Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(१५३) करे सार; सतर अढार जोज्य रसवती, तिह अजद टाले जिनमती ॥ १०३ ॥ घट फली कणसडु प्रधान, त्रिहुं प्रकारे टाले धान; कंद पुप्फ फूल शाखा पत्र, पंचाशक ते कह्यां विचित्र ॥१०४ ॥ जल थल खचर जीव जग नणे, त्रिदुंना आमिष त्रण जे गणे; तीखो मधुरो कटु कसाय, खट खार खट रस कहेवाय ॥१५॥ सतर नोज्य ए पूरां थयां, सुण अढार जे जिण परि कह्यां; वाव्यां वेमि धानजिदोय, त्रण
आमिष पर सिध्धां जोय ॥ १०६ ॥ गोरस शाक चिहुं चिहुं परे, तेल हिंग कुरस आदरे; लवण वार नव नव विस्तार, मस्यां नोज्य एटले अढार ॥ १० ॥ पीलुं अन्न तेहु नवि जमे, तेहy नाम विदल उपजे; तेम जमो दधी तक मजार, एम बोल्युं गौतम गणधार ॥ १० ॥ जीव तणी नितु जयणा चणी, खप कीजे चंञो. दय तणी, जल दल खल खंगण रांधणे, शिका थानक संकेरणे ॥ १० ॥ जोजन जुमि घणी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/b51743f099b59b29cb440484d30c6d67ab1d237526d19ca41f487fc1685f1d5a.jpg)
Page Navigation
1 ... 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180