Book Title: Vipak Sutram
Author(s): Gyanmuni, Shivmuni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ लेता है। आचार्य श्री का टीकाकृत आगम साहित्य जैन जगत में सर्वाधिक समादृत और सर्वाधिक रुचि से स्वाध्याय किया जाने वाला आगम साहित्य है। जैन जगत के कोने-कोने से मैंने आचार्य श्री केटीकाकृत आगमों की निरन्तर मांग को सुना। भव्य मुमुक्षुओं की उसी मांग के परिणामस्वरूप आचार्य श्री के आगमों के पुनर्प्रकाशन का संकल्प स्थिर किया गया। परिणामतः अल्प समयावधि में ही आचार्य श्री के टीकाकृत आगमों के दशाधिक संस्करण प्रकाश में आ चुके हैं। प्रस्तुत आगम श्री विपाकसूत्रम की बृहट्टीका का आलेखन आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी महाराज के दिशानिर्देशन में उन्हीं के विद्वान् सुशिष्य पंजाब केसरी बहुश्रुत गुरुदेव श्री ज्ञानमुनि जी महाराज ने किया है। लगभग अर्द्ध शती पूर्वरचित इस टीका में गुरुदेव ने कितना महान् श्रम किया है वह इसके पठन से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। अर्द्धशती पूर्व जब हिन्दी भाषा का पूर्ण विकास नहीं हो पाया था उस समय में भी गुरुदेव श्री ने सरल, सरस और सुललित हिन्दी में पूरे अधिकार से अपनी लेखनी चलाई थी। प्रस्तुत विशाल ग्रन्थ जहां स्वाध्यायिओं के लिए कर्मसिद्धानत को हृदयंगम कराने के लिए एक आदर्श ग्रन्थ सिद्ध हुआ वहीं हिन्दी भाषा के विकास में भी इस ग्रन्थ का महान् योगदान रहा। इस दृष्विठ से गुरुदेव का आगम स्वाध्यायी मुमुक्षुओं और हिन्दी साहित्य पर महान् उपकार है। . सुखविपाक और दुःखविपाकनामकदो श्रुतस्कन्धों में संकलित प्रस्तुत आगम श्री विपाकसूत्रम् कर्म विपाक का सरल, स्पष्ट और दर्पण रूपा चित्र प्रस्तुत करता है। कथात्मक रूप में प्रस्तुत आगम अज्ञ-विज्ञ पाठकों के लिए कर्मसिद्धान्त को स्पष्ट करने में पूर्ण सक्षम है। इस आगम की स्वाध्याय में स्नान करने वाले भव्य जीव न केवल कर्म सिद्धान्त के हार्द को सरलता से हृदयंगम कर सकेंगे बल्कि कर्म-कल्मष से मुक्त होकर आत्मा के भीतर प्रतिष्ठित अपने परमात्म स्वरूप को भी उपलब्ध होने की पात्रता को अर्जित कर सकेंगे ऐसा मेरा विश्वास है। - इस आगम के संपादन कार्य में मेरे अन्तेवासी शिष्य तपोनिष्ठ मुनिवर श्री शिरीष जी एवं ध्यान साधक शरी शैलेश कुमार जी का सर्वतोभावेन समर्पित सहयोग रहा है। इन दोनों के अप्रमत्त सहयोग ने इस विशाल कार्य को सरल बना दिया। दोनों के लिए शुभाशीष। इनके अतिरिक्त जैन दर्शन के समर्थ विद्वान श्री ज. प. त्रिपाठी तथा श्रद्धाशील श्री विनोद शर्मा का समर्पित श्रम भी इस आगम के सम्पादन और प्रकाशन से जुड़ा रहा है। मूल पाठ-पाठन प्रूफ पठन तथा सुन्दर प्रिंटिंग के व्यवस्थापन में इनके अमूल्य सहयोग के लिए शत-शत साधुवाद। . - आचार्य शिव मुनि संपादकीय] श्री विपाक सूत्रम्

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 1034