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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ...109 अभ्यास को बंद आँखों से करें। इस तरह शाम्भवी मुद्रा का प्रयोग द्विविध रूपों में किया जाता है 1. बहिरंग और 2. अंतरंग। अंतरंग शाम्भवी मुद्रा अधिक प्रभावपूर्ण एवं लाभदायी है क्योंकि आँखों के बन्द होने के कारण ज्ञान चेतना के बहिर्गमन की संभावना कम हो जाती है। फलस्वरूप
आत्म निरीक्षण की प्रक्रिया का अभ्यास निरन्तर प्रवर्धमान रहता है। 8. प्रारम्भ में जितनी देर संभव हो सके उतना अभ्यास करें। अभ्यास करते हुए धीरे-धीरे समय सीमा बढ़ायें ।
सुपरिणाम
• भौतिक स्तर पर यह मुद्रा शारीरिक आरोग्यता प्रदान कर आँखों के स्नायुओं को मजबूत करती है ।
• मानसिक स्तर पर मन की शान्ति में अभिवृद्धि होती है तथा चिन्ता एवं तनाव का निवारण होता है।
• आध्यात्मिक विकास के लिए यह एक शक्तिशाली क्रिया है। इस क्रियाभ्यास से आज्ञा चक्र ( भ्रूमध्य भाग) जागृत होता है।
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घेरण्ड संहिता के अनुसार जो साधक निष्ठापूर्वक शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास करता है वह शिव (परमात्म) स्वरूपी हो जाता है तथा देवेन्द्रों- नरेन्द्रों से पूजित, ब्रह्मा-विष्णु-महेश की शक्तियों से सम्पन्न निराकार स्वरूप का साक्षात्कार कर लेता है। महर्षि घेरण्ड के मत से शाम्भवी मुद्रा का ज्ञाता पुरुष साक्षात ब्रह्मरूप ही होता है। 69
• इस मुद्रा के दीर्घाभ्यास द्वारा वैयक्तिक अहंकार से घुटकारा पाया जा सकता है।
• इस मुद्रा के सम्यक प्रयोग द्वारा चैतसिक सजगता को इतना व्यापक बनाया जा सकता है कि वह हर वस्तु में निहित विशिष्टता एवं उसके सार तत्त्व को समझ सकें, पहचान सकें, अनुभूत कर सकें। इसके अतिरिक्त यह भी ज्ञान हो जाता है कि हमारा वास्तविक स्वरूप मात्रा इतना ही नहीं, जितना हम समझ रहे हैं।
• इस अभ्यास से मन और प्राण संयमित होते हैं।
• वेदशास्त्र में इस मुद्रा को कुलवधु के समान गोपनीय माना गया है। इसे वेद पुराण आदि शास्त्रों के समान प्रकाशित करने को अनुचित कहा है। 70