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156... यौगिक मुद्राएँ: मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग
एक्युप्रेशर - एक्यु का मतलब होता है एक्युरेट अर्थात सही, प्रेशर का मतलब होता है दबाव अर्थात शरीर के किसी भाग पर दबाव देकर रोगोपचार करना एक्युप्रेशर कहलाता है।
अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ- जिस प्रकार मधुमक्खी फलों का रस संचय कर उसमें अपना थूक मिलाकर मधु बनाती है ठीक उसी प्रकार ग्रंथियाँ शरीर में से आवश्यक तत्त्व ग्रहण कर एवं उसमें अपना रस मिलाकर रासायनिक कारखानों की भाँति शक्तिशाली हारमोन्स का निर्माण करती हैं।
प्रत्येक ग्रन्थि आवश्यकतानुसार एक या उससे अधिक हारमोन्स बनाती है, जिसकी तरंगें नाड़ी संस्थान के माध्यम से आकाशवाणी की भाँति प्रसारित होकर, शरीर के प्रत्येक भाग में शीघ्र पहुँचने की क्षमता रखती है। ये हारमोन्स हमारे शरीर में प्रतिक्षण निष्क्रिय होने वाले मृतप्राय: कोशिकाओं को पुनर्जीवित कर क्रियाशील बनाने का कार्य करते हैं जिससे सभी शारीरिक क्रियाएँ व्यवस्थित रूप से चलती रहें। परन्तु जब ग्रन्थियों में विकृति आ जाती हैं और उन्हें पुनः शीघ्र संतुलित न किया जाये तो शरीर में असाध्य रोग पनपने लगते हैं। रोग की अवस्था में जो उपचार करते हैं, वे तो प्रायः रोग के लक्षण मात्र होते हैं, रोग के मूल कारण नहीं। मूल कारण होते हैं अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का असंतुलन।
हमारे शरीर में 8 अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ होती है
1. पीयूष 2. पिनीयल, 3. थायरॉइड 4. पेराथायरॉइड 5. थायमस 6. एड्रीनल 7. पैंक्रियाज 8. प्रजनन
पीयूष ग्रन्थि - यह ग्रन्थि सिर में मस्तिष्क के नीचे मटर के दाने से भी छोटे आकार में स्थित है। यह सभी ग्रन्थियों में प्रमुख मास्टर ग्लेण्ड के समान है। इसका स्राव अन्य ग्रन्थियों को उत्तेजित करता है ताकि वे अपना-अपना निर्धारित कार्य बराबर कर सके।
पिनीयल ग्रन्थि - यह ग्रन्थि मस्तिष्क के पीछे राई के दाने से भी छोटे आकार में स्थित है। यह ग्रन्थि प्रधान सचिव की भाँति शरीर की व्यवस्था एवं गतिविधियों में संचालन का कार्य करती है।
सभी ग्रन्थियों एवं अवयवों को संतुलित रखना, उनका विकास करना और आवश्यक कार्य करवाना इसके अधीन होता है ।