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(२५) जे वंका ते पाए पमे; मोटे मंदिर कीधा वास, अंबाई नितु पूरे पास ॥११॥ नगर थकी प्रव दिशि रह्या, प्रागवाट तेणे कारण कह्या; डंग कलस सिर दीधी धजा, थापीअंबाईगोत्रजा॥१५
- ॥ वस्तु बंद ॥ नगर निर्मल नगर निर्मल, सहेजे श्रीमाल; जय नट्टे नट मोकल्या, सबल सहस दश जोडि किधा; चक्रवर्ति जे पौरवा, तासु पुत्र पुहविं प्रसिध्धा; अंबाई थिर थापीश्रा, अति उछव उहास; प्रागवाट तेणे कारणे, वसीया पूरव पास ॥१॥
॥चोपाई॥ क्रमे क्रमे जाति हुई बे घणी, वडी झाति श्रीमाली (१) तणी; पोझवाड (२) प्रगव्या उसवाल (३), गूजर (४) डीम् (५) डीसावाल (६)॥१॥ खडायता (७) खंडारा (6) खंडोल (ए.), कातुरा (१०) कालीका (११) कपोल (१) नाश्ल (१३) नागर (१५)
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