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56... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग
4. अंतिम स्थिति में अधिकतम अवधि तक रूकें।
5. अभ्यासी आज्ञा चक्र (भ्रूमध्य भाग) पर चित्त की एकाग्रता बनाये रखें। सुपरिणाम
• इस मुद्राभ्यास की मदद से उज्जायी प्राणायाम, शांभवी मुद्रा और खेचरी मुद्रा के अधिकांश लाभ मिलते हैं।
• नियमित अभ्यास करने से जिह्वा तालु के ऊपरी छिद्र से भी अन्त:भाग में चली जाती है इससे मस्तिष्क के नाड़ी केन्द्रों की क्रियाशीलता बढ़ती है।
• तालु के पीछे के रन्ध्र में अनेक दाब बिन्दु एवं ग्रन्थियाँ है। वे शारीरिक क्रियाओं पर अत्यधिक नियंत्रण करती हैं। मुड़ी हुई जिह्वा के कारण इनके रसस्राव की क्रिया में वृद्धि होती है जिससे स्वास्थ्य को अत्यधिक लाभ पहुँचता है। लार की उत्पत्ति होने से भूख-प्यास मिटती है।
अध्यात्म वेत्ताओं के लिए यह उच्च यौगिक अवस्था है जिसमें साधक समुचित अभ्यास द्वारा चेतना की उच्चतम अवस्था को प्राप्त करता है।
भारतीय योग विज्ञान पूर्णरूपेण प्रकृति पर आधारित है। इसी कारण इसे परा विज्ञान भी कहा जाता है और इस पराविज्ञान के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। ___मुद्राओं के नित्य अभ्यास से बाह्य एवं आंतरिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ब्रह्म स्थिति एवं ब्रह्म विद्या को प्राप्त कर साधक परमोच्च यौगिक स्थिति में स्थित हो सकता है अत: आत्म साधकों को निरंतर मुद्रा साधना में रत रहना चाहिए। सन्दर्भ-सूची 1. तंत्र, क्रिया और योग विद्या, स्वामी सत्यानन्द सरस्वती, पृ. 201 2. वही, पृ. 202 3. वही, पृ. 670 4. वही, पृ. 670 5. हठयोग प्रदीपिका, 4/50 6. वही, 4/61 7. तंत्र, क्रिया और योग विद्या, स्वामी सत्यानन्द सरस्वती, पृ. 261 8. वही, पृ. 69