________________
52... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग
5. यदि संभव हो तो दोनों एड़ियों का दबाव पेट पर पड़े, इससे आसन का
अधिकतम लाभ मिलेगा। 6. अंतिम अवस्था में शरीर को पूर्णत: शिथिल करने का प्रयत्न करें। 7. इस मुद्रासन को यथासंभव कई बार दोहराया जा सकता है। सुपरिणाम
• प्रारम्भ में इस मुद्रा को करने में कठिनाई आ सकती है, परन्तु एक बार सध जाये तो अत्यन्त गुणकारी है।
• शारीरिक दृष्टि से उदर के अंगों की अच्छी मालिश हो जाती है तथा कब्ज से लेकर मधुमेह तक इनसे संबंधित विभिन्न रोग तिरोहित हो जाते हैं।
• इस आसन में उठी हुई एड़ियों से उदर के आंतरिक भागों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।
• इस मुद्रा द्वारा पैरों की ओर होने वाले रक्त संचार में कमी आती है और उदर तथा श्रोणि क्षेत्र में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। इससे वहाँ के अंगों की कार्य प्रणाली सुचारु हो जाती है एवं अनेक प्रकार के यौन रोगों के निदान में लाभ पहुँचता है।
• अभ्यास के दौरान कोशिकाएँ एक-दूसरे से अलग हो जाती हैं इससे मेरूदण्ड के स्नायु तनाव रहित हो जाते हैं। ये स्नायु संपूर्ण शरीर एवं मस्तिष्क से जुड़े हैं अत: परिणामस्वरूप संपूर्ण शरीर एवं मनोजगत पर लाभजनित प्रभाव पड़ता है।
• भावनात्मक स्तर पर योग मुद्रा संपूर्ण मन और शरीर को शिथिल कर देती है। इस दृष्टि से ध्यान के पूर्व यह आसन उपयोगी सिद्ध होता है।
• मानसिक दृष्टि से व्यक्ति टेन्शन मुक्त एवं तनाव रहित अवस्था में रहता है।
• इस मुद्रा से मूलाधार आदि शक्ति केन्द्र अपने स्वरूप की ओर अभिमुख होते हैं
चक्र- मूलाधार, आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन, पीयूष एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति, दर्शन एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, स्नायुतंत्र, निचला मस्तिष्क, ऊपरी मस्तिष्क एवं आँख आदि।