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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...65 लिए पेट की मांसपेशियों और छाती को अन्दर की ओर सिकोड़ना
चाहिए। 4. ध्यान रहे कि इसकी अंतिम अवस्था के पूर्व जालन्धर बन्ध लगाया जाता
है जिसके कारण श्वास अन्दर जाने से रूकती है। 5. अंतिम अवस्था में श्वास को अन्दर न जाने दें। 6. अंतिम अवस्था से लौटते समय सर्वप्रथम छाती को शिथिल करें। फिर
जालन्धर बन्ध छोड़कर श्वास अन्दर लें। 7. प्रारम्भिक अभ्यासी किसी तरह की गलती न करते हुए इसे क्रमिक रूप
से ही करें। 8. इस अभ्यास की जितनी आवृत्तियाँ करना चाहें, कर सकते हैं परन्तु
जबर्दस्ती कभी भी न करें।
नये अभ्यासियों को इसकी सीमित आवृत्तियाँ ही करनी चाहिए। फिर धीरेधीरे आवृत्तियों की संख्या में वृद्धि करें। सुपरिणाम
• आत्मार्थियों के लिए यह बन्ध क्रिया नितान्त आवश्यक है। इसके अभ्यास से चेतना शक्ति ऊर्ध्वगामी बनती है।
• घेरण्ड संहिता के अनुसार यह मुद्रा मृत्यु रूपी गज के लिए सिंह के समान हैं, सभी बन्धों में प्रमुख है तथा इसके अभ्यास से सहज ही मोक्ष प्राप्ति होती है। __ • दत्तात्रेय संहिता में इसके श्रेष्ठ परिणामों का वर्णन करते हुए कहा है कि इसके अभ्यास से वृद्ध भी युवा हो जाता है। यदि छ: मास पर्यन्त निरन्तर अभ्यास कर ले तो निःसन्देह मृत्यु पर भी विजय प्राप्त होती है।
• शिवसंहिता में इसका मूल्य बताते हुए कहा है कि यह मृत्युरूपी मातंग का नाश करने वाला बन्ध रूपी सिंह है। जो योगी नित्य इस बन्ध का चार बार अभ्यास करता है उसका नाभिचक्र शुद्ध होकर वायु सिद्ध हो जाती है। यदि छह महीने तक अभ्यास करता है तो वह मृत्यु को निश्चित रूप से जीत लेता है। इस बन्ध के प्रभाव से योगी का शरीर सिद्ध हो जाता हैं, रोगों का शमन हो जाता है और जठराग्नि प्रज्वलित होकर रस की वृद्धि होती है।10
• हठयोग प्रदीपिका में इसका महत्त्व निरूपित करते हुए कहा है कि यह