Book Title: Vruttamuktavali
Author(s): H D Velankar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishtan

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Page 6
________________ संचालकीय वक्तव्य छन्दःशास्त्र वेदाङ्ग है और वैदिक ऋचाओं एवं सूक्तों को सम्यक्तया समझने के लिए इस शास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। विश्वसाहित्य का प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद सूक्तों में है। जिन ऋषियों ने इन सूक्तों की रचना कर के इनका गान किया उनको अवश्य ही इनकी छान्दस अभिव्यक्ति एवं संगीत के नियमों का विशिष्ट ज्ञान रहा होगा। सामवेद के सूक्त-गान से विदित होता है कि इनको रचना के समय कर्ण-सुखद अक्षर-पद-योजना की कोई न कोई विकसित विधा प्रयोग में आई थी। ऋग्वेद की छान्दस-सामग्री से स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि इसके सूक्तों के विभिन्न रचनाकाल में नए-नए छन्दों का आविष्कार होता रहा है । तत्तत् ऋषियों ने पूर्व प्रचलित छन्दों में रचना करने के साथ-साथ नवीन छन्दोयोजना का भी निर्माण किया। उनका विश्वास था कि उनके द्वारा रचित नवीन छन्दोविधान से देवताओं को अधिकाधिक प्रसन्नता होगी। सामवेदीय निदानसूत्र, साङ्ख्यायन श्रौतसूत्र, ऋक्-प्रातिशाख्य और कात्यायनीय अनुक्रमणिका आदि में वैदिक छन्दःशास्त्र का विवेचन हुआ है । इसका प्रारम्भ प्रागैतिहासिक काल से सम्बद्ध है। यह समय इतना प्राचीन भी हो सकता है कि जब इण्डो-आर्यनों का पृथक्करण ही नहीं हुआ था-यदि हो भी गया था तो बस हा ही था। वैदिक छन्दःशास्त्र में हमको प्राकृतिक विकास की ऐसी ऐतिहासिक शृङ्खला का ज्ञान होता है कि जिस में सम्पूर्ण मानव-समाज ने सम्मिलित रूप से भाग लिया है और एक ऐसी परम्परा का सूत्रपात हुआ है जो किसी आदर्श के आधार पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ती चली गई है तथा प्रत्येक पीढ़ी ने अपने पूर्ववर्ती समाज की देन का आस्वाद करते हुए अनुवतियों के लिए उसे अधिकाधिक समृद्ध करने का प्रयास किया है। ___कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट-कृत वृत्तमुक्तावली की रचना भी उक्त लक्ष्य को ही दृष्टि में रख कर की गई प्रतीत होती है । इसमें वैदिक छन्दों से लेकर रचनाकार के समय तक प्रचलित प्रायः सभी वैदिक, संस्कृत और व्रजभाषाहिन्दी छन्दों के लक्षण और उदाहरण दिये गये हैं । वैदिक छन्दों के अतिरिक्त सभी छन्दों के उदाहरण स्वयं ग्रंथकार द्वारा निर्मित हैं । व्रजभाषा हिन्दी छन्दों

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