Book Title: Yogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 159
________________ विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...101 होती है इसमें कोई संदेह नहीं। यह संदर्भ शक्तिचालिनी द्वारा कुण्डलिनी जागृत होने के महत्त्व को दर्शाता है।57 • इसी ग्रन्थ में यह भी निरूपित किया गया है कि कुण्डलिनी गंगा और यमुना (इड़ा और पिंगला) के मध्य में रहती है वह जब ऊपर उठती है तब व्यक्ति भगवान विष्णु के पद (परमानन्द) को प्राप्त करता है।58 • प्राचीन ग्रन्थों में कुंडलिनी शक्ति को कालग्रासिनी कहा गया है क्योंकि जब कुंडलिनी सुषुम्ना के मार्ग में आगे बढ़ती है तब व्यक्ति कालातीत जगत में प्रवेश करता है। • हठयोग प्रदीपिका में बताया गया है कि साधक सूर्य (पिंगला) और चंद्र (इड़ा) नाड़ी को नियंत्रित रखे, क्योंकि वे दिन और रात्रि के रूपों में कालाधीन है। इसका रहस्य यह है कि सुषुम्ना (कुंडलिनी का मार्ग) इस काल का भक्षण करती है।59 • शक्तिचालिनी मुद्राभ्यास से खेचरी मुद्रा, योनि मुद्रा, उड्डीयान बंध से होने वाले लाभ भी प्राप्त होते हैं। • यदि इस मुद्रा का ऐतिहासिक पक्ष उजागर किया जाए तो ज्ञात होता है कि इसका विवरण अनेक योग शास्त्रों में विस्तार से उपलब्ध है। तुलनात्मक दृष्टि से योगचूड़ामणि उपनिषद् (श्लोक 107-108), घेरण्ड संहिता (अध्याय 3/44-50) और हठयोग प्रदीपिका (अध्याय 3/104-120) में इस मुद्रा का नाम समान होने पर भी उसके स्वरूप वर्णन में किंचित भिन्नता है। 13. ताड़ागी मुद्रा तड़ाग शब्द तालाब का अर्थवाची है। जिस प्रकार तालाब स्वच्छ जल से सदैव भरपूर रहता है ग्रीष्म काल में भी जल्दी से सूखता नहीं, आँधी-तूफानझंझावात जैसी विकट स्थितियों में भी विचलित नहीं होता उसी प्रकार हमारी चेतना भी प्रतिसमय अपने स्वभाव में रमणशील रहें। विषम स्थितियों में भी अपने स्वाभाविक धर्म को छोड़े नहीं । 'सुख में इतराये नहीं दुःख में घबराये नहीं।' इस तरह की भूमिका का निर्माण करने के प्रयोजन से ताड़ागी मुद्रा का अभ्यास किया जाता है। तड़ाग (तालाब) के समान अपने शरीर को वायु से परिपूरित करने वाला ताड़ागी कहा जाता है।

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