Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
( १५१)
दी कर नवि जोमीया॥ नवि कीधोसचित परिहार, विण सचित न कयों सिणगार; वईडं कर्यु कराव्यु होय, मेल्या लोक आप को कोय ॥ए
आठ पमो न कर्यो मुखकोस, विण उतरासण लाग्यो दोष; पहेरी धोती सान विण जेअ, बेगे पाय पसारी बेथ ॥ ए० ॥ दोधी पुंठ जोई जिन जणी, आशातना अवर जे घण); ते वरजो जाणी मन माह्य, जिम तुसे त्रिनुवननो राय ॥ ए१ ॥ फूंक ढिंक ने तंती ताल, लालो पंचम नेद विशाल; नवले नाटक परछे पाग, वाजे वाजित्र रंगे राग ॥ ए ॥ गौमी कौलाहल विचार, माली कौशी देव गंधारः अतिम सिरि अंधाजलि खरी, खट नापा श्रीराने बरी।ए३॥ रामगिरी देशाख तोखार, कुंटगिरी पुलंजरी सार; धन्यासी कीजे मन खंत, ए खट नापा वरो वसंत ॥ ए४ ॥ प्रक्तका हसी ने . मी . कर्णाटो गूजरी सिंधकी, वेलानाल खट जाया लहे, तेहनो स्वामी पंचम कहे ॥ एए.॥ त्रिगण कंकन
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180