Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 162
________________ ( १६१) ॥ वस्तु ॥ सुगुरु वाणी सुगुरु वाणी, सुणी नर राज मन वईराग्यो अति घणुं, कां कर्म कठिण गाढां; हवे मन श्राव्यो उरतो, सुणियां श्रवणे गुरु वचन टाढा; विमल मंत्रो इम विनवे, पाय न बोj हेव; पाप करी हवे ऊसनो, यो श्राखो. यण देव ॥१॥ ॥ ढाल ॥ ॥ करि पमिकमj, करि पडिकमणुं ॥ ए राह ॥ _हुं श्रशरण प्रनु तुं ताप हरणो, तुं समरथ गुरु राय; कर जोमीने करुं वीनती, सेवककरो सगुरु सुपसाय ॥१॥ द्यो आलोअण द्यो बालो. अण, (ए श्रांकणी) मागे विमल प्रधान; धर्मघोष सूरीश्वर पासे, आणी उपशम ध्यान ॥ यो थाम् ॥२॥ गुरु जंपे तुज किसि आलो. श्रण, कीधां कर्म अपार; सहस लाख लेखां नवि सहीये, जीव तणा संहार ॥ यो श्रा० ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180