Book Title: Yogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 210
________________ 152... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग इस बंध को करते समय भुजाओं को सीधी करें, ताकि वे जकड़ जायें। गर्दन के भाग पर प्रबलता से दबाव रहें, कुंभक के वक्त इष्ट का स्मरण करें। जप- जप का शाब्दिक अर्थ है आवर्तन या चक्र। वह शुभ क्रिया जिसमें किसी एक मंत्र को उसकी एक निश्चित संख्या पूरी होने तक दोहराया जाता है जाप कहलाता है। नादयोग- संस्कृत के 'नद' शब्द से नाद बनता है। नद का अर्थ प्रवाह है। वह आंतरिक ध्वनि जिससे चेतना के प्रवाह को अपने उद्गम स्थल तक पहुंचाया जा सके नाद कहलाता है। नाद की प्रतीति करना नादयोग है। जिस प्रकार फूल में सुगंध और दर्पण में प्रतिबिम्ब है उसी प्रकार नाद अंतर्निहित है, यह शरीर के भीतर तार रहित अनुनादित संगीत है। उड्डियान बन्ध- उड्डियान का अर्थ ऊपर उठना या उड़ना है और बन्ध का मतलब बांधना है। इस क्रिया में उदर प्रदेश को छाती की ओर अर्थात ऊपर की तरफ उठाया जाता है अथवा प्राण सुषुम्ना के निकट पहुंचकर सुषुम्ना के साथ ऊर्ध्वगामी बनता है। (सुषुम्ना नाड़ी मेरूदण्ड के सभी चक्रों से होती हुई ऊपर सहस्रार चक्र में जाती है) इसलिए इस बंध का नाम उड्डीयान बंध है। उड्डीयान बंध करने के लिए ध्यान के किसी आसन में बैठ जायें। दोनों घुटने जमीन से सटे हुए रहें। दोनों हथेलियाँ दोनों घुटनों पर रखें। दोनों आँखें बन्द कर लें। सम्पूर्ण शरीर को शिथिल करें। जितनी गहराई से श्वास को बाहर छोड़ सकते हैं छोड़ दें। पेट और छाती की मांसपेशियों को संकुचित करके फेफड़ों की वायु को बाहर निकाल दें। श्वास को बाहर ही रोक दें। फिर जालन्धर बंध करें। दोनों हाथों से घुटनों पर दबाव देते हए पेट को और अन्दर की ओर ले जायें। यह इसकी अंतिम अवस्था है। इस अवस्था में श्वास रोके हुए कुछ समय तक रूकें। धीरे-धीरे छाती को शिथिल कर दें, जालंधर बंध को मुक्त करें और हाथों को मोड़ लें। धीरे-धीरे पूरक करें। यह उड्डीयान बंध कहलाता है। चक्र- चक्र का शाब्दिक अर्थ पहिया या वृत्त है। योग के संदर्भ में सटीक अर्थ 'भँवर' है। ये चक्र ऐसे भँवर हैं जो शरीर के विशिष्ट भाग में प्राण-प्रवाह

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