Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 175
________________ (१४) खेतल वीर हतो जे वंक, दी विमल थयो ते रंक; राव करे अंबा कह्वे, विमल न माने जो मुहने ॥ १० ॥ अंबाइ कहे खेतल तुं जाण, एहशुं कोश् न पुढचे प्राण; संतोषी कीधो सांसतो, निवेज देशे मन जावतो ॥ ११ ॥ जो तुं वलतो मागिस जीव, तो नही बुटे करतो रीव; एहनी हाके फाटे आन, एहशुं बल करतां नवि लान ॥ १२ ॥ जो तुं कांई जान करेश, जो तुं एहशु बल मंमेश; ए वणीग नही केहने हाथ, धरी नाक नाथे सनाथ ॥१३॥ फोकट तुंबल घालिम मुंब, तुऊ नाखेसी साही पुंब; निर्दय नर नवि माने आण, ए तहारं विनय वखाण ॥ १४ ॥ तुम्हे म थाशो अति कला, देवरावीश तिलवट बाकला: वडां वेढम अने लापसी, दीधी बलि खेतल गयो इसी ॥ १५ ॥ वाली नाह मनाव्यो जुऊ, तव प्रासाद गजारो हुरी, धन थोडं लागे आपणुं, करो काम सवि सोना तणु ॥ १६ ॥ मोटा संघ पुरुष के कहे, सोवन जिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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