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( ६६ ) अन्न पान पूरां तो मले ॥ २॥ जां पोते हुईं पुण्य प्रकास, तां घर लखमी लील विलासः पाप तो जव पासो पडे, तव घर कूरी कुकस मे ॥ ३ ॥ रह्यो विमल मास्युं मोसाल, चारे चंचल वर वाल इणे अवसर देवी यंत्रीका, आव्यां बे आरास थकां ॥ ४ ॥ नव यौवन नवलो संयोग, देखी देवी वंबे जोग, कुंअर कहे परनारी नीम, अणपरणी कहो मानुं कीम ॥ ५ ॥ शील लगे तूठी बीका, त्रण वर दीधा पोता थका; बाण प्रमाण ते गाउ पंच, दय लक्षण तां वक्ष प्रपंच ॥ ६ ॥ नवल रूप निरतिं निमलां, श्रीजी अद्भुत अक्षर कला, वर देइ देवी संचरी, विमल वधावी विद्या खरी ॥ ७ ॥ ककुआं फल नवि लागे खंब, सोने कि नवि लागे संब; माणिक मेल न लागे लगार, सीलन मुके विमल कुमार ॥ ८ ॥ सील तणो महिमा मन वस्यो, आव्यो मंदिर दइडे दस्यो; जोज्यो पट्टणि एणे प्रस्ताव, वात हुइ बे सरस स्वभाव ॥ ए ॥
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