Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 161
________________ (१६० ) रंक ते समा ॥ १५२ ॥ वेला घडी पहोर जे जाय, ते श्राउ उडं थाय; खलहल जल वूग गिरि ढले, ते निफरणां पाठां वले ॥ १५३ ॥ सहगुरु वाणि श्रवणे सांजले, तिम तिम विमल नयण जल नरे; कर्यां कर्म नस्यो प्राणी, फुःख सहित पुर्गति ताणी ॥ १५४ ॥ दान सिल तप ने नावना, करतां दिन आये जेहनां; तेहनु माम जपो मन मांड, जिम ए काया निर्मल थाय ॥ १५५ ॥ ज्यां खग धन त्यां लग सगां मले, धन विण सगां सहोदर टले; बेटा बेटो बहिनर जाय, धन विण नारि पियारी थाय ॥ १५६ ॥ जे करशे जोगवशे सोय, पाप न वहेंची लेशे कोय; देह उख जिम वसमुं थाय, वेदन विसु. कणई न लेवाय ॥ १५७ ॥ सुणी वाणी सहगु. रुनी घणी, पगे लाग्यो चंद्रावई धण); स्वामी एक वीनतमी करूं, द्यो आलोअप जिम जव तरूं ॥ १५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ___www.jainelibrary.org

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