Book Title: Yogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 215
________________ विशिष्ट शब्दों का अर्थ विन्यास ...157 थायरॉइड ग्रन्थि- यह ग्रन्थि कंठ के नीचे गले की जड़ में दो भागों में विभक्त है। इसका सीधा सम्बन्ध पाचन क्रिया से है इसलिए यह भोजन को रक्त, मांस, मज्जा, हड्डियां एवं वीर्य में बदलने में सहयोग करती है। इसका प्रजनन अंगों से भी सीधा सम्बन्ध है जिससे प्रजनन अंगों को भी स्वच्छ रखती है। पेराथायरॉइड ग्रन्थि- यह ग्रन्थि गले में थायरॉइड ग्रन्थि के पीछे दोनों तरफ दो-दो अर्थात कुल चार छोटी-छोटी ग्रन्थियों के रूप में है। ये ग्रन्थियाँ शरीर का सबसे अधिक रक्तमय अवयव होती है तथा रक्त के रसायनिक तत्त्वों को ठीक करने में सहायक होती है। इस ग्रन्थि के स्राव रक्त में केलशियम एवं फासफोरस के प्रमाण का संतुलन रखते हैं। शरीर में इनका संतुलन बिगड़ने से बाइंटे (क्रेम्पस) आने लगते है। रक्त में केलशियम का अनुपात काफी महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि यह रक्त के बहाव को रोकने अर्थात कोलस्ट्रोल को नियन्त्रित रखने, नाड़ियों तथा मांसपेशियों की गतिविधियों को संचालित करने हेतु जरूरी होता है। ___थायमस ग्रन्थि- यह ग्रन्थि गर्दन के नीचे तथा हृदय के कुछ ऊपर सीने के मध्य में स्थित होती है। इसको बच्चों की धायमाता भी कहते हैं, क्योंकि यह बच्चों की रोगों से रक्षा करती है। यह ग्रन्थि बालकों के शारीरिक विकास एवं जननेन्द्रियों के विकास पर नियन्त्रण रखती है। युवा अवस्था प्रारम्भ होने पर इसके पिंड धीरे-धीरे लुप्त होने लगते हैं। जब तक यह ग्रंथि सक्रिय रहती है प्रजनन अंग उत्तेजित नहीं होते तथा मन में कामवासना के विकार जागृत नहीं होते। ___ एड्रीनल ग्रन्थि- यह ग्रन्थि दोनों गुर्दो के ठीक ऊपर होती है जो शरीर की समस्त गतिविधियाँ जैसे हलन-चलन, श्वसन, रक्त परिभ्रमण, पाचन, मांसपेशियों का संकुचन अथवा फैलाव, अनावश्यक पदार्थों का निष्कासन आदि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसका कार्य लड़ो या भाग जाओ अर्थात शरीर की प्रतिकारात्मक क्षमता विकसित करना है। शरीर के लिए आवश्यक सभी प्रकार की दवाओं का निर्माण इस ग्रन्थि के स्राव बनाने में सहयोग करते हैं। पेन्क्रियाज अन्थि- यह ग्रन्थि 6" से 8" लम्बी पेट में स्थित है। इसका ऊपरी भाग पाचक रस बनाता है जो क्षारीय स्वभाव का होने से शरीर में

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