Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 170
________________ ( १६९) ॥ ४० ॥ तव सोवन टंका पाथरी, जाणे जिम मांडी साथरी; जे वच्चे अलग अगासी रहे, नूमि न आपुं जरमा कहे ॥४ए ॥ सोनैथा मांड्या चोकडे, ते उपर जो पंचम चके, आपुं जुमि तो अम्हे हसी, काम तुम्हारूं करशो धसी ॥ ५० ॥ विमले ते वर मानी वात, सोनैए जो चमशे धात; मांम्युं काज सरामे चमे, कुण गजुं सोनैया वडे ॥ ५१ ॥ आप्या सोनैया जिम कडा, संतोष्या सवि जरमा गया; तेड्या सिलावट से सात, जे जाणे वरतारावात ॥५॥ विद्या वास्तु विशेषे लहे, जे उत्तर पुढगाना कहे; पूजया मंत्रि जे जे जेद, आपे उत्तर में विद ॥ ५३॥ ॥उदा ॥ वर प्रासाद अनेक डे, सुण मंत्रिसर सार; एक बार दो बार हुए, त्रि बारो चो बार ॥१॥ मंडप मंस मंडीए, सोल सोल जो थंना थंज यंज.पण पुतली, माटिक करती. रंज ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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