Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१७३) ते ते राते पाळु पडे ॥२॥ श्म करतां हया मास, थया शिलावट सवे निरास; श्रावी पुढे विमलड शाह, तेटखे बोदयो बाली नाह ॥३॥ कलकलतो क्रोधे धम धमे, महारं गम न मुकं किम्हें; कहिना जिन कहिना प्रासाद, कुण मंडे मुज सरिसो वाद ॥ ४ ॥ में जित्या सुर किंनर घणा, नाद उतार्या नरवर तणा; विमल वणिक सरिखा शा लोक, महारे मन त्रिवन ते फोक ॥५॥ विमल जणे सुण वाली नाह, खीर खांड मोदक व्यो लाह; आधुं बलि जो श्रापुं धीर, तेटले वोल्या खेतल वीर ॥ ६ ॥ जीव तणी बलि द्यो मंत्रीश, तो हुं वलतो नाणुं रीश; रह्यो मंत्रि दिन गाली सोय, चेजें सदा संचारे होय ॥७॥ पमी रयणी कर खां करी, दीवी बाह रह्यो सत धरी; आठयो वाली वीर विकराल, पायो मंत्री गयो देश फाल ॥७॥ त्यां गिरिवर ते गर्जित करे, थर थर पाणि सालिरि धरे, पुंज गुंड मोटुं सिर धरी. ज्यां करडु नावे केशरी ॥॥
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