Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( १४३ )
उंबर ने प्लक्ष, काकोडुंबर पंचम वृक्ष ॥ ३०॥ मधु मांखण ने आमीष सरहो, रयणी जोजन ते परिहरो सवि मट्टी अत्थाएं अनंत, बहु बीज फल तुष्ठद अंत ॥ ३१ ॥ घोलवमां ने विंगण जाण, अणजाएया फल फुल म आपण; हीम करदा विष सवि रस चढ्या, ए अक्ष बावीसे मल्या ॥ ३२ ॥ द्रव्य क्षेत्र काले नव नवां, ते अक्ष जाणे तेहवां वर्ण विशेष वली टालीये, त्रण वार पाणी गालीये ॥ ३३ ॥ लांबा गलणां अंगुल श्रीस, छतिस गटां पुलपण वीस; खारां मीगं नवि जेलीये, संखारा थानक मेहेलीये ॥ ३४ ॥ ईंधण कण रंधण पाणीये, जीव तणी जयणा आणीये; खंडण पीसण लिंपण खले, जाणे जीव वधाये रखे ॥ ३५ ॥ वासी पोली जंदन दहीं, सोल पहोर उपरिरूं नहीं; वरजे वासी वली कठोल, म जमे जे मलवारी गुल ॥ ३६ ॥ सीयाले दिन बोल्या त्रीस, उन्हाने दिन जाये वीस वरसाने दिन पन्नर
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