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________________ सम्पादकीय प्रतिपरिचय प्रस्तुत भगवतीसूत्र चूर्णि के संशोधनकार्य में मैने कुल पांच प्रतियों का उपयोग किया है। ये पांचों प्रतियाँ कागज पर लिखी हुई हैं। भगवतीसूत्र चूर्णि की ताड़पत्रीय प्रति कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं। इन पांच प्रतियों में कुल चारप्रतियाँ श्री हेमचन्द्राचार्यज्ञानभण्डार (पाटण) की हैं। एकप्रतिलालभाई दलपतभाईभारतीयसंस्कृतिविद्यामंदिर अमदाबाद के ज्ञानभण्डार की है। इन पांचों प्रतियों में केवल एक ही प्रति प्राचीन है। जिसके कुल पन्ने ५८ हैं। साइज १२" -६" है। यह श्री हेमचन्द्राचार्यजैनज्ञानभण्डार पाटण वाडी-पार्श्वनाथ की है। पत्र ५ से १०६) डाभडा नं.६५३९ है। इसका लेखनसं. १४९५ है। खरतरगच्छीय आचार्य श्री जिनभद्रसूरि के सदुपदेशसे भाण्डियागोत्रीय श्रीमालवंशज छाडा और उनके परिवार ने इसे लिखवाया, जिसकी प्रशस्ति इस प्रकार है। "इति श्री भगवतीचूर्णि परिसमाप्तेति । छ । छ । इति भद्रम् । सुअदेवयं तु वंदे, जीइ पसाएण सिक्खियं नाणं । बिइयं वि बतवदेविं, पसन्नवाणिं पणिवयामि ॥ छ। ग्रन्थाग्रन्थ ७००७ ॥ छ । श्री। छ ॥ छ । यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥ छ । छ। अक्षर-मात्रपदस्वरहीनं, व्यंजनसंधिविवर्जितरेफं । साधुभिरेव मम क्षमितव्यं कोऽत्र न मुह्यति शास्त्रसमुद्रे । छ । छ। छ। शुभं भवतु । छ । छ। छ । शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषा प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ।। “संवत १४९५ वर्षे श्री खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरिगुरुणां सदुपदेशेन श्रीमालवंशे भांडियागोत्रे श्री सा. छाडा भार्या सच्चानी मेघू तत् पुत्र श्री सा. समदा श्री सा. काला सुश्रावकाभ्यां श्री सूदा श्री हेमराज प्रमुख पुत्रपौत्रादिपरिवारकलिताभ्याम् ।" ____ मैंने इसी प्रति के आधार से ही प्रस्तुत भगवतीचूर्णि का लेखन सम्पादन किया है। शेष चार प्रतियों का लेखन भी इसी प्रति से हुआ हो ऐसा प्रतियों के वाचन से लगता है। क्योंकि इस प्रति के प्रतिलिपिक ने जो लेखन में भूले की है अन्य प्रतिकारों ने भी वही भूले की हैं। साथ ही प्रतियों में सर्वत्र प के स्थान में ए य व, ए के स्थान में प, च के स्थान में व और व के स्थान च / स के स्थान में म और म के स्थान में स इस प्रकार च व ज्झ ब्भ प उ ओ आदि अक्षरों का व्यत्यय सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है । संख्या के विषय में तथा भंग के कोष्टक में भी एक रूपता दृष्टिगोचर नहीं होती। ग्रन्थान के विषय में भी ऐसा ही हुआ। कहीं पाठों को आगे पीछे भी लिख दिया गया है। हस्तलिखित प्रतियों में सर्वत्र ऐसा ही पाया जाता है। लेखन Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Churni
Original Sutra AuthorSthaviracharya
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages122
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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