Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
( १६३ )
बे उत्तम ठाम, करतां उद्यम सीजे काम ॥ ४ ॥ अचलेश्वर जे आगल छाडे, ए पर्वत थान्यो ढें पछे; तापस तप करता एणे वाय, तेह तपी नितु चरति गाय ॥ ५ ॥ मोटी खाम हती अडवडी, चरती गाय वरांसे पडी; तेणे धूमके धरती धडहडी, श्राव्या रिषि तापस दमवडी ॥ ॥ ६ ॥ नवि पेसाये नवि निसरे, डांग देखाने डचका करे; कामधेनु तत्र खीर ऊरी, जरी खाडने यावी तरी ॥ 9 ॥ संकट सोई सुखे उतरी, आवी रिषि आश्रम पाधरी; चिंते रिषि ए याव्यां मात, पण थी ए दोहली वात ॥ ॥ मल्या रिषिश्वर रावें गया, जो देमाचल कीधी मया; तुम्ह दी हे निर्मल कया, सजान मांहिं समुद्दता यया ॥ ए ॥ श्रम्ह घर रिद्धि
बे
तुम्ह ती, कहो कारण याव्या जेद जणी; कहे रिषि हे अर्बुद गिरि रहुँ, कामधेनु चावा नवि लहु ॥ १० ॥ अम्ह खागल प्रगटी पोढी खाड, पडे गाय ने जांजे हाड तहारा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/6e31c7cf99621b9d44326bb9ee6b11a690cd0e434a8a577c6a10149f524e47ff.jpg)
Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180