Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 150
________________ ( १४९ ) " जाणे देव छठे घर तथा ठाकुर कहीये न हुए आपणा ॥ ७४ ॥ जो जाणे परि सेवा तणी, ठाकुर पदवी दे प्रापणी; जिनवर पूजा सदा संजाल, चोराशी आशातना टाल ॥ १५ ॥ ज्यां थानक नवि हुये माठ, रही अलगो प्रणमे कर साठ, नव कर निरति कही निरवाए, वर अवग्रद् मध्यम जाण ॥ ७६ ॥ निसीही पहेली घर परिहरे, चिंता देव जुवननी करे; बोजी निसीढ़ी पूजा साथरि, जिन मंदिरनी चिंता वारि ॥ 99 ॥ त्रीजी निसीही पूरी कही, करो भ्यान जिन घ्यागल रहो ; करी अविधि आशातन हवी, जिनथानक नाक नसिक्युं रावी ॥ ७० ॥ खेल थूक रामत कोगला, कीधुं खुं खुं सीखो कला; मैथुन मन कलहो कर्यो, जिन मंदिर को हढि घर्यो ॥ ७ ॥ बाणां कापम पापड वी, दाल उगवी देहरे चडो; सिर कर अंग पखाल्या पाय, करी वात बीजा उपाय ॥ ८० ॥ नाख्या मख नोमाला पली; चामर छत्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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