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सामान्य अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं का स्वरूप......43
विधि
• भैरवी मुद्रा एक अत्यन्त सरल प्रक्रिया है। तंत्र शास्त्रियों के अनुसार ध्यान के आसन में बैठते समय गोद में एक हथेली पर दूसरी हथेली को रखना भैरवी मुद्रा है। जैन आम्नाय में इसे ध्यान मुद्रा के नाम से उपचरित किया गया है। . . यदि भैरवी शब्द के रहस्यपूर्ण अर्थ पर चिंतन किया जाये तो दोनों में नाम वैषम्य होने पर भी स्वरूप और उद्देश्य में एकरूपता ही प्रतीत होती है।
. भैरव शब्द शक्ति समूह, शक्ति स्रोत का वाचक है, जबकि ध्यान साधना में आरुढ़ व्यक्ति भी एकाग्रचित्त हो अर्जित शक्ति का संचय करता हुआ आवृत्त शक्ति को निरावृत्त करता है।
. इस मुद्रा को अनेक लोग अनजाने में स्वाभाविक रूप से भी करते हैं।
यह मुद्रा शरीरस्थ निम्न चक्र आदि पर अद्भुत प्रभाव डालती हैं जिससे व्यक्ति का जीवन निरोग एवं दोष मुक्त बनता है
चक्र- मूलाधार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिप्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, स्नायु तंत्र, निचला मस्तिष्क। 7. नौमुखी मुद्रा
संस्कृत भाषा के 'नवम्' शब्द से 'नौ' बना है। नौ शब्द नव का संख्यावाची है। मुखी का अर्थ है- द्वार अथवा रास्ता। यहाँ नौमुखी शब्द का वाच्यार्थ नौ द्वारों को बन्द करना है। __ प्रत्येक मानव शरीर में नौ द्वार हैं जिनसे हम भौतिक एवं सांसारिक अनुभव प्राप्त करते हैं तथा ऐच्छिक विषय-वासना की परिपूर्ति करते हैं। वे नौ द्वार इस प्रकार हैं- दोनों नेत्र, दोनों कान, दोनों नासारन्ध्र, मुँह, गुदा द्वार और जननेन्द्रिय।
इन नौ द्वारों के अतिरिक्त मानव शरीर में एक दसवाँ द्वार भी है जिससे आत्म साक्षात्कार अथवा मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। इसलिये इसे ब्रह्म द्वार या मुक्ति देय मार्ग कहा जाता है। हमारे प्रतिदिन के क्रियाकलाप उक्त नौ द्वारों से प्राप्त अनुभवों पर आधारित होते हैं क्योंकि ये सदैव खुले रहते हैं। जबकि दसवाँ द्वार बंद रहता है। नौ मुखी मुद्रा में इन बाह्याभिमुखी एवं पापास्रवजनक द्वारों को कुछ समय के लिए बन्द किया जाता है। इस क्रियाभ्यास से दसवें