________________
विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ... 61
अत्यधिक भोजन एवं विषाक्त भोजन भी पचकर अमृत तुल्य हो जाता है। इसके प्रभाव से क्षय, कुष्ठ, अजीर्ण इत्यादि रोग भी नष्ट हो जाते हैं।
•
उपनिषद्कारों के मतानुसार महामुद्रा महान सिद्धियों को देने वाली है और बड़े यत्न से गुप्त रखने योग्य है। अतः इसे किसी भी अनधिकारी को नहीं. बतलाना चाहिए | 4
• इस अभ्यास दशा में पूरे समय तक मूलाधार चक्र पर दबाव पड़ता है जिसके फलस्वरूप समूचे शरीर की प्राण शक्ति में हलचल मच जाती है तथा प्राण-प्रवाह संतुलित रूप से होने लगता है। ग्रह्यामल में कहा गया है कि जैसे डंडे से आहत हुआ भी डंडे के समान खड़ा हो जाता है वैसे ही कुण्डलिनी शक्ति भी जागृत हो जाती है।
• महा मुद्रा के इस प्रयोग से खेचरी मुद्रा, शाम्भवी मुद्रा एवं मूलबन्ध के लाभ भी प्राप्त होते हैं।
2. नभो मुद्रा
नभ का अर्थ है आकाश। यहाँ नभो मुद्रा का तात्पर्य है जिह्वा को तालु की ओर प्रेरित करना। इस मुद्रा में साधक अपनी दृष्टि को भौंहों के मध्य में स्थिर कर जीभ के अग्रभाग को जितना तान सकें उतना पीछे की ओर करने का प्रयास करता है। इसमें जीभ ऊर्ध्व दिशा की ओर गमन करती है अतः इसका नाम भो मुद्रा है।
इस मुद्रा का अभ्यास दीर्घकालीन तनावों से उत्पन्न होने वाली सभी व्याधियों से छुटकारा पाने हेतु किया जाना चाहिए ।
विधि
घेरण्ड संहिता के अनुसार मन को स्थिर रखते हुए जिह्वा के अग्रभाग को ऊपरी तालु की ओर ले जाकर शक्ति अनुसार श्वास क्रिया का निरोध करना नभो मुद्रा है 5
निर्देश
1. इस मुद्रा में जीभ के अग्रभाग को सहज रूप से जितना पीछे की ओर तान सकते हैं, तानें। अनावश्यक जोर न लगायें। प्रयास रखें कि जीभ की निचली सतह ऊपरी तालु से स्पर्श करने लगे।