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86... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग
• इस मुद्रा के दरम्यान अपनी सजगता को मेरुदण्ड पर स्थित मणिपुर चक्र पर केन्द्रित करें।
यह प्रथम आवृत्ति का प्रारंभिक चरण है।
• श्वास लेते समय ऐसा अनुभव करने का प्रयत्न करें कि प्राण का प्रवाह मणिपुर चक्र से विशुद्धि चक्र की ओर हो रहा है।
• आप कल्पना करें कि प्राण का प्रवाह मधुमय अमृत धारा के रूप में मेरुदंड के मार्ग में हो रहा है।
ऐसा अनुभव करते जायें कि यह अमृत विशुद्धि चक्र में एकत्रित हो रहा है।
• कुछ सैकेण्ड तक श्वास को रोकें तथा ऐसा अनुभव करें कि विशुद्धि चक्र में शीतल अमृत झर रहा है।
• तत्पश्चात श्वास छोड़े एवं अनुभव करें कि प्राण विशुद्धि चक्र से आज्ञा एवं बिन्दू चक्र होते हुए अंततः सहस्रार चक्र में पहुंच रहा है। जब प्राण सजगता पूर्वक सहस्रार चक्र तक पहुँचते हैं प्रथम आवृत्ति समाप्त होती है।
• इसके बाद पुन: अपनी सजगता को शीघ्रता पूर्वक मणिपुर चक्र पर ले आयें तथा दूसरी आवृत्ति शुरु करें।36 ___ संक्षेप में कहें तो सिर को भूमि पर लगाकर दोनों हाथ टेक दें और दोनों पांवों को ऊपर उठाकर कुम्भक के द्वारा श्वास को रोकना विपरीतकरणी मुद्रा कहलाती है।37 निर्देश 1. प्रथम दिन थोड़ी देर अभ्यास करें, धीरे-धीरे अवधि बढ़ायें। 15 मिनट से
अधिक देर तक अभ्यास किया जा सकता है। 2. क्षमता के अनुपात में क्रिया की पुनरावृत्ति 21 बार कर सकते हैं। इस
अभ्यास की औसतन अवधि 10 मिनट मानी जाती है। प्रथम दिन 5
आवृत्तियाँ ही करें। फिर प्रतिदिन एक-एक आवृत्ति बढ़ाते जायें। 3. इस मुद्रा के अभ्यास हेतु उज्जायी प्राणायाम का ज्ञान आवश्यक है। इस
दौरान उज्जायी प्राणायाम करना चाहिए। 4. श्वास लेते समय चेतना एवं श्वसन को मणिपुर चक्र से विशुद्धि चक्र
की ओर जाते हुए अनुभव करें तथा श्वास छोड़ते समय चेतना को विशुद्धि चक्र पर केन्द्रित करें। प्रत्येक आवृत्ति में यह विधि करनी चाहिए।