Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 10
________________ प्रस्तावना प्रस्तुत 'यशस्तिलकचम्पू महाकाव्य की 'यशस्तिलक-दीपिका' नाम की भाषाटोका का सम्पादन विशेष अनुसन्धानपूर्वक निम्नलिखित है. लि. प्राचीन प्रतियों के आधार पर किया गया है-- १. 'क' प्रति का परिचय----यह प्रति श्री० पूज्य भट्टारक मुनीन्द्र फीति दि जेन सरस्वती भवन नागौर (राजस्थान ) व्यवस्थापक-श्री पूज्य भट्टारक श्री देवेन्द्रकीति गादी नागौर की है, जो कि संपोधन-हेनु नागौर पहुंचे हुए मुझे थी धर्म सेट रामदेव रामनाथ जी चांघाड़ नागौर के अनुग्रह से प्राप्त हुई थी। इसमें १०.४५ इञ्च की साईज के ३३१ पत्र हैं। यह विशेष प्राचीन प्रति है, इसकी लिपि ज्येष्ठ वदी ११ रविवार सं० १६५४ को श्री 'एकादेवी' थाविका ने कराई थी। प्रति का आरम्भ-श्री पाश्वं नाथाय नमः । श्रियं कुवलयानन्दप्रसादितमहोदयः । इत्यादि मु० प्रतिवत् है। इसमें दो आश्वारापर्यन्त कहीं-कहीं टिप्पणी हैं और आगे मूलमात्र है । इसके अन्त में निम्न लेख उल्लिखित है __ 'यशस्तिलकापरनाम्नि महाकाव्ये धर्मामृतवर्षमहोत्सवो नामाष्टम आश्वासः । 'भद्रं भूयात् 'कल्याणमस्तु शुभं भवतु । संवत् १६५४ कर्ये ज्येन वदी ११ तिथी रविवासरे श्री मूलसंधे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे नंद्याम्नाये आचार्यश्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये मंडलाचार्य श्री मुवनकोति तत्प? मण्डलाचार्यानुक्रमे मुनि नेमिचन्द तशिघ्य आचार्य श्री यशकीर्तिस्तस्मै इदं शास्त्रं यशस्तिलकाख्यं जिनधर्म समाश्रिता श्राविका 'झका' ज्ञानावरणीयकर्मक्षयनिमित्तं घटाप्यतं ।' जानवान्जानवानेन निर्भयोऽभयदानतः । अन्नदानात् सुस्ती नित्यं निधिर्भेषजाद्भवेत् ॥ शुभं भवतु ! कल्याणमस्तु । इस प्रति का सांकेतिक नाम'क' है। विशेष उल्लेखनीय महत्त्वपूर्ण अनुसन्धान–उक्त 'क' प्रति के सिवाय हमें उक्त नागौर के सरस्वती भवन में श्रीदेव-विरचित 'यशस्तिलकपत्रिका' भी मिली, जिसमें 'यशस्तिलकचम्पू के विशेष क्लिष्ट, अप्रयुक्त व वर्तमान कोशग्रन्थों में न पाये जानेवाले हजारों शब्दों का निघण्टु १३०० श्लोकपरिमाण लिखा हुआ है। इसमें १३ ४६ इञ्च की साईज के ३३ पृष्ठ है। प्रति की हालत देखने से विशेष प्राचीन प्रतीत हुई, परन्तु इसमें इसके श्रीदेव-विद्वान या आचार्य का समय उल्लिखित नहीं है उपक 'यशस्तिलक पज्जिका' का अप्रयुक्त क्लिष्टतम शब्द-निघण्टु हमने विद्वानों को जानकारी के लिए एवं 'यशस्तिलक' पढ़नेवाले छात्रों के हित के लिए इसी सन्थ के अखोर में (परिशिष्ट संख्या २ में ) ज्यों का त्यो ४ आश्वास से लेकर ८ आश्वास पर्यन्त प्रकाशित भी किया है। 'यशस्तिलक-पन्जिका' के प्रारम्भ में १० श्लोक निम्नप्रकार हैं' । अर्थात्-श्रीमज्जिनेन्द्रदेव को नमस्कार करके श्रीमत्सोमदेव सूरि-विरचित 'यशस्तिलकचम्पू को परिजका श्रीदेव-विद्वान द्वारा कही जाती है ॥ १ ॥ 'यशस्तिलकचम्पू' में निम्नप्रकार विषयों का निरूपण है १. यशोवरमहाकाव्ये सोमदेबविनिर्मित । प्रीदेवेनोच्यते पंजी नत्या देवं जिनेश्वरम् ॥ १ ॥ छंदः शब्दनिदवलंकृतिकलासिद्धान्तसामुद्रक । ज्योलिवैद्यकवंदवादभरतानङ्गदिपाश्चायुधम् ।। तरियान कम नीतिशकुनमारदपुराणस्मृति । श्रेयोऽध्यात्मजगत्स्थिति प्रवचनी व्युत्पत्तिरमोच्यते ।। २ 11

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