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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...83 ध्यान हटाकर पर्याप्त समय तक उस ध्वनि के प्रति सजग रहे तो वह उसके लाभों को तुरन्त अनुभव कर सकता है।
• सामान्य तौर पर खेचरी मुद्रा का अभ्यास निराशाजनक तनावों से उत्पन्न होने वाली हर तरह की व्याधियों को दूर करता है।32
_ . आध्यात्मिक स्तर पर खेचरी मुद्रा का अभ्यस्त साधक स्थूल और सूक्ष्म, शरीर और आत्मा के मध्य भेद ज्ञान कर लेता है। वह कर्मों में लिप्त एवं काल से भी बाधित नहीं होता। इसमें चित्त भृकुटी रूपी शन्य में विचरण करता है और जिह्वा कपाल-कुहर रूपी आकाश में स्थित रहती है। इसी कारण सिद्धयोगी इसे खेचरी मुद्रा कहते हैं।
• जो योगवत स्थिर रहकर, जिह्वा को उलटाकर सोमपान करता है वह अर्धमास में ही मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है। स्पष्टार्थ है कि जिस योगी का शरीर प्रतिदिन सोमद्रव्य से पूर्ण रहता है उसको सर्पदंश का विष नहीं चढ़ता। जिस प्रकार अग्नि लकड़ी को और दीपक तेल या बाती को नहीं छोड़ता उसी प्रकार सोमद्रव्य से पूर्ण देही को आत्मा नहीं छोड़ती। जैन मान्यतानुसार वह सर्व कर्मों से रहित सिद्ध पर्याय को उपलब्ध करती है।
• योग विज्ञान के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के तालु मूल में एक विवर से चन्द्ररस रूपी अमृत स्रवित होता रहता है वह नाभि प्रदेश पर पहंचकर भस्म हो जाता है, उसका नष्ट होना मृत्यु का कारण है अत: उसे यत्नपूर्वक नाभि प्रदेश तक पहुँचने न देना खेचरी मुद्रा कहलाती है।
• इस मुद्रा प्रक्रिया में जिह्वा को इतना दीर्घ कर लेना चाहिए कि वह भृकुटि प्रदेश का स्पर्श करने लगे। उसके बाद की स्थिति में जिह्वा को मुख में उस विवर तक ले जाना चाहिए जहाँ में स्रवित अमृत को ग्रहण कर सकें। ऐसा करने से हमेशा के लिए मृत्यु भय समाप्त हो जाता है।
जिस प्रकार सृष्टि का मूल बीज प्रकृति है, देवों में श्रेष्ठ परमात्मा है और अवस्थाओं में एकमात्र मनोन्मनी अवस्था है उसी प्रकार मुद्राओं में एकमात्र खेचरी मुद्रा मानी गई है।33