Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( १६२ )
मांज्या देश नगर तें लुसियां, माय विठोह्यां बाल छाण चिंतवे घण आग लगाई, पशूच खुटो काल ॥ द्यो या० ॥ ४ ॥ खांडाने बेते होणितो, लीधी परधन को मि; तें दंड्या पृथ्विपति पोढा, लागी पातक कोमि ॥ द्यो य० ॥ ५ ॥ बोल्या कूरु मर्म तें मोसा, कीधा अति घण सोन; गुरु बोले सुप पृथ्वीपति, तुझ शी कीजे योज | यो ० ॥ ६ ॥
॥ चोपाई ॥
धर्मघोष सूरी बोले इसी, तुऊ आलोखण किसी; महारंज कीधा लख कोम, देतां चालो अम्द खोड ॥ १ ॥ पण आगम बोल्युं बे तोय, मिथ्या दृष्टी यानक होय; त्यां जिन मंदिर किम्हे कराय, तो नरवर आराधक थाय ॥ २ ॥ ऊ बेलोनी खंत, धर्म वस्यो बे तारे चंत; वर मिथ्याती सरसो वाद, करतां जो निपजे प्रासाद ॥ ३ ॥ अर्बुद सिखर बेजिन, तेनो महिमा शुं वर्णकुं; ए बोल्युं
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