Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 169
________________ ( १६० ) यक्ष, अंबाई यावी परत: विमले वात जणावी ताम, पूजाराशुं परव्यं श्रम ॥ ४१ ॥ कड़े अंबाई हूया तुम्ह जला, श्रीमाता आगल जे शिला; ते aral xari नाख, पासे करना जरमा राख ॥ ४२ ॥ इम बोले बाई अंब, ते देवल दादानुं बिंब, लाख ईग्यार वरसुं घमपुं, कर्मे कर तुम्हारे चमधुं ॥ ४३ ॥ खेत्रपाल अंबाई तणी, पासे मुरति काढे घणी ; ईम कही अंबाई वल्या, जरडा सरसा मंत्रि मया ॥ ४४ ॥ की धुं कर्यु बाई तणुं, जरमा मन मनाव्या घणुं; मोटो गढ कराव्यो तिहां, Jषण दीसे दादो जिहां ॥ ४५ ॥ खेत्रपाल बाई तणी, दीती दान मुरति आपणी; कामिपि सहित करावी जू, तीरथ जैन थापना हुइ ॥ ४६ ॥ श्रगल आलेख्यो प्रासाद, जरके सरमे मांड्यो वाद; भूमि ह्मारी वढ़ेंचण पमी, विण गरथे नावे एवम ॥ ४७ ॥ सोवन टंका मांडी जेल, ज्यां प्रासाद तो करो पोल; खपती चमि तुम्हारी करो, तो लेशो जो करशो बरो ॥ * Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180