका-जीवप्रदेशेषु कार्मणः पुद्गलः नैषेकः, ताम्रादेरिवमूषायां, अहवा वि कम्महिती, ततो जं भणितं होति कम्मणिसेगो । तीसं सागरोवमाण कोडाकोडीतो तिण्णि य वाससहस्साइं जत्तीयाणि रूवाणि उवरिं दीसंति तत्तिसयाणि भवंति । 'अबाधाहाणे वा वृ लोटने' तहिं तं स ताव इमम्मि उदयं देति सो अबाहा कम्मनिसेगो । सकलो कालो अबाहा कालो । तिण्णि सहस्साणि । अहवा जणतो रासी बाहाकालो भवति सहस्सणतो । सेसा उदयकालो वेतिजति । तप्पभिंतिय देसोदयादिणा अहवा तिण्णि सहस्साई अबाहा बाहा आधूणिया भवति । सव्वो बाहा बाहाकालो कम्मट्टिती पत्तेयं वा समप्पति । णाणावर(ण) दंस(ण)-वेद-अंतरायाण सामण्णं वेदणिज्जस्स इरियावहबंधतो एगम्मि गेण्हति दुतिए वेदे वेदेति । जहण्णकालो एयस्स विसेसितो; मोहणिजस्स सत्तरि कोडाकोडीतो सत्त सहस्सा । जहण्णो मुहुत्तब्भंतरतो संखेजतिभागो आणापाणुग्गहणकाले वा पजत्तगो सत्तरस भवग्गहणवट्टी दिट्ठो त्ति कटु, णाम-गोत्ताणं वीसं कोडाकोडीतो वीसयसयाणि । जह(ण्ण) अंतोमुहुत्तसकलोकालो अबाहाकालो बाहाकालो । सव्वत्थ जोएयब्वो । आउस्स तेत्तीसं पुवकोडिं तिभागज्झतियाणि । को एयस्स बंधको ? पुरिसवेदणिजोदयातो पुरिसो इत्थिवेदणिजोदयातो णपुंसतो तिविहकम्मवेदणिज्जोवसममुक्कोसंतो णोकारपडिसिद्धो । उवसंतो मोह-खीणवेदोवरिवट्टमाणो सिद्ध पज्जवसाण रासी सुहुमसंपरागो बंधति, अहक्खातो न बंधति, सिए त्ति इव सामग-खवगसवेदोवरिवट्टमाणो सुहुमसंपरागत्तपत्तो मोहणिजं बंधति । आउयं कदाति न बंधति कदाति बंधिस्सति, मुहुत्तस्स अंतो तेण कदाति बंधति कदाति नो बंधति । सुहमसंपरागो अबंधतो आउयस्स णाणा, किसं संजतो ? पंचप्पकारे संजमे बहुमाणे लब्भति । सेसो असंजतो देसेक्कदेसविरतो, संजयाऽसंजतो तिहिरहितो णोसंजतो णोसंजतासंजतो सेलेसीतो सिद्धो य अहक्खायसंजतो ण बंधति । सेसो बंधति एत्ति सेसो असंजतो बंधति सावगो बंधति । सेलेसितो सिद्धो ण बंधति, अहक्खायसंजमहेट्टा संजते सत्त वि संभवंति । आउयं च पुव्वबद्धं सिया बंधिस्सति वा अहक्खायहेट्ठा चेव सेलेसिसिद्धो य बंधति । तं चेव 2010_04 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ भगवतीचूर्णः I सम्मद्दिट्ठी वि। सम्मदिट्ठी सिया अविरयसम्मदिट्ठीं आदिं काऊण सुहुमतितं बंधति । सेसाउवरि ण बंधति । मिच्छा बंधति । सम्मामिच्छादिट्ठीमं । एवं दरिसणे णाम - गोत्त- अंतर- मोहणिज्जं । सुहुमसंपरागातो हेट्ठा बंधति उवरिं ण बंधति । वेदणिज्जं सेलेसि सव्ववज्जा बंधति, सुहुमसंपरागहेट्ठा सिया बंधति, सियणो । सणासणी, अमणा असण्णी । तत्तिए भवत्थकेवली सिद्धो य । अहक्खाततो हेट्ठा सण्णी बंधति, उवरिं बंध । अणी बंधति णोसण्णी, णोअसण्णी, केवली, भवत्थकेवली य न बंधति, वेदणिज्जं सण आसणं सेलेसिपत्तो केवली य ण बंधति । आउयं दोसु पढमेसु तहेव भवत्थकेवली य सिद्धो य, मुणत्थिणो भवसिद्धीयो ण भवसिद्धियो सिद्धो भवसिद्धितो सिय अहक्खायहेट्टा बंधति । उवरिं न बंधति | अभवसिद्धीए बंधति, केवली न बंधति अहक्खायहेट्ठा भवसिद्धीतो बंधति ॥ छ। आउयं, तहेव अभवसिद्धीए णियमा सिद्धो न बंधति । सव्वातो अहक्खातो हेट्ठा चक्खुदंसणी बंधति, उवरि ण । एवं तिणि वि केवलदंसणीणं बंधति । एवं दंसणावरणिज्जं मोहणिज्जमहक्खाती वि बंधति । केवलदंसणी सिय सेले (सि) सिद्धा वज्जो बंधति । किं पज्जत्तओ पज्जत्ती पज्जत्ततो ? एयाहिं असंपण्णो अपज्जत्ततो ततितो सिद्धो पज्जत्ततो अहक्खातोवरि ण बंधति । हेट्ठा बंधति । इयरो बंधति । ततितो सिद्धो ण बंधति । मोहणिज्जमहक्खातसंजतो वि वेदणिज्जं भवत्थकेवलीओ आउयं तहेव अपज्जत्तयो सव्वातो आउयं सियायद्धं वा बंधति वा बंधिस्सति वा गोपज्जत्ततो ण बंधति || छ I दिया अभागा सिद्धा य । सेसा भासगा भासतो अहक्खायहेट्टा बंधति । एगेंदियो बंधति । अभासतो सिय । एवं सब्भवि वेदणिज्जभासगो नियमा बंधति । अभासगो एगेंदितो बंधति । सिद्धो बंधत, तेण सिय' परित्तो त्ति'; संसारपरित्तो, भवपरित्तो य दुविहो अहक्खायहेट्टा बंधति । उवरिंण बंध | अ ( प ) रित्तो बंधति । ततितो सिद्धो सो न बंधति । सेसितातो तहेव अहक्खायहेड्डा चतुणाणी वि बंध | Bai बंधति । वेयणिज्जं चउणाणिणो नियमा बंधति । केवलणाणिणो भवत्था सयोगी बंधति । 1 न 1 I अयोगी न बंधति । मतिणाणी सुतणाणी विभंगणाणीणे सव्वबंधगा आउयं तहेव सिया णाणावरणिज्जं किं मनजो० इत्यादि । अहक्खायसंजमे मणयोगी सो ण बंधति (हेट्ठा बंधति त्ति) सेलेसिसिद्धा अजोगिणो ण बंध । एवं स व मोहणिज्जं च विसेसेज्जा । वेयणिज्जं च तिण्णि विनियमा बंधति । अजोगी सव्वाबंधतो, किं साकारादि ? सह आकारेण विसेसेणेति यावत्, साकारं ण जस्स आकारो तण्णणाकारं सामण्णणाणमिति यावत् । एवं चउयोगदुयं सव्वजीवाणं । अहक्खातोवरि ण बंधति । हेट्ठा बंधति । तेण सिया । एवं ति, मतौ णाणावरणिज्जं किं अहोविग्गहगतिसेलेसिसमुग्धा (य) सिद्धा अणाहारगा 2010_04 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः सेसाहारगा ? दो वि सिया । वेयणिजं नियमा आहारतो सेलेसिसिद्धो ण बंधति, अणाहारतो सेसा बंधति । आउयं पुण आहारतो नियमा बंधति । जो पुण (अ)णाहारतो विग्णहगतिआदितो सो ण बंधति । 'सुहुमे त्ति' सुहुमोदयातो सुहुमो बादरोदयातो वा ततो बादरो खवग-भवत्थकेवली ण बंधति । सेसो बंधति । इतरो सिद्धो । एवं सत्त वि एतेसु हाणेसु जत्थ णिच्चं सिय तिय आउयं बादरो सिय सव्वहायव्व वा अबंधतो वा वोछिन्नकालं बंधतो वा । इतरो अबंधतो । 'चरमि त्ति' । भवसंसारितो दुविहो - सेसो अरिदमो चरिमो सिज्झिस्सति । तहा वि बंधति । अहक्खातोवरिता बंधति । अचरिमो वि सिद्धो ण बंधति । सेसो बंधति । एवं एते सव्व वि सिय बंधति सिया ण बंधति । एतेसिं चेव सव्वपदाणं अप्पाबहुयं भेदेण समुदायेण भाणियव्वं । छट्ठस्स ततियो । जीव आहारग, अणाहारग, भविय, अभविय, णोभविय, णोअभविय, सण्णि, असण्णि, णोसण्णि, णोअसण्णि, सलेस, काउले(स), किण्ह-नील-काउले. तेउले. पम्ह-सुक्का, अलेस्स, सम्मद्दिट्टी मिच्छादिट्टी, सम्मामिच्छाद्दिट्टी, संजत-असंजत. संजतासंजत, णोसंजत, णोअसंजत, कोहमाण-माया. लोभ, अकसाय । णाणो आभिनिबोहिय-सुत-ओधि-मण-केवल, मतिअण्णाण - सुतअण्णाण विभंगअण्णाण । सजोग मणजोग, वइजोग, कायजोगं अजोग । उवजोग, सागार, अणागार । 'वेद' इत्थिवेद पुरिसवेद, नपुंसकवेद, अवेद । ससरीरी ओरालिय वेउब्विय, आहारग, तेया, कम्मा-असरीरी । आहारपज्जत्ती, सरीरपज्जत्ती, इंदियपज्जत्ती, आणापाणुपज्जत्ती, भासा-मणपज्जती, आहारपजती, सरीरापजत्ती, इंदियापजत्ती, आणापाणुअपजत्ती, भासा-मणअपज्जती, चउरिंदिय । एताणि सुत्तपदाणि । एगत्तेण य बहुत्तेण य । पत्तेयं पत्तेयं कालसपदेस-अपदेसत्तेण, एवं सेसियाणि छब्बीसयेसु उणेसु चारिजंति । तं जहा - जीवे, णेरइता, असुरादिणो दस पुढवी, आऊ-तेऊ-वाऊवणस्सति, बेइंदित तेइंदित, चउरिंदित, पंचिंदिय, तिरिक्खजोणिय, मणुस्स-वाणमंतर-जोतिसियवेमाणिय-सिद्धा । तीय पडुपण्णाणागतो तिविहो कालो । एतेसिं दव्वाणं पुव्वमण्णम्मि भवे होत्तूण भावंतरं पडिवजति । तत्थ पढमसमयपडिवत्ति वट्टमाणसमयदेसंतोऽवबद्धदव्वादि तम्मि चेव भावे दुतियसमयादिसु वट्टमाणं सय देसं भवति । एसो अत्थो मंतिजति । जीवेणं भंते ! कालादेसेणं सपदेसे अपदेसे ? ण जीवो अजीवो होत्तूण जीवत्वे पढमसमयभावीति कटु, तीत-वट्टमाणागतद्धासु जीवभाव पढम(सम)यमणुभवति, तेण नियमा जीवपदेसयदेसो हेरइए एगत्तेण नेरइयपज्जाएण य पढमसमयभावी, अपदेसा दुतियातिसमयभावी, सपदेसो एत्थ य एगण्णं सामण्णेण ण णज्जति । किं सपदेसो घेप्पतु 2010_04 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः अपदेसो वा ? दोण्हं च । णेरत्तियत्तेणागहणमिच्छिजति । तेण सिय सप. सिय अप. । एवं सव्वठाणेसु सिय बहुत्तेण जीवाणं कालादेसेण स सव्वे वि जीवा न कत्तिमासपदे । एवं णेरतिया तिसिं उववायविरहातो जे वा उववजंति ते वा दुपदेससमयादिसु णेय । तेहिं विरहो तेण सव्वे वि ताव सपदेसा । अहवा एते य एक्को य पढम समयोववाती । अहवा एते य बहुया य पढमसमयोववातिणो एगिदिएसु पुढवि, आउ, तेऊ, वाऊ, वणस्सतिसु असंखेजा अणुसमयमणंता य वणस्सतिसु उववजंते तेण सपदेसा य अपदेसा य अभंगगं । सेसेसु णेरतियतुल्ला हाणेसु सिद्धं, तेसुं विरहित्तातो तिण्णि सामण्णं ण आहारो आभोगअणाभोगतो वा, आहारादितो जीवादियो जीवपवण्णेयो । बहुत्तेण पुच्छा - तहेव जीवपदे । एगेंदिएसु य आहारा कालादेसेण सपदेसा य, वितियसमयादियाहारिणो तहा उववादिपढमसमये अपदेसा आहारका कालाभावदेसेण बहुत्तातो अविरहियत्तातो य नेरतियादिसेसट्टाणेसु सव्वे याव होजा आहारगा कालापदेसेण सपदेसा अहवा सपदेसा य । एगो य आहारतो सपदेसा य अपदेसा य । बहवो अणाहारतो अणाहारतो ब्भुयो । अणाहारगत्तपढमसमये अप. सेसो वितियादि अणाहारगत्तसमये सपदेसो । एगत्तेण जीवादिसु सिद्धं । तेसु सिय सव्वत्थ बहुत्तेण कालादेसेणं अणाहारगा जीवा अणाहारगत्तपढमसमयबितियसमयेसु बहवो संती तेण अभंगगं । णेरतिया अणाहारगा सव्वे ताव होज बितियसमये सयदेसव्वा । अहवा अणाहारगपढमसमयवत्तिणो वा तेण अपदेसबहुं । अहवा दोण्हि आइट्ठसमये एगो बितियसमया अणाहारगो । एगो पढमसमए ३ अहवा एगो दुसमए दो पढम समये ह ।४। अहवा दो दुतियादि समएसु एगो पढम समए । र्तृ ॥५॥ अहवा अपढमसमए बहवो पढमसमए बहवो ॥ ( (६)॥ एवं अणाहारगविरहविवित्तियातो वेमाणियंतेसु छब्भंगा। एगेंदिएसु णिच्चं । विभंगगतिपढमदुतियादिविणहवत्तिणा बहवो, तेण अभंगगं । अणाहारगा कालादेसेण एगिदिया सपदेसा य अपदेसा य । सिद्धपदे सिद्धा सव्वे ताव अणाहारा सपदेसा कालतो, अहवा सपदेसा य । एगो पढमसमयमज्झिमाणो, बहुवा सिज्झमाणा वि बहवो एवं तिए भंगो । भवसिद्धिया जीवा कालादेसेणं सपदेसा सपदे, तत्थ भवसिद्धियत्तं अणादिपरिणामितो भावो जीवो जीवत्तेण जहा । एवं अभवसिद्धिय भावो वि एते रासी असंसिद्धा मग्गियव्वा । जधानि भवियाऽभविया एवमितरे वि भवनसिद्धस्स पत्थि कारणस्सेव कारियत्तपरिणयस्स कारणाभावो । जहा तेण सिद्धपदेण तं अभवत्तमवि णत्थि तेणव्वंतं असंबंधातो, एवमेव भवसिद्धिय अभवसिद्धिय पदा दो जीवदंडएण तुल्ला, एगत्तेण वि पुहुत्तेण वि, णोभवसिद्धिया णोअभवसिद्धिया कालसपदेस-अपदेसेण जीवा जहा, सव्वे ताव होज सपदेसा, अहवा सपदेसा य अपदेसे य । अहवा 2010_04 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः सपदेसा य अपदेसा य । एवं सिद्धिपदे वि तिण्णि । अण्णेसु णेरइयादिसु नत्थि संभवो ॥छ।। ___ इहापूहादिया जस्स सण्णा सो सण्णी लब्भति । एगत्तेण जीवेसु सिय सपदेसो, सिया अपदेसो । एवं रतिया सुर-तिरिक्ख-पंचिंदिय-मणुय-देवेसु । एवं पुढत्तेण वि सण्णी कालावदेसेण सव्वे ताव होज्ज सपदेसा य अपदेसे य, अहवा सपदेसा य अपदेसा य । तहा नेरतिया असुर-पंचिंदियतिरिय-मणुय-देवेसु विगलिंदिएसु णत्थि संभवो । असण्णिजीवेसु तिय भंगो । एगेंदिएसु सपदेसा य अपदेसा य । णेरइय - देव-मणुस्सेहिं सव्वे ताव सपदेसव्वे अपदेसव्व, सपदेसे य अपदेसे य, सपदेसेय य, अपदेसा य सपदेसा य अपदेसे य छन्भंगा । जम्हा असण्णी उववायविरहिता कदायि णोसण्णि णोअसण्णी जीव - मनुयसिद्धेसु तिय भंगो । सेसेसु संभवो णत्थि । सलेस्सा सामण्णं जीवादिसु, ण अलेस्सो होत्तूण सलेस्सो भवति । तेणव्वंतजीवा सलेस्सा एगत्तेण बहुत्तेण य जीवपदे । णेरइया तेसु उववातविसेसा सिया अपदेसे सिय सपदेसे, एवं एगत्त-पुहुत्तेण सव्वत्थ सिद्धपदवज उहियजीवपदं वण्णेजा । कण्हले० नीलकाउलेस्साहिं जीवपदेसे लेस्संतरं संकंतीतो सिय सपदेसे सिय अपदेसे । सेसेसु उववायविसेसेण पुहुत्तेण जीवपदे एगिदिएसु य सपदेसा य अपदेसा य । बहुत्तातो सेस पदेसेसु उववायविसेसेण तिण्णि भंगा जत्थ संभवो लेस्साणं । तेउलेस्साए बितियभंगो जत्थ संभवति, णवरं पुढवि-आउ-वणस्सतिसु अपज्जदेव तेउलेस्से विरहो वा । अहवा जे उववण्णा ते सपदेसव्व अहवा अपदेसव्व, अपदेस सपदेसे वा, अपदेससमयदेसा य, अपदेसा य सपदेसा य, अपदेसा य सपदेसा य जत्थ संभवति । पम्हा से तिय भंगो पुहुत्तो एगत्ते सिय अलेस्सो खवितलेस्सो एगत्ते जीव-मणुय-सिद्धेसु सिय पुहत्तेण । एतेसु चेव जीव सिद्धपदे तिय भंगो । मणुस्सेसु सेलेसिं पडिवण्णतो कदाति णत्थि तेण छब्भंगा । सम्मद्दिट्टि एगत्तेण सिया सव्वत्थ पुहत्तेण जीवादिसु तिय भंगो, बे ति चउरिदिएसु सासातणसम्मत्तविरहातो छब्भंगा । एगिदिएसु असंभवो । समत्ताओ चवमाणो मिच्छत्तपदेसो लब्भति । सव्वत्थ तिय भंगो । एगिदिएहिं सपदेसा य अपदेसा य अभंगगं । सम्मामिच्छद्दिट्टी अभिमुहे सम्मत्तविसुज्झमाणा लब्भति । सेसा ण सव्वतो तेण एगत्ते सिय पुहत्ते जीवादिसु संभवतो छब्भंगा । संजताजीव-मणुयपदेसु तिय भंगो । णोसंजतो णोऽसंजय णोसंजतासंजतो संजतासिद्धो जीवसिद्धपदे तिय भंगो । सकसायजीवादिसु एगत्तेण सिय, पुहत्तेण तिय भंगो । एगेंदिएहिं उववाता विरहातो अभंगगं । कोहे एगत्तेणं जीवादिसु एगत्तेण सिय, पुहत्तेण तिय भंगो । जीवएगिदिएसु अविरहातो सपदेसा य अपदेसा य, कोतेहिं देवा विरहिजंति ततो छब्भंगा । सेस पदेसेसु तिय भंगो । अकसायीजीवमणुस्स-सिद्धपदेसु संभवो तत्थ तिय भंगो । माणे माया एगत्ते 2010_04 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ भगवतीचूर्णिः सिय पुहुत्ते सिय । जीवएगिदिएसु अभंगगं । बहुत्ताते णेरइय-देवा विरहिजंति ततो छन्भंगा । सेसेसु तिय भंगो । अकसायीजीव मणुस्स-सिद्धपदेसु संभवो तत्थ तिय भंगो पुहत्तेण ॥छ। णाणस्स चवतो अण्णाणं । तातो पढमे अपदेसो बितिए सपदेसो तिय भंगो । एवं रतिया सुरादिसु एगिदिएहिं असंभवो विगलिंदिएहिं । सासातणसम्मत्तविरहातो छन्भंगा । एवं आभिनिबोहिएसु एहिं पि एगत्तेण सिया सव्व एय वजं । जत्थ ओहिण्णाण संभवो तत्थ एगत्तेण सिय बहुत्तेण तिय भंगो । एवं मणपज्जव-केवलेहिं पि य विरहितत्तणातो नत्थि वण्णदो तहेव अण्णाणस्स वियक्खो णाणं । तातो चवमाणो अपदेस-सपदेसो लब्भो एगत्त-पुहत्तेण, एगत्ते सिय इतरत्थ जीवादिपदेसु तिय भंगो । एगें दियेहिं अभंगगं बहुत्ताओ । एवं मति-अण्णाणे सुत-विभंगेसु य एगत्तेण सिया पुहत्तेण तिय भंगो । विभंगणाणं जत्थ संभवति तत्थ मग्गितव्वं । सजोगिस्स वियक्खो अजोगि । सो य जीवपदे णत्थि । णाजोगी होत्तूण सजोगित्तं लभते तेण ओहिय-दंडगतुल्लं । एगत्त पुहत्तेसु मण-वइ-कायएगत्तेण सिय पुहत्तेण जीवादिसु तिय भंगो । कायजोगे एगेंदिया विरहातो अभंगगं । अयोगीजीवमणुय-सिद्धपदेसु तिय भंगो । सेलेसीए अभंगगं । ता सागारस्स अणागारं विपक्खो । इतरस्स इतरो । एगत्तेण सिया पुहत्तेण य । जीवपदं एगिदियपदं च मोत्तुं तिय भंगो । सवेदगस्स वियक्खो अवेदो जीव-मणुय-सिद्धपदेसु एगत्त-पुहत्तेण णेज्जा । उवसामगत्तातो य चवमाणो सपदेसापदेसापदेसापदेसातोणणेतो । इत्थिवेयगादीण परोप्परं सपक्खा विपक्खता एगत्तेण पुहत्तेण जीवपदादिसु वि जहासंभवं णेजा । अवेदए एगत्तेण जीव-मणुय-सिद्धेसु य बहुत्ते, एतेसु चेव अविरहितत्तातो तिय भंगो ॥छ॥ सरीरसामण्णं-जीवपदादिसु एगत्तेण ओहियदंडयतुल्लं । ण असरीरी होत्तूण ससरीरी होति । जीवपदे एगत्तेण सेसेसु तिय भंगो । तत्थेगिदिए अभंगगं । ओरालियं जीवविगलिंदिय-तिरिय-पंचिंदियमणुएसु एगत्तेण सिय पुहत्तेण । जति उववातविरहो तेसिं तिय भंगो । अविरहे सपदेसा अपदेसा य । वेउब्वियं जीव-णेरइय-सुर-चाउक्का-तिरियं पंचिंदिय-मणुय-देवेसु एगत्ते सिय बहुत्ते । जत्थाविरहो तत्थ ति छ विरहे ।छ। आहारयं जीवमणुएसु विरहातो छन्भंगा । तेय-कम्मएहिं जीवपदे एगत्ते सपदेसो बहुत्ते य । सेसेसु उववातं पडुच्च तियभंगा भंगता णेया। असरीजीवसिद्धा णिच्चं संति तत्थ तियभंगो। आहारसरीर-इंदियपज्जत्तीहिं एगत्तेण सव्वत्थ सिय, पुहुत्ते जीव-एगेंदिएसु अभंगगं अविरहातो । सेसपदेसु तिण्णि 2010_04 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः भंगा । एवं आणा-पाणु-पज्जत्तीए वि । भासापजत्ती बेइंदियादिसु तीसु तिभंगो । पंचेंदिएसु वण्णस्स तियभंगो । आहार-पजत्तीए एगत्ते सिय सव्वत्थ पुहुत्ते सिय सव्वत्थ, पुहुत्ते जीव-एगेंदिएसु णिचं विग्गहगतिसंभवातो अभंगगं सपदेसा य अपदेसा य । सेसपदेसु गतिविरहातो छब्भंगा । सपदेसव्व अपदेसव्वादि । ह्र ।४। सरीर-इंदिय-आणापाणु-भास-मण-अय एगत्ते सिय पुहत्ते जीव-एगेंदिएसु अभंगगं । उववाता विरहातो बेंदिय-तेंदिय-चउरिंदिय-पंचिंदियतिरिएसु अपजत्तया विरहे त्ति कट्ट, आगमणेण पुहरहा तेण तिय भंगो । मणुय-देव-णेरइएसु कदायि अपज्जत्तयाण होज्जत्तेण छब्भंगा ६। भासा अपजत्तीए य, जीवपदे तिण्णि सपदेस निच्चं संभवातो एगो अयदेसो बहुया वा बेंदियादिसु भासा पंचिंदिएसु मणो । जो य अप्पप्पणो कालो तत्थ पढमसमए अपदेसो । बितियादिसु सपदेसा हवंति । भावा संवरो पच्चक्खाणं इतरोऽपच्चक्खाणं । देसेक्कदेसविरती । देसपच्चयपच्चक्खाणं रतिया देवेसु णत्थि य । तिरिय-मणुएसु तिण्णि वि जाणं ति । पंचेंदिया तिविहस्स वि । विगलिं(दि)या अपच्चक्खाणं जाणं ति । जहा-पढम दंडतो निव्वत्तियासु ते तिविहा वि जहासंभवं च जाणेज्जा ॥छ। फु॥६ ह्व ४॥ तमुकाय-तमस्काय । अरुणवरुस्स दीवस्स बाहिरवेदिकान्तात् समुद्रं बातालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता उवरिजलं ता एगपदेसागाससेणीए ।१३.२१||छ।। छविहे आउस्स बंधे । जाति नाम एगिंइदयादि तृ(५) गति ह्व(४), ठिति-स्थितिः, कालपरिमाणं। ओगाह-ओगाहणं सरीरपरिमाणं पदेसा कम्मपोग्गलगहणं अणुभागो सुभासुभवेदणा विया । को णिहत्तणिहत्ताऊय ? णिउत्त णिउत्ताऊ य, एतेहिं णाम अप्पसहिएहिं छणिज्जंति ह्व(४) फु (६)। चउवीसा दंडएण एतेहिं चेव चउहिं चत्तादीहिं । गोत्त-अप्पविसेसिएहिं चत्तारि दो वि अट्ठ दंडगा । अहुणा मीसएण नाम-गोत्तेण निहत्तणिहत्ताआऊ णिउत्तणिउत्ता आऊ य चत्तारि छ।। एक्कत्थ चेव जीवा णिहत्ता । अण्णत्थ आऊयाइं एतेसु हाणेसु ॥छ।। अविशुद्धलेश्यो अविशुद्धविभंगज्ञानः । असमोहतो-अणुवउत्तो अण्णं अविसुद्धं विसुद्धं वा समोहतो उवउत्तो, अविसुद्धविसुद्धं, समोहता समोहतो उवउत्ताणुवउत्तो । तच्चेव सव्वमिच्छादसण दूसितणाणातो ण जाणंति । एवं विसुद्धलेस्सो असमोह समोहतेहिं अविसुद्धा सुद्धा । छच्चारेज्जा दो वज्जिय चतुसु जाणति णाणसंसुद्धे । ॥छ। 2010_04 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ भगवतीचूर्णि: पढम समया समएसु अप्पाहारते । सरीराग्निस्तोकत्वात् बालवृद्धवत् । विग्रहगती अलियदिट्टतेणं एगसमए गमणे वि, अणाहारतो सुगुणगमणे । केयिं भणंति-अणाहारतो, केयिं भणंति पोग्गलोवादाणं । जहा कातूण जाति तम्हा आहारतो । एवं चतुसु दोण्णि तिसु एक्को समयो लब्भति एतेसिं ॥छ॥ सिद्धगतिरूपं वर्ण्यते:-चतुःप्रकृतिकर्मणोदारिक-तैजसशरीरविच्छेदानन्तरसमयरिजुगत्येक समयलोकान्तप्रापी विमुक्तो जीव: निःसंगत्वात् अलाबुवत् । तस्यैव विपक्षे अधोगमनं ससंगत्वात् अलाबुवदेव बन्धच्छेदात् एरण्डकुलिकावत् । तथैव विपक्षे बन्ध-विमुक्तत्वात् धूमगतिवत् । विपक्षश्च पूर्वप्रयोगात् इषुवत् । एवमस्य तथापरिणतिर्दृष्टा । अथवा तथैवास्य गतिपरिणामेन भवितव्यम् । तत् स्वभावात्मकत्वात् । विशेषधर्मोपेत: घटादिपदार्थवत् । 'जीवे भंते' ! जीवे यो जीवशब्दार्थः स एव द्वितीयः जीवशब्दार्थः । यथा-वनस्पतिः तरुस्तरुवनस्पतिः । अत्र शब्द भेदेन अर्थभेद इतरत्र शब्दार्थयोरभेद एव । तत्र शब्दार्थयोः परस्परतः सामान्यस्य चानुप्रवेशवृक्षतरुवत् । उभतो अव्वाहतं । जीवे णं भन्ते ! णेरइगे, णेरइगे जीवे नेरइए ताव णियमा जीवो विसेसो सामण्णे णियमिजति । सामण्णे भणियमितं तमण्णत्थ वि देवादिए एयं आदिवाहतभवसिद्धीए जीवे भवसिद्धीए भवसिद्धियत्तं जीवे णियमिज्जति ? जीवो न भवसिद्धियत्ते अभवसिद्धिय, णोभवसिद्धिय, णोअभवसिद्धियत्ते दरिसणातो, अन्तरबाहतं भवसिद्धिए णं भंते ! णेरतिए । णेरइए भवसिद्धिए ? णेरइए सिया भवसिद्धिए भवसिद्धिए वि सिय णेरइए सिया मणुस्सादिए आद्यन्तयोः पदयोः अभिवाचार: उभयबाहतं एवमेषां विशेषण-विशेष्यभावो नैकधा पदानां वाक्यभावं प्रपद्यमानानां द्रष्टव्य इति । 'अण्णभत्थियाण समवायकहा'- समणे णातपुत्ते पंचत्थिकाये पण्णवेत्ति । तं जहाधम्मत्थिकायादि । तस्स ट्ठवणा-अरूवी १११०१ एगं च संभविकायां ०००१० चत्तारि अज्जिवकाए ११११० एवं जीवकायं ००००१ णो खलु अत्थिभावं णत्थि वदामो । अस्तित्वमेतेषामेव स्वधर्मतः नैषामन्यधर्मोऽन्यत्र संक्रामन्ति मूर्तामूर्तचेतनोचेतनानां समावेयतः यः यत्र स तत्रैव नियम्यते । अन्यत्र नास्ति अत्थिभावं । अत्थि ते नत्थि भावं णत्थि ते । एवं धम्मत्थिकायादीणमध्रुव: एय गमो कतो सपज्जाय परपजायेहिं । सत्तमं शतं समाप्तमिति ॥छ।। ____ 2010_04 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः अट्ठमो आरभते कतिविहा पोग्गल त्ति । तिविहा- मूलभेदतो ठवेजा । ‘पयोग-मीस-वीससा तहा संगहणिपदाणि' ठवेजा ओहियपजं । सरीर इंदिय सरीरिंदिय । वण्ण सरीर वण्ण, इंदिय वण्णइंदियसरीर वण्णं । ओहियपजत्तसरीरइंदियत्तो सरीरइंदियत्तो वण्णे । सरीरवण्णे, इंदियवण्णे सरीरइंदियवण्णो । पुणरवि मूलजीवभेदा । एगेंदिय, बेइंदिय, तेइंदिय चउरिंदिय, पंचेंदिया । एगेंदियादिपदं हेट्ठा सभेदेहिं भिज्जति । पुढविक्कातिय, आउक्कातिय, तेउक्कातिय, वाउक्कातिय, वणस्सतिक्कातिय । पुढविक्कायट्ठाणमवि हेट्ठा दोहिं सुहुम-बादरेहिं । एवं सव्वेगिंदियभेदा सुहुमभेदेतरेहि पुढवीसु । सुहुममवि दोहिं अप्पजत्त-पज्जत्तेहिं । तब्बादरमवि अपजत्तएहिं, एवं सव्व सुहुम-बादरा दुयएण भेदेण बेइंदियादयो अपज्जत्तएहिं पंचेंदिय, णेरइया सत्तविहा वि पजत्तापज्जत्तएहिं तिरियपंचेंदिया जलधर, थलधर, खहचरा एगेगो भेदो गब्भवक्कंतिय-समुच्छिमेहिं हेट्ठा कजति । त एव पज्जत्ताऽपज्जत्तएहिं पुणरवि एक्केको भिजति हेट्ठा । पंचिंदियमणुयभेदा दुहा-समुच्छिम, गब्भवक्कंतिएहिं । अपजत्त-पजत्तेहिं दुधा । दुधादेव मूलभेदो चउहा । आदिल्लो दसधा । बितितो अट्ठधा। ततितो पंचधा । चउत्थो दुधा । तत्थ पढमो बारसधा । बितितो दुधा । तत्थ पढमो तिविहो । एत्थ एक्केक्को तिविधाओ । अण्ण पंचधा । सव्वे य देवभेदा अपज्जत्तपजत्त य भेदेहिं हेट्ठा कज्जा । ओहियपदं पजत्तपदं च । एत्था रयणाए सम्मत्तं । एतेषु प्रायोगिकपरिणतपुद्गलद्रव्यं चारिजति । जहा जे अपज्जत्ता सुहुमपुढविकाइयएगिदियपयोगं परिणता, एवं जाव अपज्जत्ता सव्वट्टसिद्धअणुत्तरोववाति य । कप्पादीयवेमाणियदेव-पंचिंदियपयोगपरिणता य अपज्जत्तसव्वट्ठसिद्धं त्ति । अंतभेदातो सामण्ण भेदाणुक्कमणं कायव्वं । अधुना एतेसु जीवपदेसु सरीरपदं, पयोगपरिणामपदेन चारिज्जति । जे अपजत्ता सुहुमपुढविकाइय-एगिदियपरिणताते, ओरालिय-तेया-कम्मा सरीरप्पओगपरिणता, एवं पज्जायाण ठितीहिं सरीरेहिं । तहा पुढविक्काइय-बातरा वि जाव पविसेसपुव्वागसामण्णसामण्णोवक्कमाणेण पुढविक्काइय तेयाकम्म-ओरालिएहिं चारिता । तहा सव्वे एगिंदिया पज्जत्ता बातरवाउकाए चत्तारि सरीराणि विसेसा वेउब्वियंति । बि-तिय-चउरिदिएसु ताणि चेव सरीराणि । णेरतिएसु तिण्णि सरीराणि वेउब्विय-तेयाकम्माणि । तहा देवाण तिरियाण य मणुयाणयं गब्भवक्कंतियं पजत्ताण य पंच सरीराणि संभवतो जोएजा जहा सरीराणि चारियाणि । अपजत्त-सुहुमपुढविक्कायएगिदियादिसु सव्वसिद्धतेसु । तहेव इंदियाणि 2010_04 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० भगवतीचूर्णिः विप्पयोगपरिणतपोग्गलेहिं णवरं, एगिदियाण फासो । बेइंदियाण जीहा-फासा । तेइंदियाण, घाणि-जिब्भि फासा । चरिंदियाण चक्खु-घाणि-जिन्भि-फासं । पंचिंदियाणस्स य चक्खु-घाणि-जिब्भि(सोत्त)फासिंदियाणि वत्तव्वाणि । एतानि चेव हाणाणि शरीर-इन्द्रिय-मिश्राणि भाणियब्वाणि । जस्स जति इंदिय सरीरा संभवंति सव्वक्कं सिद्धतेसु चउत्थातो दंडतो एताणि चेव ठाणाणि इंदिय, वण्ण, रस, गंध, फासेहिं चारिजति । अपजत्त-सुहुम-पुढविक्का० एगेंदियादीणि सव्वसिद्धंताणि, तहा सरीर, वण्ण, मिस्साणि एतानि चेव ठाणाणि । तहा इंदिय, वण्ण, मिस्साणि तहा तिहिं विसेस्सितेहिं मिस्साणि सव्वाणि ठाणाणि चारिजंति । एवं णव ठाणा पयोगसहिताणि । उहियमहादंडए चारिताणि जहा, तहा मीसापदमवि पंचविहभेदादियं सव् णेज्जा । मिस्साभिलावेण पयोगपरिणामं जहा वीससापरिणतो वण्ण, गंध, रस, गंध, संठाणेसु सवियप्पभेदेसु परोप्परं चारिजंति पण्णवणाए । जहा एगं द्रव्यं उदाहरणं केच्चा चारेतियानीं। वीससा पयोगपरिणामो तिविहो-मण, वइ, काय । मणप्पयोगो चउहा-सच्चामो० असच्चामोस० एक्कक्को छव्विहो-आरंभ, अणारंभ, सारंभ, असारंभ, समारंभ, असमारंभ । संकप्पो संरंभो, परियावकरो भवे समारंभो, उद्दवतो आरंभो । सव्वे णयाणं विसुद्धाणं एवमेत्थ चउवीसं भेदा । कायो सत्तविहो-ओराल, ओरालमीस, वेउवि, वेउब्विमीस, आहार, आहारमीस, कम्मयए भाणिय सरीराणि एगेंदिएसु भेदेसु चारेजा जहासंभवं । एवं मीसपदमवि मणादिसु सव्वभेदेसु णेयं । वीससापरिणतो वण्ण, गंध, रस, फाससट्टाणेसु मीसामीसभेदेण जीवा परित्ति पाणि-पादो दव्वाणि मग्गेज्जा । पयोगमीस वीससा ठाणेसु मण, वति, काय, आरंभादिसु य सरीरेसु तिसु छन्भेदा । चतुसु दस एयारंभ सरीरेसु दो दव्वाणि तिण्णि य चारेयव्वा । सव्वाणिं पि सेसदंडएसु संभवतो चारेतव्वाणि । एवं संखेज्जासंखेजाणं ताणि दव्वाणि तिसु चउसु पंच छ सत्त ठाणेसु स एग दुग तिग चउक्कग संजुत्तेसु णेज्जा सव्व ठाणेसु ॥ अट्ठमे पढमो । जच्चेव तिरिय-मणुया असीति विसेसा तेच्वेव देवेसु अपज्जत्ता लब्भंति । जीवपदे णाणअण्णाणा । णेरइयपदे तिण्णि अण्णाणा, दो अण्णाणा । तत्थ समुच्छिमअसण्णिणो जाव अपज्जत्तत्तापजत्ता ताव दु अण्णाणी । पजत्तीभावं गताणि णाणी । एते य असुर-वाणमंतरेसु लब्भंति । तत्थ संभवतो लक्खणं जोएज्जा । गतिग्गहणं निग्गय-अपविठ्ठयं अंतरालवायगं गामंतरालमिव । जीए गतीए उववजिउकामो तीए णाणवेदनमारभवे आउय-वेयणसमणंतरमेव य भवट्टाहणं ठाणं संपत्तं दरिसगं तत्थ य पज्जत्तादिभेदो भाणियव्वो । 2010_04 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: २१ I कतिविधा लद्धी ? दस विधा । णाण - दंसणादी । तावो संठवेतूण हेट्ठा सभेदा कज्जति । बालो अविरतो, पंडितो विरतो, विरताविरतो पत्थरेत्ता मग्गिज्जंति । णाणी अण्णाणी य मूलट्ठाणस्स सपक्खो विपक्खो य णायव्वो । तहा अंतरालभेदस्स सपक्खो विपक्खो य, तेसु णाणाणि अण्णाणी य संभवतो जाणिऊण णिद्दिसेज्जा । णाणलद्धिया जीवा णाणी य अण्णाणी पंच भयणाए, तस्स लद्धी अण्णाणं विपक्खो । एवं आभिणिबोहियणाणलद्धीए चत्तारि संभवातो तस्स विपक्खो णाणी विण्णाणी वि संभवतो जाणेज्जा । एवं सुत, ओहिण्णाणे दो पविट्टाणि अच्चभिधारातो विपक्खो य भाणियव्वा । एवं अण्णाणलद्धीए विपक्खो । तत्थ जे भेदा ते भाणियव्वा संभवतो भेदेण । एवं तस्संतरालभेदाण विपक्खो । णाणऽण्णाणि सव्वत्थ भेदसंभवतो जाणेज्जा । दंसणस्स विपक्खो नत्थि, सम्मदंसणस्स मिच्छा मिच्छसम्माणि मिच्छस्स सम्ममिच्छा, मिच्छासम्मिस्सेतराणि । तेसु णाण - अण्णाणाणि जाणिऊण णिसे, चरित्तस्स अचरित्तो वि सामाइयसंजमस्स । इतरसंजमा । इंदियलद्धी पंचहा । सोत - चक्खु - घाणि- जिब्भ- फास-गंध सव्वेसिं परोप्परं विपक्खा । उवरिमिंदिए हेट्ठिल्ला संति । हेट्ठिल्लेसु णो । उवरिमाएसु संभवति । णाणी अण्णाणी य संभवो जाणेज्जा, सागाराणागारं दुविहं ठावेत्तूणोवयोगं, तब्भेया अट्ठ चउरो य । णाणे णाणा, अण्णा अण्णाणा भाणियव्वा । अयोगिसेलेसि सिद्धा । कण्हा - नीला काउ- तेउ पम्ह देवा - णरगेसु । सुक्कलेसा तेसु चेव मणपज्जवणाणं णत्थि । सव्वत्थोवा मणणाणय परिमित्तखेत्त - दव्व - सामित्तातो । ततो विवड्ढिय खेत्त - दव्वसामित्तातो ओधिस्स, ततो सुतस्स, संखातीते विभच्चे कहेज्जा । जं बायरो तु पुच्छेज्जा । ण य णं अणादि सेसी वि जाणती एस छउमत्थो त्ति । ततो अनंता आभिणि० - सुत - णाणाणं अणभिलप्पभावा अणंता | अभिलप्पाणं चाणंतभागो सुतणिबद्धो । अणभिलप्पे सुत - मतिणाणमत्थि । सव्वदव्व-पज्जवेसु केवलं । एवं अण्णाणे वि मीसए । एतेणेव क्रमेण जाणेज्जा | बितियुद्देसतो अट्टमे ॥ छ ॥ छउमत्थो विवरवत्तिसु जीवपदेसेसु वाबाहं करेस्सति । जीवकम्म- अमुत्त- सुहुम-कम्मपरिणामातो वातायणपतिट्ठियसुहमरेणुवोमदेसवत् । सगस्स अप्पाणयं भंडं । तत्थ मतिसंताणा वुच्छेदातो अप्पसरीरवत् । तहा भज्जादि सुत्थेसु सामातियं तस्स देसे वट्टति त्ति कट्टु, समणोवासगो पच्चक्खातो तीते वट्टमाणे अणागते पच्चक्खाति । तत्थ 2010_04 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ भगवतीचूर्णिः करणाणि य जोगा य संबझंति । पच्चक्खाणं कम्मं तिण्णि कत्तारो करणाणि जोगा ण करेति अप्पणा, ण कारवेति परेण, करेंतं ण समणुजाणाति एगेगं स-मण-वय-काएहिं तिविहं करणं तिविहेण जोगेण, तिका० दुविक जो० तिविक० एग जो० । दुविक० तिविक जो० । दुविक० दुजोग, दुकए जो०, ति जो, एक० दुजो०, एक जोगो । ( ८८८८) एत्तेसु संजोगा कायव्वा । सव्वे वि एगूणं पंचासं भवंति । तीए एते वट्टमाणाणागतेहिं तिगुणा सीतालसतं । थूलपाणातीवात, मुसावात, अदिण्णा, सदारसंतोस, इच्छापरिमाण, पंचगुणा । सत्तसत्ता पंचत्तीसा भेदाणं सावगवतरासी ॥छ। एगंतणिज्जरा सावगो सुभकम्मसंपदाण य योगाओ विसुद्धे गाहगदाणसिद्धवत् । अण्णत्थ असुद्धदाणं सुद्धो गाहगो तत्तिए सव्वमसुद्धं । सव्वमुदाहरणाणि य घेप्प, संपत्थितो असंपत्तो थेरा असुहा अप्पणा अथेरा अप्पणा कालं का० संपत्ते घेरा असुहा । अप्पा अथे० का० अप्प० का० एवं अंतो पडिसयस्स वियारभूमी सण्णाभूमी विहार-सज्झाय एवं वाहिं पि । तहा णिगंथीए अराधकत्वं कथमेव भवति ? अणालोतिए वि, भण्णति जम्हा कज्जमाणं कडं ति । उदाहरणाणि कप्पसुत्तसंबंधीणि देजा । पदीवस्स वट्टमाणपज्जोयवत्तिया गहिया ओहिओ जीवो । अण्णातो ओरालियसरीरीतो कतिकिरितो ? संपरातियकम्मबंधीति किरियातो आरद्धो पंचकिरितो भवति । इरियावहबंधी सेलेसिसिद्धा अकिरिया एक्कोरालिजीवो । एक्कोरालिजीवो एक्कोरालितो दो जीवो, एगो ओरालितो एगो जीवो, दो ओरालितो दो जीवा दो ओरालिया, एवं णेरइयादी । एवं पंचसु सरीरेसु, तेया-कम्मय, वेउन्विएसु उव्वट्टणा नत्थि । तेण सव्वे चउकिरिया सेसे सिय ॥छ॥ थेराणं अण्णउत्थियाणं य वियारणा नयाभिप्पाएण य जोएयव्वा । पंचविहो ववहारो । तं आगमादि । तं आगमी भवत्थकेवली जाव नवसंपुण्णपुवी । सो पच्चक्खातो सदोसणिग्घायणं वयस्सति । सुयववहारादिआणालेहकरणं धारणा । जहा आयरियदिण्णसंवारणमेत्तं । जीयं सुत्तत्थविदु आयरियधम्मसद्धियायरणं पमाणं । एतेन वा ववहारो आदीते २ । पहाणतरा जीवस्स कम्मपोग्गलेहिं बंधो णियलबंधवत् भवति । संखेवतो-इरियावहितो संपरायबंधो य । खीणोवसंतकसातो(इ)रीयावहियबंधी । सकसातो संपरातियबंधी इरियावहबंधी चिंतिज्जति । सेस पडिसेहं कातूण वट्टमाणसमयातीतपुव्वपडिवण्णयं प्रतीत्य तिण्णि वि इत्थियादि, 2010_04 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः केवलिणो बंधति । वट्टमाणसमयं पडुच्च मणुस्से वा एगो होज मणुस्सी वा मणुस्सा वा मनुस्सीतो वा। एतेहिं य चउभंगो कायब्वो । सव्वे अद्धभंगा भवंति । तं एवं वट्टमाणसमयं पडुच्च किं इत्थी पुरिसो नपुंसतो य ? बहुवयणे य सव्वे वेया पडिसेहेयव्वा । तस्स अवेदत्तातो जे वि पडिवजमाणा तेवि अवगतवेदा चेव । तं भंते ! इत्थी पच्छाकडो त्ति ? सो वेदो जेण अणंतरसमयपश्चात्कृतस्य । तत्पश्चात्कृतमग्रहणेन गृह्यते । एगवयणे ३ बहुवयणे ३ दुयसंजोए । बारस १२ तियसं अद्ध ह्व(४) । सव्वे वि बंधंति । तं भंते ! (अ)तीते बंधी वट्टमाणे बंधति । एस्सेव बंधिस्सति । तत्थ भवाकरिसो भिण्णभवेसु तिण्णि ठाणाणि गहणागरिसे एगम्मि चेव भवे तिण्णि(इ)रियावहयबंधकालो। ॥छ। बंधी संपरायबंधो अवेयये भणितो सवेदय सव्वत्थ संसारिए संभवति तेण सिद्धो चेव संपरायियबंधो । णेरइय इत्थियादीण अहवा एतेय अवगतवेदो य खवग-उवसामगा अहक्खायसंजमद्वारेणमप्पमत्ता संपराइयबंधगा । तत्थ जे एते खवगोवसमगा अहक्खाया पत्ता ते किं इत्थिवेद पच्छाकडा ? एवं सव्वत्थ इत्थि-पुरिस-नपुंसगेहिं परात्ते तिण्णि । बहुत्ते तिण्णि । तिण्णि दुय संजोगा। एगो तिय संजोगे । छव्वीसं मीसिया । सादियादि ह्व-४॥ सपदेसे ह्र = ४= । एसो य पत्थारो पुव्व भणितो ॥छ।। [Table : 1, page. 24] अट्ठ कम्मपगडीतो परिसहा चउ संभवंति, णाणावरणे २ णाणे अणविगमो तेण वा मज्जति । पण्णा से मतिणाण भेदो, णत्थि तीते वा मज्जतिं । वेदणीए-दिगिच्छा, परिपिवासा सीउद(ह) च । सेवगे तृ(५) जल्ल ११ । मोहणिजं दुन्विहं-दसणचारित्तदंसणे(s)दसणं चारित्ते । अरति अचेले इत्थी-णिसीहिया-जायणा य अक्कोसे । सक्कार-पुरकारे चरित्त मोहम्मि सत्तेते ॥ अंतराए अलाभपरीसहो । सत्तविहबंधतो आउयवज्जो मोहणीय, आउयवज्जो । छविह वेयणीय(इ)रियावहेगबंधी । एत्थ य जा जत्थ पयडी तीए ते संभवंति । विरोधिणो ण युगपत् । बंधणं बंध सो २. (पओग वीससा) अप्पचक्खो णाणी । वीससा वणो तं वक्खाणेति । सो दुविहो सादिअणादी य । तत्थाणादीतो तिविधो । धम्मत्थिकायादीणं । जे य देसा तेसिं परोप्परं जो बंधो सो अणादीतो वीससाबंधो । एवमहम्मत्थिकायादीण पदेसपठव्वो य । सो सव्वकालं च अविरहितो सादितो जहा भणितो पउगो जीवदव्ववेयणपरिणतिविसेसो । तत्थाणादीतो-अपजवसितो । 2010_04 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ 2010_04 बंधि० ण बंधि० तए/ चउत्थे बंधति | बंधेस्सति केवली | ण बंधति | पं.पं.खय. | एते | बंधी | बंधति | बंधेस्सति| उवसामतो | ण बंधति | बंध० | बंधे० बंधति | बंधेस्सति | सेलेसि | ण बंधति | पं.ण.सुण्णो गहणा- | बंधी | बंधति |ण बंधेस्सति खवगो | ण बंधति बंध० | ण बंधे बंधी | बंधति | बंधेस्सति उवसा० ण बंधति | ण च भवितो | गरिसा | बंधी |ण बंधति | बंधेस्सति | उवसामतो | ण बंधति ण बंध० बंधी | बंधति | बंधिस्सति सेलेसि | ण बंधति |ण.ण.अभवितो | बंधी |ण बंधति ण बंधेस्सति सेलेसि | ण बंधति ण बंध० उवसा० भवागरिस | पढमे | बितीए | ततिए | चउत्थे | पंचमे छ ख० स०भ० | अट्ठमे। बितिए । ततिए | केवली | उवसामग| खवग | उवसा० सिद्ध । उव० असिज्झ- केवलि केवलि | उव० । सिद्ध |भवियो माणो उवसा० सेलेसि पढमे अभवियो खवग० पं० __छ० स० | अट्ठ अहक्खा अहक्खाय THER पंचमे | छठे | सत्तमेत्त | अट्टमे | इरियावह पढमे संपराय बितितो ततितो | चउत्थे उवसाम० सुण्णं० | कालमति अमोखी | बंधी | उवसामगो | बंधी खवगो उवसामतो अहक्खातो खवग उवसामग गहणाभवितो | गतो | खवगो खवगो यसपत्तो संपरातो से वा दो वरि वट्टमाणा भगवतीचूर्णिः Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः जीवस्स पदेसपधाणपत्थरियस्स अट्ठ जीवपदेसा मज्झे रुयगसंठिया उवरि चत्तारि हेट्ठा य तेण संचरंति । सेसातोदारियादिसरीरविसेसमसंकोवायोपदेसंतरसंपरिबंधे णो हवंति । कण्ण-छिद्दधरादिसुद्धा । तत्थवियतिलं एगेण सह दो पासतो जे हेट्ठा य एगो । एतेसिं तिण्हं । जो एगो मज्झे तेण सह अणादीतो अपजवसितो ॥छ।। सादीअपजवसाणो सेलेसिं संठवियपदेससंठित्ती सिद्धस्स णिच्चा बाहिरब्भंतरकिरिया विसेसा संभवातो खं.देसाणवं. उक्खेवणीखेवा भाणियव्वा जाव सरीरवजे।। पुव्वपयोगे पच्चंतिए य अपच्चुप्पण्णपढमो नेरइयादीणं संसारत्थसव्वजीवाणं । तत्थ तत्थ खेत्ते तेहिं तेहिं कारणेहिं तम्हि तम्हि काले वेदनासमुग्घातकसायवेउब्विया आहारा तेया मारणांतिकसमुग्घाय समोहयणिच्छूढवयदेससंघातो समुप्पजति । पुव्वदव्वचेयणवत्तपव्वतितो पच्चुपण्णो । सेस कम्मायु तुल्ली करणत्थं केवली समो भण्णति । तत्थ पढमे समए सरीरप्पमाणं हेट्ठावरिल्लो अंतपतिट्ठियं दव्वंडं करेंति, दुतिते पुव्वावराई कवाडं करेंति, ततिते पदक्खिणो य तं कवाडं करेंति । चउत्थे कवाडंतराणिं जीवपदेसमप्पणाणि करेंति । पंचमे मंथंतरोवसंहारं । एत्थ तेयो कम्मगसरीरसंघायं जीवपदे(स)संघायसह चरियमारभवे । छट्ठ सत्तट्ठमेसु तं जहागता तहेवोवसंघारो वा ॥छ।। सरीरप्पयोगबंधो पंचविहो । ओरालियादि । ओरालिओ पंचविहो । एगिदियादिपुढविक्कातियादि सव्वे भेदा सट्ठाणेसु पत्थरिजंति । सुहुम-बायरपजत्तादिणो य भेदा संभवतो ओरालियसामण्णं कारणं मग्गति । ओरालियं कारणं-जस्स वीरियादिकरणं वितियमवि एगिदियोरालियं सामण्णं कारणं भण्णति तं चेव । एवं जाव सव्वभेदाणं कारियाणं कारणं णिद्दिवाणि । एवं पु । आ । ते । वा । व । बे । ते । च । पंचिंदियतिरिय-मणुस्सा ओरालियओहियं । एगिदिएहिं सव्वे बारस १२, । एतेसिं देशबंधो य सव्वबंधो य। सव्वबंधो नाम जे पोग्गला विसयसंपत्ता ते णिस्सेसा णिरूवलेसा ओरालियत्तेण परिणामेति । सो य पढमसमयोववाते हवति । देसबंधो वि केसिं चि पोग्गलाणं ओरालियत्तेण चयो अण्णेसिं पारिसाडं दोहिं पि पूयगदिटुंतो ओरालियप्पओगबंध ओहियं एगेंदिय-पंचिंदिय संभविणं, सव्वदेसजहण्णोक्कस्सं भेदभिण्णं मग्गति । कालभेदेण सव्वबंधो उववातपढमसमये उक्कस्स जहण्णो देसबंधो । गहण-चागलक्खणो पोग्गलाणं । जहण्णो एगो समइतो, ओरालियसरीरी वेउब्वियसरीरी वेउब्वियलद्धी । ओरालियातो वेउब्वियं काऊणं अंतोमुहत्तपडिआगओ ओरालियदेसबंधो एग समयं द्वि वा मरेज्जा । उक्कस्स तिण्णि पलितोवमाई 2010_04 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: पढमसमयसव्वाहारगुणाणि जाव य आउगं वेदेति ताव सो तयायू लब्भति । एगिदियोहियाण सव्वबंधे तहेव देसबंधो जहण्णो वाउक्काइयविउव्वियं एग समयेगमरणे उक्कस्से पुढविक्काइय बावीससहस्ससव्वबंधसमयूणे । एवं सव्वबंधो सव्वे सिं तुल्लो उक्कस्स वि जहण्णो 1 I । गतो । देसबंधो पडिभेदं भिज्जति त्ति । ततो पुढवी देसबंधो जहन्नो पज्जत्तगखुड्डागभवग्गहणं । दो समयाविग्गहो तेसु देसअबंधी ततिए सव्वबंधी । ते तिण्णि समया खुड्डागभवग्गहणातो पाडिज्जंति । सेसो देसबंधो एते असंखेज्जसमया तत्थट्ठवणत्थं अविज्जंति । अ । अ । स । दे । दे । दे । दे । दे । उक्कोसेण सव्वुक्किट्ठा सव्वबंधसमयविरहितं २२ कज्जइ । आउक्काइयाणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूणं अ । अ । स । दे । दे । दे । स । दे । जहण्णो उक्कोसो । उक्कस्स द्विती समयूणा सत्तवाससहस्सा तेउ जहण्णं भणितं । राति ३ समयूणो । वाउस्स जहण्णो समउ वेउव्वियंतमुहुत्तागतदेससमयमरणकालो उक्कस्स ४००० वा समयूणो । वणस्सति जहण्णो पुढविक्वाइय तुल्लो | उ० दसवास सहस्सा १०००० समयूणो । बेइंदिय बारसं संवच्छरा १२ । तेइंदिय एगूणपण्णं राइंदिया । चउरिंदिया छम्मास । सव्वत्थुक्कस्सो समयूणो जहण्णो पुढविलो । तिरियमणुयाणं विगुव्वणविसेसातो जहण्णयो सामाइओ, उक्कस्सो ति पलितोवमसमयूणो । अधुना एतेसु चेव जीवभेदेसु ओहियादिसु सव्वबंधस्सय २ अंतरं चिंतिज्जति । तहा देसबंधस्स देसबंधस्स य । एत्थ य देसबंधो सव्वबंधंतरं भवति, ओरालियसव्वबंधंतरं खुड्डागं भवति, ति समयूणं वुड्डीए अट्ठसमया दो विग्गहसमया एगो य सव्वबंधं समयो ते हिं ऊणं खुड्डागभवग्गणं कज्जति । अ । अ । स । दे । दे । दे । दे । दे । स । दे । दे । दे । दे । दे । दे । दे। दे। आदिल्ल भवग्गहणस्स तिण्णि समया पडिवज्जंति । ततो दुतिय सव्वसव्वस्स सव्वस्स य अंतरेयं समया उक्कस्सं अंतरं पुव्वकोडीओ | ओरालिओ पढमे समये सव्वबंधतो तेत्तीससागरोवमेहिं देवेहिं, तत्थ वेउव्वियसव्वबंधी । ततो चुतो ति - समयविग्गहगती होतूण ततीए समए ओरालियसव्वबंधी । पुव्वकोडीसु पुरिसेसु आदिपुव्वकोडीए अबंधगा समयसुद्धपक्खेवेत्ततो पुव्वकोडी तेत्तीससागरो समयो य सव्वबंधस्स य अंतरं ॥छ || · २६ सेहो सो चेव उव्वियागतो समयं विसमतोक्कस्सो पुव्वकोडिअंतदेसबंधं काऊण तेत्तीसं सागरा । ततो मणुसु ति समयविग्गहं काऊण दो समया बंधतो ततिए सव्वाहारतो ततो देसबंध, एतस्स य आदिपुव्वकोडिअंतदेसस्स य अंतरं कण्णं । एगें दिएसु वि खुड्डागं ति - समयूणं जहण्णं, उक्कस्सं पुढवी उक्कसाओ समयूणं । सेसा दो अबंधसमयाविग्गहस्सा । ततो सव्वबंधी सुद्धपक्खित्ते कयं विग्गहगतीए । 2010_04 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: २७ एगो समतो सव्वबंधतो, दो दो सव्वबंधयायस्से दिट्ठ ति कट्ट वेउब्वियमविकिच्च अंतोमुहत्तं अंतरं हवति । देसस्स देसस्स य पुढविउ खुड्डागं ति जह(ण्ण) उक्कस्स स २२ अ। अ । स । सुद्धपक्खित्ते कंठं । सेसस्स देसस्स य सव्वबंधसमयो अंतरं देस दे० अंत आदिया मरणकाली । उक्कस्से एगस्स अंतो अण्णत्थ विगहा ति-समतितो स । दे । दे । दे । दे । दे । दे । दे । दे । अ । अ । स । दे । दे । दे । दे । दे । दे । एवं आ० ते. वा० व० बे० । ते० च० सव्वबंधति समयूण खुत्तिऊणं उक्कस्से सव्वुक्कस्साहे द्वितीतो ठितिबंधगभवग्गहणं सुहपक्खित्ते वाउस्स देसबंधंतरे विसेसो उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं विगुव्वणातो पंचिंदियमणुयाणं सव्वबंधंतर ज. खुत्तिऊणं उक्कस्से पुवकोडी समयाहिया। तहेव देससमयो ज० उक्कस्से विगुव्वणितो अंतोमुहुत्तं । एते चेव सव्वदेसबंधा । जह(ण्ण)मुक्कस्सा विजातीयसरीरभवंतरविरहिता मग्गिजति । 'जीवस्स णं' सुत्तं । एगिंदियजाती, ततो बेइंदियादिविरहो । पुणरवि एगिंदियजाती, ततो बेइंदियादिविरहो, एत्थ ओरालिएगेंदियसव्वबंधंतरं चिंतिजति । दो खुड्डागभवग्गहणाणि एगेंदियत्तस्स आदिल्ले अबंधगा, दो समया सव्वबंधगं, दो समयं मोत्तुं सेसा दो भवग्गहणा, ति-समयूणा । बेइंदियादिसु य दो सागरोवमसहस्साणि संखेज वा समब्भतियातियाणि सव्वं मेलेऊण कंठसु । ठवणामेत्तं । अ । अ । स । दे । दे। दे । दे । दे । वि.ति. च. पं. सं. संखेज्जा वासा । स । दे । दे । दे । दे । दे । दे । दे। उक्कसं भणितं । जहण्णं आदिखुडभवग्गहणस्स तिण्णि समया हीणा । बेइंदियादिसु खुड्डगं संपुण्णं । पुणरवि एगिंदियत्ते आदीए चेव सव्वबंधो हवति तेण जहण्णं । ठवणा - अ। अ । स । दे । दे । दे । दे । दे । स । दे । दे । दे । दे । दे । दे । दे । स । दे। दे। दे । दे । दे । दे । दे । पुव्वं जहण्णं देसबंधे आदि एगिंदियंतदेससमयो एगें दियादिखुड्डगभवग्गहणं संपुण्णं । पुणरवि एगिदियखुड्डगआदिसव्वबंधसमतो ततो देसो भवति । एवं खुड्डगं बेइंदियादि इतरसमयसव्वबंधगाहियं देसस्स देसस्स य अंतरं उक्क० आदिल्लंत देसो पुणरवि एगिंदियत्त सव्वबंधसमयो ततो देसो । __ठवणा- अ । अ । स । दे । दे । दे । दे । दे । बेइंदियादिपंचेंदियंता स । दे । दे । दे । दे । दे । दे । दे । स । दे । दे । दे । दे । दे । दे । दे।। पुढविएगेंदितोरालिय सव्वस्स सव्वस्स य अंतरं जहण्णं च । तहेव एतस्स मज्झे आउ० तेउ० वाउ० व० बेइंदियादिणो पंचेंदियंता । तत्थ तरुकालो अणंतो खुड्डागभवग्गहणं च ति-समयूणं । उक्कस्स सव्वबंधंतरं देसजहण्णं मज्झिल्ल खुड्डागं सव्वेतरबंधसमयाधिये उक्कस्सो वणस्सइकालो 2010_04 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ भगवतीचूर्णि: इतरसमयाहितो। एवं पुढवीण जहा तहा-आउ, तेउ, वाउ, बे. ति.च.पं.ति, सव्वेसि मज्झ अणंता कालो उक्कस्सो । जं च जहण्णग भवसंबंधिसव्वबंधस्स सव्वबंधस्स य जहण्णस्स उक्कस्स य तहा देस जहण्णस्स उक्कस्स देस देसस्स य । एतस्सणं वणस्सतिकालस्स णोवणस्सति कालस्स २ सव्वबंधस्स य २ जहण्णस्सण्णिमंतरं दो खुड्डागाई भवग्गहणाणि ति-समयूणाणि उक्कोसेण पुढविकालो असंखेजो। आदि खुड्डगं भवग्गहणं च ति-समयूणं उक्कस्समंतरं । दो स० जहण्णेण खुड्डागं भवति । मज्झिल्ले इतर सव्वबंधसमयाधियं उक्कोसो मज्झिमो असंखेजो । इतरसमतो ते एत्थ जो मग्गिजति सो दोहिं पासे ठविजति । देसरासी मज्झे सव्वो वि संखेजो वणस्सति अणंतो जहण्ण मज्झिम खुड्डागं घेप्पति । सव्वबंधे देसबंधेया उक्कस्से उक्कस्सं सव्वबंधो । आदि खुड्डागं तं खुड्डागगहणाणि । देसे आदि अंत देसो ततिय खुड्डागदेससमयोऽयं घेप्पति छ। ___ 'वेउब्वियस्स पुच्छा'-सामण्ण विसेसेण वाऊ-तिरियं पंचिंदियं मणुस्स-देवेसु मणितव्वं । तहेव सामण्णादीण कारणा कायव्वा । वाउ-तिरित-पंचेंदिय-मणुयाण लद्धी । देव-णेरतियाणं भवं पडुच्च सव्वपोग्गलगहणकालो सव्वबंधो । परिसाडण गहणमीसो देसबंधो । पढमसमतो सव्वबंधो । बितियादिसु देसबंधो । सव्वेसु ठाणेसु दो वि । एक्कक्के उक्कस्स मज्झिमो ओहिओ वेउब्वियबंधो सव्वबंधो । विउव्वणादिसमयो देवादिसु उक्कस्स विउब्वणादिसमतो तदणंतर मतो, देवे णेरइएसु वा अविग्णहेण सव्वबंधो । दो समया देसबंधो । विउविऊण समयं ततो देसबंध, तदणंतरं मतो, पुणरवि देव-णेरतिएसु सव्वबंधी । उक्कस्सं तेत्तीसं सा० पढमसमयसव्वबंधमेत्तं सव्वट्ठसिद्धदेवाणं ।। 'वाऊण पुच्छा'- आदिविगुव्वणं समयकालो । सो चेव जहण्ण उक्कस्सो सव्वबंधो देसबंधे । जहण्णे विगुब्बित्तूण वितिय समयं ठिच्चा मतो, अंतोमुत्तमुक्कस्सं विगुळ्वणा अंतो उद्धं सव्ववेगुब्वियभेदेसु सव्वबंधे एगो समयो देसबंधे जहण्ण उक्कस्सो हेरइयादिसु भण्णमाणो । ‘रयणप्पभपुढविपुच्छा'- विग्गहगतीए दो समया अणाहारतो, ततितो सव्वाहारतो तेहिं ऊणा जहण्णहिती, एक्कस्स पदेसबंधो तीए उक्कस्सद्विती, समयूणा । एवं सव्वपुढवीसु । पंचिंदियतिरिय-णराण जहण्ण एणं समयं, उक्कस्सो अंतोमुहत्तं, ते वा णेरइय तुल्ला ओहियवेउब्विय सव्वबंधंतरं चिंतिजति । (ग्रन्थाग्रं ४०००) जहण्णो विगुन्विऊण देसं ठिच्चा मतो, देवेसु उप्पण्णा, सव्वबंधतो चेव उक्कस्सेणं विगुविऊण देसं ठिच्चा तम्मि वा समए मतो, वणस्सति भमिऊण पुणरवि तल्लद्धि विगुव्वति । देसे वि विगुम्बित्तूण देसं ठिच्चा मतो, देवेसु उववण्णो । जहण्णो देसो उक्कस्सो देसाणंतरं वणस्सतिसु पडितो । ततो उन्चट्टो विगुब्बियलद्धिं काऊण देसादी बंधी जातो। 2010_04 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः २९ 'वाउक्कायजातीते चेव पुच्छा'- जहण्णे विगुब्वणोरालिं गहणकालो सव्वो अंतोमुहुत्तं चेव उक्कस्सो । तम्मि चेव वाउणिकाए सुहुम-बातरपजत्तएसु हिंडति । वेउब्वियउत्तरगुणलद्धिमलभमाणो य सव्वकालं पलितोवमअसंखेजतिभागातो लभति वा णो चेव, तातो निग्गच्छति । देसे जहण्णो विगुब्वणं मुहुत्तो उक्कोसो । तद्देसव्वओ वणस्सतिसु पंचिंदियतिरियेसु तम्मि चेव जातिम्मि सव्वस्स सव्वस्स य अंतरमतेसु उक्कस्सो पुव्वकोडीतो जाव णव तम्मि चेव । ततो पुणो वेउब्वियत्तं लभते । ततो वा निगच्छति । एवं देसबंधंतरं पि । एवं मणुयाण वि सव्वबंध जहण्णुक्कोसो । जहा पंचेंदियतिरियाण जीवस्स णं वाउकाइत्तजातीए णोवाउक्कातियजाती । अनेसो सो सव्वरासीणो वाउक्काइतो पुणरवि वाउक्काइयत्ते विगुब्विऊण सव्वबंधी । ततो खुड्डागभवग्गहणं णोवाऊक्काइओ ततो वाउक्काइओ पढम समए सव्वबंधी। एसो अंतोमुहुत्तो सव्वो उक्कस्सेण मज्झे वणस्सति कालो छुब्भति । एवं देसबंधे वि दुविहेपंचेंदियतिरित-णराण वि तहेव । एवं रयणप्पभाए । रयणप्पभपुढवित्ते णोरयणप्पभपुढ० पुणरवि रयणप्पभपुढ० दसवाससहस्साई समयूणाई, ततो पुणो उव्वट्टो अंतोमुहुत्तं ठिच्चा णरएसु उववज्जति । जहण्णा ठिति उक्कस्सो तरुकालो मज्झे छुब्भति । एवं देसबंधे वि । एवं सत्तसु वि पुढवीसु जहणिया ठिती अंतोमुत्तमब्भहिया उक्कस्सो तरुकालो । देसे जहण्णो अंतोमुहुत्तं उक्कस्सो तरुकालो । देवाण य आरणाच्चुतेसु मणुस्सो सातिरेग अट्ठवासा । जं च उववजति तेणातिरेगो करेयव्वो । चउसु अणुत्तरेसु हेडिल्ल देव-मणुए संखेजसागरोवमाणि हिंडितूण लभते उक्कोसं अंतरकालो मज्झिमेण चेव गच्छति । वेउब्वियदेसबंधं वाउ पंचिंदिय-तिरिय-मणुय-देव-णेरइया पढमसमयविउविणाथ थोगा। देसे असंखेजो कालो दिवो आदिल्ल रूवाओ अंतो असंखेजो । एतवति चित्तो वणस्सति । आदी ण अंतो, अणंतो । स । दे। अ । आहारयस्स सव्वं भाणिऊणं । सब्वबंध देसबंध । एग समतितो सव्वबंधो, देसे जहण्ण अंतो० उक्कस्सेव पुणरवि ओरालिए अंतोमुहत्तं ठिच्चा पुणरवि कारिअत्थं गेण्हति । सव्वो चिय अंतोमुहुत्तो अंतरं जहण्णं अंतोमुहुत्तं ठिच्चा पुणरवि गेण्हति । उक्कस्सेण आहारासरीरी उवट्टपोग्गले पं० एगेंदियादिहिं हिंडितूण पुणो लभेज्जा देसे वि, तहेव अप्पाबहुं सव्वबंधो एगो मतो । देसे अंतो मुहुत्तब्भंतरे संभवो मणुस्साय संखेजा किमुताहारतलद्धीतीया ? । तेयए सव्वसरीरीणं देसबंधो अणादिगहणातो, अणादीए वि अणंते । अणादीए सपजवसिए अंतरं णत्थि । अविच्छेदातो छिन्नस्सय मणुपत्ते अप्पा य अबंधगसेलेसि-सिद्धा थोवा । कम्मयं अट्ठ भेदेण भाणिऊण सोवादाणदेसबंधं च, 2010_04 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः अणादीयं, जहा तेयगं अप्पाबहुयं, णाणावरणं दस णाम-गोत्ताणं अहक्खातोवरि ण बंधति । हेट्ठा बंधति सेसो बंधति । सुहमसंपरातो मोहणिजं ण बंधति, सेसा बंधति । अहक्खायं अंतरं ण बं० सेसा बं० । आउस्स देसबंधी थोगा। सव्वसत्तादिभागादिआउसेसा बंधति त्ति कटु, संखेजतिभागो बंधगाण अबंधगा असंखेजगुणा, सट्ठाणप्पबहुं । जस्स णं ओरालियादितोरालियं वेउब्विय-आहारएसु पडिसेहेतव्वं । तेयाकम्मएसु अस्थि । एवं वेउब्वियं ओरा० आहापंडिए कम्मएसु अत्थि । आहारादिए दोसु तेयं कम्माई सव्वत्थ संभवंति । ठ्ठवणं कातूण चारेज्जा । देसेसु सव्वेसु जहासंभवं सव्वसरीराणं देससव्वाबंधयभिण्णाणं सट्ठाण-पर-ट्ठाणेसु अप्पबहुं चिंतिजति । सव्वथोवा आहारगस्स पढमसमयदेसवत्ती अंतोमुत्तकालो त्ति, ततो देसबंधा संखेजासंखेजाय मणुस्सा वेउ० सव्वबंधे । पढमसमयिणो वाउ-तिरिय-पंचिंदिय-मणु० देव-णेर० असंखेजो पक्खित्तो विउव्वित्ता संखेजत मुहुत्तकालो त्ति कट्ट तस्सेव देसबंधी । तेयाकम्माणं अबंधा सिद्धा, ते य सव्वजीवाणंतभागो, तियाणंत गुणाणंतगुणा ते पुव्वरासीतो ओरालियसव्वबंधी वणस्सतिआदिसव्वबंधा जीवा असंखेजतिभागो त्ति पुव्वरासीतो अणंतगुणस्सेवं अबंधा वि से अबंधाविग्गहगतिया उववज्जमाणे पढमसमयतुल्ला तेसु सिद्धा य पक्खित्ता तेण विसेसाहिया, तस्सेव देसबंधा असंखेजासंखेजो कालो उववण्णाण लब्भति । एसो असंखेजो पुब्विल्लण सव्वबंध-अबंधगाण, ते य एतस्स असंखेजतिभागो रासिस्स तेया-कम्माणं देसबंधगा चेव तेतु विसेसाहिया । एत्थंव तु ओरालियसव्वबंधी । जे य विग्गहादिसु अबंधिणो सेलेसि सिद्धवज्जा ते पक्खित्तो ते य असंखेजतिभागो पुव्वरासीतो । वेउब्वियअबंधा वि से एत्थ सिद्ध-सेलेसिया पक्खित्ता वेउब्वियबंधया समुद्धरिया । समुद्धरितरासी थोवा, तेण विसेसाहिता । आहारयसरीरस्स अबंधो वि एत्थ विउवियरासी पक्खित्तो आहारयबंधी । केतिया य समुद्धरिता तेण विसेसाहिता । एयं सव्वप्प-बहुं सट्टाणप्प-बहुं च । सव्वथोवा ओरालियस्स सव्वबंधी । तिसु वि समएसु अविग्गह वि विग्गहंतेसु जीवा असंखेजति सव्वजीवाणं हवंति । जे य अबंधा तेसु वि तिण्णि समया एगवक्कमी एगो दुवक्को दो सव्वे तिण्णि ते पुब्विल्लरासितुल्लअबंधगगहणसामण्णे सिद्धो । आगता तेय सिद्धा । ____ सव्वजीवाणं अणंतभागो । इतरे दो वि असंखेजतिभागो तेण विसेसाहिया । देसबंधे णो अंतमुहुत्ते वि असंखेजा समया तेण तहिंतो असंखेजगुणा । सव्वो य वणस्सतीए णिरूवेतव्यो । इतरो य असंखेजो । एतेसिं सिद्धा अणंतगुणा हवंति । एतस्स ठवणा । 2010_04 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: उ. ख अ स फुणं स असं३ सव्वो १ दे ९ देसं २ अ० ८ अ to विंदे ९ अ ५ कविसेसा ९ अ५ अ ५ अ९ तेन दे दे to 2010_04 9. अ ५ अ ५ अदे ८ अ सं णं उ स 24 4 to स अ णं ६ अ ९ दे से १ to स असं. ३ असं ४ अ १० वि स ३१ अ सव्वो १ दे. अ सं २ णु अविग्गहा समओ एग विग्गहाते समओ वि विग्गहासमओ सव्वा बंधयं ओरालियस्स तिविहा विग्गहाएण अबंधगसमतो ति विग्गहा दो । एवं तिण्णि अणाहारयं समया । एत्थंसि सिद्धरासी पक्खित्तो विसेसाहितो जातो । पुव्वातो देसबंधगा असंखेज्जकाल त्ति । तेणासंखेज्जा य सट्टागप्पI - बहुं । एवं सव्व सरीरीण जाणे । तहा णाणावरणं दंसणावरणादीण सट्ठाणे पुव्ववण्णियं पत्थारेज्जा | अप्प - बहु जो जा सलक्खणेहिं । नवमो अट्ठमे शते ॥ छ | अ ११ विसे अण्णउत्थियादि-केचित् क्रियामात्रादेवाभीष्टार्थप्रसिद्धिमिच्छन्ति । न ज्ञानेन किञ्चिदपि प्रयोजनं निश्चेष्टत्वाद् । घटकरणप्रवृत्ताकाशादिपदार्थवत् । अन्येन क्रियाभ्यो ज्ञानादेव तत्सिद्धिर्नह्यज्ञो गोपालकादिः शक्नोति । घटादिकमर्थमभिनिवर्तयितुं । अन्ये ज्ञानक्रियाभ्यामन्योन्यनिरपेक्षाभ्यां । अत्र चोपसर्जनं प्रधानभावेर्नोभयोर्ज्ञानक्रिययोः समावेश अभाववृत्या वा शीलं बालतपस्वीति । सो० देसा० र० थोगो. देसो थोगं श्रुतं सम्यग्दर्शनं उभयं ज्ञानचरितं तदभावोऽनुभया । णाणं पंच प्रकारम् । दरिसणं- सम्मत्तं । मीसं - मिच्छत्तं । चारित्तं सामादियादि । एत्थ संभवतो चारेज्जा । जा जस्स संभवति तहा फलं च णिद्दिस्से । पोग्गलाणं परिणती पुद्गलास्तान् तान् भावान् गच्छन्ति । ते चामी भावा युगपदयुगपत् समयिनि वण्णादिसव्वे य परोप्परं चारेतव्वा । जहा पण्णवण्णाए । एगो पोग्गलत्थिकायो परमाणू दव्वं संपुणं । दव्वदेसा दव्वावयवो दव्वादिबहूणि संपुण्णाणि य । दव्वदेसा बहुते अवयवा, उदाहु दव्वं च संपुण्णं, Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः अवयवा य बहवो । अहवा दव्वाइं बहूई संपुण्णाई एगो य अवयवो । अहवा दव्वाई च दव्वदेसाई बहवो भंगा । जधा परमाणू तथा दव्वं जधा दुपदे-सयादिखंधस्स एगदेसेण परिणतो तदा दव्वदेसो । सेसा पडिसिद्धा । एवं यो पोग्गलादिसु जहासंभवं जोएतव्वं जाव अणंता पोग्गला ॥छ।। अविभागपलिच्छेदो “छिदि द्वैधीकरणे" समन्ताच्छेदः परिच्छेदः । सो च्चिय परिच्छेदो छिद्यमानद्रव्यं यावच्छेदं ददाति तावद्विभागी भवति ॥छ॥ पदान्त्यावयवस्थमुपजातं तदा विभागपलिच्छेदं यथा षोडश द्वयाष्टको अष्टचत्वारि तथेतरदपि चत्वारो द्विगभेदगो द्वावेकका चेवं षोडश पलिच्छिदो । अविभागसंज्ञाः दो धाराच्छेदणं दव्वं जं बंधती पकारेहिं ते तस्स पज्जवा खलु जावं अविभागे च्छेदो त्ति । एवं पोग्गल जीवाकाश-धम्माधम्मत्थिकायादिसु सव्वत्थ समण्णं दट्ठव्वं केवलिकम्मएसु । इतरो णिवई वरति । इतरेसु तु नियमा केवलीकम्माणि अस्थि । तहा मोहणिजं च उवसम-खवगंतराले समवलोगणिजं पोग्गलसंबंधात् पुद्गलीछत्रिवत् । इंदियगहणेण सव्वे सभेदा जीवसंबंधिणो पोग्गला गहितो । तहा जीव इति पुद्गल इति च पर्याया पूर्वभाषिता एव । अष्टमं शतं समाप्तम् । एक्करुकद्वीपादि । एत्थयं चुल्लहिमवंतचतुष्पादा दिसिसमवगाढा, अट्ठावीसं पदक्खिणा चतुरो चतुरो णिद्दिट्ठा । पढमो तिण्णि सताणि जोतणाण समुदं अवगाहितुं वितिओ दीवाओ जोयणसतं गंतुं समुद्दातो चत्तारि । एवं सवेदियाघणसंतायामविक्खंभा जहोवदेसं णेजा। अश्रुत्वा केवलिनो तस्य वा सकाशे यः श्रुणोति श्रुतज्ञानं उपासको न पृच्छति तत् प्रत्ययासन्न श्रुणोति । एवं सावया उवासिया य तप्पक्खितो सयंबुद्धो एत्थ दुवालसवागरणाणि धम्मो, बोहि, मुंड, बंभचेर, संज्ञा, संवरपंच, णाणाणि पंच एतानि एगत्तेण पत्तेयं पत्तेयं तदावरणिज्जसखयखयोदयोवसमेहिं लभेज्जा । खयोवसमादी एगो लभेज्जा । पुणो वि समुदाएण मग्गिजंति । तत्थ वि सिय तस्स तस्स आवरणिजकम्मक्खयादीहिं लभेज्जा ण वा लभेजा। उदाहरणं च भावेज्जा य । संबुद्धे तहा श्रुत्वा वयो बुज्झति भेदेण छ। पवेसणयं, जो सट्टाणेण तस्स पवेसणं परट्ठाणातो ? जो पविसो एत्थ घेप्पति ण सट्ठाणोववत्ती किंतु परट्ठाणपवेसे । चउब्विह णेरइय, तिरिया, मणुय, देवा । सव्वे पुण सभेदेहिं ठवेत्ता एगेंदिया अपुणरुत्ता बुद्धीए चारेतव्वा । संखेज्जा असंखेजा य भणितव्वा । अप्प-बहु एतस्स णं भंते ! अहे 2010_04 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: ३३ सत्तमाए ट्ठाणजीवविसेसागमणत्थोवत्तातो थोवा । ततो छट्टाए बहुतरा ट्टाणागमणबहुत्तातो एवं जाव रयणप्पभा असण्णी खलुमादी ||छ || तिरिजोणिपवेसणगं पंचविहमूलतो ए. बे. ते. चउ पंचेंद्रिय - तिरिक्खजोणिपवेसणओ । एवं जाव एगेंदिया भावविसेसाहियाण दुगुणा जीवाणं तहासंभवातो मणुयपवसणगो मूलतो दुविहे ख जोणि पवेसण | सव्वे एग दुग तिग य चतु पंच संखेज्जासंखेज्जा चारेतव्वा । जहाभणितं संजोगेहिं उक्खासतिरियपवेसणगं एगें दिए एत्थं अप्प- - बहुं । थोगो पंचिंदिय - तिरिय पवेसणओ । एवं जाव एगेंदिया भावविसेसाहियाण दुगुणा । जीवाणं तहासंभवातो मणुयपवेसणगे मूलतो दुविहे - समुच्छिम गब्भवक्कंतिए य । तहेव जीवा मग्गितव्वा । अप्पबहु - असंखेज्जा सम्मुच्छिमा संखेज्जा गब्भवक्कंतिया । देवाण मूलभेदा चत्तारि । तत्थ एगादीया असंखेज्जंता जीवा संजोगेहिं चारेतव्वा । अप्प - बहुं च, वेमाणिया थोवा ठाणागमणथोवत्तातो । भवणवासि पवे० असंखेज्जगुणट्टाणागमणबहुत्तातो । ततो वाणमंतरा । ततो जोतिसिया । पुणरवि ओहियप्प - बहुत्तं सव्वथोवे मणुस्सया णेरइयए प० असं० देव० प० असं० तिरिक्खजोणि य प० असंखेज्जगुणे । एत्थ य सट्टाणोववत्तीण मग्गिज्जति । इतरेहिंतो चउहिं पवेसो घेप्पति । सट्ठाणे संखेज्जे असंखेज्जा वणस्सतीए अनंता । णेरइया - देव- मणुस्स - बेइंदिय तेइंदिय चउरिंदियाण सांतरणिरंतरुवट्टमाणोववातो । वणस्सति वज्जेंगें दियेसु सट्ठाणेसु अणुसमयमसंखेज्जा परट्ठाणेण विरहिज्जंति वि । एवं उवट्टणोववातो भाणितव्वो । संतं एव नारका विद्यमाना एव नारकत्वेन, द्रव्यार्थोऽत्र विवक्षितः पर्यायार्थेन नोद्रव्यार्थादिति । अथवा तदायुष्कपुरस्कृतप्रवणा एवातोऽपि सन्तः । अथवा सत एव गमे मनुष्यादेः एवं सर्वजीवप्रभेदा वक्तव्यास्तीर्थंकरप्रणीतागमसाम्योपदर्शनं च वक्तव्यम् । पा. नागरसन्देहः किं भगवतः प्रत्यक्षा एवैते अर्था उत उपदेशादिपूर्वका इति ? तदर्थमाह- क्षपितमोहादिकर्मण जालसमुद्भूतकेवलज्ञानदर्शनप्रकाशो हि भगवान् केवली मितममितं च सर्वतः पश्यति जानाति च । अतो सावबुद्ध इति ॥ छ ॥ पंचविहो अभिगमो - सचित्तः द्रव्यत्यागः । वस्त्रादीनामव्युत्सर्गः अचित्तानाम् । विनयावनतगात्रयष्टिना चक्षुर्विषयेंऽजलि प्रग्रहता मनसो एकत्वीकरणता । एषोऽभिगमः । उपासनत्वं मनोवाक्काययोगैः । 2010_04 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः य(ज)मालेमिथ्यात्वगमः क्रियमाणोत्सूत्रात् । नवार्थास्तस्मिन् अभिनिष्पन्नानभिनिष्पन्नार्थानवबोधात् तन्यमानं णियमते एव कृतत्वं तंतु स्यादकृतं स्यात् कृतं योः कृतः स निष्पन्नः योऽकृतत्वे निष्टालक्षणः स अकृतः सूत्रं निश्चयार्थाभिधायि प्रमाणऽस्तु अभिप्रेतनिष्टार्थाकांक्षी । अन्यत्र भगवताभिहितमत्यत्र च तदभिप्राय इत्यतो सूत्रार्थोऽनवबोधादेर्किञ्चित्करमेतदिति । तथा च यमालिरेव केवलिनो ज्ञानादासादयन् भगवता गौतमस्वामिना पृष्ट:- किं शाश्वतो लोकः अशाश्वत: ? इति । स च द्रव्य-पर्यायानन्तनय-दर्शनगोचरमविजानन् तुष्णीभूत इति ॥छ। “पुरिसेणं भंते !" पुरिसं घातयन् । तत्रान्यांश्च सूक्ष्मस्थूलानाकुञ्चनप्रसारणादिभिर्घातयति । छण्णे तो घाते ति भंगाश्च योज्याः । ऋषिस्तु सर्वप्राणिहिताय प्रवृत्तः विरतः मरणादनन्तरमविरतो भविष्यति । तस्मात् तेनानन्ता घातिताः । जहा अण्णस्सोवरि अण्णो सो तत्तेय गहणं करेति वणस्सति जीवाणं । एवं पुढविक्काइयादीयणजण अणासादिगहणं । किरियातो य तहेव जोएतव्वाओ जहा संभवंति । नवमं सतं सम्मत्तं ॥ किमिणं भंते ! ति दिस ति वच्चति ? । पादीणा पुव्वा । पदीणा अधरा । उदीणा उत्तरा । दाहिणा य तमा हेट्ठा । उवरि विमला । विदिसाओ या एतातो जीवा य अजीवा य । समुता एगेंदियादयोऽणिंदियंता जोएतव्वा । धम्मत्थिकायादीण तसतण्ह देसप्पदेसा भाणितव्वा । अग्गेयी एगासणीलोगातो अलोगो जाव तहा विमला अठ्ठपदेसोवरि चतुरुयगातो आरद्धा अलोगंता, हेट्ठिम चतुरुयगातो आरद्धा तमा चउप्पदेसिणी जाव अलोगतो । एतासु दिसासु एगेंदिया अत्थि बेंदियादीण देसपदेसा भइतव्वा । जीवपदेसेसु णियमा जत्थ जो गोपदेसो तत्थासंखेजा । संसारिणो अणिंदियो समुग्घातगतकेवलीभवितव्वो असिद्धो अत्थि चेव ॥ संवुडस्स णं भंते ! अणगारस्स संवृतात्मा प्राणातिपातादिषु अविकल्पितशुभाशुभपरिणामः सामान्यः सकषायी गृह्यते । भावितात्मा येन ज्ञानक्रियासु स भावितात्मा वीचीति सहभावे संप्रयोगे वा, संप्रयोगो द्वयोर्भवति । कषायाणां जीवस्य च सम्बन्धः वीची शब्द: वाच्यः । तस्य सकषायस्य यावती शुभाशुभलक्षणा क्रिया सर्वा सांपरायिककर्मबन्धाय । पंथा तूपलक्षणमात्रं सर्वत्राधार एवं द्रष्टव्यः । यस्त्ववीची असंपृक्तकषायः स तु यत्र तत्रस्थः इर्यापथकर्मबन्धकः । यथाख्यातचारित्राकषायसमनुष्ठानात् । अथ सुत्तं रीयति इतरस्तु सकषायत्वात् न यथा सूत्रं रीयति ॥छ।। ____ 2010_04 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: ३५ आत्मरिद्धया सामान्यदेवो चिन्त्यते । इन्द्रस्तु गच्छत्येव संज्ञायात् । समोषितन्यायेन परस्तु यद्यनुजानीते तदंवियः असुरादिवैमानिकान्तेषु नेयं । अप्पिड्डितो ण सव्वठाणेसु, समिड्डियो तुल्लं बलेण पमत्ते गच्छेज सव्वेसु पुव्विं विमोहेत्ता तमादिना सव्वट्ठाणेसु महिडिओ य । अप्पड्डियमतिक्कमति विमोहेत्ता अविमो० पुट्विं वा पच्छा पदेसे वाणेसु । एवं देवो देवीए देवी देवस्स देवी देवीए, आत अप्पड्डि समिड्डी महिड्डी विसेसिता भवणवदि आदिसु ॥छ॥१३॥ अणगारेणं पुट्ठो गोतमस्सामी । एतप्पभितिं अणादिकालदव्वट्ठताए त्ति । संदेहे तावत्तीसय त्ति ? भगवं पुट्ठो । निच्चया । के सिया तायत्तीस पुव्वभवो ? । अण्णेसिं इंदाणं सामण्णमेत्तं च भणियं । तेत्तीसं च मूलट्ठाण त्ति ततो तेत्तीसारे करणादेवीतो सव्वत्थ महिसीतो इंदाणं तहा तासिं परिकरो । तासिं चेव समुदितियाणं विउव्वणलद्धी । तहा लोगपालाण अग्गमहिसी । तप्परिवारविउव्वणलद्धीतो भाणितव्वातो। उत्तर-दाहिणभवणपति-वाणमंतर तीसवेमाणिताण ॥छ॥१५॥ एगोरुचीण तहेव पयाहिणं सिहरिपव्वयमुत्तरं समस्सिय ॥छ।। दसमं सतं सम्मत्तं ।। "उप्पलेणं भते !" उदाहरणी भणति कट्ट उप्पलं भणति । एगपत्तयं जावादिअंकुरअवत्था ताव एक्को । एताए जोणीए दु आदितो असंखेजो रासी पविसति । सेसाहितो पविसंति । असंखेजो अप्पिणी समया संखेजा पढमेणं णो अवहीरणपविविएणक्खणावि अवहीरिस्संति, णो च्चेव णं अवहीरित त्ति, गतं । बाहिरदीवसमुद्देसु अब्भहितं उप्पलोवरिगमणं । तेणंगोचरणबंधगा तहा आउवजाण आउस्स तत्थे को सिय सो बंधो वा । अहवा अबंधगो । बहुता ते बंधगा वा अबंधगा वा । अहवा दो तत्थेगो बंधतो अण्णो अबंधतो । अहवा अहवो तेसिं एगो अबंधतो सेसा बंधा । अहवो बहवो बंधगा एगो अबंधतो । अहवा बहवो तेसिं अद्धा बंधगा अद्धा अबंधगाण । सव्व पगडिवेदगा । सात असात वेदगत्ते भंगो । एगो सातं वा देज्जा असातं वा । एवं सव्वे भंगा णाणावरणस्स वेयणं पतिकम्मयव्वा । सत्तिकरणमुदीरणं । एगो बहूवा तहा सव्वेसिं कम्माणं । उदयो भोगोवत्था । लेस्सातो कण्हादीयातो चत्तारि संभवति । एगोदि बहुसंभवे मुणेज्जा । एगत्ते ४ बहुत्ते चत्तारि ४। दुयस्सं ६ तत्थ २४ तियसं ४ तत्थ ३२ चउस १६ सव्वे असीति ॥छ।। 2010_04 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ भगवतीचूर्णिः मिच्छाद्दिट्ठी मिच्छादिट्ठिणो वा । अण्णाणी काययो० । सागाराणागारेसु अट्ठभंगा , सरीर, वण्ण, संठाणं पोग्गलाणं जहा जीवदव्वं सुद्धमवण्णादि उस्सासो निस्सासो य पज्जत्ता समोहताणं अपजत्तसमोहताण णो उस्सास-णिस्सासो अस्थि । एगत्ते ३ बहुत्ते ३ दु ३ तत्थ १२ तियसं १ तत्थट्ठ ८ सव्वे छव्वीसं । आहाराणाहारए, आहारादिसु सण्णासु चउसु असीति । पुव्वहं कोहादिसु असीति । वेद णपुंसगवेदवत्ते तिसु मूलट्ठाणेसु छव्वीसं । सण्णाए असण्णी इंदिएसु एरिसं ॥छ।। उप्पलमुप्पलत्तेण चेव जहं० अंतोमुहत्त, उक्कस्सेणं पुढविकालो । अण्ण वणप्फति असंकता उप्पलजीवो । ततो पुढविं संधरितो । पुणरवि पुढवीतो उप्पलं गतो, गति-आगतिए भवग्गहणेणं ण आउय गहणं जहं० दे० भवगहणाणि । एत्थ उववण्णो वेट्टो चेव उ असं० भवग्गहणाणि कालो देसेणं जहण्णा अंतो मु.उक्कस्सेणं पुढविकालो । एवं जाव वाउजीवट्ठाणागमणं । सेस वणस्सतीए उक्कसेणाणंतं विसेसो । बेइंदियादिगमणागमणे संखेजातिं भवग्गहणाणि । पंचेंदियतिरिय-मणुस्सेसु भवे उक्किटुं सत्तट्ट काले पुव्वकोडिपुहत्तं । आहारो छ द्दिसिं । द्विती जहण्णा अंतोमुहुत्तं, उक्क० दसवाससहस्सा । समुग्घाता तिण्णि । वेदणा, कसाय, मारणंतिया । मारणंतिएण केति सरीरपदेसे णिच्छुभित्तूण उपसंहारं च कातूण मरंति । केति पक्खिदिट्टतेणं गच्छंति । उवट्टणा तिरिय-मणुएसु संखाउएसु उप्पलस्स मूलादि सव्वे असकृत् । अनंतसस्समुत्पन्ना सव्वे जीवा । एवं सालुयादि मुणेजा ॥छ।। “कतिविहे भंते ! लोगे पण्णत्ते ? गोयमा ! चउब्विहो । दव्व, खेत्त, काल, भाव । लोगणालीमलिहितूण खेत्तलोगं वक्खाणेति पढमं । सो तिहा अहेलोय, खेत्तलोए सो सत्तहा रतणादी । तिरियलोगो-दीव-समुद्दलक्खणेगहा । उड्डलोगो बारसकप्पा । गेवेज-अणुत्तर-तीसिपब्भारा ।१५।। __ अहोलोगो तप्पागारो । तिरियलोगो उड्डलोगो सव्वो सुपतिट्ठागारो । अलोगो झुसिर-गोलगसंठाणो । जहा कीडाछगलगोल-मज्झ-झुसिरं । एवं अलोयातो लोगो समुद्धरितो । सेसयं अलोगस्स रूवं । अ० अहोलोगे खेत्तलोगे पुच्छा, जीवा जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा अजीवदेसा, अजीवपदेसा । सपुण्णो जीवो । देसो तस्स अवयवो य । देसो तप्परमाणू सव्वे अहोलोगे अत्थि । णवरं अरूवीण देस-पदेसा । एवं ति पदेसा एवं तिरियलोग, खेत्तलोए, उड्डलोए य । अद्धा समयवजं लोए सव्वे संति धम्मत्थिकायादीणं संपुन्नदेसत्तं चेवत्थि । पदेसो समुवचरितो सो ण एत्थ संपुण्णो संभवति । 2010_04 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः आकासमसंपुण्णमलोगागासमवेक्खा । तेण देसत्तमेव लोगो मणुय-खेत्त-अद्धा-समतो लोग गहणेण घेप्पति । 'अलोए पुच्छा'-सव्व णिसेहेत्तूण आगास-जीवदव्वदेसे लोगागाससमुट्ठिते सो य अगरु अलहुतो अणंतेहिं य तद्देसबंधीहिं अगरु-अलहुयपज्जाएहिं समुवेतो । जं लोगागासं ततातो अवणिजति तं च लोगाकासस्स अणंतिम भागं भागयाए वहति । अहुणा अहेलोगे खेत्तलोगे कप्पदेसे अजीवादतो मग्गिज्जति । ____ खंधा परमाणू य ओगाहति । संपुण्णो जीवो णो ओगाहति । तस्स देसो ओगाहति । जो तत्थोगाहते सो देसो एगो च्येव । एग जीवं पडुच्च ण तत्थ पुणो अवयवसंभवो कजति । एवं बहूणं पि देसा हवंति । तम्मि चेव पदेसपरमाणू मग्गणाए पुण संसारिजीवाणं लोगप्पमाणसंवत्तण-संवत्ति-पाणणियमा असंखेजा जीवपदेस तत्थेक्क जीवम्मि वि बहुत्तं किमुत बहुसु समुग्घातगतसव्वलोगावि समयकालो पदेसो लब्भति । सेसकाले तस्स वि पदेसा चेव संभवंति । तस्स पटवित्थरसंवत्तणाधरणितच्चुण्णदेस पदेसवत् । एसो अत्था भंगएहिं चारेतव्वो । तत्थ सुहुमजीवगोलनितोयजीवा पणिंदिया संति । निरंतरं लोगे जहा पाणीयपलोट्टमानवोसट्ठमाणो णिरंतरोवचितो घट्टो, तहा लोगो बेइंदियादीहिं विरहो वि भवति । एगदेसागासम्मि जे जीते नियमा एगिदियाण बहूण देसा मूलरासीए सो य एगो य बेइंदितो तत्थ एव दो वा बे । एवं एग बहुत्तेण जावणिंदिया एते चेवप्पदेसमग्गणा । एतेसु बहुवयणं, एगेंदियमूलरासीतो आरद्धं देसो णियमा बहुप्पदेसो एगेंदियादिसु पंचिंदियंतेसु णेयव्वो । आदिभंगरहितं कजति । एगिदियाण य देसा नियमा । अहवा एगेंदियाण पदेसा एगेंदियस्स य पदेसे एसो ण वुच्चति । एवं सव्वेसु एगवयणादि रहितो भाणियव्वो । अणिंदियसमुग्घायावगते पदेसे पदेसो संभवति । दे. खं. एगम्मि समुग्घातदंडादिसमयादिसु बहुत्तं । एवं सव्वभंगाणिए धम्माधम्माकासाणं देस-पदेसा । अद्धा समया विजये । एवं तिरियलोगखेत्तलोगरुयगातो णव जोयणसताणि हेट्ठा, तातो चेवोवरिं ततो तिरियलोगो उड्डलोए जोतिसियाण जोतणसतातोयरतो णत्थि कालो ते अठ्ठसतजोतणत्था । एवं सलोगे लोगो तस्स एगो पदेसो मग्गिज्जति । अजीवावगाहादीण सो ह. जहा अलोगखेत्तदेसो अलोगस्स णं सव्वं नत्थि । नवरं एगे अज्जीवे दव्वदेसे लोगसमुदितो हवति । देसो लोगागासं अणंतभागा । अलोगाकासं अणंता भागा दव्वे मग्गिजति । दव्वं अ. ख. तिरिय-उड्डलोगअलोगेसु अणंताई दव्वाइं जीवाजीवविगप्पियाई । अलोगे आगासम्मि वा तहा णिच्चाणि कालतो पंच वि भावो । रूवीणं वण्णादि अरुवीणं अगरु-लहुय ___ 2010_04 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ भगवतीचूर्णिः पज्जाया अणंता । सव्वट्ठाणेसु अलोगे अगासस्स छव्वत्ता मेरुमेरुवत्थयत्थ चउदेव, जंबुद्दीव, दुवार, कुमारि, बलिपिंडखेवा, पडियधरणिगहणट्ठा तिप्पमाण चतुद्दिसिपधावण कुमार जणणा य कुलसत्तवंजण मक्खयासंपत्ततिरियलोगबहुता संखेजतिभागसेसअसंखेजभागयातो जोएयव्व त्ति । लोगप्पमाणअलोगस्साधुणा तहेवट्ठदेवा मेरुमत्थयसमयखेत्तदुवारपक्खेवबलिपिंडगहणगतिविणम्मणा लोगंतट्ठिताअसद्भावट्ठावणपसारणट्ठदिसिदारगवाससहस्साणामंतक्खतगताणं तभागअगताणंतगुणनात् प्रखेत्तखेत्तपरिच्छेदो । ॥छ। एगम्मि आगासपदेसे एगिदियादीणाणिंदियंताणं पोग्गलाण एगावगाहो अणंताणं कहं परोप्परसंवाए एगत्थ चिट्ठति ? एकाकाशदेशे स्थास्यते सावबाधया मूर्तामूर्तस्तथाविचित्रपरिणामात् विषयीभूतनर्तक्यादिद्रव्यचक्षुर्दृष्टिसंघातवत् । गोले हाणं सुक्कं एततो वेउवद्देसंतो समप्पति । ॥छ।। सुदंसणा ! चउब्विहे काले । पमाणकाले, अधाउनिव्वत्तिकाले, मरणकाले अद्धाकाले । से किं तं पमाण० ? दिवसप्पमाणकाले य रत्तिपमाणकाले य । प्रमीयतेऽनेन प्रमाणं । क्षण-लवादिना सागरोपमोत्सर्पिण्यवसर्पिणिप्रकल्पेन नारक-तैर्यग्योनि-मनुष्या देवानामायुष्कादिमानं क्रियते । रत्ती चतुधा। दिवसो य चतुधा । तत्थ पोरुसिं पमाणं पुहुत्तेहिं । सा य उक्किट्ठा जहण्णा वा । जहण्णिया वि मुहुत्ता । रत्ती-दिवस-पोरिसी वा उक्किट्ठा अट्टयं च समुहुत्ता । आसाढपुण्णिमाए उक्कोसए अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति । तदा पोरिसी अद्ध पंचम-मुहुत्ता । राती दुवालस मुहुत्ता । तीसे पोरिसी दुवालस मुहुत्ता । अस्सोयपुण्णिमाए समा रत्ती दिवसा । पोसपुण्णिमाए अट्ठारस मुहुत्ता । राती बारसउ दिवसो । चेत्तपुण्णिमाए समा वरिसस्स दिवससता तिण्णि छासट्टा । एत्थ ओमरत्ता ॥छ। सतेण तेसीतेण जति दिवसेतो मुहुत्तो लब्भति हाणी वा वुड्डी वा तो दिवस-मासादीहिं किं लभिस्सामि । तेसीतसतहेट्ठा दिवड्डो मुहुत्तो तस्स हेट्ठा फलं इच्छति । फलगतां तिभागेण उयट्टो एगसट्ठी जाया। दोहिं गुणितं सत वावीसं, एगं गुणितो एत्तियो चेव सतवावीसभागो दिवसेणं लद्धो । एवं वुद्धी हाणी । काल-खेत्तदिवसातो 'सूरपण्णत्ति'करणवित्थरणवित्थरभणितातो णेयं ॥छ । जयंतीए भगवं पुच्छितो । कह णं भंते ! जीवा गरुयत्तं जीव हव्वमागच्छंति ? सिग्घमागच्छंति ? । पाणाति० लहुअत्तं । पाणातिचारवेरमणेणं लहुयत्तं । आउली, परित्त, दीहर हस्स सपक्ख वियक्खणं अट्ठ दंडगा। 2010_04 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः भवसिद्धीय पुच्छा पुच्छाए-निर्लोठनाभिप्रायः उत्तरे । भव्यराशेस्सिद्धि न तु सर्वभव्या श्येस्यन्ते । भव्याः सिति । न तु सर्वाः भव्याः तद्राशेरानन्त्यात् । खदिरवनस्पतिवत् । खदिरस्तावदयं वनस्पतिः । एवं भव्या सिद्धयन्ते न तु सर्वा भव्याः । न्योतजीववर्जाना सिद्धा अनन्तगुणा । शेष राशिः सिद्धेभ्योऽनन्तभागः एक न्योतोऽनन्तभागसिद्धराशिरिति । एवं तीए काले एष्येव तथैवेत्येवं संसारभव्यानुच्छेदः । सिद्धयन्ति च भव्याः । बहुधा वा सिद्धान्तानुगत्याय शब्दाभ्यामवलोक्य वाच्यम् । आगाससेढी दिद्रुतो अनाद्यपर्यवसिता परित्राय परिवृत्ते ति स्थौल्यपरिच्छित्तेत्यर्थः । एवं कालादीण्युदाहरणाणि देयानि ॥छ।। सुप्तता निद्रावशता प्राणिनां घात-संरक्खणत्थविशेषात् तद्विशेष इत्येवं सर्वत्र । परमाणुपुद्गलेषु उत्पाद-विनाशयोरुत्पाद एव विचित्र उपवर्ण्यते । संघातेनोत्पादः विनाशश्च । विनाशे व्युत्पादौ विनाशश्च विनाशश्च । दो पोग्गला संहता दुयसंखे भिज्जमाणे दो । एवं जत्थ एककदुयग-तियगेहिं भेदं देति । तत्थ थावणे । पुव्वं संखेज्जा भंते ! एगततो संखेज्जा एगततो परमाणू इतरातो मेलेतव्वो। जाव दो वि संखेज्जा दो वि पुग्गला, तत्थ य पढमे एगो परमाणू पक्खेतव्यो । संखेज दुपदेस परमाणू जाता । एवं वुड्डीए णेतव्वं । ठाणंतरं संकंतीय तहा असंखेजो तत्थ वि तहेवाभित्तावो ठाणंतरसंजोगवट्टी य अणंते य अणंताभिलावो ॥छ। एतेसि णं पोग्गलाणं संजोगविजोगेहिं कुज्जमाणेणं पोग्गलपरियट्टा अणंता भवंति । एगो परमाणू दुपदेसिएहिं सव्वेहिं चारिजति । तहा तिपदेसिएहिं जावाणंते पदेसिएहिं पच्छाणंतापोग्गलपरियट्टा दुपदेसियाणी लब्भंते एगम्मि चेव किं पुण अणंतेसु । तहा खेत्तादिभिन्नासु वा । ___कतिविहे पोग्गलपरियट्टे ? सत्तविहे । ओरालियादि । सव्वे पोग्गला ओरालियत्तेण जया णिस्सेसा परिणामिता भवंति से तं ओरालियपोग्गलपरियट्टे । तहा वेउब्वियादीण । आदिट्ठसमइए जीवेण णेरइयठाणादिसु पडुच्च ओहियमग्गणाकालसामण्णे । सव्वे सत्त वि संति । एगत्ते अतीतकाले अणंता सत्त वि पुरेक्खे वा सिज्जस्समाण पडुच नत्थि एगो दो संखेजा असंखेजा अणंता य अभव्वाणं च चउव्वीसा दंडतो ॥छ।। 2010_04 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० भगवतीचूर्णिः __ बहुत्ते य अतीते अणंता, तत्थ भव्व त्ति कट्ट, एस्से वि णंता चउव्वीसा दंडतो । सत्तण्ह वि नेरइयस्स तं ठाणं पडुच्च ओरालिया णत्थि । तीताणागता वि देवत्ते वाउ-तिरिय-पंचिंदिय-मणुयत्तेसु जहा संभवं अत्थित्त-णत्थित्ते तीताणागतेसु भयियव्वं । णेरइयस्स ओरालियं चउव्वीसा दंडएण मणितव्वं । एवं पुहत्ते वि सव्वट्ठाणेसु । तहा असुरादीणं । णेरइयाणं एगत्ते सत्त पुहत्ते सत्त ओरालियादिसु । एवं णेरइय भवत्ते एगत्ते सत्त, णेरइय भवत्तेसु पुहत्ते सत्त, सव्वे अट्ठावीसं ओहियसहिता एगुणतीसं ॥छ।। से एकेणं अटेणं ओरालियपोग्गल ति ?। एतस्स वक्खाणं करेति । एगो एगो अणंताहि उसप्पिणि ओसप्पिणीहिं त्ति वट्टिजति । एतस्सऽणते ओरालियसरीरपोग्गलणिव्वत्तणा कालस्स वेउब्विय सरीरपोग्गलणिव्वत्तिकालस्स य । एवं तेयाकम्म-भासा-मण-आणा-पाणू-पोग्गलपरियट्टण-णिव्वत्तण कालस्स य । कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? सव्वत्थोवे कम्मा पोग्गल णिव्वत्तिकाले । ओरालियादिदव्वगहणाणं कम्मदव्वगहणाणं कम्मदव्ववग्गणा सव्वोवरि अणंतवट्टितानि बहुपोग्गला । तहा सव्वजीवट्ठाणेसु य कम्मगमत्थितो बहुपोग्गलागासातो णिरंतरं संसारावत्थिंति पोग्गलागासपक्खेवातो य । सव्वपोग्गलरासी कम्मगजोगपरिणामपरिणतो थोगेण कालेणं परिणामिजति । ततोऽणंतगुणेणं कालेणं तेयगपरावट्टो भण्णति । भवग्गहणबहुत्तातो मणो परियट्टो कह णं भवति ? भण्णति । मणस्स थोवेसु ठाणेसु लद्धी । सण्णिपंचेंदियं मणपज्जत्ती पारंपरियारणं बहुकालता । वणस्सतिए य अणंतो कालो । आणापाणुपज्जत्ती वि तप्पजत्तस्स भवति । अपज्जत्तगो य तीए जणण-मरमणुभवति बहुकालं । भासा य तसकालो तहा तप्पजत्ती य बहुकालो थोवट्ठाणा, तेण जति वि तेयगस्स अप्पा पोग्गला तहा वि तेयगं सव्वट्ठाणेसु कम्मगमिव अणंतरितपक्खेवातो सिग्धं परियट्टिजति । थोगा भाणिरंतरकाल बाल-थविर-छम्मास बहुभोयिवत् । तातो ओरालियपरियट्टो अणंतकालेण, जति वि दव्ववग्गणा थोगा, तहा वि जम्हा आणापाणो अपजतिं चेव काऊणं ओरालियमेत्तगहणकालेण चेवाणंतवणस्सतीते संचिट्ठणा, ततो आणापाणुपोग्गलपरियट्टो, अणंतकालेणं सव्वट्ठाणेहिं जम्हा सो अत्थि । जति विवट्टो वग्गणा बहुया तहवि य हाणं थोवं । ततो मणपरियट्टो अणंतकालेणं मण्णिज्जमाणदव्ववगणा बहुत्ताओ भासाहिं चोजइ वियतीयापोहमणोवियारो । पंचिंदिय-सण्णीसु बेइंदियादिबहुट्ठाणेसु य भासाए तहवि य मणिजमाण वि पोग्गला बहवो इतरेहिं [..........] कालेण भासाए सेसट्टाणेसु भवे वेउब्वियं णेरइय-तिरि-एगेंदिय-मणुय-देवेहिं भव उत्तरगुणलाभाओ [.......] 2010_04 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः आणापाणु-ओरा-वेओ तेयोकम्मा-भासा-मणो ......आणेण [...] मा पोग्गलपरिय [......] अप्पबहुत्तेण मग्गिजंति । तत्थ जे बहुकालणिव्वत्तीए थोगा । ततो पडिलोमाण त सिझंति । [.....] ६ णं ७ णं २ णं - णं ३ णं ४ तेण सव्वथोवा वेउब्वियस्स । एवं हेट्ठाओ परिय [.....] वेहिं थेवं । दुगंधेहिं पंच रसे, ५ सुहमपरिणामातो चतुप्फासं सति [.....] गंध २ रस ५फास ४ सेसाई वा ५ जोगं पडुच्च तत्थ ते च्चेव रागादयो सुभनिमित्तं पडिवजंति । संवरो उदासीणो णिवारणा सुभनिमित्त-भत्ती [........] गंध २ रस ५ फास ४ सेसाइ वण्ण... | गंध २ रस ५ फासतो अट्ठ अमुत्तदव्वाणि । अवण्णा गंध-रस-फासाणि जीवदव्व सा य पज्जया णे [.......] हिया चेव । ओहियसव्वदव्वाणि य जहासंभवं णेज्जा । तहा सव्व पज्जवा । अजीवा पोग्गल-गंध-फासतो अट्ठ चतुविहा भइजंति । दो सदव्वाण सह [......] दव्व-पजवणिद्देसणं मग्गिजति । दव्वं पज्जववियुतं णत्थि कट्टु । अहवा पजवणयं दुपव्वोत्तरं दवट्ठियस्स [....] गब्भवक्कं [...] जीवस्स विचित्तया णरगादिसु कमतो तथा जगसद्दो पजायो । अहवा जगद्वैचित्र्यं कर्म एव स्वभाववादादिनिवर्तनार्थोऽयं यत्नः स्वतत्वज्ञापनार्थं वा । न च सिद्धेषु वैचित्र्यमकर्मत्वात् ॥छ।। चंदविमाणं राहुणा निच्चंतरितं आदिच्चतेयो विसेसातो, पण्णरस दिवसकला कलणातो । दूरासण्णखेत्तं वा वींधीतो हेट्ठोपरि विस्तरे य संकंतीतो तब्विसेसो । अण्णेसिं राहुदेवगमणागमणं चारयति । चारणरूवेण गहणादिकारणं ॥छ।। नागो-हस्ती सद्यो वासो दु सरीरो । तातो उव्वट्टित्ता सिझंति त्ति कट्ट, तस्सरीरं च पुव्वसंगतिय वाणमंतरपडिभोगा विसेसातो सवंतरं पि हवति । एवं सव्वत्थ ।१३।८॥छ।। ___ कतिविहाणं देवा ? प्रभविष्णवो वा यो यो वा क्रियानुष्ठायिनो वा सामान्यमार्गणा भव्यो योज्योदेवत्वस्य तदनन्तरं संक्रान्तो देवो भविष्यति । पञ्चेन्द्रियतैर्यग्योनिः मनुष्यो वा । नर-देवा चक्रवर्तिनः। धर्मदेवा साधवः संवृत्तात्मानः । देवातिदेवास्तीर्थंकराः । भावदेवा भवनपत्यादयः चतुर्विधा उप्पत्ती चिंतिजति । दव्वदेवा असंखेजवासाउया दिवलोगं चेव गच्छंति । अकम्मभूमगावि । सव्वट्ठसिद्धा सिझंति । सेसेहिंतो गरदेवा पढमपुढवी सव्वदेवेहितो य; ण सेसेहिंतो धम्म दे० छट्ठ, सत्तम पुढवि, तेउ-वाउअसंखेजवासाउए वजेहिंतो, देवातिदेवे पुढविवेमाणियदेवेहिंतो सेसेसु । भावदेवा पंचिंदिय-तिरियमणुएहितो । आउयं जहासंखं ज० अंतोमु० उक्क० तिण्णि पल्लोण सत्तवाससता । ज० उक्क० वास 2010_04 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ भगवतीचूर्णिः चउरासीति पुव्वसतसहस्सा । धम्म ज० अंतो० उ० पुव्वकोडिदेसूणा । देवातिदेवस्स ज० बावत्तरि । उक्क० चउरासीपुव्वसतसहस्सा । भावदे० ज० दसवाससहस्सा । उक्क० तेत्तीससागरोवमाई । विउव्वणा-भावदेवातिदेवे सत्ती अस्थिकरणं । ततो अणंतर उववत्ती । पु० कंठा । णरदेवो तो अपरिचत्तभोगो णियमा णेरइएसु जंति । धम्मदेवो ण भवति । तिम्हि ट्ठाणे केच्चिरं होति ? सट्ठाणट्ठिति कालो-धम्मदेवो । असुभं परिणामं गंतुं पडिआगतो मरति सामतितो जहण्णेणं अंतरं लभित्तूण भंति ति । पुणो लभते दससहस्साई । जा अंतोमुत्तमब्भतियं भग्गयमेवा अंतप्पितग्गहणगहितं, उक्क० तरुकालो । णरदेवो अवटुं पोग्गलपरियट्ट ततो सिज्झिहिति । चक्कवट्टीत्तं समत्तसहितो णिव्वत्तित्ति जम्हा सेसं कंठं । अप्पबहु- सव्वत्थोवा नरदेवा। नरदेवा विजयेसु वासुदेवंतरातो संखेज, तित्थंकरा तेसिं सअंतरमेत्तातो धम्मदेवा । ततो संखेजगुणा मनुस्सं । संखेजत्तातो भवियदव्वदेवा । असंखा मणुय-तिरिय-णिव्वत्तिट्ठाणातो । भावदेवातो असंखा सट्टाण बहुत्तातो । देवप्प-बहुं, उवरिमातो हेट्ठा अणुत्तरा थोगा। उवरिमगेवेजगे संखे०, मज्झिमगे हेट्ठिमजावाणतो सहस्सारि तिरिया, ततो असंखेजा जे लग्गलग्गा तेसु संखेजा सोहम्मस्स तेहिंतो भवणवती असंखेजा वाणमंतरा असंखेजा जोतिसिया असंखेजा ।९॥छ।। कतिविहाणं भंते ! आतायं ? कति भेदाः कति कल्पाः आत्मानो भवन्ति । सामान्यविशेषविषयो आत्मशब्दः । आत्मेति सामान्यं । दव्वादीति विसेसो अठ्ठधा । तत्र द्रव्यात्मा निष्कृष्टपुद्गलस्वरूपो निर्दिश्यते । संशुद्धस्फटिकस्थानीयः । कषायपुद्गलोपधानपरिणामसन्नामितः कषायात्मा भवति । उपधानविशेषविषयतामात्मा प्रतिपत्स्यते संसर्गविविधपरिणामात् । अलक्तद्रव्या संसर्गा समुपनीतस्फटिकवत् । कसायकोधादिणो । जोगा वि मण-वय-काया । उवजोगो सागाराणाकारः । णाणं पंचविहं । दंसणं चतुहा । चरित्तं सामायिकादि । वीरियं उट्ठाणादि । एतेसिं विवक्खो य जहासंभवं कजो। अट्ठ वि हवेत्तूणं पढमं सत्तसु मग्गिजति । ते य पढमे णियमवतीचारेहिं । दव्वविसयं, कसायविसयं, च णाणूणं णिदिसेज्जा । दव्वोवयोगदसणा सव्वत्थ दट्ठव्वो । कसायाणोवसामगखवगा अंतो जोगस्स सेलेसीतो । णाणं सम्मदिट्ठिसु । चरित्तं साहुसु, वीरियं जाव सेलेसितो । पुव्वं पुव्वं उत्तरेण सह चारिजति । आदीए सह चरित्तत्तातो संभवं णेज्जा । 2010_04 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ४३ अप्पबह- सव्व थोवा चरित्ता । तातो साधुसु तेसिमेकसमयउक्कस्स पुव्वकोडिसहस्सं पुहत्तं । ततो देसविरता असंखेजा । तिरिय-मणुएसु अविरतसम्मदिट्ठिसु चेव संखेजगुणा । तहा सिद्धाऽणंतगुणाणि णोकसाया तासु अकसाया अहक्खातोवरिवट्टमाणा समुट्ठिया तेयाणंता, ततो जोगा तातो विसेसकसायेसु । अहक्खातसेलेसिवजा सजोगिणो खित्ता तेसु चेव सवीरिया सेलेसिकरणाखित्ता विसेसाधिया । दवियदंसणउवओगा सव्वट्ठाणाणुगा ते वीरियरासी गहिता । एत्थ चेव दव्वदंसणोवओगा । ता सिद्धा खित्ता अणंतगुणरासीए अणंतो भागो विसेसो जातो ॥छ। आया भंते ! णाणे, आता सामण्णे अट्टसु । अहवा णाणमण्णाणेसु तत्थ वि से सामण्णं नियमिजति । णाणं नियमा आता । आया सेसभेदेसु वि अत्थि तेण आता णाणे वा अण्णाणे वा खदिरवणस्पतिवत् । एवं चउव्वीसा दंडएण तु चारेतव्वं । जत्थ जति आतसामण्णभेदपज्जवा संति, तेसु सामण्णमणोण्णभेदग्गहणेण वभिचरति । णणु भेदा सामण्णं जण्णेक्कोहे दो जीवट्ठाणे तत्थ सामण्ण-विसेस नियमो कजो। चउवीसा दंडए । एवं दंसणेण सहतो मग्गितव्यो । सामण्णदंसणे परोप्परणियमो भेददंसणे अप्पा भतितव्वो सुत्ते य कंठ । दंसणसामण्णं । यो यस्य पदार्थस्य स्वभावस्तस्यात्मा जीवस्य वा अजीवस्य वा । सर्वपदार्थाश्चास्तित्वे सति स्वपर्यायेण आत्मानं प्रतिलभंते । तथैव यदि परेभ्यो व्यावर्तन्ते यदेव स्वभवनं सैव परव्यावृत्तिः या पि परेभ्यो व्यावृत्तिस्तदेव स्वभवनीय पर्यायावेतौ अन्वयव्यतिरेकाभ्यामर्थस्थितिः नरसिंहस्थानीया शाबलोयमर्थः । यत्र भावास्तत्राभावः घटवत्, यत्र भावो नास्ति तत्र भावो नास्ति खपुष्पवत्, परसिद्धं खपुष्पं, न स्वत: शब्दार्थज्ञानव्यतीतत्वात् । पारिशेष्याद् भवनाभवनविधिर्वस्तुन्येवं यो वार्थः वचनगतो विकल्पः सत्ताभावे न्याय-तर्कशब्दप्रवणतया साध्यः ॥छ।। आया णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी । अण्णा पुच्छा । तस्यां यावन्तो वस्तैिरसौ व्यपदेष्टव्यः । तत्रात्मीयद्रव्यपर्यायैः पुद्गल-वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-संस्थानानन्तप्रभेदैरादिश्यमानासती रत्नप्रभा सैव तन्मता तस्यामेवावधार्यते । यदि नावधार्यते शर्कराप्रभायामपि स्यात्तवेष्यते तेण परस्सादिढे णो आता । अहवा सक्करप्पभपजवेहि मग्गिजमाणा सा णत्थि । जति होज सक्करप्रभा चेव सा तस्सरूववत् उभयादेशो जं च रयणप्पभारूवं । जं च सक्करा । एतं पुट्ठी । एकसमयाऽभिन्नकालावबोधायि वा विबोधकवशप्रणीति 2010_04 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ भगवतीचूर्णिः तथावस्तुधर्मसंभवाज्जिज्ञास्यमानावबोधार्थं मृग्यते । उभयादेशेन न च रत्नप्रभांशः स शर्करांशश्च । एष सबलीकृतो न हेतुं शक्यते । तत्र द्वितीयावयवसंभवे यद्यस्तित्वावयवेन गृह्येत तत् सन्नियोगविशिष्टत्वात् द्वितीयावयवा भावप्रसंगोपि स्यादतो अस्तित्ववचनाप्रवृत्तिरथ शर्करप्रभावयवावयव-विनिर्देश: स्यात् । तथापि रत्नप्रभादेशेन तत्र रत्नप्रभांशः शर्करांशस्य सद्भावांशाभावो प्राप्नोति । अतोऽर्थसद्भावमभिसमीक्ष्य वक्तव्यः । अवक्तव्यवचनेन च वक्तव्या । शब्दपर्यायेनेत्यतो स्यादवक्त-व्या स्याच्छब्दश्चानेक-धर्मिणोऽर्थस्यैकतरधर्मविवक्षासमीप्रयुक्तस्तद्धर्मभवनाभवनं नियामकोऽनुक्तविधि-नियमानेकान्तप्रदर्शकः सर्वत्र विधौ चैकान्तनियमेनावस्तुनो भावानिष्टं प्राप्तयो दृश्यन्ते घटादिष्विव । परमाणौ भंगत्रयं । आत्मेतरउभयादेशेषु द्विप्रदेशे त्रयमस्त्यवशेयं च द्विसंयोगेन त्रयं । आताणाता आनावत्तव्वाणो अवत्तव्वं ॥६॥ त्रिप्रदेशे त्रयः सर्वत्राभिन्नैकद्रव्याणि विवक्षायां । आता णातेण आता णातेहिं आताहिं अणाएण ३ आतावत्तव्वेण तिण्णि ३ । णो आतावत्तव्वे वि तिण्णि ३ एगो अतणो आततदुभएहिं सव्वे १३ । प्राकृते हि द्वि प्रभृति बहुवचनं कृत्वान्यत्र द्विवचनभंगतापि योज्या । चतुर्षु देशे द्विधा स्थाप्यमानो बहुवचनमेव द्विक संयोगे द्वादश, त्रिक संयोगे चत्वारि, सर्वे १९ पंच प्रदेशे त्रिक संयोगेत्यबहुत्ववर्जिते सप्तमेवं चतुः प्रदेशवत् । सर्वे २२ षष्टयेकदेशे त्रिक संयोगे अष्ट । शेषं पूर्ववत् । सर्वाग्रं २३ । एवं संख्यातानन्तेष्वपि योज्यम् । षट् प्रदेशिकत्वात् । एतानि सिद्धाण्युदाहरणाण्युपात्तानि शेष विषयस्याद्वादश: चोदनायामेकस्मिन्नपि एक द्वि बह्वर्थ द्रव्य-पर्याय-नाम, स्थापना-द्रव्यभाव-नैगम-संग्रह-व्यवहारकृत् सूत्र-शब्द समभिरूद्वैवंभूतार्पितानर्पितगुण-पर्याय-प्रतिषेध-सकल-विकलादेशात् पंच-सप्त- नयगतयथाविवक्षितसद्भावांगीकरणविषये स्यात् शब्दस्यार्थो साध्य-हेतु-दृष्टान्तेषु चैकान्तवादः प्रयुक्तेषु भावाभावस्य च तेषु सर्वत्र तत् सद्भावगमनाय प्रयोक्तव्य इत्यन्यथा भावाभावयोरभावयोः एव लौकिकपरीक्ष्य प्रसिद्धदृष्टान्तवद्भाव्यः ॥छ।। रयणप्पभाए संखेज वित्थडा। असंखेज वित्थडा परिरया तेसु उवघातो काउलेस्सादिविसेसितो मग्गिज्जति । तहा उवट्टो ‘पण्णत्ती' । वट्टमाणादिसमया चूंत णेरइया विरहो य । पदाइं हवेतूण काउ आदिआई मग्गेजो । कण्हपक्खिया च अवट्टपोग्गलोवरिं जेसिं जे सिज्झिस्संति ण वा ? सुक्कपक्खिया अवट्टपोग्गलस्स सिज्झिस्संति य । असण्णीपंचेंदियतिरिय-गब्भवक्कंतिपजत्तगा अमणा णोइंदियविग्गहगती मणपजत्तअणंतरे सामण्णं ओघणाणं जीए सभावो विरहो कयादि दो संखेजा वा ट्ठाणसंखेजत्तातो चक्खुदंसणी इत्थि-पुरिस-सोइंदियादिण मण-वइ, एते विग्गहगतीए परिसाडेत्ता गच्छति नरएसु । उवट्टणाए असण्णीसु ण उववज्जति । विन्भंगणाणं च परिसाडेति । गाहा 2010_04 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः असन्निणो य विभंगिणो य उव्वट्टणाए वजेजा । दोसुवि य चक्खुदंसणी मणवइ तह इंदियाई च ॥१॥ वेदेजा वा भवणिव्वंति आउय वेदो तिविहो वि पण्णत्तिसु पुव्वमत्थि चेव विसेसो तट्ठाणभावी इमो । अणंतरोववण्णगादिपदाणि अणंतरोववण्णगा-पढमसमतो वावातो तदेतरो ओगाहो सरीरस्स आहारदिय चरमो य । पच्छिमसरीरणारगंतो तदेतरो । सव्वपदाणि एगादि असंखेजाणि भाणितव्वाणि । णाणत्तं असण्णिणो सिय अत्थि णत्थि । काइए तत्तुल्लाई णत्थि । कंठाणि । एस चेवत्थो असंखेज्ज वित्थडेसु मग्गिजति । असंखेजाभिलावेण उव्वट्टणो वि दंस० णाणीसु तित्थंकरादिसंखेजत्तं भाणितव्वं । दोच्चाए वि एवं, णरवरं अस्सण्णी तिसु णिसेधेतव्वा । तेयलेस्सा काउ. णीलाओ य चउत्थाए पंकप्पभाए तित्थंकरा णोववजंति । तहेतराओ ओहिणाण-दंसणीण उव्वंट्टति । नीलालेस्सा पंचमीए । कण्ह-नीला छट्ठीए । किण्ह सत्तमीए । इयरे य किण्हा सत्तमीए । नियमा मिच्छद्दिट्टि होतूण उववात उवर्ल्ड करेति । तत्थ गंतो भवति णाणी । उव्वट्टोववाते सम्मामिच्छत्तं नत्थि पण्णत्तीए । अत्थि सिय सव्व पुढवीसु लेस्सातो संकिलिस्समाणाओ सुक्कातो हेट्ठा आगमणं विसुज्झमाणा किण्होवरिगमणआदिसंतासु विसुज्झमाणो सन्निलिस्समाणो दो मज्झे दो वि संभवंति । उववज्जयजीवपरिणतेसु वा णिरयट्ठाणेसु उव्वत्ती सव्वत्थी सव्वत्थ भाणितव्वा ॥छ।। ।१३।१। एसोवत्थो वाणमंतर जोतिस-वेमाणियंतेसु चारेतव्वो । असुर-वंतरेसु आदि लेस्सा चत्तारि । ति- त्थंकरो णोववजत्ते । असण्णी उववजति । जोतिसिएसु तेउलेस्सा । सोहम्मादिसु तित्थंकरसंभवो सणंकुमारादिणो इत्थिवेदा आणते संखेजा उववजंति । मणुस्सा पडुच्च सव्वत्थोवोवरि णेज्जा । अणुत्तरेसु सम्मद्दिट्टी चेव लेस्सातो संकंती असुरादि चारेतव्वा तहेव ॥१३।२।१३।३छ।। सत्त पुढवीते कातूण सत्तमातो उवरिहुत्तं णिजति कालो । पुव्वो महाकालो । अधरो रोरुतोरखि महारोरु । उत्तरो मझे अप्पतिट्ठाणो । तेण छ? पुढविणरएहितो महत्तरवित्थिण्णो महोवासा । पतिरिक्कतरारेवभूमी बहुत्तातो पवेसो थोवा, आइल्ल आउलं ओममसंपुण्णं अण्णो संपुण्णं । एवं सण्णीए छट्ठी असुभतरा, उणाइतरा इतरा धम्मेहिं । तत्थादियंतासु अणंतासु अणंतरधम्मपडिसेहविही । मज्झासु उभया पासा विहि पडिसेहेतव्वा इड्डी-सुभ-बल-वीरियं ।छ। 2010_04 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ भगवतीचूर्णिः रयणप्पभा पुढवी दोच् सक्करप्पभं प्रणिधाय प्रतिनिधिः प्रतिविश्वमास्थाय बाहाल्येन महती आसीत जोतणसतसहस्सं । बत्तीसा अट्ठवीसा य वीसं तहेव अट्ठारं । सोलस अट्ठत्तरयं, पुढवीणं होति बाहल्लं ॥१॥ सव्वपज्जंतेसु य खुड्डिया । जेण रज्जुप्पमाणा उवरि-हेटापतरपदेस परिवट्टी भवति । जाव सत्तमा लोगमालिहितूण जाणेतव्वा । लोगा हेट्ठोवरि दीहयाए चोद्दसरज्जु । तस्सद्धेण सत्त रज्जुतो आयामं, मज्झो सो त रयणप्पभाए घणोदधि-घणवात-अणुवात-हेट्ठातोवासंतरं । तस्स असंखेजतिभागो ओगाहित्ता एत्थ लोगो सत्तरज्जुतो हेट्ठा य । उवरिं च लोगमज्झं अहेलोगो रतनप्पभ-खुड्डग-पतरदुयं । अट्ठपदेसरुयग-संठाणसंठितातो णव सत्ताणि ओगाहेत्ता भवति । एवं उवरि गंतुं उड्डलोगो । तस्साहो लोगस्स मज्झं रत्तुच्छपंकप्पभ-पुढवि घणोदधि-घणवाततणुवाता वोलेतूणं उवासंतस्स अद्धमतिरिच्चं ओगाहेत्ता भवति । ___उडलोय पुच्छा-ब्रह्मलोके विमानरिष्टविमानपत्थडे एत्थायाममज्झं तिरियलोगपुढवि जंबूदीवे मंदर. रतणप्पभपुढविखुड्डागपतरदुय अठ्ठपदेसरुयगमज्झं भवति । जतो दसदिसि पवत्तणं हवति । पुरत्थिमादीण णाम । कंठा । एत्थं दुवालसपदेसा उदाहरणत्थं आलिहितव्वा । इंदाए किमादिया कोत्त कहो को. कति पदेसा आदी । कति ? उत्तरं च टुंति । कति पदेसा ? सव्वसमुदएण । किं पज्जवसाणा ? कोत्त इति यावत् । को एतीए संठाणे । एते पसिणा आलिहिते सव्वे दळुव्वा । लोगस्संतो अत्थिलोगं पडुच्च पहा वि ताए णत्थि । अंतो तहा मुरगसंठाणसंठित्ता पुव्वुत्तराए पदेस हाणी । तहा दाहिण-पुवाए पतरगपदेसे मुरगहेडं दिसियंते चतुष्पदेसा दळुव्वा मज्झे य तुंबं हवति । किमिदं भंते ! लोगे त्ति पउच्चति ? । धम्मादी पंच ५ जावति चलणत्थि ता सा धम्मत्थिकाय, दव्वपज्जापज्जायत्ता । हिती अधम्मे । धम्माधम्म-जीव-पोग्गलट्ठाणं भायणं आकासं । अप्पणो य तप्पजातो तप्पदेसे य एगेणा वि पुण्णो दोहिं जावाणंतेहिं पोग्गलत्थिकायो । जीवाणं संसारे सव्वभावोवकारी जीवत्थिकायो । 2010_04 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ४७ आभिणिबोहियणाणादीणाणं सपज्जयाणाधारो एगे धम्मत्थिकायपदेसे तप्पदेसेहिं चेव । केवतिएहिं ? जहण्णपदे तिहिं । एगो हेट्ठा उवरि वा पासातो दो पतरबहुमझे छद्दिसिं । छहिं उक्कोस पदे । अहमत्थिकायस्स जत्थ तप्पदेसो जहा धम्मत्थिकातो वि तेण जहण्णे चतुहिं उक्को सत्तेहिं । आगासस्स लोयाणो य जहण्ण उक्कोसए सत्त, जीवसुहुमणितोतताणंततं पडुच्चाणंतेहिं पोग्गलत्थिकातो वि अणंता परमाणू दुपदेसिया संखेज्जा असंखेज्जा अणंता कम्मपोग्गल त्ति कट्ठ अणंता । अद्धा समयो मणुस्सखेत्तवत्ती । जे तत्थ ते फुसंति सेसा ण । तक्क, दिणकरगमणसमयमाणपडेक्कदव्वपरिसमंततं समा धायणंता एवमहमत्थिकायपदेसो वि, आगासत्थिकायो लोयालोयवत्ती तेण पुट्ठो ण वा लोगवत्तिणा । धम्मत्थिकायेण जहण्णपदे एगेण धम्मत्थिकायेगपदेसेण । अलोयागासेक्कंतपुट्ठो अलोयंततो चेव । दोण्ह वि धम्मत्थिकायाण मज्झे तहा तिण्ह जावुक्कोसपदेस त्ति । तधा धम्मत्थिकाये सट्ठाणे सव्वत्थ छहिं, जीवत्थिकाये सिय लोयालोगं पडुच्च पुढेण, तं तहा पोग्गलद्धावि जीवत्थिकायपदेसो धम्मत्थिकायपदेसा....धम्मत्थिकायवण्णवरसंठाणाणंतेहिं पोग्गलत्थिकातो जहा जीवो पुणरवि पुग्गलत्थिकातो दुवादिणा मग्गिजति । तत्थ लोगते दुपदेसितो खंधो, एगपदेसे समोगाढो णयदरिसणं पडुच्च प्रतिद्रव्यावगाहमंगीकृत्याऽभिन्नप्रदेशेऽपि भेदाः द्विप्रदेशस्पर्शनस्तथायं उपरि अधस्ताद्वा । तथापि द्विपुद्गलस्पर्शभेदा देश प्रदेशभेद इत्यतश्चत्वारस्तथा शेषद्वयमकैको स्पृशति परस्परव्यवहितत्वात् । पार्श्वस्थितप्रदेशाः स्पर्शः उक्कस्सपदे, अवगाढहेट्ठोवरिपासइयाएसु द्विप्रदेशस्पर्शनाद्वशशेषद्वयव्यवहितत्वादेकैकता सर्वे द्वादश । तेधा धम्मत्थिकाये, आगासत्थिकाये, सव्वत्थुक्कस्सउक्कस्स तुल्ला । जीवपोग्गलद्धा जहासंभवमणंता एवं तिण्णि पुच्छा । जहण्णपदेसो गुणिताणि पासत्थिय दुरुवाधियाणि उक्कोसपदेसं च गुणा सट्ठाणं दो य रूवाणि । सव्वत्थ लक्खणं सामण्णं । एवं अहम्मत्थिकायो वि । आगासमुक्कस्सपदतुलं । जीवत्थिकायाणंतेहिं तहा सट्ठाणे अद्धासिय जत्थ तत्थऽणंतेहिं । एवं संखेजा पुच्छा। तहेव हाणं दुगुणितं दुरुवहितं उक्कोसेणं पंच गुणं दुरुवहितं । आगासत्थिकाये उक्कोसतुल्लं, जीवपोग्गलट्ठाणं ता संभवेणद्धाए सट्ठाणे य सेस दुगुणियं दुरुवहियं जहण्ण उक्कोसेयं चउगुणसंठाणेदुरुवधितता । एवं असंखेजयं णेजा । अणंत पंच एगपदेसावगाहप्रतिद्रव्यभेदे सत्यनन्ततैव पुद्गलादेश्चलनपुरस्सरतामधिकृत्यानन्ताः प्रदेशा: कल्पन्ते तेन अनन्तकं । जहण्णं द्विगुणं द्विरूपमधिकम् ॥छ । 2010_04 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ भगवतीचूर्णिः ६ ८ १० १२ १४ १६ १८ २० २२ ___ १२ १७ २२ २७ ३२ ३७ ४२ ४७ २२ नन्वाकाश-धर्माधर्मानां लोका बाह्यानाममनन्त्यं स्वतोस्ति द्रव्यपुद्गलनयप्राधान्यमधिकृत्यसिद्धमेकेषां । अथवा अनन्तेष्वपि पुद्गले स्वसंख्येया एव प्रदेशा धर्माधर्माकाशानां जघन्योत्कृष्ट पदेषु । अथवा अनन्तप्रदेशासत्वमार्गेणैव नास्ति । अद्धा समतो धम्माधम्मागासाण सत्तहिं जीवं पोग्गलसट्ठाणेहिं अणंतेहिं सकलो धम्मत्थिकायो मग्गिजति । तत्थ जति अण्णो दुतितो धम्मत्थिकायो होज तप्पदेसेण तस्स फुसणा होज्ज, ण तु सो अत्थि अधम्मत्थिकायप्पदेसेहिं सव्वेहितो अवगाहित्तातो तस्स आगासं अलोयवज्जियं फुसति । जीव-पोग्गलद्धाहिं अणंताहिं धम्मत्थिकायतुल्ला समुदएणं पंचवि सट्ठाणे पत्थि फुसणा । परट्ठाणातो धम्मत्थिकायतुल्ला । एगो पदेसो ओगाहणाए मग्गिज्जति । जत्थेक्को धम्मत्थिकायपदेसातोगाढो सट्ठाण सुण्णं । धम्माधम्माकासाणेक्केको जीव-पोग्गलाणंता अद्धा संभवेऽणंता तहा अहम्मत्थिकायो वि । अकासत्थिकातो सट्टाणे सुण्णो । अलोकाकासं पडुच्च णत्थेक्को वि धम्माऽधम्म-जीव-पोग्गलद्धाणं । लोए य पुव्ववण्णियं । जीवत्थिकायप्पदेसो धम्माधम्माकासेहिं एक्कक्केहिं जीव-पोग्गलद्धाहिं अणंताहिं पोग्गलपदेसो धम्माधम्मकासेक्केक्का जीव-पोग्गलद्धाणत्ता पोग्गलत्थिकाय चेव दुय सो दिण्णं । जत्थ भंते ! दो पोग्गलत्थिकाया ओगाढा तो एगम्मि वा दोसु वा पदेसेसु ओगाहेजा ? धम्माधम्मागासेहिं जीव-पोग्गल दुसमयखेत्ते अणंतेहिं जाव, दस । एवं संखेजो एगादिएसु संखेजतेसु तिसु अणंतेहिं भयणाए जीव-पोग्गलद्धेहिं असंखेजेसु अणंतेसु य जहासंभवं णेजा । जत्थ णं एगे अद्धा समए तत्था धम्माधम्मागासेणेक्को जीव-पोग्गलठाणाणंतासमयखेत्तसंभविणो जत्थ धम्मत्थिकायो सगलो मग्गिजति । तत्थ धम्मत्थिकायस्स वा सामण्णेण केवतिया ओगाढा ? णत्थि एक्को वि, संगहितत्तातो । अण्णस्स य असंभवातो । अहम्मागासा असंखेजा पदेसा सेसाणंता तिण्णि वि । अधुणा सकलो धम्मत्थिकातो बहूहिं पदेसेहिं सह ओगाहणाए मग्गिज्जत्ति, तत्थ णो धम्मत्थिकायपदेसा । किं कारणं ? तेसिं सकलधम्मत्थिकाया देसगहणातो । अधम्मलोगागाससंखेजा जीवपोग्गलअद्धा समयाणंता। एवं अहमत्थिकायो सट्ठाणे सुण्णो । दोसु असंखेजा तिसु अणंता तहा सव्वे णेजा। जत्थ णं भंते ! एगे पुढविक्कायओगाढे लोयप्पदेसे जत्थ तत्थ सुहुमा पडुच्च असंखेजा । एवं तत्थेव आउ तेउ वाउ वणस्सति अणंतो सुहुमगोलणितो पडुच्च एवं परोप्परं वणस्सती सट्ठाणे अणंतो, 2010_04 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ४९ तिसु धम्मादिसु णत्थि अवत्थाणं, आहारपरिणामा संभवातो सुहुमजाला परिणामट्ठाणो भाव इव अवगाहो पुण अनंताणं सव्वे ते पोग्गलेसु ट्ठिया सरीरादिसु । कहि णं भंते ! लोगो बहुसमे बहुस्समः सव्वविग्गहितो सव्वसंखित्तोवट्टितो वावक्कित्तं वा सरीरं जस्सामो सव्वाविग्गहितो रयणप्पभाए दो आगासखुड्डागयतराई रज्जुमाणणिव्वत्तगाणि गमाणाणि । जति व य अण्णत्थपतरा समासंति तहावि एतेसु पओयणं । तं चेव विग्गहकंडगं भण्णति । तत्थ बारसपदेसा समालिहितूणं वि विदिसातो णिव्वत्तिज्जंति, तहा पुव्वादिदिसिसंखेवे एगमेके दारयपदेसं हाणीए जोएज्जा । चतुरंतपदेसं एगेगंके दारपया संखेज्जा हाणी । एवं सव्वमिदं एत्थ लेज्जा || १३ | ४ ॥छ॥ आया भंते ! भासा ? । आत्मेति जीवः भासा पोग्गलाए भिण्णा चेव जीवदव्वातो । एवं सव्वत्थरथादिंसु स्वस्वामिसंबंधोऽस्ति । पुव्विं भंते ! त्ति, भासावत्तणा पोग्गलकरणकालो तप्परिणामो तद्भावो वट्टमाणपज्जायकालो गहितो । घट इव । पुव्विं भासा भासिज्जति त्ति । तत्थ वि वट्टमाणसमतो चेव । सा य चतुहा ४ । तहामाणो कायसद्दो सव्वभावसामण्णवाची । एवं आया वि काये देसं सदव्वाणि काया भिज्जति त । ओरालियादिसरीरगहणमेगा दव्वावचयोवचयजुत्ता तहा वट्टमाणकहणकालो सव्वस्तभेदो पांसुमिट्ठग्गहणइव । मरणं पंचहा - आवीयी य, ओहियायंतिय, बाल, पंडितं । तं वीयीयसद्दो सकलवाची । तस्स पडिसेहो अवीयी य । असकलमरणमिति, जाव तं च पंचहा- दव्व, खेत्त, काल, भावा । दव्वं नेरतियादि ४ । तत्थ आउपोग्गलदव्वाइं घेप्पंति । तं च आऊज्जणुसमयं अणुसमयं हिज्जत्ति । रइय व्वायं । एवं तिणि वि ताणि चेव दव्वाणि निरए खेत्तविसेसणेण विसेसिज्जंति । तहा ४ कालेण ताणि चेव समयादिणा भवेण भावेण उवसमयादिलक्खणेणं । एवं पंच चतु मुणेज्जाओ वि । अवधिर्मन: पर्याया एगेगो चउहा । जाई दव्वाइं वट्टमाणसमये णेरतितो अणुभवति तातिं पुणो केत्तिएण काण अनंतरं अवधिं कट्टु गेण्हिस्सति ? सो चतुहा णेरइयादि । एवं पंच चउसु चारेतव्वा । ‘अंतिरियमरणं’ अन्त्यचरममरणमित्यर्थः । तच्च मोक्षमाणे भजनीयं, शेषो भव्यादिः पुनर्लिप्स्यते पंच चतुर्द्वा नेयानि । बालं द्वादशमं पूर्वोक्तं । पंडियमरणं दुविहं सपरिकम्मापरिकम्मं । १३ ॥८॥ छ ॥ 2010_04 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० भगवतीचूर्णिः अणगारो साधु, तस्स परिणामाऊय वि से सब्भावातो वाणुप्पत्ती चिंतिजति । वरं आरातपरं अन्त्यं प्रधानं वा तत्थ परिणामविसेसे लेसावसातो हेडिल्लेसु वा उवरिमेसु वा आऊयबंधो । तत्थ जारिसेसु तहा बंधो तारिसेसु चेव उववजति । अह कहंचि तातो पडेजा तं द्वाणं विराहेजा। ततोऽणतट्ठाणोववाती अण्णपरिणामसंकंते कम्मसामण्णलेस्समेव पडियति । उदाहरणं-ओहिण्णाणी साधु-सावग-पडिलाभ परिणाम उवरि उवरि कप्पाओ य णिव्वत्ति । पोग्गलदरिसणतदुवयोगप्पतदव्वादिभायणपलोट्टण परिणामहाणी । आऊयक्खयोवयोग इव, तहा भत्तपच्चक्खाए वि । जेरइयाणं विग्गहगती गतीए गहिता रतियादिसु मग्गिजंति । अणंतरसमयो उववातपढमो वितियादि परंपरो तदुभय णिसिद्धो विग्गहगति परिणामो आऊय परंपरे भाणितव्वं । एवं असुरादिसु आऊं जहा संभवं णेज्जा । उव्वट्टणा तेसिं चेव । मणुय-तिरियेसु एगसमय मणुस्सो अणंतरो वितियादि परंपरो विग्गहगतीतो उभयणिसिद्धो । एवं सव्वेसिं सव्वत्थ जहासंभवं च आउणिव्वत्ती परंपरवडणाए ॥१४॥१॥ उम्मत्तो मोहजक्खाइट्टयाए दढकम्मयत्तणातो विक्कमो मोहो, णेरतियाणं दुविहो वि । तहा सुराणमवियति असुरविसेसातो जायति । एवं उरालियसरीरीणं सेसदेवाण य, सुतादिलक्खणो संभवेण । पज्जुण्णमेघे कालवरिसीण अकालवरिसी, अहवा पज्जुण्णे कालवासी देवनिकायविसेसे सक्कादेसेणं वरिसति, तहा तमुकायो य णेतव्वो ॥१४॥२॥छ।। । ते णं. वयासी एस णं भंते ! पोग्गले दव्वट्ठतातो सासयं, पजवपरिणामिदव्वं हवति । अतीतकाल इव वट्टमाणागतेसु परिणामरासिफासेतूणं पुणरवि एगगुणफासादिएसु वट्टति । खंधे, तहेव जीवपुव्वकम्मपरिणामातो वा तहापरिणामसंसारसब्भावो वा दुक्खादिअणुभावी मुक्कता एसत्थो।। परमाणुपोग्गले णं भंते ! दव्वादेसेण खेत्त-काल-भाव-चरिमो अचरिमो ? । तं भावं पुणो फासेहिति ? अचरिमो पुणो आगत्ता तब्भावं तत्थ परमाणू दव्यतो संघातं गंतुं पुणरवि परमाणुत्तं लभिस्सति । तेण णो चरिमो । खेत्तादीहिं सिय, जत्थ खेत्तकेवली समुग्घातगतो तम्मि चेव परमाणू समोगाढो वि तए संभवखेत्तविसेसेण णोचरिमो अचरिमो । किं कारणं ? सो अणंतरमेव सिज्झिस्सति । ण तस्स पुणो तहा तस्स परिणामो तहाकालो तब्विसेसगो पुव्वण्हादीतो भावो वण्णादीतो एतम्मि चेव समुग्घाते एत वितिरित्तो अचरिमो ॥१४॥४॥छ। 2010_04 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ५१ रइतो विग्गहगती अगणिकायमज्झे णं गच्छमाणो वि णो डज्झति । उववण्णे णत्थि चेवग्गी । असुरा र दुविहा वि, णवरं वीतीवयमाणो वि णो ज्झियाएजा । एगिंदियाण गती णत्थि त्ि ते न गच्छति । एगे वाउक्कायपरपेरणेसु गच्छंति विराहिज्जंति पंचेंदियादिणो गच्छंति झियायंतियं । देवा-3 - असुर-तुल्ला | दस ट्ठाणाणिट्ठा णेरइयाण - सद्दा रूवा, रसा, गंधा, फासा, गती, ट्ठिती, लावण्णं, जसो - कित्ती कम्म वीरिय - पुरिसकार परक्कमे । जस्स जति इंदियाणि तस्स सेज्जा सुभासुभविसेसो य, सव्वत्थ देवो महिड्डीतो आत्मव्यतिरिक्तं क्रियां विकुव्वित्तणं लंघनं वा प्लवनं उट्ठाण बल वा शक्नोति कर्तुंग विकुरुव्विऊणं ||१४|५||छ | - - - या सव्वे सव्यपोग्गलजोणीया । विप्परियासो पर्यायन्तरविपर्यासः । अनेकपर्यायान्तर संक्रान्ति I 1 र्वाविचीति सम्पूर्णः । अविचीत्यसम्पूर्णे आहारद्रव्यवर्गणासु णेज्जा । जदा सक्कस्स मेहुणेच्छा समुप्पज्जति तदा सुहम्मातो निग्ांतुं जंबूद्दीवप्पमाणं विकुरुव्वति भूमिभागं । तत्थाणीयं दुयं णट्टाणीयं गंधव्वाणीयं च अच्छरातो य तस्सहितो भोगे भुंजति । चेतियखंभो सुधम्माए । तेण ण तत्थ भुंजंति । तहेसाणो वि । सेसा पासादादीण भणितव्वा । सणंकुमारादयो परिचारमेत्तत्थं गच्छति । समासणिया जहा फासा परिचारं मेत्तं कुव्वंति । जया वि तत्थ चेव । एवं उवरि उवरि परिवारविसेसो प्रविचारविसेसो य । सेसं कंठं | |६|छ।। भगवता गौतमस्वामी केवलप्राप्त्यभिप्रायमभिप्रायं ज्ञात्वाभिहित चिरसंसिडोसि मे गोतमा ! चिर संश्लिष्टः, परिचितः, परिसंस्तुतः, अनुवत्ती । त्रिपृष्ठत्वे सारथिः तथान्तराले दिवि देवलोकेऽन्यत्र च, किं बहुना ? मरणादुत्तरतः आवयोस्तुल्य संसिद्धत्वेनेति वाक्यशेषः । एवमुक्त्वे अतिप्रियमश्रद्धेयमिति कृत्वा यद्यन्योप्येतमर्थं व्याकुर्यात् अनेनाभिप्रायेण । 'जहा णं भंते ! एयमहं वयं जाणामो' तहा अणुत्तरावि ते ममादेक्ष्यन्ते मनोवर्गणाभिरेषोऽभिप्रायः । ततो भगवानुवाच गौतम ! किं देववचनं ग्राह्यं देवातिदेववचनमिति ? ततो 'मिथ्या मे दुष्कृत' - मिति । मिच्छादुक्कडं करेति । 2010_04 तुल्लतासम्बन्धेन कतिविहे तुल्लये ? तं दव्व, खेत्त, काल, (भव) भाव संठाण तुल्लए । दव्वं परमाणु परमाणुस्स सेसाणो तुल्लो । दुपदेसो दुपदेसस्स सेसाणो तुल्लो । एवं संखेज्जासंखेज्जस्स साणो तुला जावाणंतो । एवं खेत्तमाकाशदेसो एगपदेसागाढो परमाणू खंधो वा खेत्ततुल्लो | सेसा अतुलो | एवं जाव असंखेज्जपदेसो गाढो कालतुल्लए एगसमयद्विती पोग्गलेग द्वितीयस्स तु सेस अतुल्ले । एवं जाव असंखेज्ज Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ भगवतीचूर्ण: समयद्विती भवभावतुल्लए भवं पडुच्च नेरतितो णेरइयस्स एवं तिरियादी । भावो जीवस्स पंचविहो, छव्विहो । सो समाणो असमाणो दव्वाणं वण्णादिकालतो कालस्स सेसो अतुल्लो, संठाणं परिमंडलं परिमंडलस्स सेसमतुल्लं ॥छ | भत्तपच्चक्खाते णं अणगारे आहारम्मि गिद्धे गढिते किं कारणं ? महावेदणिज्जोदयो, सो तेण वसत्ततो परिणाम हवति । जं पि लोवाहारं तं पिते णिरुक्खित्ता पोग्गला गेण्हंति । सुतरं पक्खेवाहारं वा अभिलसति । मारणंतियसमुग्घातेण गतो संतो विणियट्टति । अण्णपरिणामसब्भावातो सव्वट्ठसिद्धादेवा लवसत्तमा अणुत्तरोववातियाणं छट्टभत्तसाधुकम्मक्खवणमेत्ता वेसासाऊआ मता साधू य सव्वातारज्जुतो जो छ । रतण - सक्कराते अंतरं असंखेज्जा जोतणसतसहस्सा । सव्वासिं च परोप्परं सत्तमाए य अलोगस्स य । तव तणाए जोतिसस्स सयसत्तनउआणि । जोतिस - सोधम्माणं असंखेज्जा सतसहस्सा । तहा सव्वेसिं च परोप्परमंतरं । सव्वट्ट - ईसीपब्भाराए बारसा । इसीपब्भारा अलोगस्स तसीतलजोतणं उस्सेहं अंगुलेणं । एस णं भंते ! रुक्खसालए तस्स पढमजीवो मग्गिज्जति, एवं सव्वतरुसु । पढमा सक्को पुरस सममारेंतो सिरं तहा करति वेयणबोहणखलातो छविः शरीरं तं छिन्नत्ति नो दुक्खंकरः || १४ ||८|| अगारेण भावियप्पा अप्पणो कम्मलेसा । जं तं कम्मं तस्स गहणसंतकालं सुहुमं, तातो न जाणति ण पासति, लेस्सा सा चेव जदा तु जीवो सरूवी ससरीरो तस्स कम्मस्स सुहदुक्खोदयोभया जाति पासति य अप्पणो सरीरं । अत्थि णं भंते ! सरुवी ससरीरा तेसिं लेस्साओ ततो कतरे ? ते भण्णति । चंदिम - सूरियविमाण पुढविक्काइयजीवलेस्सातो ओभासंति य । 'णेरतियाणं' अणत्ता णाम अमणोण्णा । जीवेगत्तातो एगा भासा । सुरियं तेयणिस्सिण्णमुग्गवमाणं दहूणं पुच्छा । सेसुप्पण्णा तत्थ समणो जहा भणितं सम्माट्ठाई ||१४|| केवली भासते समणो वयण- कायजोग सामत्था । सिद्धे सव्वे वि णत्थि तेण विधम्मता । तेण जासंभवं । समणा समणो य जोतेतव्वा || १४ || चोदसमं सतं सम्मत्तं 2010_04 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः शतक १५ सावत्थी नगरी । कोहगं चेतियं, हालाहला अजीव कुंभगारी साविया, चउत्थी सपरियातो। गोसालो पासावच्चेज्जा ॥छ।। सोणे कलंदे, कणयादे, अच्छिद्दे, अग्गिवेसायणे, अज्जुणे, गोमापुत्तो । अटुंगणिमित्तविदु । पुव्वेंहितो समतीए णिज्जुहितवंतो गोसालो य सिक्खाविंतो तेहिं ते सत्तम पडिभोगा, तेण छ पण्हाणि वागरेति लाभादीणि । सव्वण्णवादं वदति । अजिणे जिणप्पलावी जाव नगरे समासद्दणं । भगवं समोसढो । गोतमसामी पविठ्ठो । सुणेत्ता निगतो । परिसाए गोसालउप्पत्ती भगवं कहेति । भद्दा माया । पिता मंखली । सरवणं सण्णिवेसं । गोबहुलमाहणगोसालाए जम्मं । जुवाणो जातो । अप्पणा फलहएणं विहरति । भगवतो बितियवासपरितातो । रायगिहे अंतरवासं वरिसारत्तं करेति । णालंदा बाहिरिया तंतवायसाला । तत्थेव गोसालो मासपारणए, पढमे विजयस्स पंचदिव्वाणि । गोसालो-'तुमं मम धम्मायरियए' त्ति, बितीयमासपारणं आणंदस्स । ततिते सुणंदस्स । चउत्थं बाहिरे णिगंतुं कोल्लागसण्णिवेसे संखडीए । बहुलमाहणपारणयं । गोसालो ण पेच्छति । जमडोड्डाणं दाउं सिरमुंडणयं वित्तीसु । ता मिलितो सो । गोसालसहितो पणियभूमीए विहारो सरदकाले । अण्णदा सिद्धत्थपुरातो णगरातो कुम्मग्गामं; तत्थंतरे तिलथंबो । पुच्छा । सत्त पुच्छा। तम्मि चेव उप्पत्ती, ओसरण उप्पाडेणं गोसालेणं वरिसवद्दलं, जम्म, विसियायणो मुणी, मुणिय जुया सेज्जातरो, कसातितो । णिसिरणंतो (तेओ ले)स्साए भगवतोवयोग। सीतलेस्सा णिसिरणं । खामणं । गोसाल कहणं । भीतो । कह लद्धी लेस्सा ? पुच्छा । कुम्मासं पिंडी- पाणय-चुलुयं, छठेण, छम्मासा । कुम्मग्गामातो पडिआगमणं । तिलपुच्छ मुसावाती । सव्वं दिट्ठो । एगाए सक्कलीए सत्त पउट्टपरिहारो । परावृत्य वानस्पत्यास्तत्रैव जायन्ते । भगवता कथितमितरसर्वजीवस्तथादृष्टः, पउट्ठपरिहारदिट्ठी जातो । ममंतियातो अवकंतो तं तवच्चरणं कतं । लद्धी य, पासावच्चिज्जा पुव्ववण्णिया णिमित्तेणं वागरेति । णो जिणे गोसाले । परिसा निग्गता । वादो णो जिणे । आयावणपेढिताए सुणेति । कसातितो हाला करेजा । अणंतगुणे य अणगाराणं न वे ततो थेराणं णो च्चेव णं करणया एवं अरहंताणं खंतिखमणं अरहंता भवंति । जावं च णं णिवारेति थेरा अणगारे ताव गोसाले आगते संघे पडिबुडे । अखममाणे, अदूरसामंते ठिच्चा णाहं गोसाले, से मते । एत्थ ससिद्धतं पण्णवेति । जे अम्हं सिझंति ते चउरासीति कप्पसतसहस्साई । सत्त दिव्वे । सत्त संजूहे । सत्त सन्निगन्भे । सत्तपत्तोट्टपरिहारे । पंचकम्मणि । सतसहस्ससट्ठिसहस्साई, छच्चेते तिण्णि य कम्मसे खवइत्ता ततो पच्छा सिझंति । एतस्स माणस्स पुव्व साहेति । सत्त गंगा उत्तरा सत्त भावेतूण भवति । सव्व समुदिताणं मेलते । कंठे। बादरबोंदिकलेवरगणणाए । अण्णं सुहुमा पल्लोवम-सागरोवम 2010_04 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ भगवतीचूर्णिः गणणा कुज्जा । एवं सव्वं पमाणमाऊयं च णेजा । संदिठ्ठत्तातो तस्सिद्धंतस्स ण लिखति । जाव तण्णाहं गोसालो, दुदु तुमं कासवा ! एवं वयसि । गामेल्लय तेण य दिलुतो भगवता । भगवता भणितोअंगुलियाए लुक्कति । सच्चेव ते छाया। गोसाले कोवो, सव्वाणभूती अणगारा वयंति-परोपमाणं अहिक्खिव, धम्मायरिए कुपिए एगाहचं करेति । सुणक्खत्ते ततो परिताविते कोसले । आलोइय पडिक्कंते । पुणरवि भगवता पडिचोदिते । कुपिते सव्वसमुग्घातेण णिसिरिति भगवतो उवरिं, भगवं परितावितो णियत्तिऊण तमेवाणुपविठ्ठो । ततो गोसालेणं एस णं तेयएणं अणुपविट्टे सत्ताहेण मरिस्सति भगवता तुमेव च । अहं सोलसवासे जीवी । हं, आविट्ठो गोसालो । अणेगाई सुणिओ इव समायरति । मतो अच्चुतकप्पो । में ढियगामे भगवतो, सीहो अणगारो रोयणं, कपोतयमंसं कुक्कुडवयणीए उवक्खडो । छट्टमासस्स समोसरणं, पुच्छा, सव्वाण सुणखत्ताणं देवलोगो । गोसालो देवलोगातो वेयड्डगिरिपादमूले, सतदुवारणगरं, संमुतीराया, भद्दा देवी, महापउमो णामेण देवसेणे विमलवाहणो य, तहा साधुपडिणीतो, उवरजणवेसेण्णत्ती, मिच्छा पडिसुणणं विमलस्स अरहातो पयोपदे सुमंगलअणगार, चउणाणी, आयावण, रहतुंडपेल्लण, जातिसरेण मारण, अवे सत्तमगमणं, साधु सव्वट्ठसिद्धगमणं । ततो एगेगा पुढवी, दो दो वारा जलयर, खहयर, आऊ, तेऊ, वाऊ, वणस्सति, बेंइदिय, तेइंदिय, चउरिंदिय जाव दुयक्खरिया दारिया, अग्गिकुमारुप्पत्ती, अणुयवो, विलाभ विराहिय सामण्ण सव्वत्थ, दाहिल्ल देवलोगफासाणं जाव सव्वट्ठसिद्ध, महाविदेह, सुकुल दढपतिण्णाणगार, केवलुप्पत्ती, अप्पणो भवावलोयण, साहुसद्दावण, महासद्दकहणं । मा अज्जो ! आयरिय-कुल-गण-संघपडिणीयत्तं काहि धम्मा, जहाहमवट्टपोग्गलपरियट्टअणेगजम्म-मरणकालं, कलीभावभायणे आसि । तहा होसह त्ति । एतं सोच्चा तत्थत्थेगतिया आलोएस्संति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेस्संति ॥१५॥ अत्थि णं भंते ! अहिगरणंसि, जत्थ लोहाणि पिट्टिजंति ? बहुलोहसंभारणिप्फण्णा, तस्स मज्झे वाऊकातो । इत खुत्तियादिसंघट्टातो संमुच्छंति, विणस्संति य । पुट्ठो संतो निक्खमंति य । कम्मणसरीरसहितो जत्थ इंगाला कज्जति सा इंगालकारी, तत्थ य वाऊक्कातो अविरति य दुव्वतो तं सव्वंगाणि य पंच किरियं पुट्ठाणि । अणंतरितअगणिपाणातिवातातो पुरिस इव जीवो अहिकरणी वि अहिकरणं पि अधिकरणं दव्वं, सरीरं पंचपकारा इंदियाणि तहा बाहिरो परिग्गहो जीवो, जाव संसारी तावाधिकरणी सस्सामिसंबंधेण अभेदोवयारेण वा उदारियादिसु द्वितो अविरतिं पडुच्चतोदारियादिसु तस्स विरती णत्थि । तथा सहसं दो सहायवाची दो वि पदे एगत्तेण चउवीसा दंडएण णेज्जा । 2010_04 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५ भगवतीचूर्णिः आत्मपरोभयाधिकरणिनः अविरति । प्रेषणान्वेषणैः तथात्मपरोभयनिवर्त्तिताधिकरणाः प्रेषणादेरेव पंचसरीरा पंचिंदिया तिण्णि जोगा, एतेसु साधिकरणता चारेतव्वा । आहारयं पदं पडुच्चाधिकरणं भवति । सेसाणि अविरतिं पडुच्चा ॥१६॥१॥ __जरा सरीरवेतणा बंधो मणसो वावारो मानसो समनष्केषु, विगलिंदिएसु जरा, सेसेसु दोवि सक्को। उग्गहो पंचविहो । गोतमे ! जं सक्को भणति तं सच्चं ? भगवं सच्चं, गोतम, एयम्मि चेव किं सम्मावादी मिच्छावादी ? भगवं सम्मावादी । सूक्ष्मकायमपोह्य'हस्तादिमुखे दत्वा जीवसंरक्षणार्थं सुहुम भासा(सा)धूणं मुक्कं, चेतकडा जीवस्स भावाचेतण्णकडा वा ? अहवा वि ता संचिता रासी कृताः कर्मणोदयः पुद्गलास्तेषां च रासीनां क्षयो भवति । रोग-दुःसय्यातंकादिभिः । सव्वत्थे णेज्जा ॥१६॥२॥छ।। प्रतिमाप्रतिपन्नगाणगारस्स मज्झगगमणागमणादि णत्थि काउसग्गादिणा ट्ठाणं, सेस दिवसं अणुण्णायं । अंसिताणाणुक्कारिसातो । तेसिं छिंदमाणाणतया सुभासुभा सामण्णा कजति । धम्मतराई अणुमोतणं । जति अणुमोयते तस्स वि किरिया कज्जति ।१६,३ अण्णतिलाततो । सीतकूरभोजी, अंतापंताहारो । एवंतियं कम्मं णेरतितो कण्हं कालेण खवेति ? णो तिणट्टे । सो अत्थो जाव दसमभत्तितो साधू वासकोडि णेरतितो ? से केपट्टेणं ? केन दृष्टान्तेन एवमुच्यते ? से जहा- केति पुरिसा जुण्णे कोसंबो चिक्कणो सा य गंठियादिविसेसिता परसूयमुंडो, एवं तस्स वीरियकरणहाणीतो छिज्जमाणस्स पसुण्णत्तातो महतो आयासे, इतरस्स सवीरियकरणकम्म तहाभावातो । अप्पो, एसो दिर्सेतो ॥१६॥४॥ सक्क पुच्छा- बाहिरपोगला किं बहुणां जाव संसारत्थो ताव पोग्गल पच्चयातो किरिया करोति । सक्कस्स महासुक्कस्स देवस्स य एरावणस्स य पुन्वभवो कहेतव्यो । कत्तियसेट्ठी गंगदत्तो परिव्वातो त्ति तेण रागदोसेण सक्को परितावितो णेण ॥१६॥५॥छ।। स्वप्ना अनेकविधा । विपक्षमाणकर्माकर्मदर्शकाः मोक्षपर्यवसानाः ॥१६॥६॥छ।। लोयपुच्छा, णिद्देसं भाणितूण पुरच्छिमिल्लचरिमंत पुच्छा य-पुव्वादिसा अलोयं पलिक्खडिता उड्डाहतिरियालोयालोयदंतगपविट्ठणिग्गतएगपदेसचरिमसद्दसंगहिता मंथाण विवरणिग्गम इव दट्ठव्वा । तीसे पुच्छा, 2010_04 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ भगवतीचूर्णि: जीवादीया तस्स जीवा संपुण्णा णत्थि । एगो पदेसो त्ति कटु एवमजीवा वि रूविणो संति एगपदेसे वि तट्ठाण चउव्विहा वि, खंधादिणो तेत्थ सुहुमा सव्वलोयवत्तिणो पुढवि आउ-तेउ-वाउ-वणस्सतीण । बातरा लोगणालीए अंतो, तत्थ य लन्भंति । आगरिस विग्गहगति विसेसाओ तहाणिंदिया कवाडसमुग्धातत्थ तत्थ जे जीवदेसा ते णियमा एगिदियाणं तेसु दंतएसु, एस सव्वत्थचुतभंगो । अहवा एते य बेइंदियस्स य देसो एग दंतयवत्ती आकारिससमुग्घातगतस्स तस्स वा बहुदंतयवंतिणो वा देसा बेइंदियाणं वा बहूणं णियमा देसा एगम्मि वि दंतये पविट्ठा किमुत बहुसु । एवं जाव पंचिंदिया । अणिदिएसु एगदेसो णत्थि । णियमा कवाडं करेंतो वित्थारो बहुदेस णिप्फंदेति । तेण एगम्मि वि बहुदेसता । तहा बहुसु बहुं चेव । एगेंदियाणं णत्थि । सो य पढम भंगो । एगिदियाण बहुत्त भंगो ण गणिज्जति । सव्वत्थ संभवातो तत्थ देसे एगेंदिय देसा एगिदियदेसा य बेतिंदिय देसे य एगिंदिय देसा य बेइंदियस्स देसा । एगेंदिय देसा य बेइंदियाण देसा । एवं बे० ते० चतु० पंच० अणिंदियस्स । पढम वजा दो, एगिदिय देसा य अणिंदियाण देसा य । एगेंदिय देसा य अणिंदियाण देसा। एते भंगा जीवदेसेण पदेसे भण्णति । जत्थ एगो पदेसो जीवस्स तत्थ णियमा असंखेजा । सरीरसंवत्तणा संवत्तितस्स सव्वसमुग्घातगतं मोत्तुं तेणेंगिदियाण पदेसा तहा एगिदियस्स वि । एगदेसे वि बहूपदेसा तहा बहूणं पि बेइंदियाणं । एव जाव पंचिंदियाणं । एगवयणं णत्थि सव्वत्थाणिं-दियंताणं । जे अजीवा ते दुविहा । रूवी अरूवी य । ४ अत्थि अरूवित्थ । धम्मादयो संपुण्णा। पुव चरिमंते ण संति देसा पदेसा य संति । कालो णत्थि तेणत्थ । जहा पुवादिसीतट्ठा सव्वतो लोयचरिमंत एगदेसागासादिचरिमदेसातो चत्तारि । लोयस्स णं भंते ! उवरि चरिमंते उवरि चरिमंत एगयतरं सदंतगं मग्गिजति । तत्थेगिंदिया अणिंदिया य संति । तेसिं देसपदेस बहुता सव्वभंगादी । जे जीवदेसा ते णियमा एगिइदय देसा य अणिंदिय देसा य । अहवा एगेंदिय देसा अणिंदिय देसा । बेइंदियस्स य देसे । अहवा एगेंदिय देसा अणिंदिय देसा । बेइंदियाण पदेसा । एत्तेगेतरसामत्थातो एग बेइंदिए बहवो देसा ण संति । जति वि दंतया तस्स तहा वि एक्को चेव पतरो । अहवा तारिसो आकरिसो णत्थि । तेण भंग मज्झ भंग विरहितो । एवं जाव पंचिंदिया पदेसेहिं वि एवमेव, णवरं एग बेइंदिए वि बहू पदेसा तेणादी एकवयणं णत्थि ||५|| अहवा छव्विह छ णवरं धम्मत्थिकायदेसो एक्को चेव सेतरो पदेसो तस्स बहू संति । तेण कत्तयोदत्तिया एवमधम्माकासा वि । एवं तमतमातो। आगासंतरउगाहित्ता हेट्ठिम चरिम एगतमतरतम्मि । जीवा एगिंदिय देसा । बेइंदियस्स देसे देसा णत्थि एगपतरत्तातो बहूणं देसा संति । तहा चेव पं. अणिंदियस्स देसो देसा णत्थि, बहूणं देसा । एवं मज्झिम जवबहुत्तं मोत्तव्वं । पदेसेहिं एगेंदिय देसा अहवा एगेंदिय देसा य 2010_04 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ५७ बेइंदिय देसा य । एगत्तं णत्थि एसो आदिभंगो । एवं बहूणं तहा पंचिंदियंताणं अणिंदि० सय अजीवा एगत्तण पोहत्तिएहिं उरूवी चतुम्विहा वि । जहा लोगो छद्दिसिं मग्गियो तहा रतणपुढवी वि मग्गिजत्ति । रतणपुढ० पुरथिमिल्ले उवरि जहाततविंगाल-हुई महतीए तवियाए उवरि समारोहिता, एवं रयणप्पभा घणोदधिवलयोवरि संठिया । तीसे पुव्वचरिमंतो संठिज्जति । सो य लोयचरिमंत इव दट्टव्यो । तहा चउद्दिसिं पि रयणप्पभपुढवि उवरि । चरिमंत खुड्डाग एगपतर पुच्छा- एगिदिय देसा णियमा पएसा णियमा अहवा ते य बेइंदियदेसा य, तम्मि चेव पतरे अवयविणो देस-पदेसा हत्थ-पादलक्खणाट्टिता तेण बेइंदिय पदेसा य, तहा बहूणं देसा एवं पंचिंदियाणिंदियंताणं । एतम्मि य पतरे बेइंदियादीणं सट्ठाणमत्थि तेण तियभंगो लद्धो पदेसेहिं तहेवादि विरहितो । अजीवा सत्तहा । एगत्त पोहत्तिया तिण्णि । अद्धा समयो य रूविणो चतुहा वि । रयणहेट्ठिमचरिमंते एगपतरत्तातो बेइंदिय तेइंदिय चउरिदियाणमाकरिसगमणसंभवातो य। मज्झिमो बहुवयणभंगो णत्थि । पंचिंदियो सरीरो जाइ त्ति कट्ट तदवयव-हत्थादि एगपतरत्ते वि बहवो संति । तेण तिय भंगो पदेसेसु आदि रहितो अज्जीवेसु अद्धा णत्थि । एगत्त-पोहित्तिया । तहेव जहा रतणप्पभाए तिरियदिसातो सक्कर० वालु पंक धूम तम तमतमा सोहम्मीसाणादिणं जावीसीपब्भारा तहा णेतव्वा । जहा रयणाए, हेट्ठिमचरिमंतो तहा वालुयादीणं पुढवीणं सोहम्मादीणं अच्चुतंतादीणं च कप्पाणं भणितव्वं । किं कारणं ? एतेसु हाणेसु देवो चंकमति तेण पंचिंदियेसु तिय भंगो । हेट्ठिम गेवेज्जारद्धा जावीसीपब्भारातो विरहे हेट्ठातलपतरेसु बेइंदिय-पंचिंदियेसु दो भंगा मज्झ रहिता देसेसु आदि रहिता चेव । अजीवा छविहा, देसे पदेसे कत्तयोहत्तिया एत्थ भंगो एगेंदियाण देस-पदेसेसु निच्च पडिया । एगिंदियादीणं एगउट्ठिया एगस्स । एसो पढमो । तस्सेव वितिया पडिया । दुतितो बहूणं पडिता । ततितो पदेसे एगस्स य पडिया । पढमेगत्तं णत्थि । बहुसु तप्पडिता दो भंगा। एगो समतो अभेज्जो तेणं लोगंगोतरपरमाणू, एत्थ य संखेजासंखेजापदेसपरमाणूणं परोवाहिणा असंखेजा पदेसा भवंति । ततो पुणं सव्वेव कालपरमाणू वा संवासति णो वासतीति जाणणेच्छा । ये हत्थं पादं वा पसारेति तत्थयणि संभवघातातो पंच किरितो। सव्वा गती पोग्गलधम्मत्थिकायबलातो ॥१६॥८॥छ अट्ठमणि-कंचणकाकतो जहाणतियातो वण्णरात वा ॥१६॥९॥छ।। देवाणं नारगाण य बल, लेस्सातो सरीरस्स, भावलेस्सातो छप्पि १६।११॥छ।। सोलसमं सतं सम्मत्तं ॥ 2010_04 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः पुरिसे तलमारुभति तम्मि अण्णे य तलजीवा य तलं च मारेति त्ति पंच किरियो । तलणिव्वत्तिणो जीवा संघातपारंपरितेण संघट्टिजमाणो उद्दवंति त्ति, कट्ट पंचकिरिया । एवं पडंतम्मि तलं पंच किरियं । जेत तलनिव्वत्तिणो जीवावयवा ते तहेव चतु किरियातो पुरिसा । कोडेषु क्षेप्नुपुरुष वण्णेयं । एवं मूल खंध-तया-साल-पवाल-पत्त-पुप्फ-फल-बीयासु पुरिसा एगारस । एतेसिं एगो पुरिसो सेतो अण्णत्थ कम्मं तुरयता पच्चंतंतु मूलादि । सेसो सव्वोवी २ रासी कोति पंच किरितो कोति चतुष्किरितो । कति सरीरा ? पंच । कति इंदिया ? पंच । जोगा तिण्णि, ओरालियसरीरं णिवत्तिमाणे जत्ता अचित्तेहिं पोग्गलेहिं तदा ति किरियातो । जया परितावेति पासट्ठिय जंतू तदा चतु । उद्दवेति पंच । एवं सव्वत्थ सरीरं । जहा तव्वं ॥१७॥१॥ ___ महाव्रतधारी सामायिकादिसंयमस्थ: सधर्मस्थ: देशैकदेशविरतो धर्माधर्मस्थः । अविरतो अधर्मस्थः । एतस्मिन् धर्मे न शक्नोति शयितुमास्थातुं वा तमपुद्गलानां सूक्ष्मपरिणामात् । अर्चिष्विव विरतिः पुनरभावात्मिकाःतस्थः स्वयोगकषायवशात् पुद्गलबंधी न विरते उवसंपज्जित्ताणं विहरति । से जस्स धम्मो वा अधम्मो वा अत्थि जहा दंडी अण्णउत्थिया एवमादिक्खंति । भगवतो वयणमनुवदितुं एग पक्खं दूसेति समणा पंडितसमणोवासगा, देसक्कदेसविरतीतो बाल-पंडिता । ते पुणं भणंति-जस्स णं एगं जीवे पाणातिवातदंडे अणिक्खित्ते सो य अपंडितो । तेण सावयो बाल-पंडितो ण भवति, अपण्डितो चेव । एसो अण्णउत्थियपक्खो । अहं पुण एवमादिक्खामि । जेण एगम्मि वि पाणे अक्खित्ते से मीसे लब्भति । द्विधर्म परिग्रहात् । यद्येकदेशहानिः द्वितीयहानिरपि कथं न भवत्यतो मिश्रः । अण्णउत्थिता अण्णे तोचे अण्णे पदातो, जीवतीति जीवः । नारकस्तैर्यग्योनौ वा प्राणाच्चारयति पर्यायास्तिकवान् । आत्मा सर्वभेदेषु सामान्यानुवर्ती तेन द्रव्यपर्यायोरन्यत्वं विनाशाविनाशाच्छब्दार्थोभयकार्यव्यवहारादिभेदात् घटपटवत् सर्वत्र, उत्तर-द्रव्यपर्यायांगांगीभावादौ युत्यप्रसिद्धितः । देवो सकर्मकः । न शक्मोत्यरूपी भूत्वाद्यस्तु सिद्धयति सकारणाभावादेव । तथापरिणममानः परिणमते न च मुक्तः पुनः कर्म गृह्णाति कारणाभावादेव, न च मूर्तममूर्तत्वं यात्यमूर्तं वा मूर्तताम् ॥१७।२।छ।। शैलेशितां प्रयत्नोत्तिष्टयोः निष्प्रकम्प अन्यत्र परयोगात् कश्चित् तमेव सशरीरं समुक्षिप्य नयति ‘एज़ कम्पने' एजनाकम्पना पञ्चविधा । द्रव्यैजना चतुर्द्धा-नारकादिका । जीवा पुद्गलसंपृक्तद्रव्यैजना नारकस्य । तस्मिन्नेव क्षेत्रे एजना तथा नारकभवे औदायिकादिभावे नारकाख्ये एवं सर्वत्र चलनात् 2010_04 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः पर्यायस्य स्पष्टतरभिधायिनि शरीरेन्द्रियाणि शरीरेन्द्रिययोगेषु तेयानीकायानीय संक्रान्तिवद् रसादिपरिणामजगत्कायस्वभावो संवेगवैराग्यार्थं । संवेगादिपदानां फलं मोक्षः पुष्पं शुभ-नृ-सुरेषु ॥१७॥३॥ प्राणातिपातेन क्रिया क्रियते । सा च जीवप्रदेशैः स्पृष्टा । यद्यपि क्रिया परिस्पन्दो तथापि तदविरतिं प्रत्ययसम्पादिताः पुद्गलाः सर्वथा जीवप्रदेशैः संस्पृशन्ते स्पर्शो दिग्भिः पूर्ववत् । एवं समयो कालो देसो खेत्तभागो पदेसो खेत्तस्सेगमणुत्तरो णिच्छयस्स अप्पणा ववहारस्स णिमित्तमवि सुहा वि इच्छिज्जति । एवं चेव णवमवि ॥४॥छ।। ईसाणसभा सुधम्मसक्कसभा तुल्ला ? उत्तरतो मेरुमुड्डा भणितव्वा ॥५॥छ।। रयणप्पभातो सोधम्मोववातो पुढविक्काइयस्स पुच्छा । संपाउणाणं पुद्गलग्रहणं पुद्गलप्राप्तिः । (ग्रन्थाग्रं ५०००) यो यत्रोपपद्यते उपपातः तत्र गमनं जन्मनि पुब्बिं संपाउणित्ता अलियगती जीवदेसाणि छुहितुं सरीरत्ताए पोग्गले गहेतुं ततो इतरं सव्वहा सरीरं मुयति । सव्वजीवपदेसेऽहिय आहारेति एस सण्हो भिण्णो कालो ॥६॥ जो पुण सउणी, खेत्तय दिटुंतेण गच्छति सो गंतुमाहारेति । सेस समुग्घाया पासंगिका । एवं जावीसीपब्भाराए दोच्चादीयातो एक्केक्का उवरिहुत्ता तम्हा सोहम्मातो रयणप्पभमादिकातुं जाव सप्तमा । तधा ईसाणादिणो ईसीपब्भारासत्तमपुढवि अंता । एवं आउ, तेउ, वाउ, वणस्सतिणो सुहुमबादरादि सामण्णो । वाउए चत्तारि समुग्घातं । सेसं कंठं ॥ सत्तरसमं सतं सम्मत्तं ॥ । जो जेण पत्तपुव्वं भावो सो तेण अपढमो होति । जो जं अपत्तपुव्वो भावंसो तेण पढमो उ ॥१॥ जो जं पाविति ति पुणो भावं, सो तेण अचरिमो होति । अच्वंतवियोगो जस्स जेण सो तेण चरिमो तु ॥२॥ ओहिंतो जीवपदे । जीवेणं भंते ? ति । जीवो तिसु वि कालेसु जीवभावं ण मुंचति । ण अजीवो होत्तूणं जीवो होति । ण वा जीवो अजीवो होति । जहा मट्टियापिंडो होत्तूणं घटो होति, घटो कवाले भवति ण तहा जीवो । णो पढमे अभूते भूते चेव भूते अपढमे णेरइया वि अणेगसो आसि, एत्थ विच्छेदेण अपढमो मीसं चतुवीसा दंडएण णेजा जाव वेमाणिया, सिद्धो अहोतूणं भवति तेण अपत्ततब्भावो पढमो। ___ 2010_04 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० भगवतीचूर्णि: जीवाणं भंते ! पोह ति, तो दव्वट्ठाए अपढमा, तहा णेरइयभावो अणेगभावो सो पत्ते त्ति । तेण अपढमा, एवं जाव वेमाणिया । सिद्धत्तमपत्तं पत्तं तेण सिद्धा पढमा । आहारत्तेणं पढमे अविग्गहगति समुग्घातसेलेसिसिद्धवजाहारगा । जीवस्स आहारगत्त पढमं । एवं बहुसो पत्तं । एवं चउवीसा दंडतो हुत्तेण वि सव्वजीवा आहारगत्तेणाणंतसो । तहा णेरइयादी । सिद्धपदे आहारपत्ता संभवातो ण मग्गिज्जति ॥छ।। अणाहारएणं भन्ते ! अणाहारगो विग्गह-समुग्धातसेलेसिसिद्धा । जीवपदेसियकेवलिसमुग्घात सेलेसिसिद्धा पढमा । सेस जीवा विग्गहगतीए । पढमा णेरइयादि । अपढमा अणाहारगता । सिद्धपदे पढमा पुहुत्ते जीवपदे तेसु चेव सिय णेरझ्यादिसु । अपढमसिद्धपदे य पढम भवसिद्धिं भवसिद्धियत्तं । जीयत्तं दव्वद्वत्ताए । जीवभव्याभव्यादीनि कृत्वा जीवपदे णेरइयादिसु सव्वत्थेगत्तं पुहुत्तेण अपढमा, तहा अवत्तं । णोभवसिद्धिय णोअभवसिद्धियो सिद्धो । सो तब्भवेण पढमो । एवं एसो भेदेण सिद्धे वि सण्णी सव्वे जीवा अणंतए सो तेणापढमा । तहा असण्णी वि णोसण्णी णोअसण्णी । जीवमणुयसिद्धा एगत्त पुहुत्तेणं अपढमा । सलेसत्वं सलेसेसु चेव मग्गिजति । ते य एगत्त-पुहुत्तेण अपढमा अलेस्सेहिं ति । जीवमणुयसिद्धेसु सो य भावो तेण अपत्तपुव्वो पत्तो तेण पढमो एगत्त-पुहुत्तेण वि । सम्मत्तं जेण अलद्धं लद्धं सो पढमो पाढेऊण पुणो पुणो लद्धं अपढमो । एवं रतियादिपदेसु सिय सिद्धपदे पढमं । एवं अपुहत्तेण वि सिय जीवादिसु वेमाणियंतेसु सिद्धपदे पढमा । मिच्छत्तं सव्वत्थ जत्थ संभवति तत्थापढम एगत्त पुहुत्तेण सम्ममिच्छत्तं जेण पढम पत्तं सो पढमो । जेण फासेतूण पडिपडियं पुणो पत्तं सो अपढमो एगत्त-पुहत्तिया । संजते सामायियादी संजमो जीवमणुस्सेसु संभवति । जेण पढम लद्धं सो पढमो होतूण असंजयत्तं गतो पुणो पत्तं तस्सापढमं पुहुत्ते पढमा वि संति अपढमा वि, एतेसु पदेसु बहवो तत्थ संति । पडिपडितसंजमा होत्तूणं पुणो लद्धवंतो अस्संजयत्तं । दोसु वि एगत्त-पुहुत्तेसु पढमं । संजतासंजतत्तं देसेक्कदेसताविरती तिरियमणुएसु तं जस्स पढमं सो पढमो । जस्स बि ति लंभो तस्सापढमत्तं पुहत्ते वि सिय णोसंजता णोअसंजता जीवसिद्धेसु एगत्त-पुहुत्तेण पढमा, भवत्थकेवली संजतमझे सकसाय लोभादिकसायंता पढमा दोसु वि कसायाणादिसिद्धे, अकसाती उवसामगखवगा सिय खाइगस्स पढमा कसाइत्तं उवसामगत्थो अवस्सं होतूणं ण होति, ततो य णो भवति तेण पढमो वि, जीव-मणुयसिद्धपदेसु णि सिद्धा णियमा । पढमा णाणी सामण्णं जीवादिसु जीवपदे जेसु णाणं अलद्धं ते पढमा । जेसिं लद्धं णटुं लद्धंते अपढमा । तहा णेरझ्यादिसु वेमाणियंतेसु सिद्धपदे पढमो णियमा एगत्तेण पुहत्तेण 2010_04 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः पढमा वि अत्थि पढमा वि जीवादिसु वेमाणियंतेसु सिद्धपदे बहुया वि पढमा । एव णेरइय-तिरिय-मणुयदेवेसु सिद्धे णत्थि अण्णाणंगवं मतिज्ञान जीव-णेरतिय-तिरिय-मनुय-देवेसु तहा सुतमवधि-मनपज्जवा वि एगत्त-पुहत्तेण जीवादिसु सिय पुहुत्ते पढमा वि संति अपढमा वि । एसो विसेसो सिद्धे पुण चतु णाणा संभव एव तेण मग्गिजति ॥छ। जीवमणुयसिद्धपदेसु केवलणाणं अपत्तपुव्वलद्धं तेण पढमं । अण्णाणं सामण्णं । तहा मतिअण्णाण-सुत-विभंगा जहासंभवं अपढमा अवच्छिदा विच्छेदेण पत्ता सयासीति सामण्णं तिण्णि विसेसा जत्थ संभवंति तत्थापढमा । अयोगी मणअजोगी । एवं वयि-कायाऽयोगि त्ति पत्तं, पत्तं तेण पढमो । सो सागराणागारोवयोगो जीवपदे सिय पढमो, सिद्धं दणं णेरइयादी अपढमा, सिद्धा तब्भावोवयोगेण पढमा । सवेदसामण्णा णपुंसगित्थीणं वेयगा अपढमा, अवेयगा जीव-मणुय-सिद्ध संभाविणो सिद्धा पढमा । उवसामए अपढमो वि लब्भति । सरीरा ओदारियातिणा ॥५॥छ।। पढमापत्तपुव्वमासि त्ति कट्ट आहारयं कस्स ति पढम कस्सति दुतियादि वि हवति । एत विवक्खो अपत्तो पत्तो ति पढमो असरीरित्तं । पंच पजत्तीतो तहा पजत्तीओ य सव्वजीवेहि अणेगसो पत्तो त्ति पढमा ते पढमाऽपढमं मगितं । चरिमाचरिमं भण्णति । तत्थ गाहा जो जं पाविहिति पुणो भावं सो तेण अचरिमो होति । अच्चंत वियोगो जस्स जेण(भावेण) सो तेण चरिमो तु ॥छ।। जीवे णं भंते ! ण कदायि मोच्छति तेणाचरिमो । णेरइयभवं कोति सिज्झस्समाण मोच्छति सो चरिमो । अण्णो पुणोववाती अचरिमो । एवं जाव वेमाणिया सिद्धपदगतो ण मोच्छति तेण चरिमो । पुहुत्ते जीवत्ते जीवत्तं ण मोच्छति तेणासिद्धो तेणाचरिमो । सेस रतिया णोचरिमा वि अचरिमा वि । एवं एगत्त पोहत्तिया दंडगा णेया। आहारतो सिद्धा सिज्झमाणो अचरिमो सेसो अचरिमो । आहारत्ते जीवे तं जीवत्तणं ण मोच्छत्ति अणाहारया जीवसिद्धपदेसु विच्छेदेणासंसारिया अविच्छेदेण सिद्धा अचरिमा, णेरइयादिणो सिय जे सिझंति ते चरिमा । सेसा अचरिमा । पुहत्ते चरिमा वि संति । भवसिद्धिया जीवा पदे सियासण्णलद्धिं पडुच्च अणवकंखियविसेस चरिमा वइस्संति भवियत्तं णेरइयादिगता भवसिद्धिया सिय चरिमा सिय अचरिमा, णोभवसिद्धिया सव्वे सिज्झिस्संति त्ति कट्ठ पोहत्तिए चरिमा वि अचरिमा वि । अभविया अभवियसभावं ण मुंचंति । णोभविया णोअभविया य सिद्धा ण ते तब्भावं मुंचिस्संति तेणाचरिमा । सण्णी असण्णी चरिमा वि । जे तब्भावं मुंचिस्संति अचरिमा वि णो मुच्चिस्संति । णोसण्णी णोअसण्णी । 2010_04 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: जीवपदे सिद्धपदे य अचरिमा । एते चेव मणुयपदे तप्पज्जयविसेसिया चरिमा । जम्हा ततो सिज्झिस्संति सलेस्स सुक्कलेस्सा ? ते तब्भावमुवजीवंति । उ० व० जीविस्संति य ते अचरिमा जे तदंते वटुंति ते चरिमा सिज्झमाणा । एवं गैरइयादिसु वि जाणेजा । अलेस्सा जीवपदे सिद्धपदे य चरिमा, मणुया तब्भावेणमलेस्सा चरिमा, ततो सिज्झिस्संति त्ति कट्ट । सम्मद्दिट्ठी पुच्छा, जेसु सम्मदरिसणं संभवं तेसु मग्गणा । तत्थ जीवपदे सिद्धपदे य अचरिमा सम्मदिट्ठिणो सव्वदा सिद्धासु अत्थि सम्मत्तं । जेसु य सम्मद्दिट्टिसु पत्तंते पडिओ सम्मद्दिट्ठिणो वि अवट्टपोग्गलस्स पुणो उक्कोसेण लभिस्संति तेणाचरिमा । सेसपदेसु णेरइयादिसु जे सिज्झिस्संति ते चरिमा । पुणोगामिणो अचरिमा । मिच्छद्दिट्ठि जे सम्मत्तं लभिस्संति ते चरिमा जे ण ते अचरिमा । सव्वपदेसु संभवतो सम्मामिच्छत्तमविलद्धपडिपडितो पुणो लभिस्संति अचरिमो । जो एकदा लभ्रूणं अपडिवादी सो चरिमो एगत्त-पुहुत्तेसु णेजा । संजतो सिय चरिमो अपडिपडितो सिज्झति चरिमो पडितो पुणो लब्भति । संजतासंजतो सावगो देसक्कदेसातो पडितलद्धी अचरिमो । ततो साहुत्तायारं परियसिज्झमाणो चरिमो । णोसंजता णोअसंजता तब्भावातो ण पडिस्संति ततो अचरिमा सिद्धा, सकसाया सामण्णकसायभेदेण लोभादयो जे अणंतरं खविस्सति ते चरिमा । जे कसायपरिणामं कातूणं पुणो परिणमिस्संति ते अचरिमा । अकसायिणो उवसंतखीणकसायो य सिद्धपदे अचरिमा । तथा जीवपदे पि जो अकसायी सो पडिऊणं पुणो लभिस्संति ततो अचरिमो । तहा मणुया सिया वि णाणी जीवा चरिमा वि अचरिमा वि । तहा णेरतियभवादिवेमाणियंता सिय । जेसिं चत्तारि णाणा तेसिं कयावि पडेतूणं पुणो लभंति त्ति अचरिमा । जे अच्वंतं मोच्छित्ति ते चरिमा । केवलणाणिणो तऽण्णाणा मोत्तिणो त्ति अचरिमा । अण्णाणी चरित्तारिणोऽपि जे सम्मत्तं लभिऊणं मुच्चंति ते चरिमा । सेसा अचरिमा । सजोगिणो जो चरिमा सेसा अचरिमा । सजोगीजीवमणुय-सिद्धा मणुयत्ते चरिमा, सेसा अचरिमा । सागाराणागारा तेहिं अविरता सव्वजीवा तेणाचरिमा । एगत्त-पुहुत्ते वि णेरइया जाव वेमाणिया, ते तब्भवपज्जायं पाविस्संति ते अचरिमा, सेसा चरिमा । से सिज्झमाणा सिद्धपदचरिमं तस्सण्णतो णत्थि गमणं सहवेदेण सवेदा जो तं मोच्छिति ते चरिमा, ण मोक्खिणो अचरिमा । णेरइयादिसु वेमाणियंतेसु सिय एकत्त-पुहुत्तेण मणुयपदे उवसामगं पडुच्च सिय चरिमाचरिमा य । अवेदगा जीवपदे अचरिमा उस्सग्गेण णियमा अचरिमा । तहा मणुयपदे । उवसामगं पडुच्च सिय चरिमता अवेदगा, जीवपदे अचरिमा । उस्सग्गे णियमा अचरिमा । तहा मणुयपदे सिय उवसामगखवगविसेसं पडुच्च सिद्धपदे अचरिमा णियमा । णेरतियादिसु एगत्त-पुहुत्ते सिय पज्जायं पप्प सरीरिणो ओदारियभेदेण य जीवपदादिसु सव्वत्थं सिय पजत्तीओ अपज्जत्तीतो य सव्वपदेसु एगत्तेण पुहुत्तेण य सिद्धवजाओ सिय ॥१८॥१॥छ 2010_04 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः इंदपुव्वभवो कत्तियो सेट्ठी । गंगदत्तो जुण्णसेट्ठी । कत्तियस्स सुतं । चोद्दसपुव्वाणि, परियातो बारस वासाणि य मासिया सल्लेहणा । तदणंतरं महाविदेहे सिज्झिस्सति ॥१८॥२॥छ।। पुढवी-आउ-वणस्सतिणा सलेस्सा मणुयेहिं चेव जंति । संखेवतो अणगारस्स सिज्झमाणस्स कार्यमाणादिपुद्गला सूक्ष्मा अन्त्या निर्जरा । आजवंजवी भावप्रमुक्तिर्भाव्या विस्तारप्रसृता लोकव्यापिनो भवंति । आणत्तं । अणुत्तरं णाणत्तं । स जाती परजाति भेदे । उत्तमं न्यूनत्वं तुच्छत्वं रूक्षता सम्मद्दिट्टी सुच्चावि एगत्तीए जाणति । रतियायिणो अणाभोगणेव्वत्तणाए गेण्हंति । आ आभोएण णो मण्णस्सोउवउत्तो णाणी मणोऽवहिं केवली जानाति । बंधो, दव्व-भाव दव्व बंधो २ -पयोग-वीससा । वीससा बंधो सादी, अणादी । पयोगो सिढिल-धणित गतो दव्वबंधो । भाव बंधो मूलपगडी, उत्तरपगडी । एवं णेरइयादीणं जीवाणं पावे कम्मे कडे कजति कजिस्सति । तेण कालि एतेसिं विसेसो अत्थि । अत्थि जहा इसुस्स पढमसमयधणुहत्थणिग्गतस्स बितियादिसु आगासदेसकालेसु वेगहाणी विसेसो । तहा कम्मस्स वि भूत-भाव-भविस्स तिव्व-मंदपरिणामविसेसातो विसेसो । णेरइय पोग्गलाहारो एष्यकालो, तेषां प्रथमं तावद् भक्तमिवसंशोधयित्वा असंखेयास्खल स्थानीयान् भागान्नः प्रीड्यग्रस्संति । तत्रापि रसादिनेव स्तोकान् वैक्रियशरीरत्वेन परिणमयन्ति । निर्जरयन्त्यनंतभागान् मूत्रादिनेव न तेषु शक्यते स्थातुं सूक्ष्मत्वात् तेषां प्रदीपार्चिष्विति ॥१८॥३॥छ।। अह भंते ! पाणातिवातवेरमणादयो उद्दिवाजीव-जीवा स्वपरतो भोगाभोगोपग्रहतया संभविनो संभविन इति पुच्छा, यत्र प्राथमिकास्ते उपग्राहका पश्चिमान् सूक्ष्मनियोगान् । ___ युग्ममिति गणितसमयनिष्पण्णा सण्णा ते य चत्तारि, तं कड, दावर, तेयोग, कलिओगे य । इच्छए रासी तस्स भागहारो चउक्कतो कालेण अवहीरमाणस्स सेसं चत्तारि वा तिण्णि वा दो वा एगो वा जुहु दिट्ठा एते भवंति सो य रासी तण्णामतो होति । एत्थ दिट्ठीवादे जीवाजीव-पोग्गलधम्माधम्मागासगुण-पज्जयामविज्जन्ति तेसिं च रासीणं तण्णामता हवति । णेरइया उक्कस्स जेता बहू उववजंति थोवाणि ताणि फिडंति । सेसं कंठं ॥ वणस्सतीणं जहण्ण-उक्किडेसु णेवावहिजंति चउक्कय भागहारएणं तेण चउण्हपदाणेक्कमवि णस्थि पवेसे निग्गमं पडुच्च य ट्ठाणेहिंतो चत्तारि पडित्ता तहा सिद्धा वि अण्णं भत्तिकातूणं पवेसो चतुसु वि। 2010_04 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ भगवतीचूर्णिः जावतियाणं भंते ! वरं अंधगवण्हिणो, तेउक्काइया जीवा किं अंतोमुहुत्ताउया ? बहवे । अह उक्किट्ठाउया तिरातिंदियाणि आउ । तत्थंतो मुहुताउ बहवे । एसो अत्थो । अंधुया वृक्षाः तस्स अंधगो वह्नि अंधगवह्नि । अंधगवह्निस्स अग्गिस्स, अग्गिस्स परा बहवो जीवा । जे य वरा थोवाउया । जे उक्किट्ठपराउया ते थोगा । वर सद्दो आसण्णे । परसद्दो बहुत्ते । परो वट्टति । एत्थ बहुत्ते दट्टब्वो हंता, जे वरा तोरिल्ला ते बहवो परा तीहाउया थोवा ॥१८॥४॥छ। सम्मद्दिट्ठी णेरतियो अप्पकम्मतरातो मिच्छईसणकिरिया विरहातो इतरस्स तद्दारेण कम्मवट्टी । एवं सव्वत्थ णेरतिय-तिरिय बद्धाउस्स छम्मासावसेसस्स वेदणं । णेरइयाउयं तिरिक्खाउयं संतं दुण्हासुरकुमाराण मिच्छद्दिट्टी तस्संवत्तणिजं । आउयकम्मपभावेण दूसियमसंपुण्णमितरस्स तु सुभातो जहाभिट्ट विगुव्वणादि ॥१८॥५॥छ। ___ गुडादिसु ववहारो ववहरितव्वबलेण जहाति ण मिच्छयि णिच्छयो जं तत्थ परमत्थं तमणुसरति । परमाण्वादिट्ठितिप्रदेशिकस्कन्धादिभावितं । परमाण्वा दु फासे सीते गिद्धे वा, सीते लुक्खे वा, गिद्धे उसिणे वा, लुक्खे उसिणे वा । एवं संखेजा जाव ताव सीत उसिण गिद्ध लुक्खा । जे य सुहमाणंता पादरेसु पंचधा जावटुं । एत्थ य उवमा बातरे सुक्कक्खडमेव अगरु अलहुया तित्तिरे सुहुमपरमाणू संति । मीसेसु पंचिंदिणो एतेसु चारेतव्वा ॥१८॥६॥छ।। सरीरमेव परिग्रहः । सरीरोवधितहाकम्ममहापरिग्रहो, जहासंभवं जोएज्जा। प्रणिधानं प्रकर्षण मनसादिनिधानं स्थापनं तेषामेव सुप्रवृत्ति-दुःप्रणिधानं । जहासंभवं णेजा। अण्णमण्णं सद्धावेंति अवि उप्पडो उत्पन्ना कहा आसी । तेहिं धम्मत्थिकायादयो उद्दिट्ठा । सावगवयणं, ‘अजो'त्ति, आमंतणं, जहेव भगवता एते भणिया तहेव । जति तुम्भेहिं अब्भुवगतो अज्जं । जहेव कार्याः कर्तव्या यदि तथैव क्रियन्ते अभ्युपगम्यन्ते करोतेरनेकार्थत्वात् तो सच्चं, अथान्यथा। ततो मिथ्या एवमुक्तेः प्रत्यूचुः । यदि न जानीते किं भवां श्रावकः, तत्र मंडुकेन छद्मस्थः प्रत्यक्षविषयाभ्यामतीतत्वेऽपि वस्तुस्थापनोदाहरणान्यूपात्तानि वायुकायादीनि कंठानि । एवं धम्मादयो भविष्यन्ति । तत् सम्यगभिधाने भागवतानुशिष्टः । विगुर्वणायामन्तराले स एव जीवः कार्मणः तैजस-शरीरव्याप्त्यावतिष्ठते । असुराणां पूर्वदाता, अशक्तपुरुषवद्देवानां च तृणाद्यपि । तथा कर्मपरिणामात् अशक्तकाष्टप्रहरणप्रणेतृ पुरुषवत् । रूयगवरद्वीपा से संखेजतिमोयमणुपरियटॅति ण ततो परं केवलमेगदिसं जाति दिवंतरातीणं । अण्णतरं ताणं पोग्गला तस्संवणिज्जा सुभपरिणामतीव्र-मन्दादिविशेषोत्तरस्येते उत्कृष्टाः पज्जायुए 2010_04 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ६५ सहचरितवेदणिजा अणिहत्ता ते वाणमंतरा वरिसेण नियमा अणंतभागखंडाणि कातूण पढममणंतगं वरिसेण खवेति । एवं समरजोएण णेजा । भक्षभक्षिताहारवत् घृतपानाहारबंधोवरि उवरि ॥१८॥७॥छ।। _ पुरतो अग्णतो दुहतो गंतुं समं ठिच्चा सव्वतो अवलोयणं । पच्छतो वा अवलोयणं, दुहतो अकसाइस्स इरियावहित्ता ततो उवउत्तो गच्छति अबंधतो चेव ॥छ।। नैव सत्वोपघाताय वर्तामहे योग-गुप्ति प्रचारात् । हिताभिप्रवृत्तमात्रयत्या क्रियावत् । छउमत्थे परमाणुपोग्गलं चउभंगो जाणति पासति । जो ण जाणेज्जा पासति । पढं(मे) जाणे पासति । पढमे केवली । बितीए सुतणाणी । सुण्णा ततितो । चउत्थो मिच्छादिट्ठी । एवं जावाणंतपदेसिए जोएतव्वं । आहोहितो ओधियभंतरे परमाबोधितो अंतोमुहत्तकेवलणाणुपत्ती पाविउकामो एतेसिं विसयं णिरुवेज्जा । जं समयं जाणति णो तं समयं पासति । दरिसण-णाणभेदो ॥१८।८।छ।। भव्यो योग्यानन्तरं तत्रोत्पत्तिमनुभविष्यति । मृत्पिण्डो घटस्यैव, यो यत्रोत्पत्स्यते नारकादिषु स योग्य: अंतोमुहुत्ताऊयं णेरतियत्तं बंधति । उक्कस्सेण पूर्वको० तिरियमणुया। इतो सव्वेसिमंतोमुहुत्तं जहण्णं भ. अरस्स तिण्णि पलितोवमा । उत्तरकु. एवं जाव सोहम्मो । सेसा जतो गच्छंति, तदा पू. पुढविक्कातितो ईसाणदव्वदेवो उववज्जति । आउ-तरुसु वि । एवं ते. वा० बि ति-चरिंदियाणं । पुवकोडि आऊया पंचिंदितो अहे सत्तमतो । तेत्तीस सागरोवम मणुयस्स सव्वट्ठसिद्धे देवा दव्वं उक्कस्सेण ॥१८॥९।छ।।। अचिन्त्यवैक्रियलब्धितथास्वाभाव्यादनगारः क्षुरधारादिषु विशेत् । परमाणूफुडो णाम मज्झे व्बूढो सवायुना व्याप्तः न वायुस्तेन गृहप्रविष्टपुरुषवत् । जाव असंखेजो अणंतो ण कयावि वायुरपि व्याप्येत । तथारूपमवलोक्य वक्तव्यम् । मुक्तकद्रव्यान्येव गन्धवन्ति अंति रत्नप्रभादिषु । सोमिलपसिणा-जत्तो भवतो यत्नोवय: य इति सोत्रो धातुर्मिश्रणार्थो वायुः । अव्वाबाहं बाधृ लोटने । न बाधा मे अव्याबाधं । प्रगताः अस्त्रवः यस्य स प्रासुकः । कया एतेषां पदानां यावद्भूतः सोमिलस्योक्तार्थः । सरिसवया-मास । कुलत्था सामण्णं सिद्धत्थाठिया । वेदंतरे जहा भूता विवेकाभिहिता एगत्वादयश्च । प्रस्ताः जीवद्रव्यार्थमधिकृत्य एकोऽहं, तदेव द्रव्यं धर्मद्वयावृत्तिनिबंधनं ज्ञान-दर्शन प्रतिष्टमित्यर्थमित्यतो द्विरूपोऽहं । जीवद्रव्यासंख्येयप्रदेशरूपताऽप्रच्युतेरक्षयोऽहं तदेव द्रव्यं धर्मद्वयावृत्तिनिबन्धनं तैरेव न व्ययंगतो नह्येकीनान्येष्वपि जीव द्रव्यार्थेन वा अव्ययः ।२। एव मेऽभिरधस्थितमव्ययगतिनिवृत्त इत्यर्थः । 'युजिर्'योगे “युजं समाधौ” योजनं योगः । उप सामिप्ये सामीप्येन योग: उपयोग आदिसमासः । समा शब्दार्थः । जीवद्रव्यं ज्ञान-दर्शनद्वितियस्वभाव 2010_04 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ भगवतीचूर्णिः मुत्पादनविगमध्रौव्यव्यावर्ति सदोपयोगं परिणामि सर्वद्रव्यपर्यायप्रधानो-पसर्जनभवनभुवनातिक्रांताविर्भावतिरोभूतिस्थानप्रचितधर्मानं-तगोचरसमाहितपदार्थ-युगयुगपत्रिकालभेदाभेदप्रवृत्तिक्रमसमाध्यासितसंसर्गसर्वनयगोचरसुविशुद्धा यद्वर्ति । स्याद्वादानुवादानुसृति-वस्तुसंग्रहस्तुप्रतिष्ठितघटादिमत्पदार्थपरिच्छेद्यतामधिकृत्योपयोगविश्वपरिणाम प्रभवप्रतिद्रव्यविज्ञप्तिबलसाम्या-द्वयासादनैकोऽहं । ॥छ।। अट्ठारसमं सतं समत्तं ॥छ।। लेसुद्देसतो चत्तारि वा पंचमाण णिव्वत्ते त्ति संघातं गंतुं ण य आहारादिमागातेहिं । चतु ले० क० एवं कंठं । जाव जं आहारेंति तं तेसिं विज्जति । चिङ् चयने । शरीरादिना पुद्गलोपचयः जमपत्तं न तं विजति । इंदियादिणा चिण्णे वा से 'उद्दाति' जं तं चिण्णं आहारितं तस्स जो परिणामितो अल्पेभ्यो उद्दाति णस्सति विणस्सति णिजरिजतीति । जाव सेसो पहाणो । रसो इंदियादिणा परिणमति विजति जहा खलो तेल्लं ति घसी तहा ते तेसिं पहाणता पोग्गलपारंपरएण दट्टव्वा । असंचेति तं ईहा पोहा सामत्थेण मनसा आहारादिप्राणातिपाते समीपस्थिता ख्याप्यन्ते । उवक्खाइजते तत्थ द्विता इति जाव जेसिं च जीवाणं ते प्राणा व्यपरोपयन्ति । तजातियपुढविक्काइयादीणं तेसिं पि णेव परिसण्णाता, जहा-एतेहिं अम्हेहिं मारिजामो । अमणत्तातो मारणंतियसमुग्घातो पदेसनिच्छुब्भणेण य अनिच्छुब्भणेण य तवेसिं दो वि, एवं जाव वाऊणं विसेसो सव्वत्थ, कंठो । वणस्सतिकाइया संहण्णं ते णियमाणंता, एतेसिं णं पुढविक्काइयाणं पुढविक्काइया सुहु० बात. एक्के को अपज(त)पज्जत्तो द्विविधो । एक्के को जहण्णतोगाहणो उक्कासोगाहणो य कज्जति । उवरि पुढवि ततो सुहुमबातरा हेट्ठा अपज्जत्त-पज्जत्ता य हेट्ठा । एवं एतेण कमेण कायव्वा । जाव वाउक्काइया । वणस्सती दुविहो-साधारणसरीर-पत्तेयेहिं । साहारणो सुहुमो णियोयं बातरणितोयं च । सेसं तहेव चउक्कय वि गयं । सुहुमणितोय बातरणितोय पत्तेयसरीरा एकादश । एते चेव अपज्जत्त-पजत्त दुयएण बावीसं । ते चेव पाडेक्क जहण्णुक्कस्स य भेदेण चतुचत्तालीसं । अप्पबहुमग्गणुच्चारणा कुज्जा । तत्थ जहण्णोगाहणा जो पढमसमयो विवत्तिठाणो परियसरीरपोग्गलगाही । उक्कस्से जाव पजत्तिमेक समएणं ण पावति । एत्तरे असंखेजा समया अजहण्णुक्कसंतरं । सव्वथोवा सुहुमणियोयस्स अपजत्तस्स जहण्णा उगाहणा । एवं वाउ-तेआ-आउ-पुढवीणं । सुहुमापजत्तजहण्णोगाहणातो असंखेज वडिताया। एवं समचउक्कवग्गादी भणितो । वातर च(उ)क्कवग्गादी असंखेज वड्डितो वाउक्काइया पजत्त जहण्णोगाहणादी पुढविक्काइयंत भाणिऊणं पत्तेयसरीर-बातरणिओयाणं जहण्णो पज्जत्तबातरातो तुल्लातो असंखेजगुणातो दो वि । अहुणा सुहुमतिगं भाणितव्वं । तत्थ वणस्सती 2010_04 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ६७ चेवादीसुहुमं च चउक्कवग्णादी भणितो बातरचउक्कवग्गादी असंखेजवडितो वाउक्काइया पजत्तजहण्णोगाहणादी पुढवीकार्यतं भाणिऊणं पत्तेयसरीरबातराणियोयाणं जहण्णापजत्ता बातरातो तुल्लातो असंखगुणातो दो वि । अहुणा सुहुमतिगं भाणितव्वं । तत्थ वणस्सती चेवादी सुहुमणितोतो तस्स पजत्तस्स जहण्णा असंखगुणा। तस्सेव जो अपजत्ततो तस्सुक्कोसा विसेसाहिया । एवं मझो असंखातो दो विसेसाहितातो पूरिजंति । वाउ तेउ आउ पुढवीणं । बातरणिगोतस्स वाउ आदी । बादरवाउक्काइयस्स अपजत्तस्स जहण्णा असंखगुणा तदपज्जत्तस्स विसेसाहिया । तप्पजत्तमुक्कोसा विसेसाधिया । एवं ति वाउ वणस्सतीणं जाव पुढविक्काइतो। ततो बातरणितोतो लग्गति । ततो पत्तेयवणस्सतिसरीरतियं असंखेजगुणवड्डियं भाणितव्वं । तहा वि सरीरत्तातो एत्थ चेव पुणो लक्खणमप्प-बहुएण भण्णति । एतेसि णं पु० वणस्सतिकाए सव्वसुहुमतरा, एता से सुहुमणितोतो पजत्ता जहण्णोगाहणं पप्प एवं जेसिं जेसि मग्गिज्जति तेसिं तहेव णेजा । सव्वेसिं बातर पुच्छा । वणस्सती बादरेतराए पत्तेयसरीरी पजत्तुक्कोसो पाहण्णं पप्प तस्समाण विपरीतं पुढवि आदि वायुअंतं । बातरलक्खणं सुहुमेण बातरेण गतं । केमहालए णं भंते ! पुच्छा । जं तमादिलक्खणथोवंतरं तमसंखेजगुणा वद्धितं तमेवाणुसरति । अनंताणं वणस्पतिजीवाणं सुहुमापजत्तजहण्णादीणि । ततो संखेजवत्तिणं जावतिया सरीरा से एगे वाउ सरीरे एवमेतेण कमेण असंखेज्जाभिलावेणं सुहुमा, सव्वेसिं भाणिऊणं ततो बातरवाउसरीरादिणो पुणो असंखेजविवड्डियंता णेया । जाव पुढवीति ।छ।। ___ एक्कवीसं वारा सुहुमपेसणि-पिट्ठ करेतव्वं । कमेण आलिद्धे जो उवरि हेट्ठाणे आलिद्धे एवं सव्वत्थ। केसिं चि विसंघातिता सरीरा केसिं चि णो । तेऊणं बातरा थोवा सुहुमाणं, आउयं ति-रातिंदियं । ततो उवरि उवरि विसेसो अणंतो वणस्सती ॥१९॥३॥ आश्रवति कर्म ये, एवं सव्वजीवेहिं भणितव्वं । भंगा संगहेणिमा वा बि-तिएण तु णेरइया होति । चउत्थेण सुरगणा तव्वेउरालसरीरा पुण सव्वेहिं पदेहिं भणितव्वा ॥१९॥४॥छ। चरमा जहण्ण ठितिया । तहेवासुहकम्मसंभवो वडितो हीणो वा । असुरकुमाराणं जहा आउयवड्डी तहा सुभो वेयविसेसातो, हाणीएण बहुसुभाणि दो वेदणा । अभोगपुब्विया इतरा अणिंदा ॥१९॥५॥ ___निर्वर्तनम् निर्वृत्तिः । कार्यलक्षणानां पदार्थानां कर्तृकरणसंप्रदानापादानाधिकरण-कारक-ग्रामसंघट्ट-क्रियाफललक्षणा । अथवा स्थानं यद्यस्य स्यान्निर्वृत्तिस्तस्य जीवादिषु नेया। क्रियते यत् तत् करणं कर्त्यर्थे क्रियते वा येन तत् करणम् । तदेवार्थं अन्यार्थं नियुज्यमानं करणं भवति । करोत्यनेकार्थवृत्ति 2010_04 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ भगवतीचूर्णिः त्वाभ्यां कृतः शैल्याद्या । कतिविहे करणे पण्णत्ते ? कंठाणि ॥१९॥६॥ बेइंदियाणं साहारण पुच्छा । णिसेहेतव्वा । तहेव अण्णे पुव्वकोडिआहारो उवक्खाणं तत्र प्रत्याख्यातं । तत्र व्यवस्थानं । एवं द्वीन्द्रियादीनां पञ्चेन्द्रियपर्यवसानानां सामान्य-विशेषस्थितिः । कंठा । समविशेषा ।२०॥१॥ अधोलोकोतिरिक्तमर्द्धलोकस्य । समुच्छ्रायेन वैपुल्येन च रत्नप्रभा नवयोजनशतान्यवगाह्याधोलोकोलोकार्द्धं रत्नप्रभावकाशस्यासंखेयतिभागमवगाह्य तथाधः सप्तरज्वः । तहा धर्मास्तिकायोऽप्येतेनाक्रान्त एवमधर्मास्तिकायोऽपि अभिवचणं एकस्याद्वितीयस्याभिमुख्येन वचनं वाचकं अभिवचनं पर्यायवचनमिति याव हेत्वर्थो पारिभाषिकं वा धर्मास्तिकायादीनां योज्यम् । कंठ्यम् ॥२०॥२॥ गब्भवक्कममाणे कम्मयतेयय सहितो तेयपोग्गला वण्णादिजुत्ता । २०।३।२०।४॥छ।। परमाणुपोग्गलवण्णादिपुच्छा । एगो परमाणू अणिदिह्रविसेसो सिय कालतो पंचवण्णसंभवी, दु गंधसंभवी, चतुफाससंभवी । सीतो गिद्धो वा लुक्खो वा उसिणो गिद्धो वा लुक्खो वा । जो सीत-फास परिणतो सो उसिणो ण भवति । इतरेसु दोसु संभवति । एवं उण्हा वि । तेण परमाणू वण्ण ५, गंध २, र. ५ फास ४ । दुपदेसे पुच्छा । तत्थ जति दो ति एगवण्णपरिणता ततो जहा परमाणू, पंचवण्णो तहा अह भिण्णवण्णातो कालगो एगो, एगो नीलगो । एवं कालगममुयंतेणं जाव सुक्कल्लो एगो तहा णीलममुयंतेण सुक्किलंतो । एवं जाव हालेद्द सुक्किल्लो । एवं दस दुग संजोगा। गंधातो सुब्भि वा अहवा एगो सुरभी, एगो असुरभी। तिण्णि गंधभेदा, रसे वण्णे जहा ५ दुय संजोगा १० फासे य भेदे । जहा परमाणुस्स चत्तारि सीतो गिद्धो वा लुक्खो वा उसिणो गिद्धो वा लुक्खो वा ४ सो चेव दुपदेसो वि फासंते सव्वो सीतल परिणतो । तस्सेव एगो निद्धो दुतितो लुक्खो । एगो भंगो । एवं उसिणो । सव्वो तदेकदेसो गिद्धो दुतितो लुक्खो बितितो एवं सव्वो णिद्धो । तदेगदेसो सीतो दुतितो उसिणो । एवं लुक्खो, सव्वो देसो, उसिणो देसो सीतो, जो जस्स विवक्खो सो मुच्चति । सेस दु तं दुपदेसभेदेण घेप्पति ४ । तत्थ सो च्चेव चतुफासो । एत्थ एगो सीतो गिद्धो य । एगो उसिणो लुक्खो य एगो भंगो। सव्वे णव ९ जाया दुपदेसा । तिपदेस पुच्छा । अभेदवण्णपरिणते ५ । दुय भेदेण कालए य, णीलए य । अहवा कालए य, णीलगा य । दो भेदपरिणता एत्थ णीलओ पडिति । अहवा कालगा दो । एत्थ कालगो पडिति, णीलतो एक्को । एवमादिमं दुय संजोगे तिण्णिभंगा । एत्थ य दुय संयोगा दस । एक्कक्को तिण्णि भंगा । तीसं भंगा दुय संजोगा दस । तिय संजोगे वि दस । एगेगे दुगसंचारे पढम कालयंगुट्ठमुयंतेणं छ पदेसिणीए तिण्णि मज्झिमाए एक्को । सव्वे 2010_04 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः दस । गंधे एगत्ते दो । अहवा सुब्भि-दुभि एगो । अण्णत्थ पज्जायाण एगो पडति । जाता तिण्णि स सव्वे पंच । जहा वण्णे तहा रसे फासे चत्तारि एगत्ते परमाणु तुल्ला, ति फासपरिणमे सव्वे सीतो । एगत्ते परमाणु तुल्ला, ति फासपरिणमे सव्वे सीते । एगो गिद्धो एगो दुपदेसो । अभेदेण लुक्ख परिणतो ।१। अहवा सव्वे सीते एगे णिद्धे दो लुक्खाभेदपरिणतो तेण चउत्थी पडति । अहवा सव्वे सीते दो भेदेण णिद्धपरिणता, ततिता पडति एगो लुक्खो।३। एवं उसिणे णिद्धलुक्खातो उन्भा बितिते लुक्खा पडति । ततिया ततिए णिद्धा पडिति बितिया ।३। एवं णिद्ध-लुक्खा वि चारेतव्वा । एक्केक्क छ तिण्णि सव्वे बारस ।१२। जति चउफासे देसे उसिणे एगत्थ दो परमाणू अभेदेण । तच्चेव दो देसा णिद्धलुक्खेसु संचरंति एगो अभेदत्थो देसे सीते उसीणे णिद्धे लुक्खे पढमो भंगो । लुक्खे दो भेदेण तत्थ अंता पडति ।२। ततिए णिद्धे दो तत्थ ततिया पडति ।३। तहा मज्झिमाते पडिताते एगो कालंगुलिए बितियो पडंति मज्झिम तदनंतरातो पडंति ३। तहा आदिल्ला पडति। तहा पडियाए चेव पज्जाएण अतिण्णातो पडंति । दो समुदिता तिन्नि सव्व चतुफासा ९। सव्वे तिपदेस फासा पंचवीसं २५ । चतुष्पदेसे एत्थं भाणिऊणं एगवण्णपरिणमे जहा परमाणू पंचसु हाणेसु, एगतरम्मि ५ । जति विवण्णपजातीतो दस दुग संजोगा होंति एगेगो चतुभंगो । चत्तालीसं भंगा । तिवण्णपज्जाए तिण्णि ठाणाणि । एगो एगो कमेण पडति । चत्तारि भंगा एग तिग संजोगे संजोगा दस सव्वे चत्तालिसं भंगा ४०, चउवण्णपज्जाए एगंतरियगमणेण पंचठाणाणि । तत्तिया चेव भंगा ५ । सव्व चतुष्पदेसवण्णपरिणामरासी ९० । गंधे सुब्भि वा दुब्भि वा । सुरभि-दुब्भिगंधा वा । सुरभिगंधा दुन्भिगंधा वा सुरभिगंधा दुन्भिगंधा छब्भंगा । रसा जहा वण्णा । चतुपदेसो फासेहिं मग्गिज्जति । तत्थ पढमो दुफासेहिं मग्गिजति । तत्थ पढमो दुफासेण सो य । जहा परमाणू सीतलो णिद्धो वा लुक्खे वा उसिणो वा गिद्धो वा, लुक्खो (ए)त्थ ४ ति फासत्ते सीतपज्जाती सव्वो चतुपदेसो देसो णिद्धो देसो लुक्खो १। अहवा सव्वो सीतो देसो गिद्धो, देसा लुक्खा । अहवा सव्वो सीतो देसो णिद्धो देसो लुक्खो ३ । अहवा सव्वो सीतो देसा णिद्धा देसा लुक्खा ४ । एवं उसिणे चतुभंगो ४ । एवं गिद्धो सञ्चो सीत उसिणेहिं समं चउभंगं ४ । एवं गिद्धो सव्वो सीत उसिणेहिं समं चउभंगो ४ । एवं सव्व लुक्खे चतुभंगो ४। सव्वे ति फासत्ते सोलस भंगा १६। चतुपदेसस्स चतुफासे मग्गणा । चत्तारि पोग्गला दोसु सव्व चतुभंगो त्ति कट्ठ चतुसु अंगुलीसु सोलस भंगा १६, सव्व चतुपदेसफाससंखा छत्तीसं ३६ । एतेय अणंतो जाव सुहुमपरिणतो ताव सामण्णबादरे मग्गिस्सामो । उवरि वण्ण पुरं काउं पंचय दसो वण्णेसुं चेव मणिजंति । गंध-फासेहिं णत्थि चतुपदेसातो विसेसो पुच्छ, भाणितूणं एगवण्णत्ते पंच संभवो ५, दुवण्णत्ते जह चतुष्पदेसो दस संजोगा चतुभंगिया भंगा ४०, ति पज्जाए एगो उस्सासु १। बितितो अंतपडिता, ततिय 2010_04 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० भगवतीचूर्णिः पडिता, चतुत्थे दो अंतातो पंचमे आदी पडति । छटे आदी अंता य । सत्तमे आइल्लातो दो तिसु ठाणेसु पं(च)ण्हं दो पडंति । तत्थ बहुत्तं कट्ट संजोगा दस एगोगो सत्त भंगो । एत्थ सत्तरि ७० चतुवण्णत्ते एगेगं पाडेंतेहिं पंच भंगा ५ । एगम्मि संजोगा पंच संजोगा भंगा पंचवीसं २५ । पंच पदेसा पंचवण्णत्ते पंचसु पंच ट्ठाणाणि रुद्धाणि । एगो भंगो सव्वो पंच पदेसरासी । सतमेग चत्तालं १४१ रसेसु एवं चेव । छप्पदेसे पुच्छाएगत्ते ५, दुवण्णत्ते ४० तिवण्णत्ते संपुण्णो । तिय भंगो तिसु हाणेसु दो दो कट्ट दस संजोगा अट्ट संगिता तेणासीतिं ८० । चतुवण्णपरिणामे चउसु हाणेसु दो दो पडंति तेणेक्कारस भंगा । एक संजोगे संजोगा पंच चतुष्कगा भंगा ५५ । पंचवण्णपरिणमे सव्वमकंत एगो अतिरित्तो सो कमेण पाडेति । संजोगो एको भंगा छ ६ । सव्वत्थ पदेसभंगा रासी छासीतं सतं १८६ । एवं रसे वि गंध-फासा जा जहा चतुपदेसस्स, सत्त पदेसिए पुच्छा । एगत्ते ५, दुवण्णत्ते ४०, तिवण्णत्ते असीति८० । चतु वण्णत्ते चतुसु हाणेसु एगा ण पडति, तिण्णि पडंति । तेण पण्णरसभंगा । संजोगा पंच । पंचरासीयं पंचसत्तरि ७५, पंचवण्णत्ते एगेहिं संजोगा दोहिं दोहिं पडतीहिं सोलस भंगा१६ । एत्थ सव्वगं दो सताणि सोलसुत्तराणि २१६ । एवं रसावि । गंध-फासा पुव्वा इव अट्ठपदेसेसु एगवण्णे य दुवण्णे ४० तिवण्णे असीति ८०, चतुवण्णे-एग चतुक्कगे भंगा सव्वे पडंति । पंच चतुक्क संजोगा, एत्थं असीति भंगा ८०, पंचवण्णसव्ववण्णठाणा णिरुभित्थणं तिण्णि रूवाणि समहियाणि तेसु तिण्णि पडंति । छव्वीसं भंगा एगो संजोगो । १।२।६॥छ।। सव्वगं दो सताणि एक्कत्तीसाणि २३१, णव पदेसे एगत्ते पंच ५ , दुय संजोगे ४० , तिगे ८०, चतुक्के वि असी ८०, पंच संजोगो तत्थ णिरुंभित्ता चत्तारि रूवाणि समुच्चरंति । तेसु चत्तारि पडंति । तेणेक्को पच्छिमाण पडति । सव्वे भंगा एक्कतीसं ३१, एतस्स सव्वभंगग्गं दो सताणि छत्तीसाणि २३६, दसपदेसे एगत्ते ५, दु४० , ति ८० चतुष्क ८०, पंचए वि ३२ पंच वि पडंति देस भावाणि । जओ सव्वगं दो सताणि सत्ततीसाणि २३७, एवं जहा दसपदेसे वण्ण-गंध-रसफासा भणिता । तहा संखेजपदेसिए वि असंखेजपदे(से) वि असंखेजदेसिए वि तहा जाव सुहुमपरिणामपरिणतो अणंतपदेसितो खंधो । ता एतो ते चेव भाणितव्वा । तहा अणंतपदेसितो खंधो । बादरपरिणामपजत्ती भवति । तस्स वण्ण-गंध-रसेहिं पुव्विल्लेहिं अविसेसो अतिरित्ता फासा भवंति । ते य भण्णंति । आदीए चेव तेण कक्खडो मउतो वा फासो पडिवज्जितव्वो । तथा गुरुतो लहुतो वा फासो पडिवज्जितव्यो । तथा गरुतो लहुतो वा फासो सीत-उसिण-णिद्धा य पुब्वभणिता, जति चतुफासे पढमजहण्णसंखाउ वणस्सति एत्थ य कक्खड-गरुत-सीता णिद्धा अंगुलीसु वुड्डीए उड्डा ठविजंति । जे पुणं एतेसिं विवक्खाए पडितासु दह्रव्वा । एवं चतुसु सविवक्खासु संपुण्णो खंधो चतुष्फासपरिणतो सोलसभंगा लब्भंति । 2010_04 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१ भगवतीचूर्णिः अतिण्णंगुली दो भंगा । एते सीता पट्टिताए उसिणे वि दो । एते चत्तारि गरुएणं लहुएणं पि चत्तारि, अट्ठ एते कक्खडेणं । मउतेणं पि अट्ठ । सव्वे सोलस । अह पंच फासपरिणतो, ततो अंतिल्लो सविवक्खो जातो । गिद्धो लुक्खो य । आदिल्ला तिणि । संपुण्णा तेणेत्थ पंचसु ठाणेसु बत्तीसं जाया । एग बहुवयण देसभेदेण मग्गिजमाणा एसो गिद्धो भेदो गतो । सीतो सभेदो अंते ठितो गिद्धो सकलो । सीतट्ठाणो सव्वकक्खड सव्वगरुय सव्वणिद्धदेसं सीतदेसं उसीण एत्थ वि बत्तीसं ३२,। तहा गरुओ देसभिण्णो अंतो सव्वकक्खड सव्वणिद्धदेस सीतदेस उसिणे बत्तीसं ३२ । अधुणा सव्वगरुय सव्व सीत सव्वणिद्धदेस कक्खडदेस मउय एते वि बत्तीसं ३२ । सव्वग्गं सतं अट्ठावीसं १२८ । पंच फासे छ फासे मग्गिजति । एत्थ सव्वो कक्खडो सव्वो गरुतो देसो सीतो देसो उसिणो देसो गिद्धो देसो लुक्खो दुग संजोगो अतिण्णो देसेहिं द्वितो । एत्थ चउसट्टी भंगाणं ६४ । गिद्धो स देसो अंतट्टितो चेव । सीतो णिग्गतो चेव गरुतो पविठ्ठो । देस भेदेण सिद्धसमीवे । बितिया ६४ । एवं कक्खडो पविट्ठो । गरुतो सट्ठाणे । सव्वो गरुतो, सव्वो सीतो । देसो कक्खडो, देसो गिद्धो ततिया ६४ । एवं निद्धो भूतो सीत गु. दु.गु.संजोगो । अंते देसभिण्णो, सव्वणिद्ध, देस गुरु, देस सीते । एत्थ चतुसट्ठी चउत्थी ६४ । तहा सीतकक्खड दुग संजोगो सव्वे गरुए, सव्वे गिद्धे देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे सीते, देसे उसिणे । एत्थ पंचमा चउसट्ठी ६४। तहा गरुग कक्खडदुग संजोगो । सव्वे सीते सव्वे णिद्धे देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए; सट्ठी चउसट्ठी ६४ । सव्वलग्गं तिण्णि सताणि चतुरसीताणि छ। फासे अहुणा सत्तफासे एत्थ आदिठाणं सकलं, सेसा देस भिन्ना । सव्वे कक्खडे, देसे गरुए, देसे लहुए देसे सीते, देसे उसिणे, देसे गिद्धे देसे लुक्खे । एत्थ भंगाण अट्ठावीस सतं । तहा गरुतो आदीए सगलो सव्वे गरुए देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे सीते, देसे उसिणे, देसे णिद्धे, देसे लुक्खे । एत्थ वि बितियं अट्ठावीससतं १२८ । पुणो कक्खडे ततिय द्वाणे सीतं अवणेतुं ठविज्जति । सीतो य आदिसकलट्ठाणे सव्वे सीते, देसे गरुए, देसे लहुए, देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे णिद्धे, देसे लुक्खे, ततियं सतमट्ठावीसं १२८ । तहा चउत्थो कक्खडो अंते ठायति । गिद्धो य सकलो आदीए सव्वे गिद्धे, देसे गरुए, देसे लहुए, देसे सीते, देसे उसिणे, देसे कक्खडे, देसे मउए एवं चउत्थं सतमट्ठावीसं १२८ । सव्वग्गं पंचसताणि बारसुत्तराणि ५१२ । जति अट्ठफासे अटुंगुलीतो पुट्ठीए ठवेतूणं वामहत्थंगुट्ठगातो भंगा आरम्भंति । सो अंतो लुक्खो तम्मि उठ्ठिए एगो बितितो पडितो । बीयं वेलीए वा दो । सव्वे चत्ता एवं दुगुणं । अणंता अणंतरं जाव बितित हत्थस्स मज्झिमंगुली अट्ठमा आदि कक्खडत्ते ववत्था वि ता ताव दो भंगसताणि छप्पण्णाणि अट्ठाफासा जाताणि । ॥२५६॥ 2010_04 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः 1 कतिविहे भंते ! परमाणू ? । परमो पसोयणू य परमाणू । सो य चउव्विहो । चतुसु ठाणे हवति । दव्वपरमाणूखंधो दो वारा छेदेणं छिज्जमाणो जावाणो च्छेत्तुं सक्कति सो दव्वपरमाणू । एवं आगास-खेत्तलोगस्स छिज्जति तत्थ खेत्तपरमाणू । कालपरमाणू - तीताणागतवट्टमाणद्धा दो धारा छेदणं छिज्जति तत्थ जो अणू सो कालपरमाणू । भावपरमाणू - 'भुविर्भवनं भावः । पुद्गलाः यस्मात् भावात् परिणमंति स भाव: ' तस्स तहेव च्छेदो कज्जति । सो य चतुव्विहो - वण्ण, गंध, रस, फासभेदेण । तत्थ वण परमाणू - एगवण दुवण्ण तिवण्णो जाव संखेज्जासंखेज्जाणंतं लक्खणो जो छिज्जमाणो दो भेदं ण सो वणपरमाणू । एवं गंधादी परमाणवो विया || || ७२ एत्थ य जे एते चतुपदेसादिखंधेसु चत्तारि फासा भणिज्जंति ते कहं ? गाहातो, वीसतिमसतुद्दे से । बेइंदिय १ मागासे २ पाणवहे ३ उवचए ८ य परमाणू । अंतर ६ बंधे ७ भूमी ८ चारण ९ सोवक्कमा जीवा १० ॥ १ ॥ चतुपदेसादिए चतुप्फासे एगं बहुवयणमीसा वितियादीया कहं भंगा ? देसो देसावसता, दव्वखत्तवसता विवक्खाए संघात - भेद - तदुभयभावाओ वा वयणकाले विसतिमसतुद्देश इति सुत्तठाणोवलक्खणं । चतुपदेसो आदी । जेसिं खंधाणं ते चतुपदेसादिया ते चतुफासा भणिता । तेसु भंगा एगवणणं बहुव च | मीसा गम्मि वि बहुवयणं बहुए वि लुक्खा भिन्नखेत्ता दोहिं पदेसेहिं, गतवयणं भण्णति । दव्वखेत्त-काल-भावेहिं वयणस्स विकप्पा संभवंति । एत्थ चतुपदेसिए खंधो उदाहरणाणि भाविज्जति । सव्वो सीतपरिणतो चतुपदेसितो तत्थ दो गिद्धा, दो लुक्खा दव्वतो गतं १ । एत्थेव लुक्खा दोण्णि वि एयणा परिणामेण पिहप्पिह, तत्थ बहुवयणं २ । णिद्धो तिण्णो लुक्खो एगत्तादि किरितो ३ । णिद्धा विभिण्णा । खाव । किरिया विसेसेण चत्तारिभंगा ४ खेत्ततो भण्णति । सव्वो सीतो, दो णिद्धा । एवं एगम्मि पसे दो लुक्खा दो वि अण्णं । तिपदेसे १ । लुक्खा भिण्णखेत्ता दोहिं पदेसेहिं २, णिद्धा वा दोहिं ३, उभगं वा दोहिं दोहिं ४, कालतो सो च्चेव खंधो । सीतपरिणतो परिवत्तिकाले अभिण्णसमतो सव्वो तस्स दो णिद्धा, दो लुक्खा, पडिक्कमभिण्णकाला १ । लुक्खदुगमण्णो परमाणू अण्णम्मि अण्णा अण्णम्मि काले दु य लुक्खा २ । एवं कालभेदेण णिद्धदुगे बहुवयणं ३ । उभयेव भावतो एग गुणकालतो, खंधो सीतो एग गुण सीतो चेव णिद्धदुगं, लुक्खदुगं च । तहेव २ लुक्खस्स । एगो दुगुणलुक्खो तेण बहुवणं २ । एवं णिद्धे विभेदो ३ । तहा दो वि णिद्ध - लुक्खा भिज्जति । चउत्थभंगो । एवं वण्णतो जे तुल्लो सो 2010_04 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ भगवतीचूर्णिः गंधयो भेत्तव्यो । तहा रस-फासेहिं संखेजाणंतेहिं पाडेक्कं दव्व-पजव-किरिया-खेत्त-कालभावतुल्लातुल्लजाति-ठाणुक्करिसावकरिस-भेद-संघात-तदुभयभावविकप्पेहिं वक्तृ-श्रोतृ वचनात् नय-विधिविवक्षा विवक्षाप्रपंचानेकविवक्षामंगीकृत्य भंगा योज्याः । बि-तिय चतुपदेसेहिं दु ति चतुपदेससीतोसिणणिद्ध-लुक्खेहिं भावेजा । द्वि बहुलक्षलक्षणाः एवं सर्वत्र नेयं बुद्धया ॥छ। ___ इमीसे णं, रयणप्पभाए य सक्करप्पभाएय अंतराणे सुहुमपुढविक्काइया समोहता सोहम्मे कप्पे पुढविक्काइयत्तेणेव उववज्जित्तए भविया भे ! किं पुब्बिं आहारं उरालियं सरीरनिप्फंदेणिया पोग्गलआहारत्तए उववजंति ? उता, हुहुव वज्जित्तेण तप्पयोगपोग्गलगहणं करेंति ? । गोयम ! पुव्विं पच्छा वि ले० खे० दुयसणि समुग्घातगामिणो ते पुब्विं उववज्जित्तूणं ततो आहारेति । जे अलिया दिटुंतगामिणो ते य देसे वि च्छुभित्ता समणंतरं आहारं गेण्हति । तस्समणंतरं चेवमुव्वमाणसरीरस्स जीवपदेसा तत्थेव संहरंति । एवं सव्वपुढवियंतरा सव्वकप्पे इसीपब्भारासु उववातेतव्वा । तहा उवरिकप्पगअंतरालेसु घणोदधिसु वातवलयेसु वाउक्काइया कंठं ॥२०६।छ। __कतिविहो बंधो ? तिविहो । कंठो । जीवप्पयोगबंधो नाम जीवो जे पोग्गले मणो वाय-कायजोगविसेखेहिं आतजीवपदेसे सबद्ध-पुट्ठ-णिहितणिकायत्तेण ठावेति अणंतरं बंधो । जेसिं अणंतर पच्छाकडो समतो बंधतो बंधत्तेण वद्दति बितियादिगतपच्छाकडो परंपरबंधो । नेरइयादिसु पदेसु णाणावरणिज्जादिसु तब्भेदेसु चारेतव्वा ॥२०१७ जेसिं पि सम्मदरिसणादीणं अबद्धाणं तहापरिणामो तेसिं आदिपगडीबंधसबंधेण णेजा। जिणंतरं आदि २ अट्ठयस्स अंतअट्ठयस्स णत्थि । मज्झट्टयस्स सत्तठाणा अंतरा वोच्छिण्णो आसी । कालियं एक्कारसंगाणि । तित्थं चाउवण्णो संघो । तित्थ य णेता तित्थकरो । एगो कत्ता अण्णो कजमाणो । प्रवचनं प्रोच्यन्तेऽर्थाः तस्मिन्ने वा प्रवचनं । तद्यस्य स प्रावचनी प्रावचनिको वा ॥२०८॥ चारणा-विजाचारणा य जंघाचारणा य । विजाचारणा-जे पुव्वगतसुतणाणया ठातो तहाविधातो गगणलद्धिणो । जंघाचारणा, जे आदिच्चादिरस्सिं णिस्सादिसु तवच्चरणे लद्धिसमागमातो गच्छंति ।।२०।९।।छ।। आतोवक्कमो जो अप्पणा चेव आउयं उवक्कामेति । जहा सेणितो । परोवक्कमोजो परेण उवक्कामिज्जति । निरुवक्कमो जो सतमेव मरति जहा कालसोगरिगो। जे सोवक्कमा जे य निरुवक्कमा ते णातव्वा। 2010_04 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ भगवतीचूर्णिः कति इति संख्या वाची । अकतीति तत्तणिसेहो । असंखेजाणंतो वा अवत्ततो । दोण्ह वि मज्झे णत्थि । अत्थि एसो एक्कगो दुयादिया संखा, असंखासंखातीता दोण्ह वि णत्थि मज्झे अवत्तव्यो । एते एगेंदियवज्जेसु तिण्णि वि । पुढविक्काइया असंखेनं ति । तेण अकइ ति संचतो, तेसिं एसो य परट्ठाणोववातो घेप्पति । एगीभावेणवतो सिद्धा एगो वा दु आदि संखा अट्ठसतं । ता अप्पबहुं-थोवा एगगा । उवण्णायायण समूहो उवन्ने । ततो दुयादिसंखा संचिता संखेजा संखाए संखेजत्ता । अकति संचिता असंखेजा ठाणत्ता असंखेजा संखातो एगेंदिया असंखविया चेव । सिद्धा कति संचिता ? थोवा । मणुय-केवलीणं तहा आउयपरिणतीतो । एगत्तेण गया । बहुया एरिसत्तस्स जीवरासिस्स माणं कजति । छ रूवाणि छक्कगं । एग दोण्णि तिण्णि चत्तारि जाव पंच छक्केण य णोछक्केण य एगो णोछक्केण य । एगो छक्को । एगो वा, दोवा, तिण्णि वा, चत्तारि वा पंच वा बहूणं छक्कगाणं बितियादीणं संघारो छक्केहिं य बहूणं च छक्काणं । एगो दो. ति. च. पंच समुदय णोछक्काणं छक्केहिं य । एतेणं पवेसणगेणं । जे पविट्ठा पविसंति वा ते तं माणपरिच्छिन्ना घेप्पंति । णेरइए एगा दो या असंखेजंता अत्थि त्ति । जतो संभवो तेण पंच वि असंखेजो वि रासी एतेहिं चेव णिण्णवेतव्यो । अप्पबहुं-जतो एवं छक्कगसंखा ठाणंतो थोवा। छब्बिह पविट्ठा णो छक्कगे पंच ठाणाणि वट्टित्ताणि ततो छक्करासीतो सो य णोछक्को रासीवट्टितो एगत्थ सव्वो वि संखेज त्ति कटु छक्का बहवो पुव्वरासिं जिणिति । जतो असंखेजयावतारिणो ते असंखेज्जगुणा। छक्केहिं य णोछक्केहिं य पंचट्ठाणविवड्डितो संखेज्जगुणा । एवं अप्पप्पणो ठाणेस णेज्जा । सिद्धाण य जो बहुरासी सो थोवा । थोवो रासी बहू । एवं बारसगं माणं । सेसं छक्क तुल्लं । तहा चुलसीतं माणं तहेव सेसं कळं । वीसइमं सतं सम्मत्तं ॥ . सालि-कल-अदसि-वंसे उक्खु-दब्भे य अब्भ तुलसी य । अद्वेतो दस वग्गा असिति पुण होंति उद्देसा ॥१॥ जहा-उप्पलुद्देसो तहेव गिरवसेसो भाणितव्यो । लेस्सासु तीसु छत्तीसं भंगा । तिण्णि उट्टिया पडिता तिण्णि दुग संजोगा। बारस तेग संजोगे अट्ट । एत्थ एगगे दस मूल-कंद-खंधी-तय-साल-पवालपत्त । एते सत्त तुल्ला । पुप्फ-फल-बीएसु देवो अतिरित्तो लेस्सादि विसेसेण उववातयव्वो । एसो सालीए दसवग्गो । कल-अयसि वि वंसे तुल्लं । णवरं देवोण्णोववज्जति । ततो लेस्सात्तोउक्कवग्गस्स खवीए देवो ण पुप्फादिसु सेडियवण्णं वसु तुल्ला तहा अब्भरुहे तुल्लसी य । छ । एगवीसतमं सतं सम्मत्तं ॥छ।।२१ अह भंते ! ताले ति, सालिवग्गसरीसो एसो ठिती विसेसो कंठो ॥२२।१।छ॥ 2010_04 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ७५ कंदे णत्थि विसेसो | णवरमोगाहणो जहण्ण अंगुलस्स असंखेज्जतिभागुक्कोसगाउयपुहत्तं । ठिति दस सहस्सा ३ । छ। तए सालि खंधि सरिसा ५ | छ । ठिती एतेसु पंचसु अंतोमुहुत्त जहण्ण, उक्कस्सा दसवाससहस्सा । पंचालुद्देसए देवोवत्ती भाणितव्वो । सेस विसेसो य कंठो | ६ |छ । पवालि जहा तहा पत्ते ७। छ। पुप्फुद्देसेतो जहा पवालो | विसेसो कंठो ॥८॥छ । फले जहा पवाले । विसेसो कंठो | ९|छ । जहा फले तहा बीए १० । एवं दस । वावीसतिमस्स ॥ अह भन्ते ! णिंब-अंब-तलवग्ग सरीसा दस वि वीसं उद्देसा २० |छ । दस विसेसो, कंठो । ३० |छ । वातिंगणीए वि दस । विसेसो कंठो ॥ ४० ॥छ । विसेसो कंठो ५० । पुस्सफलिस्स दस । विसेसं कंठं । उद्देसए सुयअतिद्देसो सतं समत्तं ।छ। आलुयादी बादरा अणंतकायो एतेसिं मूलोववत्तिणो, तिरिय णरजीवाणं केवति संखा ? कंठा । अणंताणं पढमाणं तएणं णावहीरंति तेसिं चाणंताणं अणताणि ठाणाणि । तेसिं केण वि णावहारो । अणुबंधो नामं आलुयत्तं अमुंचंतो आलुअंतरेसु उववज्जंतो ठितिं च पालेंतो जो अच्छणं सो बंध । अतो कालो । संवेहो आलुपत्ते णोआलुयत्ते पुणो आलुयत्ते, उववात णिग्गमा । द उद्देसा |छ। लोहियादिसु दस ॥ छ ॥ आए वि दस छ। यावादिसु दस |छ । मासपन्नीए दस । छ। विसेसो य कंठो । छ। तेवीसइमं सतं समत्तं ॥ छ ॥ 1 अत्थियाणं मूलादीया सेरिययवग्गस्स दस । यो || || वावीस मं जीवपदे जीवपदे एक्वेक्के दंडगम्मि उद्देसो । चतुवीसतिमम्मि सते चउवीसं होंति उद्देसा ॥१॥ चतुव्वीसा दंड चतुव्वीसं जीवपदा । तत्थ जीवपदे - जीवपदे एक्क्को उद्देसतो तेण चतुव्वीसं उद्देसा । एयम्मि चतुव्वीस सते । एत्थ य अत्थपदाणि उववातो को कहिंतो उववज्जति ? उववज्जंताणं परिमाणं एगो संखेज्जा असंखेज्जा अनंता वा, संठवणं छव्विहं । सव्वे वा संभवतो वा उव्वत्तं सरीरतोगाहणा जहण्णादिया । संठाणं किं सट्टाणी उववज्जति वा चवति वा ? । लेस्सातो संपुण्ण विसेसियातो । णाणं-पंचविहं संभवतो णेज्जा । उवयोगो दुविहो - सागारो अणागारो । जोगा-मण-वइकाया | ३ | सण्णा - आहारादिया ४ । कसाया - चत्तारि कोहादिया |४| इंदिया पंच ५ । समुग्घातो छव्विहो वेदणा - साताअसाता । वेदो - तिविहो - इत्थीयादी । आउ जहण्णमुक्कस्स च । अज्झवसाणा - सुभासुभा । अणुबंधो तुल्लभवे तुल्लनिकाये ती । तत्थ केसु त्ति, आउस्स य णिकायस्स ट्ठाणस्स पविसेसो अत्थि ? 2010_04 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ भगवतीचूर्णि: जत्थ पुण एग भवो चेव तत्थायुयं अणुबंधाणं अविसेसो कायसंवेहो ओहाणसं गमणं पुणो आगमणं । तमि भवे आणंतरिएणं । गाहातो - उववातपरिमाणं संघयणुच्चत्तमेव संठाणं । लेस्सा, दिट्ठी, णाणे, अण्णाणे, जोग, उवयोगे ॥१॥ सण्णा कसाय (इंदियसमु) ग्घाते वेदणा वेदे य । आउं, अज्झवसाणे अणुबंधो कायसंवेहो ॥२॥ णेरइयरयणादिउववत्ति त्ति, तत्थ पंचिंदियतिरिय- मणुया उववत्ति जोग्गा । तत्थ समुच्छिमपंचेंदिया असण्णीय उववज्जंति, सण्णीय सव्वे य पज्जत्ता । आउयं, अंतोमुहुत्तं जहणणं, पुव्वकोडी उक्कस्सा सव्वेसिं । असण्णीरतनप्पभा ते णो सेसासु तस्स जहण्णा द्विती दसवाससहस्सा । उक्कस्सा पलितोवमा संखेज्जति भागो एत्तियं बंधति । उववातादियाणि पदाणि कंठाणि । गतिरागतीए भवभेदो तप्पसिद्ध आउकालो य जहासंभवं उक्कोसादितो मेलेतव्वो । भावो य कंठो । भेदेण भणिज्जमाणो णेतो । तत्थ पज्जत्त - पंचेंद्रिय - तिरितो उहितो मग्गिज्जति । उहियगहणेण य जहण्णद्वितीतो उक्कस्सट्टितीतो य घेप्पति । तहा उवत्तिट्ठाणेसु वितोहियगहणेण उक्कस्स जहण्ण उक्कस्सं जहण्ण गहणं । जहण्णुक्कोसाणि य सुद्धाणि । उववज्जमाणग उववत्तिट्ठाणेसु । तत्थोहिओ उहिएसु उहितो जहण्णेसु उहितो उक्कस्सेसु जहण्णो उहियट्ठाणे । जहण्णो जहण्णट्ठाणे । जहण्णो उक्कस्स ठाणे । उक्कोसो उहिए । उक्कस्सो जहण्णेसु । जं जं ठाणं जेसिं जेहिं उववज्जति तं तं उववातादिविसेसितं काउं सट्टाणे आऊय उववत्ति जहण्णोक्कोसाऊय ट्ठाणाणि जाणिऊणं सलक्खणतो पाढेज्जा । उहितो अस्सण्णी अंतोमुहुत्ताऊतो रतनप्पभाए जंति जहणेसु । ततो दसवाससहस्सातिं अंतोमुहुत्तब्भंतियाणि । अह उक्कोसेसु ततो पलिता संखेज्जतिभागं अंतोमुहुत्तब्भंतियं । अह उक्कोसो ततो उक्कस्से ततो पुव्वकोडी तज्जहण्णे दसवाससते पुव्वकोडी । अह उहितो जहण्णुक्कसाणि । जहणणे पज्जाएण अतिरित्ता, एवं उक्कोसं दोहिं उहियगहितेहिं अहियाणि । जहण्णो उववज्जमाणो उहिओ दोसु मग्गितव्वो । जहण्णो जहण्णट्ठाणे, जहण्णे उक्कस्सट्ठाणे, तहा उक्कोसो उहिए, उक्कोसो जहण्णे, उक्कोसो उक्कोसट्टाणे उववज्जमाणस्स जहण्णमुक्कोसं च जाणेज्जा । उववत्तिठाणे य उक्कोसं जहण्णं च जाणेज्जा । कायाणुवेहं जहाभिहितसुत्तं । तब्भवविणम्मि तं च कालं संजोएज्जा । उक्कस्सं जहण्णं च । एतेसु नवसु ठाणेसु पत्तेयं पत्तेयं अस्सण्णीयं पंचिंदियसमुच्छिमो उववातादिविसेसितो वाव्वो । रतणाए एसो य णिरएहिंतो उवट्टो णियमा सण्णिसु उववज्जंति । तहा सण्णी अंतोमुहुत्त 2010_04 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः जहण्णट्टिती उक्कस्स पुव्वकोडी असंखेजवासाऊणो उववजति त्ति कट्ट, एसो वि उववातादिपदविसेसितो नवसु हाणेसु रतणप्पभाए चारेतव्यो । जाव सत्तमा पुढवीणं जहण्णुक्कोसातो ठितीतो रतणाए दसवा० जहण्णा । उक्कस्सा सागरोवमं । एवं जाव उवरिमाए उक्कस्स सो हेट्ठिमाणंतराए जहण्णा हवति । जाव अधिसत्तमा । जहण्ण द्विती यस्स णियमा अपसत्थो अज्झवसातो थोगो कालो जातो इतरस्स दीहकालस्स मीसो भवति । जो य जहिं जति वारा उप्पजंति तं जाणे । सत्तमाए मणुयदेहं जहाभिहितसुत्तं । तब्भव विणिम्मितं च कालं संजोएज्जा । उक्कस्सं जहण्णं वेयत्तमुव्वट्टो ण लभते । एत्थ पविसेसो संघयणादीण कण्ठो चेव भण्णति । जो अविसेसो सो पढमगमगतुल्लो संखिप्पति । मणुस्सो उववज्जमाणो पजत्तगसण्णी कम्मभूमगसण्णी कम्मभूमगमणुस्सो सत्तसु पुढवीसु तहेवोववातविसेसितो एक्केक्काए णवट्ठा संभूतसंबंधी मग्गितव्वो । उहिणाण-मणपजव-आहारतसरीराणि लभ्रूण परिसाडेत्ता उववज्जति । एवं मणूसो सव्वत्थ विसेसितो उववातेतव्वो ॥२४॥१॥ पढमो उद्देसतो ॥छ। असुरकुमारुद्देसतं वत्ततिस्सामो । कतोहिंतो ? जहेव णेरइया-समुच्छिमपंचेंदियतिरिय-सण्णिपंचेंदिय संखेज्जासंखेजतिरिय-मणुएहिं संखेजासंखेज्जाउएहिं पविसेसो । एत्थ य अस्सण्णी जहण्णेणं दसवाससहस्सं, उक्कस्सेणं सतुल्लपुव्वकोडिआउयत्तं णिवत्तेति । ण य समुच्छिमो पुवकोडिआउयत्तातो परो अस्थि । तहा असंखेजवासाऊ सण्णी जहण्णो सातिरेगपुव्वकोडी उक्कस्से तिपल्लोवमायू । एते उक्कस्सं जहा पुव्वभवायुं देवेसु बंधति जहण्णं सव्वे वि दसवाससहस्साई । एवं मणुस्सो संखेजाऊतो सव्वट्ठाणं देवलोयट्ठितिबंधतो असंखेजत्तायूदेवेसु तुल्लट्टितीबंधी उक्कस्सो जहण्णेण दसवाससहस्सा । असण्णी उववातेहिं विसेसेऊणं जहण्णकालट्टितीयस्स पसत्था अज्झवसाणा जतो देवेसु उववजितुकामो थोवेण कालेण नियमा सुभपरिणतिं गच्छति । बहुआऊ बहुपरिणामो वि भवति । तहा मिच्छदिट्ठी अण्णाणीण। सम्मइंसणंते पडिवजति त्ति कट्ट, भवादेसो मणुय-देवत्तातो ण पुणो असंखेजावासासूववजति त्ति कट्ट, एवं पंचेंदियतिरितो सण्णी संखेज्जासंखेजाऊ णवट्ठाणविसेसितो उववातितो मणुस्सो वत्तव्यो। संखेजवासाऊ जहा रतणप्पभाए णवरं सातिरेक असुरकुमारुक्किट्ठिहितीए संवेहो कातव्वो । असंखेजवासाऊत्ते उववाताती णवट्ठाणविसेसितो भाणियव्वो । तहेव बितितो उद्देसतो । छ।।२४।२। णागकुमार पुच्छा । एतेसु वि उववातउहियादियाण वण्णेया। णवरं आउस्स संवेहो उक्कस्सेण दो देसूण पलितोवमाई । एत्थ वि असंखेजवासाऊया तहेव सण्णितुल्लं देवलोगेसु बंधति । मणुस्सेहिं वि तहेवोगाहणा पविसेसो य कंठो ।२। जहा णागा तहा थणितादीया । उक्कस्साऊयादिविसेसिता गेया । एकारस उद्देसया ॥२४॥११॥छ।। 2010_04 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ भगवतीचूर्णिः पुढविक्काइय पुच्छा-णेरइयवजेहिं तिरिय-मणुय-देवेहिंतो उववातो तहा तब्भेदेहिं एगिदिएहिं, तहातब्भेदेहि, पुढविक्काइएहितो तहा आउ, तेऊ, वाउ, वणस्सति, बि, ति, चउ, पंचिंदियतिरियं, मणुय, असुर, वाणमंतरा, जोतिसा, सोहम्मीसाणाहित्तो सव्वे सभेदे भिन्ना कायव्वा । पुढविक्काइतो उववजमाणो पुढविक्काइएहिं उववातादिविसेसितो उहिय नवग दंडगेणं य कायव्यो । दोसु वि ट्ठाणेसु जहण्णिया द्विती अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सा बावीसवाससहस्सिया । जहण्णभवगहणा पजत्तापजत्तीए वि पजत्ती उक्कस्स हिती अट्ठभवग्गहणा दोसु वि ट्ठाणेसु जहण्णट्टिती । असंखेजकालं भवाणिय देवोवत्तीए तेउल्लेसाण य अपज्जत्त जहण्णहिती हवति । णियमा बातरपज्जत्तिं लभंति । तहा आउक्काइएहिंतो एतस्स उक्कस्सा सत्तवाससहस्सा तहेवोववातपरिमाणनवगदंडगभेदा विसेसितो णेया । जत्थुक्कोसा हिती तत्थट्ठ भवणहणिया जहण्णा, असंखेजा वि तहेव तत्थ कालो असंखेजो संवेहो य ।छ।। एवं तेउक्काइया वि । उववातणवदंडगविसेसिता णेया । उक्कस्साई तिण्णि रातिंदियाइं । एवं तेणेव लक्खणेणं णेतव्वं । एवं वाउक्काइयाणं उक्कस्सा द्विती [.....] समुग्घाया चत्तारि वेउन्वितो अब्भतितो तहेवोववातणवगविसेसितो तो । विसेसो य कंठो छ। एवं वणस्सती वि उववातदंडगस्स य वि सियालिस्सातो चत्तारि ग [...]चओ । जो सो देवो अहुणोवण्णो सो लब्भति । सो य णियमा पज्जत्तएसु उववत्ति । सेसं कंठं ।छ। पुव्वभणियं च । एवं बेइंदियाणं [.......] दंडए विसेसियाणं उववत्ती भाणितव्वा । सम्मद्दिट्टीसासायणो जो उववण्णपुव्वो आसी सो लब्भति । संभवतो आउयं उक्कस्सं बारससंव [...] सविसेसो कंठो । ॥छ।) एवं तेइंदिया वि उववातादिणवगदंडग विसेसिता विसेसो कंठा । विसेसिता य उक्कस्स ठिती एगूणपण्णराइंदिया तहा चउरिंदिया उववातादि विसे सिता णवगदंडग विसेसं कंठा णिद्दिट्ठा णेया । उक्कस्स ठाणेया उक्कस्सठिती छम्मासा । एवं विसेसेण णेया ।छ।। जति पंचेंदियतिरक्खजोणिएहितो उववजंति । किं सण्णि असण्णी ? गोतमा ! दोहिं पि । असण्णि बेइंदियसरिसवत्तव्वता । उववातादीहिं पत्तेयं पत्तेयं एगेगो उहियादिदंडगो विसेसणिज्जो । सेस विसेसोवकंठो। छ। तहा मणुया दुविहा वि उववाताति विसेसेण उहियाआदिणवदंडगा णेया। तहा देवाइ (......)वे उववाता विसेसिता तेसु चेव दंडगेसु जहासंभवं नेजा । कंठा । जाव सोधम्मीसाण त्ति । उद्देसो बारसमो छ। __ एवं आउक्काइयउद्देसतो पुढविक्काइयउद्देसय तुल्लो । तेउक्काइय-वाउक्काइयउद्देसएसु देवोवत्ती णत्थि । तेण तिण्णि आदिलेस्सातो ।२४ : १५ ।छ। 2010_04 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ७९ वणस्सतिउद्देसतो पुढवितुल्लो । णवरं सट्ठाणे उववजमाणा अणंता भाणियव्वा ।२४।१६ । : ।छ। एवं बेइंदिय उद्देसतो उहियाए मग्गणाए मग्गिऊणं उववायादिविसेसिए काउं उववजमाणस्स उववत्तिठाणस्स य जहण्णुक्कस्स ठाणं णाऊणं सव्वकायसंवेहा कातव्वा, जहा तेउक्काइया तहा उवातेतव्वा ।२४|१७||छ।। तेइंदिया जहा बेइंदियाणं उववाते छ ।२४।१८। तहा चउरिंदियउद्देसतो वि छ ।२४।१९। एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कतोहिंतो उववजंति ? एत्थ य समुच्छिमा असण्णीगब्भवक्कंतिया संखेजवासाऊ असंखेजवासाऊ य तिण्णि ठाणाणि घेप्पंति । नरगादिसु सत्त सत्तंसु वि उवट्टिऊणं उववजंति । तत्थइय उप्पण्णाणं जहण्णायु अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेणं पुव्वकोडी उववातो भणिओ । परिमाणपदे असंखेज्जा । एवं संघयणादिपदाणि णेरइयाणं जहासंभवं भाणियव्वा । आउं रतणाते उक्कस्सं जहण्णेणाउं नवेव णवसु ठाणेसु णिद्दिसेज्जा, जहा रयणप्पभा । एवं सत्त वि भाणियव्वातो । उहियं पुच्छिऊण उववायादिततो णिद्देसो । पुणो उहिय जहण्णो तत्थ वि उववातादिविसेसं काउ णिद्देसो । एवं एक्केक्के भंगे उद्देस-निद्देसा जावं तिण्णि गमको उक्कोसो उक्कोसेसु त्ति ।छ।।। जइ तिरक्खजोणिया तिरक्खजोणिएहितो किं एगेंदियादिया जाव पंचिंदिय त्ति ? पुच्छा, सव्वेहिंतो वि एगेंदिएसु पुढविक्काइयादीहिं घणदंडयचउक्कादिभिन्नेहिं वि जाव वणस्सती तहा बेइंदियादीहिं चउरिंदियंतेहिं पजत्तापजत्तदभेदभिन्नेहिं य तहा पंचिंदिएहिं समुच्छिमासण्णीहिं पि गब्भवक्कंतिया य संखेजवासाउगा देवलोगगामिणो तेण उववति । जइ पुढविक्काइयाउतो तिरिक्ख पंचिंदिएसु जहण्णेणं अंतो० उक्कोसेणं पुव्वकोडीएसु णोअसंखेज्जवासाऊयेसु परिमाणं । जतो भायणं थोवं, ततो संखेजा जहण्ण उक्कस्सा जहण्णाजहण्णा ठिती णातूणं सव्वोवसंहारा भवादिया करेतव्वा । एवं जाव चउरिंदिया ताव उववातेतव्वा । पंचेंदियतिरियपुच्छा । ते य सण्णि-असण्णिणो दो दोविं उववति । असण्णी जहण्ण ठिती उववत्ती ठाणे बंधति । उक्कस्स ठितिं च असंखेजति पलितोवमभागं बंधति । जहा असण्णी पुढविक्काइय उववत्ती भणिया तहेवेत्थं पि । णवरं सम्मदरिसणे सासायणसम्मद्दिट्ठि संभवं पडुच्च णाणा लभंति । तहेसाणंपि । एत्थ य जस्स परमजहण्णा ठिती उववजमाणस्स सा अतीव सण्णिरुद्ध त्ति कट्ट, परममिच्छत्तोदया लब्भंति । सेस गमगेसु विसेसो कंठो । एवं असण्णी गता । जति सण्णिहिंतो दुविहा संखेज्जासंखेजाऊ तत्थ जहा पुढविक्काइएसु एते उववण्णा तहा पंचिंदियतिरिएसु वि एत्थ असंखेजाउणोववजंति त्ति कट्ट, एतेसिं जहण्णाउ अंतोमुहत्तं, ___ 2010_04 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० भगवतीचूर्णिः उक्कस्स पुवकोडी । जत्थोववजंति तत्थ जहण्णा अंतो० उक्क० तिण्णि पलितोवमा । अवं णवसु ट्ठाणेसु उववातादिपाडेक्कविसेसितं कंठाभिहितं च णेज्जा । जति मणुस्सेहिंतो उववजंति, किं सण्णीहितो असण्णीहिंतो ? दोहिं पि तहा कम्मभूमगेहिंतो ते य पज्जत्ता दो वि । एतस्स ठिती अंतो० जह(ण्ण)उक्कस्स तिपलितोवमाउववजमाण ठाणे ठाणे संखेजा उववजंति । किं सण्णीहितो गब्भवक्कंतिया ? खेत्तपत्तातो । तथा जहण्ण ठाणे समुच्छिमा। ते य असंखेज्जा मिच्छदिह्रिविसेसिता कज्जा । जति देवेहिंतो ? पुच्छा । जहा पुढविक्काइएसु एत्थ य अब्भहिता जाव सहस्सारो । एतेसिं उक्कस्सादि । आउयं सव्वत्थोवोववातादिविसेसिताणं । णवगदंडगेहिं णेज्जा । २८.२० । छ। मणुस्साणं भंते ! कतोववजंति ? सामण्णेणं चतुहिं पि णेरइयादिसुं । अहे सत्तमे तेउ, वाउ उववज्जेसुं रतणप्पभातो मणुस्सेसु । जति देवेहितो जहण्णायुणिवत्ती णवमासा जाव ताव मासपुहुत्तं, उक्कस्सा पुव्वकोडीणो असंखेजवासाउएसु तब्विह णिव्वत्ति परिणामाभावातो । जत्थ उववातपरिमाणं संखेजा भायणथोवत्तातो जहण्णुक्कोसाऊ संवेहा भाणितव्वा । वालुयप्पभ जहण्णाऊं वासपुहुत्तं । सेसं तं चेव । छट्ठा । जति तिरिक्खजोणिएहिंतो जहेव पंचिंदियतिरिएसु तिरिया उववातिया तहेवेत्थं पि तावइ भेदेण एगिदियादिणा, ततिय, छट्ठ, णवमग, णवमगेसु उक्कोसेणं संखेजा भणितं उवत्तातो सव्वोरालिय सरीरस्स । मणुस्सेसूववजमाणस्स य सट्ठाण वि हाणविसेसाउ विसेसभेदं पडुच्च जहण्णेसु समुच्छिमा पडुच्च पसत्था उक्कोसा य संखेजा, इतरे समुच्छिमा णेया । एवं आउ वणस्सति वि असण्णिपंचिंदियतिरिय-सण्णिपंचेंदियमणुस्सा वि सट्ठाणे, तहेव चउत्थगमगे विसेसो कंठो । जतो उहितो उक्कस्से चउत्थे गहितो पंचमे दो वि परमजहण्ण त्ति । समुच्छिमो तहा छटे । उक्कस्सायु त्ति सेसं कंठं । तहेव भायणं थोवं । तिरियादीसु गमेसु वि सेसं, जहेव पंचिंदिएसु उववजमाणाणं मणुस्साणं तहेव सपदे वि । जति देवेहितो तत्थादिदेसं करेति तिरिक्खजोणिएहिं जहा देवा तिरिएसु वासपुहुत्तं जाव सव्वट्ठसिद्धं ति । एवं देवाणं सव्वेसिं उक्कोस-जहण्ण ट्ठितिं णातुं मणुयाण य संवेहोणेगहकज्जो । सेसं विसेसा य कंठा । समुग्घातपदे वेउब्वित-तेया-कसाय-वेयणा-मारणंतिया ५ । अणंतरेसु दो वारा ततोयरतो न गच्छति । सेस देवलोगेसु संखेजं वा कालं भवंति । तदणतरं वा मोक्खं गच्छंति । सव्वट्ठसिद्धा उक्कोस-जहण्णा नियमा मणुयागता सिझंति । २४ । २१छ। __ वाणमंतरा कतोहिंतो ? पुच्छा । जहा नागकुमारा । णवरं जहण्णाओ दसवाससहस्सा । उक्कस्सेणं पलिओवमं, एतेन सह संवेहो कायव्वो । तिरिया संखेजा असंखेजा वि । जो य असंखेजा वि जो य 2010_04 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१ भगवतीचूर्णिः संखेजवासाऊ तस्स जहण्णा ओगाहणा गाउयं, आऊ पलितोवमं । किं कारणं ? तेसु तुल्लं । उक्कस्सेणं आउगं बंधति जतो जहण्णं पुणं उक्कोसायू वि बंधति ।२४।२२।छ।। जोतिसियपुच्छा । जहा णागकुमारा । णवरं तेसु समुत्थिसमुल्ली वि उववण्णातो ते इह ण संभवंति । एतेसिं जहण्णेणं पलितोवमट्ठभागा, तेसिं पुण उक्कस्साउयं बंधो, पलितोवमा संखेजतिभागो तेण ण पावति । एवं ठाणं उक्कस्सं जोतिसियाणं सातिरेगपलिओवमं । एतेण सह संवेहो । लेस्सा चत्तारि आदिल्लातो । तन्विह जीवपरिणामविसेसातो सह वा एगा चेव, पच्छिमा तं जोग्गा मारणंतिया तेउलेस्सा । तहा पक्खिणो असंखेजवासाउया वि । जतो असंखेजपलिओवमभागबंधगा तेण पावंति तं ठाणं । जे वि मणुस्सा असंखायू ते वि जहण्णेणावस्सं सतुल्लट्ठभागाउया, उक्कस्सेण तिण्णि चेव पलितोवमाए तेणं णवगठाणं णेतव्वं । धणुपुहत्तं च हत्थिवजेसु सेसेसु तिरिएसु ठव्वं, जहण्णेणं सेसेसु चत्तमण्णेसु । एवं संवेहादि जहण्णुक्कोसआयुविसेसेण भाणियव्वं । सव्वं गमगेसु णेयव्वं । जति मणुस्सेहिंतो जोतिसिया उववजंति भेदेण भाणियव्वा । जाव संखेजवासाउया असंखेजवासाउयणो अंतरदीवगा । किं कारणं ? ते असंखेजपलियभागए । एवं बंधेणे त्ति कटु अतिदेसो जोतिसिएहिं । तत्थ य संखेज्जा वासाउ तिरिय-मणुया उववातिया, सोहम्मे जहण्णाउं पलितोवमं, उक्कोसं सागरोवम दुगं । मणुय-तिरिक्खाणं पुव्वभणितं । एतेहिं संवेहा कायव्वा सव्वदंडगेसु चत्तारिलेस्सातो, सामण्णेणं मरणकालि नियमा सोहम्मजोग्गाणि वत्तिजंति । असंखेज्जवासाऊं । एत्थ जहण्णायू पलितोवमट्टिती उक्किट्ठो तिपल्लोवमा, एवमेतण सह संवेहं दंडगेसु करेजा । विसेसो य कंठो । छ। एवं ईसाणे वि उववातो । एवं णवरं सोहम्मे जहण्णुक्किट्ठ तं सातिरेगं कायव्वं । उगाहणसंवेहेसु तहेवेति लेस्सा तप्पायोग्गा ।छ। सणंकुमारपुच्छा । एत्थ पजत्तगब्भवक्कंतियसंखेजवासाउयतिरिय-मणुया उववजंति । ठिती जा दो सागरा उक्कस्सा सत्तमा परिमाणाती जहा रतणपभाते । एतेसिं चेवोवजंताणं लेस्सातो उवरिमातो तिण्णि सव्वत्थ उवरिमेसु जाव सहस्सारो । एतेसु एते चेव तिरिय-मणुया, सेस विसेसो कंठो । आणतादिणं एवं चेव, णवरं मणुस्सो उववजति । सेस विसेसरासी । कंठो । __ अणुत्तरोववायपुच्छा । एतेसिं जहण्णा एक्कतीस सागरोवमा उक्कोसा तेत्तीस सागरोवमा । मणुयाणं वासपुहत्ता जहण्णा उक्कस्सा पुव्वकोडी । एतेण सह संवेहो विसेसो कंठो। ___ 2010_04 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः सव्वट्ठसिद्धे य जहण्णमणुक्कोसा तेत्तीसाया ठितीमेतो याण सव्वेव । एवं णवसु दंडगेसु संवेहो । विसेसो य कंठो । गाहा ८२ "वेमाणिय उसे गमतो णाणेहिं विरहितो णत्थि " । तिण्णिया विसुद्धलेस्सा सणकुमारादिसु तिरिएसेवं भवति । एक्केक्को चउव्वीसा दंडगेण उद्देसतो णेया | २४|| छ || चउवीसतिमं सतं सम्मत्तं छ । ॥ छ ॥ 1 कतिविहा संसारसामण्णगा ? पुच्छा | सुहमा बातरा । एतेण एगेंदियरासी गहितो बे. ते. च. पंचिंदियाण असण्णि-सण्णि भेदो | सव्वे विंसतु भेदो । एक्केक्को अपज्जत्तपज्जत्तयत्तेण भित्तो । चोद्दस एक्क्को, जहणुक्कोस । अट्ठावीसं एसो य जोगो भण्णति । 'योजनं युक्ति व योगः' । सामान्यभावरूपं दाकांक्षी । अत्र च कार्मणशरीरं सामान्यं । तदन्तरेण नैव योगशेषयोगे राशिभिः निष्पत्तिः । तेन क्वचिन्निर्लुठितं कार्मणं । सामान्यं निर्देशभाग् भवति । क्वचिच्च तदेव भेदगतं भेदव्यपदेशं प्रतिपद्यते । यथा सामान्योऽग्निः तुष-खादिर - गोमयाग्नित्वं भेदं लभ्यते । एवमयं सूक्ष्मापर्याप्तादियोगो द्रष्टव्यः । अत्र च परिस्पन्दलक्षणा क्रिया जीवस्य पुद्गलसहचरितस्य विद्यते । अल्पबहुत्वेन तद्विभिन्नं ज्ञानरूपं वा द्रव्यक्षेत्र-काल-भाव-प्रभेदकल्पं । तदेतद् अल्प - बहुत्वं स्वामितत्स्थानविशेषादभिधीयते । तत्थ सव्वत्थोवो सुहुमस्स जहण्णस्स अपज्जत्तगस्स जोगो । एसो य विग्गहगतिकम्मइतो ओरालियपढम समयपोग्गलगहणकालो जाव तस्सेव उक्कोसगमेगसमयूणं । एयम्मि ठाणे जीवो वट्टमाणो परमसुहुम किरितो होति । एवं आता उद्धं असंखेज्जगुणो य वड्डति । किरियाविसेसो प्रथमसमयादिबालज्ञानवत् ॥ छ|| अल्पाल्पप्रयत्नादितद्विवर्द्धमानप्रयासमद्वा तत्स्थानप्राप्तजीवद्रव्यक्रिया तत्स्थानभाव्याद्वा । एवं सव्वेसिं अपज्जत्त जहण्णा असंखेज्जा णेज्जा । जाव सत्त पुणो पज्ज (त्त ) गसुहुमस्स बातरस्स य दोण्ह जहण्णतो । एतेसिं चेव अपज्जत्तग उक्कोसगा दोण्ह । एतेसिं चेव पज्जत्तगुक्कोसाते ते य णिव्वाडिया दो बेइंदियादीणं पज्जत्तगाणं जहण्णगा पंच । ततो एतेसिं चेव अपज्जत्तगुक्कोसा पंच । एतेसिं चेव पज्जत्तगुक्कोसा पंच । अट्ठावीस ठाणाणि । दो भंते ! णेरइया अभिण्णे एगम्मि पढमे समए उववण्णा मग्गिज्जंति । उक्क रिसावकरिसेणं समया एव । तत्थेगो कदायि विग्गहगतीए अणाहारगो उववण्णो । अण्णो उज्जुगती अहवा दो वि उज्जुगती दो वि वा वक्कगती, एसो भेदो अभेदो वा, पढमसमतोववत्तीए एवं सिय ते य पुणो चउट्ठाणादिया जति वुद्धिं गच्छंति हाणिं वा जंतीति । कंठं । असंखेज्ज ति भागो थोगो । संखेज्जतिभागो बहू । तथा गुणो वि रूवादिवुड्डीए बहुतमो । 2010_04 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: ८३ कतिविहेणं जोगे पण्णत्ते ? पुच्छा । एत्थ वि जोगसामण्णं कम्मकयङ्कं भेदेण सुहुमा पज्जत्तय जहण्णप्पबहुत्ततुल्लं भावेतव्वं । पण्णरसविहं तहेव जहण्णुक्कोस विगप्पो ठव्वो । किरियाविसेसो य असंखेजा विरूवो तव्वट्टीतो अप्पबहुवट्टी । सव्वत्थोवो कम्मगसरीरजहण्णजोगो । सेसं कंठं । पंचवीसतिमे सते पढमो ||२५|१ छ || कतिविहा...पु (च्छा) । दुविहिति । णिद्देसो संसयावणोदणत्थो । संखेज्जादिसंखाए भेदेणं निद्देसं काऊणं अणंतयं सिद्धेगेंदिएसु तेणाणंता जीवा । अजीवदव्वाणं पु (च्छा ), दुवि (हा ) रूवि अरूवी । अरूविणो दसविहा। तिण्णि णवगा । कायलोयभविणो चउव्विहा खंधा । जे दुपदेसिगादिणो संघाता सिं तेसिं चेव देसा जे युड्डीए खंडा कज्जति । जाव एगपदेसूणो वि खंधो ताव देसो पदेसो । खंधेसु जे लग्गा परमाणुकप्पा परमाणवो जे असंबंधागामिणो । एसो वि अणंतो रासी पडिभेदं । एते य जीवदव्वाण परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति । तेषां चेतनाज्ञा स्वाभाव्यादितरेषां च तद्वैपरीत्याद् भोगाभोगत्वं ते य कहं आगच्छंति ? ओरालियसरीरादिणा कंठं । तहा णेरतियादीणं तेणं चेव पोग्गला । जस्स जारिसा जोगादि सुहदुक्खा भेदेणं तव्वा । आणापाणुत्तसामण्णधम्मा य जाणेज्जा । ' से 'ति आमंतणं भगवतः । असंखेज्जो लोगो परिच्छिण्णागासदेसत्तातो घटागासमिव, एत्थ य अणंताइं दव्वाइं अत्थि, पुव्ववण्णियाणि जहा दव्व वण्णियाणि जहा दव्वपुच्छाए अणंतराए, एगो आगासपदेसो लोगागासखेत्तपरमाणू तम्मि पोग्गला घरत्थाणी कति दिसिं पविसंति ? दुवारे णवमणुया सो जदा मज्झे छप्पि दिसीतो दुवारठाणात सं उवरिम हिट्टिम पतरेसु पंचसु दिसिसु तहा उवरिमो हेट्ठिमेतो चतुरस्सातो तोयतरो तस्स तिणि दिसा हिट्ठिमा उवरिमा वा, ति दिसिं पविट्ठयंतयस्स दो दिसातो एगा हेट्ठिमा उवरिमा वा । एतेसु पवेसो णिग्गमो वा । सरीरिंदिय कंठा । संखा कंठा । उरालियसरीरजोगत्ताए गेण्हमाणो तस्स सरीरस्स मज्झठिता वि गेण्हति । तस्स वा बाहिराणंतरमज्झताए अट्ठिता वि आवारिसेत्तणं गेण्हति । दव्वादिसु कंठं । एवं वेउव्वियाहाराते । बाहिरब्भंतरगहणातो ट्टिता अट्ठिता य । लोगमज्झगहणातो णियमा छद्दिसिं गया कम्मए सजीवपदेसावगाहमेत्तगहणातो, ण बाहिरसीमा करिसणातो ट्टिताणि चेव । अहवा विट्ठिता जेण एयंति वा वेयंति वा । जे एयंति वेयं ( ) द्विता वा एगम्मि वि आगासपदेसे एतेसु चेव सेसा वि देसो भाणितव्वो भासादिसु | छ । ॥ बितितो. संठाण पुच्छा । संस्थानं आकाशवस्तुनः पुद्गललक्षणस्य स्कन्धस्य परिणामः विकल्पः । तं छव्विहं संठाणं । परिमंडल, वट्ट, तंस, चतुरंस, आयता, अणितत्थं च । पंचमं संस्थानं संसर्गजं, 2010_04 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः कस्यचित्तु कश्चिदवयव इति । एतेसिं सरूवं उवरिपदेससन्निवेसे भेदेण निरूवेस्सामि । उद्देसमेत्तमित्थं तु । परिमंडलसंस्थानानि द्रव्यतः अनंतानि । संख्यातद्रव्यतो नाम एकं परिमंडलं द्वे (त्री)णि यावदनन्तानि सकलसंस्थानः परिमंडलराशिरणन्तातो गोराशिवदेव शेषं संस्थानान्यपि । अल्पबहुत्वं, द्रव्यार्थतः सकलसंस्थानपरिमंडलराशिः प्रदेशार्थतः एकैकस्मिन् संस्थाने कियंति पुद्गलद्रव्यावयवपरमाणूरूपाणि संहतानि । उवरिणि रु० ते. हा० मो० एतेसिं दव्वावगाहेण तत्थ वीसयदेसो जहण्णा परिमंडलो मज्झ पसुसिरो तेण थोवा परिमंडला । वट्टो जहण्णो पंच पदेसो तेण असंखेज्जा वट्टा । चउरंसो चतुप्पदेसा जहण्णो तेण असंखेजा तंसो । जहण्णो तिपदेसो तेणासंखेजा, आयताण जहण्णो दुपदेसो तेण असंखेजा। जे जे असंखेजा जे जे थोवपदेसखेत्तावगाहिणो ते ते बहुतरा अणितत्थं संठाणं, एतेसिं चेव संजोगेणं, दोण्ह वा, तिण्हि वा संजोगेणं, एवं बि, ततित, चतुष्क, पंचग, संजोगेहिं णिजुजति । ते य सव्वेसिं सगासातो असंखेजगुणा दव्वट्ठता मगिता । अहुणा अणितत्थं संठाणा दव्वट्ठयाए रासी कजंति । तेसिं परिमाणमग्गणा । तत्थाणितत्थेहितो संठाणेहिंतो दव्वट्ठया ते परिमंडलाणं संठाणाणं । जे पदेसा ते असंखेजा । एवं वट्टसंठाणपदेसरासी असंखेज्जो चउरंस तंस आयत्ताणि । तत्थ य देसवट्टी कायव्वा । एवं दव्वठ्ठपदेसठ्ठता गता । पुच्छा-ओहभणितविसेसठ्ठाणत्था रयणप्पभादिसु कप्पेसु य एक्केक्क जातिरासी अणंतो। तहा पोग्गलपरिणामातो । जत्थ णं भंते ! पु(च्छा) । परिमंडलं दव्वरासि कातुं तत्थ जे जे तुल्लपदेसा तुल्लखेत्तावगाहिणा तुल्लदव्वट्ठा तुल्लवण्णादिपजवा तेवत्ती कातूण एगेगं जातीए एगट्ठाण परिकत्ता ते जवमझं खेत्तं णिप्फातिज्जति । एगो दो, ति, चतु, पंच, छ, सत्त, अट्ठ, णव पुणो, सत्त, छ, पंच, चतु, ति.. एगो । एवं परिमंडलरासिणिप्फण्णं । वेयिं अण्णेहिं वि पोग्गलेहिं णिप्फाइजइति । तदा खेत्तोवलक्खाणमेते पोग्गला उवखीणसत्तिणो, एवं से खेत्ते जवमज्झे परिमंडलाणं संठाणाणं, जत्थ एगो संठाणे तत्थ तेच्चेव कत्तिया होज्जा ? भण्णिति, अणंता । तहा दव्वपरिमाणातो तम्मि चेव एगपरिमंडलावगाहे सेस य संठाणा वि अणंता एव, एगेगं जवमझं कातुं तहेव मग्गणा णिद्देसो य । एते उहियालोगो अणिद्दिट्ठठाणा अहुणा ठाणेहिं एतेसिं चेव मग्गणा रयणादिसु णिद्देसो य कंठो । उवग्घातो तस्सरूवणिरूवणत्थो वट्टेति । पुच्छा । वृत्तं समन्ततो तुल्लं गोलग इव । दुविहं घण पतरेति । तत्थ पतरं एग सरगं । तं पि दुविहं । उयं विसमं । जुगं समं । तत्थो य पदेसि एयं च पदेसे मज्झे एगं । चतुसु दिसिसु चत्तारि । एवं खेत्तमवि एहिं अक्तं । एवं चेव घणं जया उवरि एगो हेट्ठा य तया सत्त पदेसं सव्वतो भमेणं । एगपदेसं वट्टितं जातं । एतेसु पोग्गला कयादि पंच । असंखा अणंता 2010_04 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः वा तोगाहिंति । जुम्मपदेसिए समयदेसिए समयं देसिए एग मज्झे चत्तारिदिसिसु दो दो । एतस्स पक्खेत्तं च । एतस्सेव उवरिदुतितं पक्खित्तं । तहा मज्झिमस्सोवरिचत्तारि हेट्ठिमस्स य हेट्ठा चत्तारि । समंततो परिमंडलं घणं पत्तीस पदेसं खेत्तं च । तहेव तंस पुच्छा । उयतं संति पदेसं । एगतो दो एगतो एक्को जुगं छप्पदेसं । एगत्तो तिण्णितो 6एगो घणस्सो य पण्णत्तीसं, पंच, चत्तारि, तिण्णि, दो, एक्कं । कमेण हीणं तसं कातुं चतुष्पदेसं तारिसंगो य (........) ति पदेसं दुपदेसं एगं च पक्खिवित्ता घणं जातं समंततो पण्णरस पदेसं। ••••L... .. युगघणं णियस्सयहरस्सोवरि एगो चतुष्पदेसं जातं । चतुरंसं उयं समंततो दिसिसु दो दो मज्झे एगो णवगं तु जुम्मं दिसेसु एक्कोक्को णव पदेसोवरि दो पतराणि वि ताणि घणं चतुरंसं सत्तावीसंग चतुप्पदेसस्स वि चतुप्पदेसघणं जुत्तं अट्ठपदेसं आयतं, तं पिहं सेणियायतं दुविहं । तत्थो य एगतो दीहा तिण्णि पदेसा जुम्मं, दुपदेसयत्तघणो णत्थि' पतरायतं तिपदेस वित्थारं पंच पदेस वाहं । उयं जुत्तं । छ । दुपदेस वित्थिण्णं तिपदेसं दीहं तस्सेव उवरिं दो तारिसाणि तिपदेसवित्थिण्णाणि । पंचपदेस दीहाणि पक्खिहाहाणि घणं जातं । पणत्तालीसपणत्तालीसपदेसं । तस्सेव छप्पदेसजुत्तस्स तारिसमेवोवरि पक्खित्तं । बारसपदेसितं घणायतं जुत्तं जातं । परिमंडलं पुच्छा । दिसीपदिसी एयं च . . . . 2010_04 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ भगवतीचूर्ण: वीसपदेसं' । अहवा दिसीपदिसीए चत्तारि, एगो विदिसीसु एवं बावीस पदे । एतं पतरं । छ|२२|| परिमंडल एगम्मि परासिस्स चतुष्कयो भागाहारो कज्जति । तेणं णिल्लिविज्जति । जति चत्तारि उव्वरंति तो जुम्म सो रासी भण्णति । अह तिणि तेयगो दोसु वातरजुम्मो । एगेण उव्वरंति ते कडजुम्मो रासी भण्णति, अह तिण्णि तेयगो दोसु वातरजुम्मे एगेण कलिजुम्मे एक्को नियमा कली । एवं पंच वि • • • 2010_04 · ६ • परिमंडला सव्वे रासिं कातुं चतुष्कहारेण अवहिज्जमाणातोहादेसेण सामण्णा देसेणं उप्पा दव्वजोगित्तातो चत्तातो चत्तारि विहाणेण एक्कोक्को नियमा कली जोगी । एवं सव्वे ओघविहाणेहिं तुल्ला परिमंडलेण परिमंडलस्स एगस्स । जे पदेसपोग्गला ते कयादि वीसं एकवीसं संखेज्जासंखेज्जा अनंता तेण सव्वे जोगी । एवं सव्वेसिं एग संठाण पदेसरासी । अहुणा परिमंडलसंठाणपदेसरासी चतुष्कयावहितो । तहेव चतुसु वि विहाणेण एक्केक्को पदेसो नियमा कली । एवं सव्वसंठाणा णेतव्वं | अहुणा खेत्तोगाहणाए मग्गिज्जंति । परिमंडले णं भंते ! णियतस्स खेत्तरासिस्स चतुष्कयावहारेण चत्तारि सेसा जाता वीसादीतो समोवगाहस्स चउविहस्स विभागे विहज्जमाणे पायरजुम्मो णत्थि । सेसा सिय पुव्ववण्णियजहण्णुक्कसवगाहस्स भागहारेज्जा तत्थ लब्भंति । तंसे कली णत्थि ण सा सिय । एवं चतुरंसो बितीय एगो य दिसि पायगे आयते सव्वे सिय सव्वपरिमंडलखेत्तावगाहेसु तत्थ पुव्वं आकासवण्णितं । कडजुम्मंतेयगुप्पेण तप्पदेसावगाहिणो तेण कडजुम्मा तहाविहाणेण । एक्को वि सादियदेसो कम्मो चेव । णो सेसा ओघो देसो सव्व सामण्णो आकासलक्खणत्तातो विहाणो देसेण पुव्ववण्णियमेव । जो जत्थ संभवति सो कंठो । एवं कालतो मग्गिज्जति । कालसमयरासिस्स जो 1 · Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ८७ जाए ठिती वट्टति तस्स चतु भागहारे सव्वे सिय । एग समयादिठिति कातुं असंखेजत्तं पुहत्तेण वि एगेगत्तेण त्ति जाव भणितं । चत्तारि वि कालयो, पुणो एगेगम्मि एगो एगो समयादिणा चतुजोगी वि । एवं जावाणंततो कालतो गतं । भावतो एक्केको उहियविहाणेहि मग्गिजति । परिमंडले कालावण्णपज्जवेहिं चतुजोगी वि तहा सव्वपरिमंडलाण काला वण्णपजवा । कालावण्णपजवा चउहा वि । एवं नीलादिणो ओघविहाणेण तहा फासा । से सुहुमपरिणता तेसिं उवरिमा चत्तारि । जे पातरा तेसिं सव्वे मगितव्वा जहा परिमंडले । एवं सव्वे पि संठाणा वण्ण, गंध, रस, रूव, फासेहिं पंच दुग पंचट्ठ विगप्पेहिं ओघविहाणविकप्पिया भणितव्वा ॥छ। सेढीउ णं भंते ! इति । श्रियंत इति श्रेण्यः । जीवपुद्गलद्रव्यैर्यतिस्थानप्रदेशादिविल्पते श्रेण्यः आकाशस्यैव यद्यपि धर्माधर्मयोः संति, तथापि तत् प्रायोवृत्यधिकारादाकाशश्रेण्य एव गृह्यन्ते । तथाहि यो यो लोगालोगस्स अभिन्नातो चेव घेप्पंति, तेणाणंतापाईणपाडीणातो वि उहिता अमजातातो तेणाणंतातो, तहा सेसावि उहिता लोगागासो एत्थ समंततो लोगो परिछिन्नो तेण असंखातो । एत्थ वि उहियाओ लोगमज्झत्थायो । एवं उड्डाधउदीणदाहिणंतादीणपडीणातो चत्तारि वि, असंखातो ओहितातो चेव पदेसेहिं । के०दा०र०त० सट्टितेहिं, जो दायासिं छिज्जमाणाणं खेत्तपरमाणू सो य देसो । ते य एगाए वि अणंता उहिताए किमुत अणंतासु लोगागाससेणिप्पदेसपुव्वद्धस्स लोगस्स पविट्ठणिक्खयदंतगस्स जातो दंतएसु सेढीयातो सो एगपदेसातो (दुपदेसादियातो वि) तेण संखेजा ते पदेसा लब्भंति । सेसा संखेज्जा अणंतयं णत्थि । तिरियासुं दोसु वि संखेज्जासंखेजयं । उड्डाधायतासु असंखेज्जयमेव, जतो तासिं उद्विताणं अहोलोगंते उड्डलोगते वा पडिघातो अलोगसेणितोहियपदेसपुच्छाए तिण्णि वि । तिरिच्छितातो णियमा लोगं फुसित्ता अणंतातो उड्डमहायतासु रतणप्पभखुड्डागयतरसंवट्टमूले संखेज्जातो तहा तप्पदेसवड्डीए, जावा संखेजातो एगो या दु अणंतराणिउड्डाधाइयातो अणंतातो । एतासु तिण्णि वि सादितातो सपज्जवसितातो चउहा । पु०, उहियासु लोगालोगविकप्पो पत्थि । तेणाणादीया अपज्जवसियातो उड्डादिसु चउसु वि सामण्णं । लोगागासे उड्ढादिसु चतुसु वि सादिसपज्जवसाणत्तमत्थि । आदि-अंतदरिसणातो अलोग पु०, ओहियासु चतुभंगो वि पादीण पदिणासु तिण्णि संभवंति । सादीअपज्जवसितातो रयणखुड्डागपतरातो अलोयअणंतहावियातो तिरियं एतातो चेव विवक्खाए आणादीयत्तेण सपज्जवसाण णिद्दिट्ठातो लोगं पति जातो । हेट्ठोवरि असंबद्धातो लोगेण ता अणादी-अपज्जवसितातो णो सादी सपज्जवसितातो उदीणदाहिणातो वि । एवं उड्ढाधायतासु चत्तारि वि । खुड्डागपतरयाहिरसमीवआरद्धातो जाव दो य रुजूतो 2010_04 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ भगवतीचूर्णिः एग बि ति चतु विगूहेहिं तिरियगमणोवातलक्खणेहिं वाहिजंति । एत्थंतरो सादियायो सपज्जवसितातो तातो चेव वयणवसेणं अणादीयादिसपज्जवसितातो लब्भंति । तहा अपुट्ठातो अणादियातो अपज्जवसितातो सेढीतो पु(ट्ठातो) कडजुम्मातो । एत्थ सव्वातो अभेदेण अणंतातो गहितातो लोगागासे वि तयाहिग्गतो कडजुम्मातो चेव, एवं अलोगागासस्स उहियातो कडजुम्मातो एक्कक्के उहिया पाईण पडिणोदीणदाहिणुढाधायतासु सव्वत्थ कडजुम्मातो दव्वट्ठताए । अधुणा सव्वोहियसेढीतो पदेसे कातूण चउक्कयभागावहिता चतुरुव्वरितातो चेव कडजुम्मातो । एवं उहियातो उड्ढावयं पाइणपडिणोदीणदाहिणातो अहुणा भेदेण लोगागाससेढीतो पदेसेहिं उहितातो पादीणादीयातो य चत्तारि वि पु० उहियट्ठाणा कडया दंडाओ । पादीणपदीणोदीणदाहिणातो दो लब्भंति । जतो विग्गहजूहेसु खुड्डागरयणप्पभदुपदेसादिसमारद्धेसु दिसि पदिसिं वुड्डी हाणी दुगुणिया सो य नियमा चतु-दुग जोगिणी हवति । तेण दु जोगातो उड्डलोगे वि अहोलोगे वि तिरियलोगे वि । उड्डाधायतातो नियमा कडजोगातो चेव तहा चउक्कसमजोगा पदेसेहिं । अलोगसेढीतोहियपदेसपुच्छाए, नियमा चत्तारि भेदेण दरिस्सतिस्सातो पातीणपदीणोदीणदाहिणातो वि चतुजोगातो । तत्थ रयणप्पभखुड्डागबाहिरविणहणिजूहस्स य वितिए रज्जूएय ततिय रज्जूएव वा अंतराले संभवतो चतुजोगातो वि लब्भंति । एत्थ समे सेसा लोगे विसमं, विसमे तत्थ वि विसमं सेस रासी णियमा रज्जूपरयो तेणं एयम्मि चेवंतराले लभंति । उड्डाधायतासु वि एयम्मि चेवंतराले तिण्णि लब्भंति । णवरं कली एगोगो णत्थि । छ । (ग्रं ६०००) ___ सत्त विहातो अप्पणा उज्जूयातो गतिविसेसातो जीवपोग्गलाणं सहा अहोलोगो ९ णालीए वहियंतो वा जो पोग्गलजीवो वा उज्जूतावता तेच्चेवती एगंतो बितिय सेणिगमणं करेंति । सो एगतो वंका जत्थ दो वारा वक्केति । सा दुहतो वंका ५ लोकणाली बहिरंते वा एगतो खहा । जो जीवपोग्गलो लोगजीवणालीतो वामपासातो पविठ्ठो । लोगणालीए गंतुं पुणो वामपासे उववण्णो सा एगतो खहा । दो दुहतो खहा । वामातो दाहिणं गतो ९ चक्कवाला चक्कपादमिवागासदेसं भमितूणं परमाण्वादि उप्पण्णो ।। तदद्धे अद्धा ।८। परमाणु-खंधाणं अपरेप्पेरिताणं विग्गहगतियाण य जीवाणं नियमा मणुसेणिगती । सेसाण वीसेणी विसेसं कंठं । पण्णवणाए य । संगहणि गाहातो पंच य बारसगं (खलु सत्त य बत्तीसगं) च वट्टम्मि । तियछक्कयपणतीसा, चत्तारि होंति तंसम्मि । 2010_04 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः णव चेव तहा चतुरो सत्तावीसा य अट्ट चतुरंसे । तिय दुय पण्णरसे चेव छच्चेव य आयए होंति ॥ पणयालीसा बारस छन्भेदा आततम्मि संठाणे । परिमंडलम्मि वीसा चत्ता य भवे पएसग्गं । सव्वेवि आयतम्मि गेण्हसु परिमंडलम्मि कडजुम्मं । वजेज कलि तंसे दावरजुम्मं च सेसेसु ॥ सोलस कडजुम्मातो लोगे भव(कड) पादरातो तिण्णि भवे । अलोगम्मि चतुविगप्पा सेढी कलिवजिया चरिमा ॥छ।।२५।३। जुम्मा कंठा। | जु | उ | जु | उ | घ | जु | घ परिम ३ | २ | ५/६/४५ | १२| ४ | पतर 4 m घ न W < 2044 १२] ३५ ४ णेरइयाणं मूलं रासि असंखेजा । तत्थ जहण्णपदं उक्कोसपदं च । कडजुम्मं असंखेजत्तातो सव्वण्णदेसणातो वा उववातं पडुच्च एगो वा पविसति दो वा तिण्णि वा चत्तारि वा तेण सव्वे लब्भंति । अह जहण्णुक्कोसंतराले । एवं सेसाण कंठं । वणस्सतीणं अणंतो मूलरासी । तत्थ जहण्णुक्कोसपदेसु णियमा कडजोगो । तम्मि चेव सेस रासीतो उववजंतेहिं एगगादिएहिं चत्तारि वि, तहा सिद्धाणंतरासी । सेसपदा णेरतिग सरिसा । दव्वं छव्विह संखं भाणिऊणं धम्मत्थिकातो चउक्कदेण भाणणं देति । सेसो एक्को तेण कलिजुम्मो । एवं आगासाधम्मा वि एग दव्वत्तातो जीवत्थिकायातोहिओ अणंतकडजुम्मो । 2010_04 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: पोग्गलत्थिकायो अणंतो वि संघात - भेदभागीति कट्टु चतुव्विहा वि । अद्धासमयोऽतीत- वट्टमाणाणागतो रासी, कतो ? जहा जीवत्थिकातो । एतेसिं जीवपदेसा । जे परमाणू भिज्जमाणा हवंति ते पाडिक्कं रासी कातूणं मग्गिज्जति । चउक्कतावहारसेसताए ववत्थि असंखेज्जगाणंतगातो जहासंभवं कडजुम्मा धम्मादतो सव्वण्णुदेसणातो वा सभावसव्वसिद्धंतप्पसिद्धस्सवगम्मातो वा अप्पबहुं पण्णवण्णा एग दव्वाणं । आगासं सेस पंच दव्वाणं । द्वाणपदेयं जहा आसणादिपुरिसाणं तेणागाढो धम्मत्थिकातो आगासपदेसेसु णियमा लोगागासपदेसा णित्तत्तातो दोणि वि । असंखेज्जया ते वि य पदेसा पुव्ववण्णितववत्थिता संखेज्जत्ताओ कडजुम्मा । एवं अधम्मागास - जीव - पोग्गलद्धातो वि कडजुम्मोगाढातो, एगो जीवो दव्वता कलिजुम्मो । एवं णेरइय सिद्धंता णेता । एगत्तेणं ओघा देसो जीवसामण्णया । एते अनंता तेण कडजुम्मा । एगो तहेव विहाणादेसेण एवं । कंठ सेसं । अहुणा एगस्स जीवस्स पदेस चतुष्कएणावट्ठिज्जंति । ते य असंखेज्जववत्थितागासं । जहा संसारिस्स पंचसरीरा जहासंभवतादेस मग्गहणा ते जइ वि अणता तहा वि उप्पात - विगम - धुव- तदुभयसंभवातो चहा । जीवपदेसाणंता कडजुम्मा सव्वजीवसरीरपदेसा अणवट्ठितत्तातो तहेव चतुहा विहाणादेसेण वि अणवट्ठिता संखेज्जहत्थिमसमावगाहविसेसातो चतु द्वा वि । सिद्धाणं णियमा ओहविहाणेहिं जीवपदेसाणंतगत्तं पडुच्च ववत्थिता संखेज्जगतं च कडजुम्मा चेव । ओहियजीवोगाहो ओहितजीव तुलो । विहागा चतुव्विहो विरइयाणं ओहादेसोगाहो वि चतुव्विहो जाता । वट्टमाणणेरइया जहण्णुक्कोसा जहण्णट्ठि विभागिणो विहाणादेसेण वि अणवत्थितोगाहातो चेव पाडेक्कं चतुहा भयणिज्जा । एगेंदिओगाहो अणंतो सो जीवोगातुल्लो | ९० अणा जीव गत्ते कालेण मग्गिज्जत्ति । तत्थ तीताणागत - वट्टमाणद्धाए अस्थि जीवो सायद्धा जुम्मा | रइयादिसु आउपज्जयसमयाणवत्थणातो सिय चत्तारि वि । एवं जाव वेमाणिया सिद्धे अवट्ठितत्तातो जहा जीवो सिद्धजीवातोहविहाणेहिं अवट्ठितत्तातो कडजुम्मा । णेरइया ओहादेसविहाणेहिं चव्विा विभतितव्वा । एवं जाव वेमाणिया । जीवेणं भंते ! कालावण्णपज्जवेहिं एतेय जीवस्स पंच सरीराणा-पाणुभासा - समणादिसु लब्धंति । गगुण बिगुण तिगुणादतो वण्ण-गंध-रस- फास-संठाणविगप्पणभिन्ना । तत्थ जीवा पदेसेसु एतेण सत्ति चेव, अवण्णागंधादित्तातो तहप्पदेसाणं सरीरा संति ते य जति वि अणता तहा वि अणवट्टितपोग्गल वण्णादित्तातो चउहा, ,जाव वेमाणिया सिद्धे णत्थि चेव पोग्गला, एगत्तपुहत्तेण वि ओहादेसो सव्व जीवाणं 2010_04 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः अणवद्वितत्तातो चतुहा । जाव वेमाणिया आभिणिबोहिता जीवावरणविण्णेयाणत्तभेदेणं भिजति अणंतहा । तत्थ जति वि अणंतयत्तमणवहितं ति कट्ट सव्वजाती एगस्स एग गुणं णाणं बितियस्स विगुणं जायमानयूनजीवद्वयप्रत्यक्षज्ञानभेदवभिन्नं । चत्तारि णाणा तुल्लो केवलअणंतणेयावहितत्तातो कडं चतुरो णाणं जदा तदा । अण्णाणा तिण्णि । जहा तिण्णि दंसणा केवलदसणं तहा । केवलणाणं तस्स वरित्तातो । से यः सक्रियत इत्यर्थः । सिद्धदेसो कोऽपि चलति को ति न, या दव्वया योद्वारस्थितगमनवत् । परमाणु दुपदेसा तिपदेस, चतु-पंच-छप्प-सत्त-अट्ठ-नव-दस-संखे-असंखेअणंतपदेसा पत्तेयं एगो एगो रासी अणंतो । एवं एगपदेसोगाढा अणंता, एवं दुपदेसादिया असंखेजपदेसोगाढा अणंता पाडेक्कं, एवं कालेण वि । एगसमयठितीया अणंता जाव असंखेज समयद्वितीया जाव पाडेक्कमणंता । तहा भावतो वि । एगगुणकालगा अणंता । तह दुगुणादीया अणंता काला जाव तहा गंधादिसु सभेदा रस-फासेसु ता जाति पाडिक्काणंतया भाणितव्वा । दव्व-खेत्त-कालभावा दंडभणिता। परमाणु आदी अणंतया देसियत्तो पत्तेयमणंततो भणितो । एत्थप्पबहुत्त चिंतिजति । अणंतगते वि सतिक्केक्क बहुतरा होज्जासी । एतेसि णं दव्वठ्ठताए परमाणु दुपदेसिय-तिपदेसिय-चतु-पंच-छ-सत्तअट्ट-नव-दसपदेसियाणं संखेजय अणंतपदेसियाण य । कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुवा वि, तत्थतु दुपदेसिएहिंतो परमाणवो बहूया सुहुमत्तातो एगत्तातो य दुपदेसिया थूलारण तेहिंतो थोवा । एवं अणंतराणंतराणं पढमल्लता बहुया जुया जाव दसपदेसिता दसपदेसिएहितो संखेजपदेसिताणं संखेज्जाई ठाणाणि बहूणि कट्ट, तेण ते बहूतातोहिता होऊणंते जिणंति संखेजअसंखेजाणमसंखेज्जाणि हाणाणि । तहा बहुसुहुमपरिणामातो ते बहूसु अणंताण वि ते चेव थोवा बातराणंतपरिणामिणो त्ति कटु, दव्वट्ठता गता । एस चेव रासी पदेसट्ठताए मग्गिज्जति । तत्थ परमाणूम्मि पदेसा णत्थि । सो सयं पदेसो ण तस्स पदेसा परमाणूतो दुपदेसो पदेसट्टताए पच्चक्खमेव दिस्सति बहू । एवं उवरिमो चरिमा जाव असंखेज पदेसिता अणंतपदेसिताहिंते वि बहुता तेसिं बहुत्तातो पुव्वभणितं चेव । एते चेव खेतोवलक्खणावगाहेण मग्गिजंति । एगपदेसा नियमा परमाणू ओगाहति । दुपदेसितो एगम्मि दोहिं य तहा सेसा तेण तेण घेप्पंति परिसेसातो परमाणुरेव एगपदेसणिद्देसेण लक्खिजति । तहा दुपदेसो चेव तस्स तम्मि तेण णियमा, एवं ति पदेसियादिसु जाति-खेत्त-परमाणू-ततित दव्वपरमाणू खंधविशेषा दट्ठव्वा । एवं जावणंतेहिं असंखाणंता सिद्धा, एसो य दिट्ठण्णातो बहुसंभवे केण ति उवलक्खणं हवति । 2010_04 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ भगवतीचूर्णिः ___ जहा सामो वा लंबकण्णो वा देवदत्तो । एवं दव्व-खेत्त-काल-भावेहिं तमेवादिपरमाणुयादिहिं जहाभिहितं अव्वभिचारी लक्खणबहुसंभवेहिं वि केण ति उवलक्खणं हवति । उवलक्खिस्सं णो खेत्तादतो सबलेणेत्थ संपज्जति, तहा लक्खणयणातो अप्प-बहुत्तस्स । एगपदेसोगाढा दुपदेसिता खंधा । तेहिं ण परमाणवो चेव बहुताते य विसेसाधिया । पुव्ववण्णियमेव परमाणू बहुत्ते कारणं । एवं अणंतर पढमा बहुता जाव दसपदेसोगाहो संखेजपदेसोगाढा । संखेजबहुत्तहा ट्ठाणातो बहुता, तहा असंखेजातदुत्तरा अणंतातो चेव अणतगं चेव लक्खेति । तहाविह खेत्ता संभवातो एते दव्वट्ठताए मगिता पदेसठ्ठताए वि । खेत्तोवक्खणावगाहेण ते च्चेव जहावत्थिता पोग्गला लक्खिजंति । एवं संति पुव्ववण्णित तमेवाप्प-बहुलक्खणं, उवरि उवरि य परमाणुया वि दुपदेसिवहितं जाव दसपदेसा, पदेसट्टताए बहुता । तेहिंतो संखेजपदेसोगाढा संखेजपदेसिया खंधा बहुता, ततो असंखेजपदेसोगाढा । असंखेजपदेसिता पदेसठ्ठताए बहुता, एते चेव कालेण मग्गिजंति । तत्थेक्कसमयद्वितीया परमाणवो घेप्पंति । तहेवोवलक्खणत्थो कालो। एवं सति दव्वट्ठताए पुव्ववण्णितं तहट्ठाहुत्तं य बहुत्तं जाव असंखेज साववादं पदेसठ्ठताए वि उवरिहुत्तं बहुत्तं असंखेज्जा य वादभणितं तव्वं । एवं वण्ण-गंध-रसेहिं । जे य फाससुहुम-गंधसंभविणो बातरेसु जे फासा ते बातराणंतपदेस-खंधोवलक्खणा दव्वट्ठताए य पदेसट्टताए तेसु चेव जहाभिहितोवरि बहुत्त पदरिसगा चेवप्प-बहुत्ते । एतेण वि खेत्तादओ दव्वोवलक्खणया भणिया, तेणंतवादेसु तेयं भिण्णप्पबहुत्तातो । एतेसु य दव्वट्ठपदेसट्ठोभयट्ठया कंठा । अणंतबातरेसु भाणितव्वा । उवरिहुत्ता णेतव्वा । दव्वट्ठपदेसठ्ठता वि जहा दव्वेसु भणिता तहेव खेत्तादिसु वि । सव्वत्थोवा दव्वट्ठपदेसठ्ठताए अणंतपदेसिता खंधा । दव्वट्ठताए बातराणंतखंधपरिणामथोवत्तातो । तेसिं चेव जे पदेसा ते एगगम्मि अणंता तेणाणंतगुणा । ततो परमाणू तेहिंतो अणंता, असंबंधपरिणामबहुत्तातो । ततो संखेजपदेसिया खंधा । दव्वद्वत्ताए बहुठाणत्तातो संखेजगुणा तेसिं चेव पदेसा एगेगो संखेजा तेण संखेजगुणा । ततो असंखेजपदेसिया खंधा । दव्वट्ठताए ठाणा संखेजबहुत्तातो । असंखेजगुणा तेसिं चेव पदेसा पाडेक्कखंधे असंखेजति कट्ठ असंखेज्जगुणा । एवं खेत्त-काल-भावेसु उभयद्वत्ताए वि एवं चेवप्प-बहुत्तं ।छ।। परमाणुया जावाणंता ताव एगत्तेण कलिजुम्मा पुहुत्तेण बहुत्तेण चउब्विहा वि । तहा पदेसठ्ठताए परमाणुआदिता पत्तेयं एगत्त-पुहत्तेहिं मग्गितव्वा । कंठा । एतो चेव ओगाहेण खेत्तत्थाए मग्गिजंति । तत्थ परमाणू णियमा एगपदेसोगाही दुपदेसिओ, एगम्मि दोहिं पदेसेसु तिपदेसो, एगम्मि दोसु तियसु चतुष्पदेसो, एगम्मि दोसु तिसु य चतुसु य । सेसं कंठं। 2010_04 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः ९३ परमाणवो ओहादेसेण णियमा सव्वलोगखेत्तावगाहिणो तेसु कडजुम्मा । एवं दुपदेसितादतो वि विहाणपुहुत्तोगाहणाहिं भाणितव्वो । कालतो वि सव्वजातीतो परमाणुआदितातो मग्गिजंति । कंठा । ते पि एवं वण्णेहिं पि कडादतो णेतव्वा । कंठा । कक्खडादतो बादराणंतेसु चेव भाणितव्वा । भिज्जमाणं दव्वं जं दोहिं समभागेहिं द्वाति त्ति तं सड़े विसमभागं, अणड्डे परमाणुआदिसु, कंठं । परमाणूणं पोह त्ति । ते बहुत्तेण सड्डणिरड्डा तम्मि वा ट्ठाणे ठाणं परिणतं वा सेगं सक्कितं भवति दव्वं, साततम्मि किरिता जहण्णा एग समयं उक्कोसा आवलिया संखेजभागं, सव्वत्थ उस्सग्गो णिक्खेत्ता णिप्पकंप्पपरिणामो, सो जहण्णो तेगसमतो उक्कोसो असंखकालो, उस्सग्गो एत्थ य संठाणं असंबद्धं विजातीए परट्ठाणविजातिगमणं परमाणू सट्ठाणे । कंठं । परट्ठाणेण एगसमएणं दुपदेसिएण बद्धो वितित समए मोत्तूण चलितो जे उक्कोसेण णियमा असंखेजकाले खंधोणं भिजिस्सति ततो परमाणूत्तं लभ्रूणं चलिस्सति । दुपदेसितादिसु परट्ठाणमुक्कस्स अणंतो, जतो अणंतेहिं पोग्गलेहिं सह बंधं कातुं खुणो तेण परमाणुणा दुपदेसियत्तं पडिवजिस्सति । एत्थ य सक्को निरेक्कस्स जहण्णो उक्कस्सो य अंतरे देतव्वो कालो । तहा णिरेक्कस्स दुविहो वि सेसकालो ओहेण सव्वट्ठाणेसु । से कताए णिरेगताए य अविरहितो लोगो । अप्प बहुं जहा दव्वबहुत्तं । परमाणुआदिसु चउसु सेग-निरेग-पत्तेयभिन्नेसु कंठं । दव्वट्ठता विसेसितेसु वि जहा दव्वमग्गणा ते पढमं भणितं । तहा सेग-णिरेगभिन्नेसु चतुसु अट्ठभेदेण भाणितव्वं । एताणि चेव पदेसट्टताए अट्ठ वाणाणि जहा दव्वमग्गणा ते य देसट्टप्पबहुं । दव्वपदेसताए वि सत्त हाणाणि सेगणिरेगेहिं चोद्दस । एत्थप्पबहं(तं) पढमं भणितं जहा तहेव णेयव्वं । कंठं । देसे जोगस्स एगावयवो एतति । एगे णीरेगसाहा एग कम्पइव जहासंभवं भाणितव्वा । देस सव्वेयंतातो ते सेगणिरेगेहिं स अंतरणिरंतराहिं तव्वा । परमाणू वि परट्ठाणमवि असंखेनंतो खंधस्स वि एत्तितो कालो ततो परमाणुत्तमवस्संभावि दुपदेसितादीणं परट्ठणाणंततो जतो सेस पोग्गलेहिं अणंतेहिं संबंधो । परमाणुपोग्गलाणं सट्ठाणे सेगणिरेगप्पबहुं । दुपदेसियादिसु सव्वेगदेसेगणिरेगे ताता तिविहा अप्प-बहुत्ता । कंठा। अहुणा परमाणू संखेजय अणंतय । एगेगसेगनिरेगदेसेहिं दव्वट्ठताए जहा दव्वमग्गणाए तहा कंठं । एकारस संठाणितं । अहुणा सुद्धपदेसतादे वि एगारसठाणाणि जहा दव्वठ्ठताए ते णवरं असंखेजपदेसिएसु पदेसट्ठताए वि असंखेज्जता, किं कारणं ? जतो एतस्स मूलट्ठाणं असंखेजयमुक्कस्सं एगरूवेण असंखेजतं ण पावति तत्थ पदेसठ्ठताए हवति । उभतठ्ठताए दव्वट्ठपदेसठ्ठताए दव्वट्ठता देससव्वणिरेगेहिं तिविहा । तहा पदेसठ्ठता वि छब्बिहा परमाणुसु व चत्तारि सव्वाणि अट्ठावीसट्ठाणाणि । 2010_04 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ भगवतीचूर्णिः एत्थप्प-बहुत्तं पुव्ववण्णितं कंठं । धम्माधम्मागासाणं रुयगमज्झावगाहिणो अट्ठपदेसा मज्झं जीवपदेसावगाहो णेतव्यो । एत्थ य संदिट्ठमेवप्प-बहुत्तं काला दो पोग्गलगतं । पंचवीसतिमे चउत्थो समत्तो ॥२५|४||छ।। ___ समय-आवलिया-आणापाणु-थोव-लव-हुत्त-दिवस-अहोरत्त-पक्ख-मास-उडु-अयणसंवच्छर-जुग-वास-सतवास-सहस्स-(दसस)हस्स-पुव्वंगपुव्व जाव सीसपहेलिता-पलितोवम-सागरोवमउस्सप्पिणि-पोग्गल-परियट्ट-तीतद्ध-अणागतद्धं । सव्वद्धातो ठावेतूणं मग्गिजंति । समतादिएहिं एत्थ एगा आवलिता । किं संखेज्जा समता असंखेजा समता अणंता समता ? पुच्छा । असंखेज्जा समता आदि अंता पडिअंता । एवं जाव उस्सप्पिणी पोग्गलपरियट्टो णियमा अणंतसामातियो तहा तीतद्धाणागतद्ध सव्वद्धातो वि, एगवयणेणं अणंतातो नियमा । एवं पुहत्तेण मग्गिजंति । आवलितातो किं संखेजा असंखेज्जा अणंता समता ? तत्थ संखेजयं णत्थि असंखेजगं वा, अहवा जातो पोग्गलपरियट्टादि अभंतरतो ततो अणंतातो । एवं सिय असंखेजातो सिय अणंतातो । एवं जाव पोग्गलपरियट्टो । पोग्गल परियट्टे णियमा अणंतातो तहाचरिमेसु । एवं आवलितातो आणापाणुआदिएसु एगत्त-पुहत्तेण पुच्छिजंति णिहिस्संति । तं जं जत्थ संखेज्जासंखेजाणंत गतं । कंठं । एगत्त-पुहत्तेण तव्वमणंतराणंतरंतुत्तरादिसु जाव अणागतद्धा किं संखेजातो तीतद्धातो त्ति ? । तत्थ बुद्धीए उदाहरणं-तीतद्धा दो समता, अणागतद्धा वि दो, वट्टमाणा समतो सो य अणागतद्धाए गणिज्जति । तेण तीतद्धातो अणागतद्धा समयाहितो तीतद्धा समयूणा जाता । तहा सव्वद्धाए सह तीतद्धा । तत्थ सव्वद्धा गहणेण तीताणागतद्धा ओहिता गहिता । बुद्धीए तीतद्धा उवरित्ताणं मग्गिजति । तत्थ सातिरेग दुगुणा कथं जाता ? वट्टमाणो समतो अवणीतो तत्थ तीतद्धाणागतद्धातो दो वि मेलितातो दुगुणाओ जातातो वट्टमाणरूवमहितं । अहुणाणागतसव्वद्धातो मग्गिजंति । कंठा सुत्ता । सव्वद्धाणं अणागतद्धातो जो सो वट्टमाणो समतो तेण रूवेण ऊणा दुगुणा तेण थोव्व सव्वदुगुणरूवा । सेसं कंठं । ॥छ। पण्णवण-वेद-रागे-कप्प-चरित्त-पडिसेवणा-णाणे, तित्थे लिंग सरीरे खेत्ते काले गति संजम निकासे ॥१॥ जोगुवतोग कसाए लेस्सा परिणाम बंध वेदे य । कम्मोदीरण उवसंपजहण सण्णा य आहारे ॥२॥ 2010_04 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः भव आगरिसे कालंतरे य समुग्घात खेत्त फुसणा य । भावे परिमाणे खलु अप्पाबहुत्ते नितंठाणं ॥३॥ कति णं भंते ! नितंठाणं ? पुच्छा, पंच कंठा। पुलागो असारो जहा वण्णेसु पलंजी, एवं पंचसु ठाणादिसु णिस्सारत्तं जो पडिवजति सो पुलागो। लिंगपुलागो लिंगातो पुलागी होतो । अहासुहो एतेसुं चेव थोव विराहगो । बकुसो सरीरसुस्सुसाभिरतो, अंततो दूसितावणगो आभोएण जाणतो करेति । अणाभोगेणं जाणंतो संथुजे अजाणिज्जंतो अहवा संवुडो मूलगुणादिसु, असंवुडो तेसु चेव पंचहा-उच्छ्रितं शीलं यस्य पंचसु प्रत्येक ज्ञानादिसु सो कुसीलो दुविहो-मूलतो पडिस्सेवणाकसायकुसीलो, तस्सेवणा सिस्साराधना विवरीता पडिगता वा सेवणा पडिसेवणा पंचसु ५ । कसातकुसीलो जस्स णादिसु कसाएहिं विराहणा कजति णितंठो-णिग्गतगच्छो उवसंतकसातो खीणकसातो वा अंतोमुहत्तकालितो पढमसमतो अंतोमुहुत्तस्स समयरासीए आदि पडिवजमाणो चरिमो अंतो समतो सेसा अपढमो, अचरिमा आदि मज्झ अद्धा सुहुमो एतेसु सव्वेसु सिणातो स्न्यातः । मोहणिज्जादिचतुकम्ममलववगतो सिणातो । अच्छवी अव्यथकः सबलो सुद्धासुद्धो एगंतसुद्धो असबलो, अंशा: अवयंशाः कर्माख्याः ते अवगता यस्य सो अकम्मंसो। संसुद्धाणि णाणादीणि धारेति । संसुद्धणाण-दंसणधरो, अरिहो पूजाए, जितकसातो जिणो, एसो पंचविहो सिणातो । एसो सद्दत्थो भणितो । एत्थ य सव्वेसिं च लद्धित्थाणाणि । पुलागलद्धी णामं जा चक्कवष्टि सबलं सवाहणं संचुण्णेति सरीरा, तहा-बकुसठाणाणि संजमठाणाणि तब्विहाणि । तहा कुसीलणियंठसिणाताणं पाडेक्कं भाणितव्वाणि । पण्णवणाए पदं गतं । वेदे त्ति, तव्विहा लद्धी इत्थीए णत्थि । बकुसपडिसेवणा कुशीला तिविहा वि । कसायकुसीलो सवेयगो अवेदणो वि उवसंतवेदो वि णोवासेणीतो उवरिहत्तवत्तीणियंठो दुविहो ति । अवेदतो सिणातो खवियवेदतो चेव सरागे ति य कंठं । 'कप्पेति पदं' - "आहेलुक्कुद्देसिय सेजायर रायपिंड कतिकम्मे । दति जेट्ठ पडिक्कमणे मासं पजोसवण कप्पे ॥१॥” एतेसु दससु ठाणेसु पुरिम-पच्छिमाहिता तेण ते ठितकप्पा मज्झिमा ठिता य सभवतो णातूण भाणितव्वं । तेण ते अद्विताद्वितकप्पा । तहाविहलद्धिठाणपत्तीतो । कंठा । पुलागादिसु तहा बि ति वयं वक्खाणं कप्पस्स । जिणकप्पो थेरकप्पो । अतीतकप्पो तिविहो ठाणेसु कंठा । चरित्तं पंचविहं । सामाइयं छेद० परि० सु० अहक्खातं पुला(गा)दिसु कंठं । पडिसेवण त्ति दारं, पडिसेवणा तस्स ठाणस्स आसेवणा सा य मूलूत्तरगुणलद्धीणं पडिसेवणा पुलागादिसु संभवतो कंठा । णाणपदं कंठं । पुलागादिसु 2010_04 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ भगवतीचूर्णि: 1 1 सुतमविण्णाण पदं । तत्थ पुलागो णवमपुव्वं ततिय आहारवत्थूतो जाव णव संपुण्णपुव्वी । एत्थंतरे आरतो वातरतो वा तं लद्धिण लभति । सेसं कंठं । सुत्तवतिरित्तो केवली । तित्थे ति दारं । जं तित्थकरेण जति तं तत्थं । अतित्थियो पत्तेयबुद्धो तित्थकरो वा पुलागादिसु भाणितव्वं । लिगं ति दारं । लिगं दुविहं दव्व-भावेहिं । दव्वलिंगमवि सलिंगमवि सलिंगं रयहरणादीतरलिंगं घरत्थतच्चण्णितादि, आगासे तणितओ भावो णियमा नियमिज्जंति । पंचसु कंठो । - सरीरं ति पदं । पंचसरीराणि तेसिं संभवो कंठो । पंचसु खेत्ते त्ति - कम्माकम्मभूमिभेदेण कंठं । I जत्थ जायति तं जम्मं । संति भावो तत्थ सो अत्थि तत्थ संभवो साहरणं पुव्वसंगतिगदेव, विजाधरादितं । काले ति दारं- सो तिविहो । उस्सप्पिणि, ओस्सप्पिणि णोउसप्पिणि, णोओस्सप्पिणि छव्विहा । उस्सप्पिणी वि कंठा । तत्थ पढमतित्थकरकालो । आदी जाव दुस्समा जम्मतो संहरणतो तत्थ पुलागलद्धीए वट्टमाणो ण सक्किज्जति उवसंघरितुं, पलिघा नाम एतासिं जो ता कडेक्काणुभागो सुसमादीणं एवं एतेण कालेण मग्गितव्वा । पुलागादतो कंठा । एत्थ य सिणादीणं जो संहरणादि संभवो सो पुव्वोवसंहरति णं । जतो केवलिआदिणो णोवसरिज्जंति । गति त्ति दारं - पुलागादिसु कंठं । णवरं विराहणा णाणादीणं । अहवा लद्धीए उवजीवणा । संजमे त्ति दारं संजमो सत्तरप्पकारो, चारित्तववत्थाणं वा, तत्थ सव्वागासपदेसग्गं । सव्वागासपदेसेहिं अनंतगुणितं । पढमं जहण्ण संजमट्ठाणं हवति । एरिसता असंखेज्जा ठाणा संजमस्स पुलागस्स हवंति । पडिता ठाणीता जीवस्स । णाणावरणिज्जादिसु ठिति णाणाणि एताणि । पुलागवकुश कुशीलाणं पत्तेयमसंखेज्जाणि | छ । I णियं च सिणाताणं एगमेव अजहण्णुक्कोसं ठाणं । किं कारणं ? मोहणिज्जादि पडिउवसमखवितावत्थाणविसेसातो परिणामा पुणाई अणंता, तम्मि संजमठाणे एतेसिं चेव बहुणा संजमठाणप्पबहुं चिंतिज्जति ।छ। तत्थ जवमज्झं खेत्तमालिहितुं उवरिणियंठसिणाताणं एगं अजहण्ण संजमठाणं अणंतचरित्तपज्जवणिप्फण्णं कज्जति । ततो पुलागसाहम्मं कुसीलस्स य । तस्सोवरि बकुस पडिसेवणा कुसीलट्ठाणाणि कज्जति । पुलागो वोच्छिज्जति । कसायकुसीलो उवक्कमति चेव, ततो बसो वोच्छिज्जति कसायकुसीलपडिसेवणाकुसीलाणं संखेज्जठाणाणि उवरिहुत्तं गच्छति । ततो पडिसेवणा कुसल वोच्छिज्जति । ततो असंखेज्जाणि ठाणाणि गंतूण कसायकुसीलो जवमज्झखेत्तंते वोच्छिज्जति । एत्थप्पबहुं सट्ठाणपरट्ठाणेहिं पाडितव्वं । सट्ठाणं पुलागस्स पुलागो । सेसा परट्ठाणं । उक्कोसमजहण्णाणि एम्म खेत्ते भंति । पढमं संजमट्ठाणप्प - बहुत्तं, ततो चरित्तपज्जवप्प - बहुं जहण्णुक्कोसमज्झिमाणं । 2010_04 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः चउट्ठाणा छट्ठाणावडणा जहासंभवं जोएतव्वा । एयम्मि खेत्ते उवरिमं णियंठसिणातठाणं ।छ। जो यदि सिणातो अजोगी सेलेसित्थो सागारोवयोगजुत्तं । सकसायकुसीले चतुसु सव्वेसु तिसु उवसमसेणीए दो दो एगंतरे संभवतो अवलोगेतव्वं । जाव लोभाणू नियंठो णियमा दुविहो वि । सुहमोवरिगंतो अंतोमुत्तो अकसायी तहा सिणाते खीणत्तेणाकसायीलेस्सा कंठा । परिणामो जस्स वट्टति उक्करिसं गच्छति तहा ह्रासं अवस्थानं वा, सो य परिणामो तीए वा जातीए जातीए अण्णजाती मीसादिरूवो वा वट्टमाणादितो सव्वत्थ । णियं च सिणाताणं हायमाणत्तं पत्थि । जतो पडिपडतो णियंठो कुसीलत्ते विसती उवरि सुद्धित्थाणविसेसातो, सेसं अत्थि । पुलाए वड्डमाणपरिणामकाले लक्खणं कसायट्ठाणातो वड्डमाण परिणामो बाधितो पुलागेगआदिसमयं फुसति । पुला० सपरिमंतातोवायवादितो कसायादिसु गच्छति । णियमा तत्थ णो मरति । बकुसादिसु मरणं च लक्खणं णियंठस्स तम्मि चेव ठाणे अंतोमुहुत्ते परिणाम विचित्तातो जाणितव्वा ।छ। अवट्ठिते जहण्णत्ते तत्थेक्को समते मरति । एवं समतो सिणाय वड्डमाणपरिणामता सेलेसि वड्डमाणो परिणामो अवलोगेतव्यो । सो च्चेवावट्ठाणे जहण्णकाले मरति । उक्कोसे देसूणो पु० कसातकुसीलो छविहबंधतो सुहुमसंपरागावलोए । सेसं कंठं । बंधो गतो । 'वेदे'त्ति णियंठो मोहणिज्जेण वेदेति । चत्तारि सिणातो कंठातो उद्दीरे त्ति ।५। पुलागो दो पुन्वोदीरितातो पविसति पुलागलद्धिं । एवं जो च्छण उदीरेति सो पढमं उदीरित्ता पविसति । सिणातो दोण्ह उदीरणातो गेण्हति । उदीरितो दो पुव्वोदिण्णाणि उवसंपज्जहणा उवसंपतो किमवि जहति जहंतो किंपि उवसंपज्जति पज्जवंतरं जहा पिंडो उवसंपज्जिजति । तत्थ पुलागो पुलागत्तातो फिडमाणो कसायकुसीलस्स जम्मणंताणि मरणादीणि उवसंपजति । एवं जो जेणाणंतरूवेण संबद्धो सो तं पडिवजति । एयं च जहा खेत्तालिहणाए फुडमवलोएतव्वं । जाव सिणातो त्ति कंठं च । णोसण्णा णाणसण्णा भण्णति । संभवतो कंठा। आहारगत्ते य लोवाहारो भवा सव्वेसिं कंठा । आगरिसा एगभविया वा अणेगभविया वा । कंठा । पउसेयव्वा दुप्पव्वाणा दट्ठव्वा । परिणामा वा पुलागाणं बहवो जहण्णितातेगसमए अण्णस्स विगमो अण्णस्स पडिवत्ती । उक्कोसेणं बहवो अंतोमुहुत्तिता । एवं णियंठाणं पि । एवं एगमेव पडुच्च बहुए य पडुच्च मग्गणा । एत्थयाणंतो लब्भति । पोग्गलपरियट्टे सेणीएहिं अविरहितो लोगो त्ति कट्ट सेढिं णियमा छम्मासा पडिवजंति । समुग्धाता कंठा । खेत्तागासफुसणाए णियमा असंखेजतिभागेसु एगजीवावगाहो । तेणारिल्ला पंचवि संखेजतिभागावयाहिणो सिणातो समुग्घातं गच्छति । तेणव संखेजतिमेवभागे सरीरत्थो असंखेजेसु वा दंडादिसु जाव सव्वलोगं ण पूरेति सव्वलोगे य पूरिते भागो भागा य पडिसिद्धा संखेज 2010_04 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ भगवतीचूर्णिः तहाविहकालादिअसंभवातो । भावा कंठो । अप्प-बहुं । तत्थं पडिवजमाणेगो नाम, जो वट्टमाणसमए तं लद्धिं पडिवजति । पुव्वपडिवण्णगो जो अतीतकाले पडिवण्णो आसी । एक्कक्के जहण्णुक्कोसो कंठो । एत्थ य जत्थ तुल्लाणि पुहत्ताणि एगसंखाए जहण्णुक्कोससंठाणेसु णिहिस्संति । तेसिं एगं लहुतरं पुहत्तं बितितं ततो बहुत्तरं एगादिसु णवपज्जत्तेसु णियमेज्जा । अट्ठसतं बावण्णसतं च बासट्टसतं जातं । पुलागादीणप्पबहुत्तं कंठं । तुल्लाण य पुहुत्तं विसेसो भाणितव्वो । २५।६।।छ।। पंच संयमस्थानानि तेषु ये स्थिता ते तदनुष्ठानात् ताच्छेद्यं लभंते । सामायिकं संयत इत्यादि । पण्णवणा कंठा । सवेदा वेदयंतेगोवसमसेढीतो ठवेतूणं सवेदठाणोवसमखवगत्तेण जाव लोभसुहुमत्तं ण पावति तावा चेव कोततो सुहुमलोभेसु सुहुमसंजतो अहक्खातो तदुवरि दुविहो वि अंतोमुहु० च्छे दोवट्ठावणियपरिहारिता आदि चरिमोसप्पिणि-उस्सप्पिणि तित्थकरट्ठाणेसु णण्णत्थं अहोहितकप्पाचरित्तपदे जहा पुलागा एतेसु मग्गिता तहा एते पुलागादिसु मग्गिजंति । एत्थ य तेसिं ठाणाणि खवगोवसमसेढीतो य अवलोगेत्ता लक्खण भाणितव्वं कंठं । छेदपरिहारिया अण्णत्था संभवतो तित्थे लिगं पि तहेवेसि संजमठाणं ति । संजमठाणाणि असंखेजाणि । एगम्मि एगम्मि अणंतपज्जवा। तहेव सव्वागासपदेसग त्ति । दो सेणीतोगाहा य सामाइयच्छेदोवट्ठावणिताणंतमज्झे य परिहारविसुद्धयस्स पत्तेतासंखठाणिताओ एक्कक्के य चरित्तपज्जवा अणंता, तदुवरि सुहुमट्ठाणंततो अहक्खातस्स । एवं संजमसेणी पत्तेयं एक्कक्कस्स उक्कोस-जहण्ण-मज्झमेहिं तव्वा । तहा सट्टाण-परट्ठाणसण्णिकरिसेण य छ ठाणादिअप्पबहुविकप्पेहिं मग्गेण पाडेजा । जवमझं खेत्तमालिहितुं जवमझं पुणो जतो सव्वपरिणामिणो पायेण मज्झपदेसेसु बहवो उवतोगपदे सुहमो नियमा णाणोवयुत्तो अंतोमुहत्तं तहा परिणामातो कसाओ उवसमखवगसेणीतो जहासंभवं भाणितव्वं । सुहुमस्स एगा सुक्क़ा तिविहो वि परिणामो आदि तियस्स सुहुमस्स कालथोवत्तणातो अवट्ठाणं णत्थि । अहक्खातिहायमाणता णत्थि । जतो सो सुहुमत्तं तदणंतरं लभति । सामातियं एगसमयं पडिणामं पडुच्च तत्थागतो मतो य उक्कोसेणं अंतोमु० । एवं हायमाणए अवट्टितो एगंउरसत्तसमता एगवत्थुअवत्थाणत्तातो । एवं तिण्णि वि सुहुमो वि अवठ्ठाणवजो अहक्खाओ जो केवलं उप्पाडेस्सति दुविहो वि अंतोमुहुत्तं । तस्स अवट्ठाणेगसमए मरति । सुहुमो बंधो मोहणिज्जायू ण बंधति । बंध-वेया कंठा । उदीरणाए जंण उदीरेति तं पुव्वोदीरियं कट्ट, तत्थ पविसति । उदीरणा गता । उवसंपजहणे त्ति । चत्तमाणे धम्मंतरं चतति पडिवजति वा मृत्पिण्डघटधर्मद्वयवत् । एत्थ य खेत्तमालिहितुं पुव्ववण्णितं तं दट्टव्वं । सामाइयसंजमो इत्तिरियं आदितित्थकरततित्थंकराणं 2010_04 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः छेदोवट्ठावणियपरिहारिता तेसिं चेव मज्झिमाणं सामाइयमावकहितं, सुहुमाधाखाता सामण्णा । एत्थ य परिहारा छेदसुहमंतरिता सामायियसंजतस्स । छेदोवट्ठा-वणितो सामाइयसंजमपडिवत्ती । जहा उसभावच्चिज्जा । अजितसामिस्स परिहारितो गच्छं वा पुणो एति । सेसं कंठं। सण्णातो चत्तारि णोसण्णा णाणसण्णा' सुहुमाधखाता णियमा णाणोवयुत्ते । तप्पहाणोवयोगतो भवग्गहणा दोण्ह जहण्णियाए अट्ठपरिहारादीण ज० ए० उ० ति आगरिसा । एक्केक्कस्स एगभवग्गहणिता णाणा भवग्गहणिया य चिंतिजंति । परिणामो सामाइयजोगो तहा जोग्गो तं पडुच्च जहण्णादिलंभो भाणितव्वो । एवं सव्वेसिं जहण्णो छेवीसपुहत्तं जाव सत्तावीसातो छेदमर्हति । परिओ ति, मुह० दो वारा वडति चडोत्तराए चत्तारि । अहक्खातो उवसामतो दो वारा एगभवग्गहणे जहण्णे खवगो एक्कं वा णाणभेदाणि दोण्णि ताव आऊ तेसिं भवग्गहणा। एक्कं एक्कभवे अण्णमति एक्कं एक्कभवे । एत्थ य जस्स जदि भवा तेसुं जो उक्कस्सागरिसा भणिता ते मेलेतव्वा भव्वेहिं । काले त्ति । प० जहण्णेण एगसमयं तं ठाणपत्तमरणपडुच्च सव्वेसिं एगसमतो सा० च्छे० अह० उक्कस्सेण अट्ठसातिरेगवासो पव्वजारिहो । तेहिं पुवकोडी ऊण । छ। परिहारियस्स ते च्चेव सातिरेका अट्ठा, तहा दिट्टिवादो एगूणवीस परितागस्स दिट्टिवादो वरिसो । एतेण ऊणा ऋसभकाले पुवकोडी सुहुमंतो मुत्तमेव । अहुणा बहुत्तेण सामाइयसंजमा महाविदेहे वि सव्वटुं । एवं अहक्खाया केवलिणो पडुच्च छेदस्स उस्सप्पिणीए ततियं समए आदितित्थकरस्स तित्थं अड्डातिजाणिवाससयाणि बितिय तित्थगरसामातितावकड्डिए लहति । उक्कस्सेण ऋसभसामितित्थं अजितसामि मिलति । एतेसु छेदावट्ठावणितो जहण्णुक्कस्सो लब्भति । बहुत्तेणं पण्णासं सागरोवमा कोडीसतसहस्सा परिहारितो अंतिल्लतोसप्पिणिआदिल्ल उसप्पिणि तित्थगरतित्थेसु । एगो तित्थगरमूलं, वितितो तस्स मूले दो वि वाससतिया एगूणतीसा वासेहिं ऊणगाणि दो वाससताणि कजंति सतं वा तत्तालं । एगं जहण्णं, उक्कोसेण उसभकाले दोच्चेव पुरिसजुगाणि, एतेहिं चेव वरिसेहिं पुव्वकोडितो ऊणातो परिहारियस्स च्छेदोवट्ठावणियाणं पुहत्तेणं । दुस्समदुस्समातो एगा दुस्समा उस्सप्पिणी एतो चेवहिँ उक्कस सहस्साउसु सु ४ सु ३ सु २ उस्सप्पिणि ओस्सप्पिणीसु अट्ठारस परिहा जहण्णेणं दु. दु. दु. दु. दु. दु. सव्वे वि चुलसीती।। एत्थत तहेव तित्थगरपायमूले दो पुरिसजुगा उक्कोसेण तहेव उसभस्स, उसभस्स य छम्मासा अंतरालं खेत्तफुसणातो भावो य कंठो । परिमाणे अप्पबहुत्तं पुहत्ततुल्लतए विसेसो जहा पुव्ववण्णितो जहा ऊणाहितत्तेण तहेव दट्टव्यो । अंतिल्लप्प-बहुं । कंठं । सामाइया संजताणं । छ। 2010_04 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णि: I 1 पडिसेवणं दोसालोयणा य आलोयणारिहे चेव । तत्तो सामातारीया तत्थित्ते तधे चेव । पडिसेवणा I कंठं । दसविहा कंठा । आलोयणं आलोएंतस्स दोसा दस । आयरियं आणं पइत्ता आउट्टित्ता तवच्चरणायिणा आलोए ति । अणुमार्णेता पढममेवाहं सरीरादिणा असहू जं दिट्ठ पडिसेवमाणो तमालोएति, बादरं थूलं आलोएति, सुहुमं छण्हं आछण्णं जहण्णपरिवुज्झिज्जति । आउलं महासद्दं बहुजणं बहूणमायरियाणं, अहवा बहुजणमज्झे सव्वं तं सुगीतत्थस्स । तस्से वी जे अवराहा तेण अवलोगेत्ता आलोयणाए जोग्गो । अट्ठविहो आयारो, णाण- दंसण - चरित्त तव वीरियायारो अवधारयं सक्कति । अवधारेतुं आलोएति एत्तस्स पदाणि । ववहारो पंचविहो । आणादि आणादीतोऽऽवीलतो जहा गंडप्पिलोगादीणि णिप्पिणणाए णिद्देसो करेति । तेहिं उवतेहिं तहा तं सोहेति । पमुच्चतो जो तं पायच्छित्तं दाऊण करेति अवाददंसी । अज्जो, अणालोइयस्स बहू अवाताणिज्जवतो उवरिमे बद्धाउमप्पणा करेति । मरणंतणिज्जवतो वा अप्परिस्सादी जं रहसि आलोइया ते अण्णेसिं ण कहति । दस विसामो कंठा । णवरं पडिपुच्छा |छ। पुच्छिए बितियवारा पुव्वगहितेण च्छंदण णिमंतणा अगहिए पाणादीहिं उवसंपया सुत्तत्थादीहिं १०, पायच्छित्तं १० कंठं । तवो दुविहो - बाहिरो अब्भिंतरो । बाहिरतो छव्विहो । एतेसिं च भेदप्पभेदा कंठा । एगावियत्तोवकरणसातिऊण ता जं तं वत्थादि धारेति तम्मि वि ममत्तं णत्थि । जति कोति मग्गति तस्स देति । झंझा पुणत्थय बहुपलावित्तं उक्खित्तचरते अण्णस्स जति भिक्खा उक्खा सामंता घेतव्वा । अण्णखेत्तणिक्खित्ता वा एवं उक्खित्त - णिक्खित्तुं खित्ता वि । असंसट्ट - अलेवाडस्सा तज्जातसंसता जामहितमीसेण महितमीसतादिदिट्ठ एवं पुट्टो जति पुच्छिस्सा भिक्खुलाविया जति मे भिक्खायरो दाहिंति । अण्णतिलातं च दासीणं च संखा दत्तिता एत्तितातो दत्तितातो गहेतव्वा । दत्तितातो गतव्वातो उवरिमात सत्तपिंडेसणातो सुद्धातो परिमितपिंडता एवंतिया पिंडा घराणि वा गंतव्वाणि १० । अंतं दोसीणा दिंतं तं जतो परमत्थमाणं विणस्सति लूहं |छ। सूक्ष्मातं चेव सो गंतुं छ ट्ठाणादीया । ठाणकुहुतालगंडसातं वंककसादी कायकिलेसो गतो । प्रतिसल्लीनता आभिमुख्येन ता भेदप्रतिभेदेहिं कंठा । अब्भिंतरतवो भेदप्पभेदेहिं कंठो । अर्हंतपण्णुत्तधम्मदतो पण्णरसअणंधासणा भत्तिबहुमाणवण्णसंजणेहिंति गुणा । ४५ । सेसं भेदप्पभेदेहिं कंठं । जाव समत्तो उद्देसतो |२५|७|| १०० उववज्जिकामस्स जीवस्सोदाहरणं, जहा एवतो स्वयंकृत्याध्यवसायस्तथा सावपि स्वकृत कर्माध्यवसातो उपपद्यते । नरस्थानादिषु तस्स य गतिकालो कंठो । जं वाउयं वेदेति तं एयस्स भवस्स विग्गहगतीए आत्मरिद्धिकृतकर्म्मप्रभावादेव गच्छंति न परकर्म्मतः कृतानाशाकृतदोषभयात् चतुवा दंडण वेमाणियंता एतेहिं पभदेहिं भाणितव्वा ||२५|८|छ। 2010_04 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः एवं भवसिद्धियजीवो णेरयादिसु पुव्वपदेहिं विसेसितो णेयव्वो वेमाणियंतो २५।९ छ । । अभवसिद्धिएण वि ।२५।१०॥छ। सम्मदिट्ठिणा वि ।२५।११॥ मिच्छदिट्ठिणा वि ।२५।१२॥ पणुवीसतिमं सतं सम्मत्तं ।छ। जीवेणं भंते ! पावद्धी अतीतकाले बंधति वट्टमाणे बंधिस्सति ? एस काले उहितकाले उहितजीवे णव चत्तारि वि भंगा संति । एरिसा जे ते कालिया ते वि बंध ति जो तो अभव्वादि सो जो खवगो भविस्सति तत्थ बितितो भंगो । उवसामतो ततितो । केवलिभवत्थो पाएण भवति । एक्को अट्ठहिं कम्मेहिं अट्ठ तव्वा । णवदंडगसंगहितो एक्के को होति उद्देसो। जीवा य लेस्स पक्खिक, दिट्ठी णाणे तहेव अण्णाणे । सण्णा वेय कसाए, उवतोगे चेव जोगे य ॥१॥ सलेस्सो पावकम्मुणा चतुसु बंधादिसु मग्गिजति । तत्थ जाव भवत्थकेवली ताव लेस्सातो संभवंति । तेण चत्तारि वि भंगा । कण्हलेस्सा भेदे आदिल्ला दो। जतो उवसमखवगेसु सा णत्थि तहा जाव पम्हतो चादिल्ल दुगं । सुक्का चतुसु वि संभवति । सेलेसिसिद्धा अलेस्सा । तेसु अंतिमो कण्हपक्खितो उवट्टस्स पोग्गलपरियट्टस्स जो परतो सिज्झिस्सति तत्थ पढम बितिता अत्थसिद्धी । सुक्कपक्खितो वट्टमाणसमतारद्धो पोग्गलपरियट्टअन्भिंतरसिद्धीतो । तत्थ भवत्थकेवलि अंतपरिग्गहो कतो तेण चतुभंगो । एवं सम्मद्दिट्टी पदे वि । मिच्छत्त-सम्मामिच्छा जातो उवसम-खवगावत्थातो ण पावेंति तेणारिल्ल दुगं । णाणेसु चतुसु वि ठाणाणि चत्तारि, जतो लब्भंति तेण भंगो केवलणाणं णियमा अंतिम भंगे । अण्णाणि उवसम-खवगावत्थातो ण पावंति । अतो आदिदुगं । आहारादिसु चउसु वट्टमाणो उवसम खवगठाणारुहो जेण तत्थ णोसण्णा णाणसण्णाणि य, जति वि वेदणिज्जातो आहारसण्णा, तहा वि तत्थ लोभक्खतातो उवसम्मातो वा गेही पत्थि । अतो दुगमादिल्ल णोसण्णाए णाणस्सण्णाए । जतो सावग साहुणो वि उवउत्ता चउभंगो । सवेदया इत्थि-पुरिस-नपुंसयवेदता जातो । उवसामग-खवगत्ताईण पडिवजंति तेणादि दुगं । अवेदतो अप्पणिज्जयवेदं खवेत्ता उवसमेत्ता वा संजलणकोधादिसु वट्टमाणो लब्भति । तत्थ जो कालो सो तिहा कज्जति । मोहणिजं पावबंधी य लन्भति । तदंतराले तेण अवेदए चतुभंगो । सकसातो लोभेहिं जतो दुविहो सेणिपडिवण्णतो खवगो उवसामगो य । सो य 2010_04 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ भगवतीचूर्णिः सुहुमसंपरागावत्थाए लोभाणु वेदेति, तेण सकसायी लोभकसायी य । तत्थ जो उवसामतो सो ततिय भंगे । खवगो निस्सेसं खवेतुकामो सो चतुत्थभंगे, तेण चत्तारि भंगा । कोहातितिगे आदि दुगमेव उवसमादि असंभवातो अकसादिसव्वोवसंतखवितकसातो वा तेणंतिल्लं दुगं । सजोगिणो जाव सेलेसिं ण पडिवज्जति तेण चतुभंगो । अजोगी सेलेसिसिद्धावत्था तेणंतिल्लो सव्वसिद्धाणं सिद्धताणं, सागाराणागारा संभवंति चउभंगो । “एसो पावेण जीवो उहिउ जीवा य" गाहा-||०॥छ। उही जीवलेस्सा पदं । सलेस्स कण्हादि छ । अलेसेहिं (... वक्खित्तं ... ) सुक्केहिं दुविहं । दिट्ठी, सम्मद्दीट्ठी मिच्छद्दिट्ठी । सम्ममिच्छदिट्ठिएहिं तिविहं । णाणपदं पंचहा-मतिआदि । अण्णाणं तिविहं-मतिअण्णाणादि । सवेदतावेदयसहितं वेदपदं पंचहा । सण्णापदं णोसण्णा सहितं पंचहा । सकसाया सकसायसहितं कसायपदं छव्विहं । उवयोगपदं, सागाराणागारभेदेण दुविहं । सजोगाऽजोग सेस ततिय सहितं जोगपदं पंचहा । एत्थ चतुसु ठाणेसु पंकादिसु जीवो मग्गितो । अहुणा णेरइतो एतेसु चेव मग्गिजति । तत्थ जीवट्ठाणे पढमं सुद्धं णेरतितो ततो चेव लेस्सादिपदविसेसितो भविस्सति । जहासंभवं एतेसिं पदाणं च अत्थजोतणा करेतव्वा । कंठा य चेवं । चउव्वीसा दंडपयादियमादि कातूणं लेस्सादिसूवजोगं तेसु सहितं खंधादिचतुट्ठाणमग्गणा कुज्जा । पढम पावेणं सव्वं णेत्तव्वं । ततो णा(णा)वरणिजादिअट्टमेण तेत्थ पावेण चेव णेरतितो मणिजति । ‘णेरतिए भंते !' त्ति । एत्थ जतो उवसमखवगट्ठाणपरिणामो णत्थि तेण तदुय णिसेहो पढमो भंगो । जो ण सिज्झिस्सति बितिए, जो उवट्टित्ता ततो सिज्झिहिति । एवं सव्वट्ठाणेहिं लेस्सा चारयस्स य विसेसिएहिं दो भंगा । णवरं लेस्सादि पदाणं णिधत संभवि विसेसा जाणितव्वा । एवं मणुस्स वजा जाव वेमाणिता । एतेसु ठाणेसु अप्पणिज्जतो संभवि विसेसा नूणं बंधादिचतुष्कादिदुगे भाणितव्वा । मणुस्सपदं जहेव जीवपदं । उहियं चतुट्ठाण विभाससंबंधे लेस्सादिविसेसगतमभिहितं तहेव णेतव्वं । छ । अधुणा एताणि चेव णाणावरणिज्जे य विपज्जसयि (...) एत्थ जीवादिपदेससव्वं सरिसतं पावेण भाणितूण णवरं सकसादिसु कतो सुहुमाणु वेदविसेसेण । इहं पुण जो छव्विहं बंधी सो णियमा णाणावरणं बंधति । उवसम-खवग-केवलिणो एते एगविह वेदणिज बंधगा आभिभंगदुगगमतो । सेसं तहेव जहा पावोहिए एवं णेरइयादिभेदविसेसाधिया वाणमंतर-णेरइयादिभेदो जहा मणुस्सपदं उहितजीवपदतुल्लं । एवं दरिसणावरणमवि । जीवेणं भंते ! वेयणिजपुच्छा । तत्थादीए जीवपदे आदिभंगो जो ण सिज्झिस्सति । बितितो अणंतरभवसिद्धितो । चतुत्थो सेलेसिपडिवण्णतो । ततितो णत्थि । जतो वेदणिज्जं ण परितूणं पुणो बंधिस्सति । सव्व 2010_04 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः १०३ कम्मक्खतंतातो ण य खीणवेदणिज्जस्स पुणो गहणं सिद्धपडिवादभवातो । एवं बारससु संठाणेसु ततिय भंगविहूणा णेतव्वा । परेसंठाणा कंठा । अलेस्सातो तिसु सेलेसु सिद्धा ते अंतिमभंगगा । वेदणिजं सेस ठाणेसु पढम वितिता । एवं मणुस्सपदं । णेरइतादीणं वेमाणितंताणं पढम बितिय भंगा । वेयणिज गतं । मोहणिज्जं जहा पावं तहेवा विसेसितं । जंतो पावं तं चेव तस्स वा कसायविसेसा पावं । आउय पुच्छा-तं तिभाग छम्मासादि लक्खणो बंधति, सिज्झति । ततेण जीवपदे चतुभंगो । एवं सलेस्सो जाव सुक्कलेस्सो चतुपरिणामसंभवातो चतुभंगो । अलेस्से चरिमो भंगो । कण्हपक्खितो उवट्टोवरि सिज्झिस्सति । विरहो य संभवति । तेणादि ततिता सुक्कपक्खिपक्खितो चतुभंगो । सम्मामिच्छत्त-अवेदा कसातीसु चतुमाणसमया बंधतो आदिमा णत्थि केवलाजोगिसु तो लेस्सित्तातो चरिमो । सेसाणि मणभिहिताणि तेसु चतुभंगं । अत्थावलोगेण लभेजा । णवरं मणपज्जवं णोसण्णा णाणसण्णा एतेसु जो आउयं बंधति ठितितो सो देवलोगं गच्छति । ततो पुणो आउयं मणुस्सेसु बंधितव्वं । तेण बितितो णत्थि । णेरइय दु चतुभंगो । णवरं कण्हपक्खितकण्हलेस्सेसु जम्हा उवट्टित्ता तेण सिझंति । तेण पढम ततिता । सम्मामिच्छत्ते ततिय चतुत्था वतमाणबंधा संभवातो उव्वट्टणाणंतरसिज्झमाणातोयं असुरकुमारो जातो । कण्हलेस्सो वि उव्वट्टित्ता सिज्झति तेण चत्तारि । सेसं णेरतिते सरिसं । एवं जाव थणिताणं । पुढविकाइयाणं सव्वत्थ चतुभंगो । णवरं तेउलेस्सातो देवो उववजमाणो लब्भति । तस्समयं च आउस्स अबंधी तेण तत्थ ततितो कण्हपक्खिए तं पढम ततिया सेसपदेसु चत्तारि । एवं आउ-वणस्सतिसु वि णिरवसेस पुढविसरिसं । तेउ वाउ जओ अण्णं मणुस्सपदं ण लब्भंति । तं च चरिमट्टाणं तेणादिल्ल ततिता बितिय चउत्था णत्थि । बेइंदिय चतुरिंदियंता मणुयत्तं लक्ष्णं वि केवलं ण लब्भंति । अतो पुणो आउतबंधी भविस्सति । तेण पढम ततिया सव्वपदेसु । णवरं आभिणिबोहिय-सुतेसु ततितो जतो सासातणो उववज्जमाणेण तस्समयं बंधति । आउयं पंचिंदियतिरिक्खाणं कण्हपक्खित्ते अंता बंधसंभवातो पढम ततिता । सम्मामिच्छत्ते तस्स वि य बंधा संभवातो मज्झ पडिसिद्धा ततिय चउत्था । सम्मत्ते गाणे आभिणिबोहिय-सुत-ओहिसु जो उवउत्तो मरति सो ण वद्धायूसो णियमा देवलोगं गंतुं मणुस्साउबंधी तेण वितितो णत्थि । अंतिल्लो जे मणुस्साउगं मणुस्सेसु बंधितुं तत्थ य चरिमो सो लब्भति । एतेसु ठाणेसु मणुस्सा जहा जीवपदायुगं तहेव, णवरं आभिणिबोहितादिसु कंठेसु । जो बद्धत्ते पढम ण भवति सम्मत्तलंभातो सो देवलोगगामि त्ति । ततो मणुस्सायू तेण वितितो पत्थि । देवा जहा असुरा । एवं आउयं सम्मत्तं । नाम गोत्तं अंतरायं जहा णाणावरणिजं । पंचवीसपदेसु एक्कक्के णेरइयादिसु 'जीवा य लेस्स पक्खित्त' गाहा । कंठा 2010_04 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ जीवाय लेस पक्खित दिट्ठी अन्नाण नाण सन्नाओ ar कसा उपयोग - योग एक्कारस वि ठाणा ( भ० पृ० - १०७२ ) एय विसेसिएसु णाणावरणं भणितं तहा एताण वि पढमउद्देसतो बंधिसुत्ते गमिए । २६|१|छ || अणंतरोववण्णतो जो रइय पढमसमयवत्ती विग्गहा विग्गहाए गतीए गंतुं सो पावेसु छिज्जति । एत्थ पढम वीतिया सेसत्था संभवतो । एवं लेस्सादिसु कंठं । एत्थ सम्मामि० मण - वइजोगाण संभवंति । अजाता चेव । एवं जस्स जम्मि पदे पडिसिज्झति ते तस्समवत्तिणो ण संभवति । एवं पावेणं चउवीसा पत्तेय बारसलेस्साट्ठाणविसेसिया तहा सत्तसु तव्वं । अ०पु० ए सव्वत्थ तरिओ मज्झ पडिसिद्धो । जतो तम्मि समए आयुस्स अबंधी णेरइयादिवेमाणियंतेसु मणुयाणं सव्वलेस्सादिविसेसियादिविसेसियाणं । जतो चरमसरीरो वि संभवति । अतो अंतदुग भंगो । कण्हपक्खितो चरिमो ण भवति । तस्स ततितो चेव । जेसु तपडिसिद्धा अणंतरोववण्णगाते इहं पि ता णत्थि | बितितो | २६| २|छ। भगवतीचूर्णिः पढम समतोववत्ति वज्जा समता वितियादिणो परंपरा लब्धंति । एस य जहा ओहिउद्देसतो तहेव पावादिणवट्ठाणपत्तेयजीवा य लेस्सपक्खियादिबारसय विसेसितो णिरवसेसो भाणितव्वो । २६ | ३ |छ || ओगाहो खेत्तेण विणि । जत्थ सरीरखेत्ते पढम पढमयावगाहं एसो य अणंतरोववण्णो, जहा तहा णिस्सेसो, सो मण - वइ- सम्ममिच्छादतो णेरइयपदेसु मणुस्सपदेसु य ण संभवंति । ते सव्वे भाणितव्वा । भंगा य तव्वा |२६||४|| परंपरोगाहो बितियादिसमयपवट्टमाणखेत्तकत्ती एसो य ओहिउद्देसयसरिसो ||२६|५|छ || अणताहारतो उववत्तिठाणे सरीरजोग्गपढमसमयपोग्गलगहणवत्ती सो जहा अणंतरोववण्णतो तहेव भाणितव्वो । संभवासंभवलेस्सादि विसेसितो २६ | ६ |छ । परंपराहारतो वितियादिसामातिकाहारतो ओहितो जहा | २६ | ७|छ । अणंतरपज्जंततो पंच पज्जत्ति - पज्जत्तसमयसंपुण्णो सो अणंतरोववण्णगो जहा, जइ विय पज्जतीतो अब्भिंतरातो चत्तारि संति तहा वि तातो लेस्सादि वि पदेसु णत्थि । मणपज्जत्ती य णवरं णिप्फण्णा घट इव उत्तरकालंतीए पयोयणं कज्जतीति । तेण जहाणंतरोववण्णतो ॥२६|८|छ॥ परंपरपज्जत्ततो तातो चेव पज्जत्तीतो । बितियादिसमयसंपुण्णवत्तिणीओ उस्सेसं कंठं ॥ २६ ॥ ९ ॥छ । 2010_04 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः १०५ चरिमो भवचरिमो य । एत्थ भवचरिमग्गहणं । जो तं पुणो भवं ण पाविहिति सो घेप्पति । एस प० उहियसरीसो । पावादिसु णवसु पत्तेय चतुव्वीसविसेसेण बारस य संबंधी णेतव्यो ।२६।१०॥छ। अचरिमो जो पुणरवि तं भवं गेहेस्सति । एत्थ पढम बितिया जातो, पुणो आगमिस्सति बितीय भंगो य बितीयभवातो परतो दट्ठव्वो । एवं सव्वठाणेसु जावाणागारोवजुत्ता मणुस्सेसु ओहिय पढम सरिसो। णवरं जत्थ तस्स चउभंग तत्थेवस्स तिण्णि उवसामावत्थाए घणं बंधति । वट्टमाणे तस्स य इमाणि वीस चतुभंगठाणाणि । जिय सुक्क-सुक्कपक्खियसम्मद्दिट्टी चतुहिं णाणेहिं णोसण्ण-अवेदकसाय-जोग उवयोगे चतुभंगो । अकसातिम्मि जतो तव्वेलं ण मोहं बंधति तेण ततितो, अचरिमो कट्ट, अलेस्सादयो णत्थि । सेसेसु दुवे भंगा । आदिमा णाणावरणिजे सकसाति लोभकसातिसु जतो बंधगो वट्टमाण सामातिगो तेणं दुगे चेव भंगा, एस य चतुभंगाए मज्झे आसीतुं अवणेतुं सेसाणि(अ)ट्ठारसपदाणि चतु भंगयाणि । एवं दरिसणावरणं पि वेदणिजे सव्वजीवसरीरं संभवति ताव वेयणिजमत्थि त्ति तेणा इमा । सेसं कंठमचरिमताए णेतव्वं । मोहं पावसरिसं आउ पढम ततिया सो णियमा पुणो तट्ठाणे आगमिस्स सम्ममिच्छत्तवेलाए ततितो णियमा ण बंधति आउ तं पुढवि, आउ, वरुण चेव तेउल्लेस्सोववत्ति तद बंधाउत्तं पडुच्च ततितो, विगलिंदियाणं सासातण तव्वेलाबंधत्तं पडुच्च ततितो मणुस्सेसु विसेसो उवसामगं पडुच्चाकसायि ततित भंगो । बंधिसतं सम्मत्तं ।छ।। जीवाणं भत्ते ! पावं कम्मं किं करेसु आदि जीवकर्तृका कर्मक्रियाभूतादिविशेषिका वक्तव्या। जीवा किं अतीतकाले कृतवन्त: कुर्वन्ति करिष्यन्ति ? पावादिसु णवसु दंडएसु जीवणेरतियादतो जीवलेस्सादिविसेसिया जहा बंधिसते एक्कारसउद्देसया तहेवेत्थं पि भाणितव्वा णिस्सेसा ।११।छ जीवाणं भंते ! पावकम्म कहिं समणिजिणिसु आदि समन्जिणिसं आर्जनं कम्मस्स गहणं । उपादाणं अप्पिणी करणं । समायरणं समाचरणं, पज्जायसद्दो । अहवा समज्जियस्स जो पावो समज्जितं च तं वेदितं च कहिं ? पु० पज्जायपक्खे समणोत्थया उपादणमेत्तमेव । सव्वे वि ताव होज तिरिक्खजोणिएसु, एत्थ तिरिक्खजोणि सव्वजीवाणं मातियाययणं बहुत्तातो सव्वे य सेसणेरतियादतो तेसु उववण्णपुव्वा अणंतयसंबंधरासि सहगता होतूणं । अहवा जतो वट्टमाणसमया दिट्ठरासिणा तिरिक्खजोणिए पिल्लेवणं णत्थि । सेसेसु संभवति । तेण सव्वे वि ताव होजा तिरिक्खजोणीए पढम भंगो । अहवा सव्वसद्दो तिरिक्खजोणीगतवट्टमाण-भूत-भविस्स जीवविरुतो णेतेण सव्वे वि तावत्तत्ति । जे तिरिक्खजोणिगता ते सव्वेव संबज्झति । सेसेसु सेस भंगा। सापेक्खमेवेतं सेसभंगेहिं सुत्तंततो बितितो अहवा तिरिय-णेरतिएसु 2010_04 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ भगवतीचूर्णि: एवं दुग संजोगे तिण्णि तिग संज़ोगे तिणि । सव्वेसुं एगो । सव्वे अट्ठ भंगा । एवं तिरिक्खजोणिं अमुयंतेहिं अट्ठवतिरित्ते । तव्वतिरित्तभंगा ण संभवंति । तेसिं थोगावयवत्तत्तातो एते अट्ठभंगा पावेण चतुवीसा दंडण णेस्सादि बारसंग विसेसिएण भाणितव्वा । जहा बंधिस्सतपढम उहियुद्देसए तहेव, नवरमेत्थं अट्ठ ठाणाणि कज्जंति । तहा णाणावरणादिसु अट्ठसु पढममुद्देसगो | १ | छ बितियो अणंतरोववण्णगेसु । ततितो परंपरेसु । अणंतराहारए पंचमो । परंपराहारए छट्टो । अणंतरोगाढए सत्तम । परंपरोगाढए अट्ठमो । अणंतरपज्जत्तए णवमो । परंपरपज्जत्तए चरिमे दसमो । अचरिमेयं । एवं एगारस उद्देसगा । पत्तेयं णवग दंडग संगसंगहिता एक्क्कदंडतो पंचवीसपदविसेसितो पदं बारसद्वाणं लेस्सादिविसेसितं अट्ठसु तिरिक्खादिठाणेसु णियमं संभवि जहा जुज्जमाण कंठाभिहितं भाणितव्वं । कम्मसज्जिणण सतं सम्मत्तं |छ । जीवाणं भंते! पावकम्मं किं समयं पट्टवियिंसु ? पुच्छा । पट्ठवणं कम्मस्स वेदणा रूपेण प्रथम स्थापनं । वेदयितुमारद्धमिति यावत् । समयं बहवंपिं किं युगपदेकस्मिन् समये वेदनां कर्मण आरंभंते ? एकस्मिन्नेव निष्टां नयन्ति । अथवा बितियो भंगो समयं पट्टवेंति । विसमंतस्स अंत करेंति । अथव विषममारभंते समयं णिट्ठवयंति । एक्कम्मि काले अथवा विषममेव प्रारंभन्ते विषममेव निष्टापयन्ति ।छ। तत्थ चउसु वि ठाणेसु संति संभवंति जीवा उहिता के पुनस्त इति । तत्र कारणेयं ग्रन्थोपक्रमः यः एवं विधाये समायुष्कस्समो समोपपन्नगाश्च ते पढम भंगे । एवं यथासंख्यं ग्रन्थो योज्यः । चतुर्वा अत्र अर्थावलोकनेन पर्यवलोकनेन च व्याख्या कर्तव्या । तथायं ज्ञायते भंगार्थः । एवं उहिया जीवा चउसु ठाणे ठाविता । अधुना एवं सलेस्सादिया उवयोगंता । एतेसु चेव चतुसु भाणितव्वा । उहियागया रयियादीणं वेमाणियंताणं लेस्सादिविसेसियाणं चतुसु ठाणेसु समयादिसु देवे णं जहासंभवं मग्गणा तहा असु णाणावरणादिसु णेतव्वं । पढम उद्देसगो | १ | छ || अंतरोववण्णगे वि णवदंडगसंगहितो । णवरं एत्थ दो आदिल्ला भंगा भत । पडिसेहेतव्वा । एत्थ कारणं णातव्वं । एवं चतु अणंतरोववण्णगेसु दो भंगा से भवे सेसो य कंठो । सत्तसु उहियादिसु सेसेसु जहा ओहितो तहेव चतुट्ठाणसंभवी भाणितव्वो । एवं एक्कारसबंधिसततुल्ला । कम्मपट्टवणं सतं सम्मत्तं । कति णं समोरणा ? पुच्छा । समोसरणं । जीवाणं णाणापरिणामतुल्लताए एगत्थमलगो संगता समोसरणं । एस चैव परिणामविसेसो वा ताए भण्णति पण्णवगेण वा । अहवा जे एते परिणामवादिणो तेण 2010_04 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः १०७ ते वादिणो । तत्थ सव्वसंसारिणं णियमा चत्तारि किरियादीणि कंठाणि । तत्थ किरियावादो अस्तित्ववादो भावानां अकिरियावादो नास्तित्वं भावानां अण्णाणवादो भावानामेवं ज्ञानं प्रतिसिद्धा तेन ज्ञायते । कथमप्येष भावो । प्रमाणानामसम्पूर्ण विषयवर्तित्वाद्विकलता तद्वैकल्पे चेव वस्तुनो परिज्ञानमज्ञानं न सर्वथा ज्ञाननिषेधो अज्ञाता एव पदार्थाः । वैनयिका विनयप्रधानाः स्वर्गापवर्गाद्यर्था मातृपित्रादिविनयाधीना इत्येवं वादिनस्ते इति । अत्र च स्वसिद्धान्तगं बहुवाच्यं । अनया तु दिसा नयोत्थानप्रकल्पेन सभेदो वादिगणो विक० निरूप्यः । जीवाणं पुच्छा । तत्र यथावस्थितद्रव्यपदार्थादिधर्मकदंबकनिरूपणा क्रियावादिनो सम्यग्दृष्टय एव । तद्विपरितो मिथ्यादृष्टयो क्रियावादिनः । शेषं द्वयं पूर्वोक्तं । गाहा य - अत्थि त्ति किरियावादी, वदंति णत्थि त्ति अकिरियावादी । अण्णाणी अण्णाणं वेणइया वेणइयवादं ॥१॥ एवं जीवप्रश्ने चत्वारोऽपि विकल्पाः संभवंति । एवं सल्लेस्सादिया एतेसु वादेसु मग्गिजंति । संभवतो कंठं । अलेसो सेलेसि सिद्धो सो नियमा यथा द्रव्यादिपदार्थागमकत्वात् क्रियावादी । एत्थ य जाणि सम्मद्दिट्टिट्ठाणाणि नियमेण ताणि किरियावादे खिप्पंति । मिच्छद्दिट्टी अण्णाणादिसु भाणितिओ । उभयत्थ सामण्णत्तातो । सण्णामिच्छादिम्मि सो ण य णाणे ण य विपरीते अवधारिजति तेण तेसु णत्थि ततेसु ओहियागता । णेरइया चतुसु ठाणेसु कंठा । अहुणा विसेसिया कातुं चतुसु ठाणेसु संभवतो कंठं । जावोवजोग त्ति । एवं असुरा वि पुब्वि चतुसु, ततो लेस्सादिउवयोगंतविसेसिया चतुसु चेव कंठा । एवं जाव थणिया । पुढविक्काइया जाव सव्वचतुरिंदियविगलिंदिया तेसिं विपरितत्तं वा अण्णाणं णोणाणविणया पडियदंतं च दंसणं हाणिजोगातो ण मग्गितं । एवं सव्वलेस्सादिसु संभवतो भाणितव्वं । पंचिंदियतिरिक्खा जहा णेरतिया मणुयपदं जहा जीवपदं । सेस देवा जहा णेरइया ।छ। अहुणा किरियावादिनो आयुयं कहिं पि करेंति जे एतेसु वटुंति ते किमायुं णिव्वत्ते त्ति ?। तत्थोहिएसु किरियावादिनो देवा मणुसाउं, मणुता देवायुं । सेस णिसेहो । अकिरिया चत्तारि वि । अण्णाण वेणयीका वि चत्तारि । पुणो लेस्सादिविसेसिया भाणितव्वा । कंठं । णवरं जे किरियावादिनो कण्हलेस्सा मणुस्सोववत्तीए लब्भंति ते असुरादयो देवा तहा सम्मद्दिट्टीमणुस्सा तेरिच्छा कण्हलेस्सा परभवियाउयं बंधकालेण पडिवजंति । सम्मदंसणपरिमाणगरुयत्तातो जातो देवोवत्तियातो तासु ठिच्चा करेंति । एवं ओहिया चतुट्ठाणे जुत्ता लेस्सादि विसेसिया आउएण मग्गिता छ।। 2010_04 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ भगवतीचूर्णिः अहुणा णेरतिता चतुट्ठाणा जोगिणो सामण्णा मग्गित्तूण ततो वि से लेस्सादिविसेसिया मग्गिजंति । कंठं । एवं चतुवीसा दंडएण तव्वं । ओहिता ततो लेस्सादिविसेसिता कजंति । कंठा य । 'किरितादिवादभवसिद्धिय पुच्छा' । तत्थ भवसिद्धिता चतुसु वि ठाणेसु परिणमंति । अभवसिद्धिया अकिरियादिसु चतुसु णियमो । एवं एते पत्ते लेसादिपत्तिहिं विसेसिया । तहा णेरइयादि भवसिद्धियाऽभवसिद्धियालावगेण कंठा भाणितव्वा । पढमो उद्देसतो सम्मत्तो छ। चूर्णंतरा लिख्यते । खुड्डा जुम्मा णेरइता कतो उववजंति ? यदुक्तं । चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा । एवमाद्या नारकाः कुत उत्पद्यन्ते ? यो हि जुम्मो य महंतो य सो महंतजुम्मो । जो पुण खुड्डतो चेव जुम्मो सो खुड्डजुम्मो । जहा चत्तारि अट्ठ बारस एवमादि । एवं ते जोगादयो वि भाणितव्वा । उववात सतं छ ॥३१-१। एवं उव्वदृणा सतं ।छ।।३२ः। एकेन्द्रियशतकग्रन्थत एवसु ज्ञातं ॥३३॥ सेढिसतं लोकनालिं प्रस्तीर्य भावनीयं । गाथाश्चानुसतव्याः । सुत्ते चतुसमतातो णत्थि गती तु परा विणिद्दिट्ठा । (जुज्जतिय पंच समया जीवस्स इमा गती लोए ॥१॥) (जो तमतमवियदिसाए समोहतो बंभलोगविदिसाए । उववजती गतीए सो नियमा पंच समताए ॥२॥) (उजुयायतेगबंका । दुहतो बंका गती जं विणिद्दिट्टा । जुज्जति य तिचतुवंका वि णाम चतुपंचसमताए ॥३॥ उववातो भावातो ण पंच समयाधवा न संतावि । सेणिता जह चतु समता महल्लबंधे ण संता वि ॥४॥ सेढी सतं समत्तं ।छ।। कडजुम्म कडजुम्मेगिंदियाणं कतो उववजंति ? यदुक्तमेकेन्द्रियानामसंख्येयकडजुम्मा येपिवाहार चतुष्कतास्तेपि च कडयुग्माः । ते एतावंत एकेन्द्रिया ये संख्येयाश्च ये कडयुग्माः । अपहारश्च कडजुग्माः । ते कुत उत्पद्यन्ते ? यथा षोडशकडजुग्माते जोगा उत्पद्यन्ते । सुहुमसाधार(ण) चतुष्कका कडजुग्माः । अपह्रियमाणे च तत्र येऽतिरिक्ताः एकेन्द्रियास्त एतावंत एकेन्द्रियाः कुतो यस्य एवंविधा संख्या राशेः सत्प्रमाणा। यथा एकान्न(व) विंशतिः कडयुग्मबादरा उत्पद्यन्ते । ये तेषामपहारः । कथं ? कडयुग्मापहृतावशिष्टौ च द्वौ 2010_04 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवतीचूर्णिः १०९ यस्याः संख्यायाः सः कडजुग्मबादरः । तत् संख्याः प्रमाणाः कुतः यथाष्टदश कडयुग्मकलिर्यस्याः संख्यायाश्चतुष्केणापहारेण एकाग्रे भवन्ति ? या कडयुग्मकलिः तत् संख्या प्रमाणाः कुतः यथा सप्तदशकोंग कडयुग्मा यस्याः संख्यायाश्चतुष्केणापहारेणापहृते यावन्तोपहारश्चतुष्ककास्तेषां पुनश्चतुष्केणापहारेण त्रिरग्रता भवति । एते (षां) योगः कडयुग्मः । यथा द्वादश द्वादशानां चतुष्केणापहारेण लब्ध्वा अपहारचतुष्ककास्त्रयः तेषां त्रयाणां चतुष्ककेनान्येन पुनहियमाणे त्रीण्यग्रे भवन्ति । यस्याः संख्याया एवमपहारः । अनेनापहारेणोपलक्षिता कुत उत्पद्यन्ते ते योगतो योगः। यथा पंचदश पंचदशानां चतुष्केणापहारेण त्रयः शेषा लब्धास्त्रयः । ये ते लब्धास्तेषां पुनश्चतुष्कापहारः क्रियमाणस्त्रिरग्रः । अपहारश्चतुष्ककास्त्रिरग्राः पूर्वसंख्या च त्रिरग्रतो एवंविधा संख्या तत् प्रमाणा कुत उत्पद्यन्ते ? तेयोगबादर यथा चतुर्दश चतुर्दशानां चतुष्केणापहारेण द्वावग्रे ये च भागापहृतचतुष्कका । यथा त्रयः तेषां पुनश्चतुष्केणापहारेण त्रिरग्रता पूर्वस्य च राशेद्वावग्रेय एवंविधो राशिस्तत् संख्या प्रमाणा कुत उत्पद्यन्ते । एवं नेयं । छ। येषां प्रथमश्च समयः संख्यया च कडयुग्मकडयुग्मास्ते कुत उत्पद्यन्ते ? ते द्वित्र्यादि वा समयाः येषां उत्पन्नानां संख्यया च कडयुग्मं कडयुग्मास्ते कुतः येषां वर्तते ? चरमसमयः संख्यया च कडयुग्माः अचरमो वा समयः । यदुक्तं द्वौ त्रयो वा चत्वारो वा येषां शेषः सम्यग् एव कडयुग्म कडयुग्मास्ते कुतः पढम समयकडजुम्मेंगिदियाणं कतो उववजंति । कडयुग्मसंख्या उपपातेन प्रथममनुभवन्ति । प्रथमश्च समयो वर्तते ते एकेन्द्रियाः कुत उपद्यन्ते ? न प्रथम: समयो वर्तते । कडयुग्मकडयुग्मसंख्यां प्रथमेवानुभवन्ति । तेषां वा चरमसमयकडयुग्मकडयुग्मसंख्याया प्रथममनुभवन्ति एवमचरमः । इदानीं चरमाः कडयुग्माकडयुग्मा संख्यामनुभवन्ति । चरमश्च समस्त्यं कुतः ।छ। एवमचरम: एगेंदियमहाजुम्म सतं ।छ। शेषाणि शतानि अनेनैव लक्षणेन गमनीयानि । लोगागासपदेसा धम्माधम्मेगजीवदेसा य । दव्वट्ठिता णिगोता पत्तेया तेसिं जीवाणं ॥१॥ ठिति-बंधज्झवसाणा अणुभागा जोगच्छेदपलिभागा। दोण्ह य समाण समया असंखपक्खेवया दसउ ॥२॥ सिद्धा णिओगजीवा वणस्सई कालपुग्गला चेव । सव्वमलोगागासं छप्पएणंतपक्खेवा ॥छ॥छ।। इति श्री भगवतीचूर्णि परिसमाप्तेति ॥छ।छ।। इति भद्रम् 2010_04 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० भगवतीचूर्णिः सुअ-देवयं तु वंदे जीइ पसाएण सिक्खियं नाणं । बिइयं पि बतवदेविं पसन्नवाणिं पणिवयामि ॥छ।। छ। ग्रन्थाग्रंथ ॥७००७ (६७०४) (३५९०) ॥छ। श्री।छ।छ। यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया। यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥ ॥छाछ। अक्षर-मात्र-पद-स्वरहीनं व्यंजन-संधि-विवर्जितरेफं । साधुभिरेव मम क्षमितव्यं कोऽत्र न मुह्यति शास्त्रसमुद्रे ॥छाछ।छ। शुभं भवतु । छ । छ । छ। शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवतु भूतगणाः । दोषा: प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥ संवत् १४९५ वर्षे श्री खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरिगुरूणां सदुपदेशेन श्रीमालवंशे भांडियागोत्रे श्री सा. छाडा भार्या साच्चानी मेघू तत्पुत्र श्री सा. समदा श्री सा. काला सुश्रावकाभ्यां श्री सूदा श्री हेमराज प्रमुख पुत्र-पौत्रादिपरिवारकलिताभ्याम् । 2010_04 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Our Latest Publications (2000-2001) Tattvartha Sutra - (Translated into English by Dr. K.K.Dixit) (2000), 300.00 Kavyanusasanam (With Critical Introduction & Guj. Tranсlation) Ed. Dr. T.S.Nandi (2000) 480.00 Tarka-Tarangini - Ed. Dr. Vasant G. Parikh (2001) 270.00 Madhu-vidya : collected papers of Prof. Madhukar Anant Mehendale (2001) 560.00 Dravyalankar with Auto commentary - Ed. Muni Shri Jambuvijayaji (2001) 290.00 si. 1.8. US iuled uuellt 464814-4 uurile - RMES : ul. geid sisal (2004) 650.00 Temple of Mahavira Osiaji - Monograph by R.J.Vasavada (2001) 360.00 Abhidha - Dr. T.S.Nandi (2002) 60.00 The Temples in Kumbhariya - M. A. Dhaky & U. S. Moorti 1200.00 SAMBODHI The Journal of the L.D.Institute of Indology : (Back Vol. 1-21) Per Vol. 100.00 Current Vol. 22 (1999), Vol.23 (2000), Vol. 24(2001) per vol. 150.00 Our Forthcoming Publications Sastravarta samuccaya with Hindi Translation, Notes & Introduction - Dr. K.K.Dixit Sivaditya's Saptapadarthi - with a commentary by Jinavardhana - Ed. Dr. J.S.Jetly