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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ .... पुरुष भी मुद्रा की साधना कर लें तो उन्हें भी सकल सिद्धियाँ वरदान के रूप में प्राप्त हो सकती है। इससे स्पष्ट है कि वज्रोली मुद्रा से योगी ही नहीं भोगी गृहस्थ भी लाभ उठा सकते हैं।
• इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से शरीर के सभी अवयव दृढ़ होते हैं। शरीर के वजन में वृद्धि होकर पुष्टि और कान्ति की प्राप्ति होती है | 51
• इस मुद्राभ्यास के परिणामस्वरूप मनुष्य का मन इतना दृढ़ हो जाता है कि वह शुक्रपात के लिए तैयार ही नहीं होता प्रत्युत वह ऊर्ध्वरेता बन जाता है। इससे साधक पुरुष के वीर्य का संरक्षण होता है। ब्रह्मचर्य पालन के लिए भी सुदृढ़ भूमिका निर्मित होती है । बाह्य स्तर पर यह मुद्रा अनाहत चक्र आदि का विशोधन कर तत्सम्बन्धी शक्तियों को अनावृत्त करती है जिससे इस मुद्रा का उद्देश्य शीघ्र फलीभूत होता है। इस मुद्रा से प्रभावित चक्र आदि का चार्ट निम्न प्रकार हैं
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं अनाहत चक्र तत्त्व- जल एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य एवं आनंद केन्द्र | सुस्पष्ट है कि वीर्य और रज की रक्षा के उद्देश्य से वर्णित यह मुद्रा योगी और भोगी दोनों के लिए उपयोगी है।
12 शक्तिचालिनी मुद्रा
इस मुद्रा के नाम से ही यह स्पष्ट होता है कि यह मुद्रा शक्ति को संचालित/ जागृत करने के प्रयोजन से की जाती है। शक्ति का अर्थ है- ऊर्जा, प्राण या कुंडलिनी और चालिनी का अर्थ है - चलाना या घुमाना । इस परिभाषा के अनुसार इसे प्राण संचालन या कुंडलिनी को जगाने वाली क्रिया भी कहते हैं। योग विज्ञान के अनुसार आत्मा की प्रमुख शक्ति शरीर के अधोभाग में मूलाधार चक्र में है। इसी मूलाधार चक्र में प्राकृतिक कुण्डलिनी शक्ति साढ़े तीन लपेटे लगाये हुए सर्पिणी के रूप में सो रही है। जब तक कुण्डलिनी सोती रहती है तब तक मनुष्य की शक्तियाँ जागृत नहीं होती । कुण्डलिनी के जागते ही उसका अंग-अंग क्रियाशील हो उठता है । जिस प्रकार कुंजी से ताला खुलने पर ही किवाड़ खुलता है वैसे ही कुण्डलिनी के प्रकट होने पर ही ब्रह्मरन्ध्र खुल सकता है उसी के जागरणार्थ इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।