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46... यौगिक मुद्राएँ: मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग
• सत्यानन्द सरस्वती के मतानुसार नौमुखी मुद्रा के अभ्यास हेतु कुछ अन्य अभ्यासों की भी आवश्यकता होती है जैसे उज्जायी प्राणायाम, खेचरी मुद्रा, वज्रोली मुद्रा, योनि मुद्रा, मूलबंध आदि। इस मुद्रा में खेचरी मुद्रा आदि से होने वाले लाभ भी प्राप्त होते हैं। विशेष रूप से अभ्यासी साधक सहस्रारचक्र पर स्थित दसवाँ द्वार भेदने / अनावृत्त करने में समर्थ हो जाता है ।
• इस मुद्रा से निम्न चक्र आदि भी सही दिशा में कार्य करते हैं और उससे देहजन्य एवं भावनाजन्य समस्याओं का अन्त हो जाता है।
चक्र - मूलाधार, आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन, पीयूष एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र - शक्ति, दर्शन एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, स्नायुतंत्र, मस्तिष्क, आँख। 8. अगोचरी मुद्रा
अगोचरी का अर्थ होता है- अज्ञात । अत: इसे अज्ञात मुद्रा भी कहा जा सकता हैं। अगोचरी संस्कृत के अगोचरम् शब्द से बना है। अगोचरी मुद्रा का तात्पर्य इन्द्रिय ज्ञान से परे अतीन्द्रिय ज्ञान से है। स्पष्टतः यह मुद्रा अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाने वाली मुद्रा है।
अगोचरी मुद्रा