Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 167
________________ ( १६६) परवाह, गुरु बाल सुण विमलज शाह ॥ २६ ॥ देव प्रते ए पर्वत अदृष्ट, गौतम रिषि नर रह्या विशिष्ट; तेह तणां ने थानक वडा, डुंगर मांहिं रह्या एकतमां ॥ १७ ॥ ए अर्बुद मिथ्याते प्रह्यो, सदगुरु बोल विमलने कह्यो; पहोतो विमल गयो अंबाव, ध्यान धरि बेगे महानुनाव ॥२०॥ त्रिहुं उपवासे प्रत्यक्ष हुई, मागो वर तुह्म तूरी सही; पहिलो वर मागो प्रासाद, अर्बुद सिखर सरीसो वाद ॥श्ए॥ बोलाव) जिन मंदिर नार, वात पडी डे वडे विचार; कहो तो सुत मागो वर लछ, कहो तो जिनमंदिर प्रसिद्ध ॥ ३० ॥ खी कहे सांजलो जरतार, सुत मागे वाधे संसार; के सुत जन्म्या कुल मंगणा, के खंपण उपाये घणा ॥३१॥ विरला बेटा लगता होय, विरला सुत कुल करमि जोय; केनी बेटी केनी मात, केना बेटा केना तात ॥ ३५ ॥ वेगे करि मागा प्रासाद, बेटानो माणो विषवाद; विमले पाणी मनट पणो, वर माग्यो प्रासावह तपो।।३३॥ 2 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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