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94... यौगिक मुद्राएँ: मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग
• फिर मूत्र प्रणाली का संकोचन करते हुए प्रजनन अंगों को और पेट के निम्न भाग पर तनाव लाते हुए ऊपर की ओर खींचें।
• यह खिंचाव ठीक उसी प्रकार से हो जैसे कि मूत्र - त्याग क्रिया को कुछ समय तक रोकने के लिए किया जाता है ।
पुरुषों को शुक्र नाड़ी और महिलाओं को योनिमार्ग का संकुचन करना चाहिए। यही वज्रोली मुद्रा की सरल विधि है। 48
निर्देश
1. वज्रोली मुद्रा का अभ्यास सुयोग्य गुरु अथवा अनुभवी साधक के निर्देशन में ही करें, अन्यथा स्थायी चोट पहुँचने की संभावना रहती है। 2. एक विधि के अनुसार मूत्र नलिका में 12 इंच लम्बी चाँदी की नली का प्रवेश करवाया जाता है । इस नलिका से पानी ऊपर की ओर खींचते हैं, इस क्रिया में पूर्णतया प्राप्ति के उपरांत इसी नली से मधु और पारा ऊपर खींचा जाता है।
दीर्घ अवधि के अभ्यास के उपरान्त नलिका की मदद के बिना भी उपरोक्त क्रिया सम्पन्न की जा सकती है | 49
3. इस मुद्राभ्यास में चेतना को स्वाधिष्ठान चक्र (मेरुदंड का अन्तिम छोर ) पर केन्द्रित करें।
सुपरिणाम
अध्यात्म शक्ति का सम्यक नियोजन करने वाली वज्रोली मुद्रा के निम्न लाभ बतलाये गये हैं
• प्राचीन ऋषियों ने इसे शक्ति संचार करने वाली और जीवन प्राप्त कराने वाली कहा है इससे माना जा सकता है कि यह मुद्रा शक्तिवाहिनी एवं जीवनदायिनी है।
• योगतत्त्वोपनिषद के अनुसार यह योग मुद्रा योगी पुरुषों के लिए हितकारिणी, सिद्धिदायिनी एवं मुक्ति प्रदायिनी भी कही गई है। इसके प्रभाव से बिन्दू (सहस्रारचक्र तालु का ऊर्ध्व भाग) की सिद्धि होने पर साध ऊर्ध्वरेतस्तत्त्व में समर्थ हो जाता है और जब बिन्दूपात पर विजय प्राप्त कर ली जाती है तब संसार सृष्टि में ऐसा कोई भी कार्य नहीं जो सिद्ध नहीं हो सकता। 50 • महर्षि घेरण्ड तो इस मुद्रा का मूल्य यहाँ तक बतलाते हैं कि यदि भोगी