Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 12
________________ २. 'ख' प्रति का परिचय-यह साटिप्पण प्रति आमेर-शास्त्रमण्डार जयपुर की है। श्री० माननीय 40 चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ प्रिन्सिपल संस्कृत जैन कालेज जयपुर एवं श्री पं० कस्तूरचन्द्रजी फाशलीवाल एम० ए. शास्त्री जयपुर के सौजन्य से प्राप्त हुई थी। इसमें १२३४६ इञ्च को साईज के २५९ पत्र हैं। रचना शक संवत् १०८८ व लिपि सं० १८९२ की है । प्रति विशेष शुद्ध व टिप्पणी-मण्डित है। इसका आरम्भ निम्न प्रकार है धियं कुवलयानन्द प्रसावितमहोदयः । वेवश्चन्द्रप्रभः'पुष्याज्जगन्मानसवासिनोम् ॥१॥ इसका अन्त निम्न प्रकार हैवर्णः पदं वाक्यविधिः समासो इत्यादि मु० प्रतिवत् । ३. 'ग' प्रति का परिचय-यह ह० लि० सटि० प्रति श्री. दि. जैन बड़ा धड़ा के पंचायतो दि० जैन मन्दिर अजमेर के शास्त्र-भण्डार की है, जो कि श्री. वा. मिलापचन्द्रजी B. S, LLB एडवोकेट सभापति महोदय एवं श्री धर्म० सेठ नोरतमलजी सेठी सरीफ आं० कोषाध्यक्ष तथा युवराज पदस्थ थी. पं. चिम्मन लाल जी के अनुग्रह व सौजन्य से प्राप्त हुई थी। इसमें ११३४८: इञ्च की साईज के ४०४ पत्र हैं। यह प्रति विशेष शुद्ध एवं सटिग्मण है। प्रस्तुत प्रति वि० सं० १८५४ के तपसि मास में गंगा विष्णु नाम के किसी विद्वान् हारा लिखी गई है। प्रति का आरम्भ-ॐ परमात्मने नमः। श्रियं कुवलयानन्द प्रसादितमहोदयः । देवश्चन्द्रप्रभः' पुष्या जगन्मानसवासिनीम् ॥ १॥ इसके अन्त में~-वर्षे वेद-शरेभ-शीस गुमिते मासे तपस्याह्वये, तिथ्यां....."तत्त्विषि मतं वेत्तु जिनाधीशिनाम् । गंगाविष्णुरितिप्रथामधिगतेनाभिख्यया निमिता, प्र ( न्थस्या । स्य लिपिः समाप्तिमगमद् गुर्वनिपचालिना ॥ १ ॥ श्रीरस्तु । श्रीः। विशेष प्रस्तुत प्रति के आधार से किया हुआ यश० उत्तराद्धं का विशेष उपयोगी व महत्त्वपूर्ण मुद्रित संशोधन ( अनेकान्त वर्ष ५ किरण १-२ ) की प्रतिएं हमें थो० पं. दोपचन्द्र जो शास्त्री पांड्या केकली ने प्रदान की थीं, एतदथं अनेक धन्यवाद । उक संशोधन से भी हमें यश उत्तराद्ध' के संस्कृत पाठ-संशोचन में यथेष्ट सहायता मिली। ४'घ' प्रति का परिचय यह ह लि० सटि प्रति श्री० दि० जैन बड़ा मन्दिर वौसपन्य आम्नाय सोकर के शास्त्र भण्डार से श्री पं. केशवदेव जी शास्त्री व श्रो० ५० पदमचन्द्र जी शास्त्री के अनुग्रह व सौजन्य से प्राप्त हुई थी। इसमें १३४५६ इञ्च की साईज के २८५ पत्र हैं। लिपि विशेष स्पष्ट व शुद्ध है। इसकी प्रतिलिपि फाल्गुन कृ. ६ शनिवार सं० १९१० को श्री० ५० चिमनराम जी के पोत्र व शिष्य पं० महाचन्द्र विद्वान द्वारा की गई थी। प्रति का आरम्भ-ॐ नमः सिद्धेभ्यः । १. प्रसादीवृतः दत्त इत्यर्थः। २. चन्द्रवत्-कर्पूरवद् गौरा प्रमा यस्य । , प्रसादितः निर्मलीकृती महानुदयो येन सः । प्रसादीकृतः दत्त इत्यर्थः । ४. चन्द्रस्य मुगाङ्कस्यैव प्रभा दीप्तिर्यस्यासो। चन्द्रः कर्पूर: तद्वत् प्रभा यस्य स: । हिमांशुश्चन्द्रमाश्चन्द्रः धनसारश्चन्द्रसंशः इत्युभयत्राप्यमरः। ५. पुष्टि वृद्धि क्रियात् ।

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