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66... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग अभ्यास प्राण रूपी पक्षी को, जो अविश्रान्त है उड़ान भरने में मदद करता है। इसके नियमित अभ्यास से वृद्ध भी युवावस्था को प्राप्त होता है।11 __ • यह सम्पूर्ण शरीर को पुनर्जीवन देता है और ध्यानावस्था में पहुंचने में सहायता करता है जिससे वृद्धों को भी युवा के समान स्फूर्ति का अनुभव होता है। वराह उपनिषद् में कहा गया है कि जिस प्रकार छाया व्यक्ति का पीछा करती है, उसी प्रकार श्वास जीवन के साथ रहता है। उड्डीयान अशान्त श्वास को ऊपर की ओर ले जाता है।12 इसी तरह योग शिखा, योग कुण्डलिनी, ध्यान बिन्दू, योग तत्त्व, योग चूड़ामणि आदि कई उपनिषदों में इस सम्बन्धित चर्चा प्राप्त होती है। ___ संक्षेप में कहा जाए तो इससे सजगता की स्वाभाविक अवस्था अधिक गहरी और सूक्ष्म होती है। जिससे व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति, अस्तित्व, नश्वरता और जीवनोद्देश्य आदि सम्पूर्ण जानकारी से लाभान्वित होता है।
• इस बन्ध क्रिया से शरीर के शक्ति सम्पन्न मूलाधार आदि चक्र, अग्नि आदि तत्त्व, एड्रीनल आदि ग्रन्थियाँ, तैजस आदि केन्द्र एवं शरीरस्थ कुछ अंग भी संतुलित होते हैं। इससे नानाविध रोगों एवं अन्तहीन समस्याओं का शमन होता है। इस मुद्रा से प्रभावित चक्र आदि का चार्ट निम्न प्रकार है
चक्र- मणिपुर, मूलाधार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि, पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, प्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्रतैजस, शक्ति एवं दर्शन केन्द्र। 4. जालन्धर बन्य मुद्रा
जालन्धर शब्द का निर्माण जालन + धर इन दो शब्दों के योग से हआ है। जालन का अर्थ है जाल और धर का अर्थ है धारा-प्रवाह।
इस अर्थ के आधार पर जालंधर शब्द की विभिन्न व्याख्याएँ की जा सकती है। यहाँ इसका अर्थ है शरीर की नाड़ियों का जाल या गुच्छा।
जालंधर शब्द का अन्य अर्थ भी किया जा सकता है उसके लिए ध्यान दीजिए हमारे शरीर में सोलह विशिष्ट केन्द्र हैं जिन्हें आधार कहते हैं। ये शरीर के सोलह विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं- पैरों की अंगुलियाँ, टखने, घुटने, जांघे, मूलाधार (पेरिनियम), अनुत्रिक (कॉकसिक्स), नाभि, हृदय, गर्दन, टॉन्सिल, जीभ, नासिका, भ्रूमध्य, आँखें, सिर का पिछला एवं ऊपरी हिस्सा। प्राणिक शरीर में प्राण इन्हीं क्षेत्रों से होकर बहता है।